● कारवां (20 फरवरी 2022)- विधानसभा में मुख्यमंत्री के कक्ष की भी होगी कायापलट

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष डॉ.चरणदास महंत एवं नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के कक्ष की पिछले साल दिसंबर महीने में कायपलट हो चुकी है। डॉ. महंत एवं कौशिक अपने-अपने सुसज्जित कक्ष को लेकर संतुष्ट हैं और प्रसन्न भी। मंत्रालय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष के कक्ष में किए गए इस बदलाव से खासे प्रभावित हुए। अब विधानसभा में मुख्यमंत्री के कक्ष की भी कायापलट की तैयारी चल रही है। चूंकि अभी विधानसभा बजट सत्र सामने है इसलिए तूरंत में कुछ नहीं होगा। मार्च महीने के ख़त्म होते ही मुख्यमंत्री कक्ष की कायापलट शुरु हो जाएगी। जुलाई में जब विधानसभा का मानसून सत्र होगा मुख्यमंत्री अपने सजे संवरे कक्ष में बैठे नज़र आएंगे।

बड़ी उम्र वाले तो दोनों

तरफ हैं लखमा जी…

छत्तीसगढ़ सरकार के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने यह कहते हुए फुलझड़ी छोड़ी कि “भाजपा के जो बुड्ढे लोग हैं उनका आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट कटेगा।“ लखमा के इस बयान से मीडिया को अच्छा खासा मसाला मिल गया। चैनलों पर इस विषय पर सत्ता पक्ष कांग्रेस व विपक्ष भाजपा के बीच ख़ूब बहस चली। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सवाल उठाया कि “भाजपा में किसे टिकट मिलेगी किसकी टिकट कटेगी यह तय करने वाले लखमा होते कौन हैं? वे अपनी पार्टी की चिंता करें।“ इसके पहले लखमा भाजपा प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को फूलन देवी कह दिए थे जिससे प्रदेश की भाजपा नेत्रियां बिफर गई थीं। चाहे कोई कुछ कहे भाजपा में वृद्धों का सम्मान तो है। 2013 में भाजपा ने वयोवृद्ध नेता बद्रीधर दीवान को टिकट दी थी, जो कि 80 की उम्र पार कर चुके थे। दीवान जी न सिर्फ वह चुनाव जीते बल्कि उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। यदि मन को परे रखकर काया की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह एवं नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी तो बूढ़ापे की ओर अग्रसर हैं। ऐसा कैसे मान लिया जाए कि इन दोनों नेताओं का युग समाप्त होने आ रहा है। फिर कांग्रेस में भी तो इस समय रामपुकार सिंह एवं सत्यनारायण शर्मा जैसे वरिष्ठ विधायक हैं जो बड़ी उम्र में भी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं।

‘सांड’ और ‘सृजन’ से

जुड़ा 5 का आंकड़ा

डोंगरगांव के कांग्रेस विधायक दलेश्वर साहू ग़रीबों की आर्थिक मदद की अनुदान राशि को लेकर विवादों में घिर गए हैं। उन पर अपनी पत्नी जयश्री साहू को 5 लाख रुपये का अनुदान दिए जाने का मामला सामने आया है। राजनांदगांव के भाजपा नेताओं ने दलेश्वर साहू पर तंज कसते हुए कहा है कि “उन्हें अपनों की काफ़ी चिंता है।“ वहीं दलेश्वर साहू का कहना है कि “पत्नी की सृजन फाउंडेशन नाम की संस्था है। अनुदान संस्था को दिया है, पत्नी को नहीं। सच्चाई जाने बिना इस तरह के अनर्गल आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए।“ दलेश्वर साहू कला प्रेमी होने के साथ कृषि प्रेमी भी हैं। जहां वे छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति की चिंता करते रहते हैं वहीं भाजपा के शासनकाल में विधानसभा में यह कहते हुए आवाज़ उठाने से परहेज़ नहीं किए थे कि “रायपुर के कृषि मेले में आख़िर हरियाणा से युवराज नाम के सांड को बुलवाने की क्या ज़रूरत थी। मेले में वह सांड गिनती के दिनों के लिए लाया गया था और भाजपा सरकार (तत्कालीन) ने उस पर 5 लाख से अधिक खर्च कर दिए।“ यह विचित्र संयोग ही है कि सांड का मामला 5 लाख का था और जिस अनुदान को लेकर विवाद उठा है उसकी राशि भी 5 लाख ही है। दलेश्वर साहू से पहले स्कूली शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम एवं मनेन्द्रगढ़ के कांग्रेस विधायक डॉ. विनय जायसवाल की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे थे। टेकाम ने अपने निज सचिव के पद पर अपनी पत्नी की नियुक्ति करवा ली थी। जैसे ही मुखिया के संज्ञान में यह बात आई नियुक्ति रद्द हो गई। विनय जायसवाल पर यह कहते हुए उंगली उठाई गई थी उन्होंने अपनी विधायक निधि से बड़ी राशि मीडिया वालों को विज्ञापन के नाम पर बांट दी।

बस्तर में ‘कॉफी’ भी है!

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने रायपुर में मंच पर से बस्तर में उत्पादित कॉफी की जो दिल खोलकर तारीफ़ की उससे उसकी अच्छी खासी ब्रांडिंग हो गई है। राहुल ने मंच से कहा कि “मुख्यमंत्री जी बस्तर की कॉफी देश तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि इसे विदेशों में भी पहुंचाएं।“ राहुल जी के इस अनमोल वचन के बाद सरकार कॉफी को लेकर सक्रिय हो गई है। मंत्रालय में टी कॉफी बोर्ड की बैठक में तय हुआ कि बस्तर की कॉफी को बढ़ावा देने रायपुर व दिल्ली में बस्तर कैफे खोलना है। दिल्ली ही नहीं देश के और भी हिस्सों में बस्तर की पहचान नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में है। अब बस्तर की छवि भी बदलने की कोशिश हो रही है। दिल्ली में जब ‘बस्तर कैफे’ खुलेगा तो एक तरह से यह मैसेज जाएगा कि बस्तर में नक्सलवाद के अलावा और भी बहुत कुछ है। हो सकता है रायपुर के बाद प्रदेश के सभी जिलों में ‘इंडियन कॉफी हाउस’ की तर्ज पर ‘बस्तर कैफे’ खोलने की पहल हो, जैसा कि सभी जिलों में ‘गढ़कलेवा’ खोलने को लेकर हुई थी। क्या शासन के निर्णय के बाद सभी जिलों में ‘गढ़कलेवा’ खुल पाया, यह एक कठिन सवाल है।

निगम-आरडीए, आपस

में ही खिंची तलवारें

रायपुर नगर निगम एवं रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के बीच जो युद्ध छिड़ा हुआ है, वह थमने का नाम नहीं ले रहा। नगर निगम ने हाल ही में बक़ायादारों की फिर से जो लिस्ट सार्वजनिक की उसमें साफ लिखा है कि आरडीए के वॉटर वर्ल्ड से 2020-21 का 21 लाख 8 हजार 260 रुपये वसूला जाना है। फिर रायपुर के हृदय स्थल कहलाने वाले जयस्तंभ चौक के पास नाले के ऊपर आरडीए ने कभी जो दुकानें बनवाई थीं उन्हें वह फ्री होल्ड करने जा रहा है और यह दुकानें निगम के निशाने पर हैं। निगम ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज करवा दी है कि “नियमतः नाले के ऊपर दुकानें नहीं बनी होनी चाहिए लेकिन आरडीए ऐसा काम कर गया। नाले के ऊपर बनी दुकानों की यदि रजिस्ट्री हो जाती है तो सफाई के काम में भारी बाधा उत्पन्न होगी।“ निगम के इस हमले से आरडीए घेरे में आ गया है। चर्चा तो यह भी है कि 2021 के सख्त कोरोना लॉक डाउन के दौरान जब पूरे शहर में सन्नाटा छाया हुआ था कांग्रेस के दो पार्षदों ने पर्दे के पीछे रहते हुए पंडरी कपड़ा मार्केट के पास कोई निर्माण करवा लिया था जिसे आरडीए ने तोड़ गिरवाया। नगर निगम में इस समय कांग्रेस की सत्ता है और आरडीए के अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष से लेकर चार संचालक मंडल के सदस्य ये सभी पुराने कांग्रेसी हैं। यानी तलवार आपस में ही खींची हुई है।

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