● कारवां (12 मार्च 2023)- वैचारिक युद्ध में नया हथियार ‘भीड़’

■ अनिरुद्ध दुबे

कौन कहता है कि सिनेमा सिर्फ़ मनोरंजन तक सीमित है। जब से सोशल मीडिया का ज़माना आया सिनेमा कई रंगों में रंगा बेहतरीन हथियार बन गया है। राजनीतिक पार्टियों के लिए सिनेमा तो इस समय मानो बहुत काम आ रहा है। ‘दी एक्सीडेंटल प्राइम मीनिस्टर’, ‘इंदु सरकार’, ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’, ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘राम सेतु’ एवं ‘गांधी-गोडसे एक युद्ध’ के बारे में यही कहा जाता रहा है कि ये फ़िल्में किसी न किसी रूप में कांग्रेस पर चोट करती नज़र आई हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इन सभी फ़िल्मों का किसी छिपे हुए एजेन्डे के तहत निर्माण हुआ है। इनमें से ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर छत्तीसगढ़ में ही भाजपा एवं कांग्रेस दोनों पार्टियां आमने-सामने हो गई थीं। अब मानो ‘भीड़’ कांग्रेस का बड़ा हथियार बनते नज़र आ रही है। बात यहां सड़कों या चौक-चौराहों पर नज़र आने वाली भीड़ की नहीं हो रही, बल्कि उस ‘भीड़’ की हो रही है जिसका 24 मार्च को सिनेमाघरों में प्रदर्शन होने जा रहा है। बात अनुभव सिन्हा निर्देशित फ़िल्म ‘भीड़’ की हो रही है। इसके पहले अनुभव सिन्हा ‘मुल्क’ एवं ‘आर्टिकल 15’ जैसी फ़िल्में निर्देशित कर चुके हैं जो वैचारिक धरातल पर गंभीर बहस का मुद्दा रही थीं। ‘भीड़’ की बात है तो वह उन लाखों प्रवासी मजदूरों की कहानी है जिन्हें 2020 के कोरोना लॉक डाउन में सीने में बोझ लिए महा नगरों से अपने गांव लौटना पड़ा था। गांव वापसी के समय रास्ते भर उन्होंने क्या-क्या दुख दर्द नहीं झेला। ‘भीड़’ का ट्रेलर रिलीज़ होने के साथ ही कांग्रेस का झंडा उठाने वालों ने सोशल मीडिया में लोगों का ध्यान खींचना शुरु कर दिया है। राजधानी रायपुर में रहने वाले कांग्रेस के एक गंभीर विचारक ने ‘भीड़’ को लेकर फ़ेस बुक में लिखा है कि “फ़िल्मकार अनुभव सिन्हा वो हैं जिन्हें ख़तरों की शिनाख़्त है, जिन्हें समझ है कि आज का सबसे बड़ा संकट क्या है और लड़ाई किसके खिलाफ़ होनी चाहिए! वो विचलित होते हैं तो मुंह नहीं सिलते अपनी फ़िल्मों से चीखते हैं! एक फ़िल्मकार के रूप में जो अनुभव सिन्हा कर रहे हैं वही आज कथाकार के रूप में मुंशी प्रेमचंद और जन कवि के रूप में बाबा नागार्जुन करते।“

शाह और डेका के

बस्तर दौरे के मायने  

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इसी मार्च महीने में बस्तर दौरा होना है। उनके आने से पहले आईबी चीफ तपन कुमार डेका का बस्तर के सुकमा जिले का आकस्मिक दौरा हुआ। इस दौरान छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा उनके साथ थे। इधर, डेका का दौरा हो रहा था और उसी दिन सुकमा जिले के पोंगा भेजी में नक्सलियों ने सरपंच पुनेम सन्ना की डंडे से पीट-पीटकर हत्या कर दी। इससे पहले बस्तर में एक के बाद एक तीन भाजपा नेताओं की नक्सलियों व्दारा की गई हत्या का मामला सड़क से लेकर विधानसभा तक में उठ चुका है। छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रहे, नक्सलवाद कम होने के दावे कितने भी होते रहें, लेकिन नक्सली बीच-बीच में वारदात को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति का अहसास करा ही देते हैं। जब डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री एवं ननकीराम कंवर गृह मंत्री थे तो कभी इन लोगों ने कहा था कि “नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मारेंगे।“ मांद में घुसकर मारना तो दूर भाजपा शासनकाल में झीरम घाटी जैसा कभी नहीं भूला पाने वाला हादसा हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह चुके हैं कि “नक्सली भारत के संविधान पर आस्था जताते हुए बातचीत के लिए आगे आते हैं तो उस पर विचार हो सकता है।“ अभी जो हालात हैं उससे तो नहीं लगता कि बातचीत का कोई रास्ता खुल पाएगा। छत्तीसगढ़ की सरकार इस समय बस्तर के दूरदराज़ क्षेत्रों में सड़क निर्माण से लेकर अन्य विकास कार्य ज़रूर करा रही है, लेकिन लंबे समय तक शांति बने रहने के बाद जिस तरह हत्याओं का दौर फिर शुरु हो गया वह चिंताजनक है। इस साल दिसंबर में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव है और मई 2024 में लोकसभा चुनाव संभावित है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इस समय जो बस्तर दौरा होने जा रहा है वह कई दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता है। अमित शाह जब बस्तर आएंगे तो कई बातें छनकर सामने आएंगी। शाह जिस जगह पर अपने कदम रखें और वहां हलचल पैदा न हो ऐसे भला कैसे हो सकता है।

फिर सुर्खियों में शराब

छत्तीसगढ़ में शराब का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। बताते हैं शराब बंदी के लिए सरकार की ओर से बनाई गई समिति बिहार का दौरा कर आई है, जहां पूर्ण शराब बंदी है। इसके पहले समिति गुजरात का दौरा करके आ चुकी है वहां भी पूर्ण शराब बंदी है। पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा समिति के अध्यक्ष हैं। रायपुर सांसद सुनील सोनी ने आरोप लगाया है कि “2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं ने गंगाजल हाथ में लेकर शराब बंदी का वादा किया था।“ दूसरी तरफ कांग्रेस नेता छाती ठोंक कर कह रहे हैं के “हमने गंगा जल हाथ में लेकर शराब बंदी का नहीं किसानों की कर्ज़ माफी का वादा किया था। किसानों से जो वादा किया था उसे सरकार में आते ही कुछ ही घंटों के भीतर पूरा किया।“ बहरहाल जिस राज्य में शराब बंदी पूर्णतः लागू है वहां का अध्ययन कर आई टीम अपनी रिपोर्ट सरकार के सामने प्रस्तुत करेगी। जब तक रिपोर्ट प्रस्तुत होगी इस साल होने वाला विधानसभा चुनाव क़रीब आ जाएगा। पता नहीं शराब को लेकर कोई ठोस निर्णय हो पाएगा या नहीं हो पाएगा? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2019 में कहा था कि “शराब बंदी करेंगे, लेकिन नोट बंदी की तरह नहीं।“ हो सकता है सीएम साहब के मन में अब भी शराब बंदी को लेकर गंभीर चिंतन मनन चल रहा हो।

रंग-गुलाल के

बीच संतुलन

भाजपा हो या कांग्रेस, जब आप इसके प्रदेश संगठन प्रमुख जैसे पद पर बैठ जाएं तो कम से कम राजधानी रायपुर जो कि पॉवर सेंटर है, वहां ज़िम्मेदारियां बढ़ ही जाती हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव को ही लें। वे बिलासपुर सांसद हैं और उनका गृह नगर भी बिलासपुर ही है। जब तीज त्यौहार पड़े तो उन्हें रायपुर-बिलासपुर दोनों तरफ बैलेंस करना पड़ता है। होलिका दहन वाले दिन जब सारे बड़े जन प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों में रहते हुए होली के मूड में आ चुके थे अरुण साव शाम-रात तक अपना कीमती समय राजधानी रायपुर में देते नज़र आए। रायपुर में वे भाजपा मीडिया इंचार्ज अमित चिमनानी एवं हाई प्रोफाइल नेता कहलाने वाले संजय श्रीवास्तव व्दारा आयोजित होली मिलन समारोह में गए। साव जहां भी गए पार्टी के लोगों एवं आम जनता के बीच पर्याप्त समय दिए। होलिका दहन वाली देर रात वह बिलासपुर पहुंचे। रंग खेलने वाले दिन साव का अपने बिलासपुर क्षेत्र के लोगों से मेल मुलाक़ात का दौर चलते रहा। भाजपा में पूरे समय सक्रिय रहने वाले कुछ लोगों का कहना है कि संतुलन कैसे बनाकर रखा जाता है ये कोई हमारे नेता साव जी से सीखे।

चौड़ीकरण तो शास्त्री

चौक तक भी

हो सकता है श्रीमान

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में 2023-24 का अनुमानित बजट पेश करते हुए अपने भाषण में कहा कि “रायपुर के जीई रोड पर शारदा चौक से तात्यापारा चौक तक सड़क चौड़ीकरण के लिए 10 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।“ पहले चरण में आमापारा से आजाद चौक तक सड़क का चौड़ीकरण 2007 के आसपास रायपुर नगर निगम व्दारा किया गया था। तब रायपुर महापौर सुनील सोनी थे। चौड़ीकरण के लिए पहला जोर उन्हीं ने लगाया था। यही नहीं जयस्तंभ चौक जिसे हम आज चौड़ा देख रहे हैं वह भी सोनी के ही कार्यकाल की देन रही। किरण बिल्डिंग टूटकर पीछे हुई तब कहीं जाकर जयस्तंभ चौक का निखरा हुआ स्वरूप सामने आया। वर्तमान महापौर एजाज़ ढेबर लंबे समय से इस कोशिश में लगे रहे हैं कि तात्यापारा से शारदा चौक तक आगे का चौड़ीकरण हो जाए। वैसे रायपुर शहर के ज़्यादातर लोग जयस्तंभ चौक से और आगे शास्त्री चौक तक चौड़ीकरण के पक्ष में रहे हैं। जब भारी बारिश होती है तो सड़कों पर पानी शास्त्री चौक से राज टाकीज़ के बीच ही भरता है। ऊपर से शास्त्री चौक से राज टाकीज़ के बीच डायनासोर के कंकाल के माफिक नज़र आने वाला असफलता का आधा अधूरा स्मारक स्काई वॉक अलग आंखों को चुभता है। जब राजधानी की मुख्य सड़क के सुधार की पहल हो ही रही है तो पूरी तरह होनी चाहिए। अब कि बार तो सड़क चौड़ीकरण के लिए सीधे सरकार का इंट्रेस्ट झलका है। सरकार चाहे तो क्या न कर ले। सब कुछ इच्छा शक्ति पर निर्भर है।

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