● कारवां (2 अप्रैल 2023)- पत्रकारिता, पीत पत्रकारिता और मूत्रकारिता

■ अनिरुद्ध दुबे

उत्तरप्रदेश के राजनीति से जुड़े एक अपराधी की मूत्र त्याग करते हुए पीठ की तरफ वाली तस्वीर एक राष्ट्रीय चैनल में जो सामने आई उस पर यह कहते हुए पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है कि पत्रकारिता का स्तर कहां से कहां पहुंच गया है। कितने ही लोग इसकी सोशल मीडिया में निंदा करते हुए इसे पत्रकारिता की जगह मूत्रकारिता लिखने में पीछे नहीं रहे हैं। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मूत्रकारिता तो पीत पत्रकारिता (यलो जर्नलिज़्म) से भी ऊपर है। मूत्रकारिता से परे हटकर बात करें तो पीत पत्रकारिता के उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहे हैं और यह कोई आज से नहीं बरसों से होते आ रहा है। बात 1989 की है। तब इलेक्ट्रानिक मीडिया का दौर नहीं आया था। रायपुर के एक पड़ोसी जिले से दो दैनिक अख़बारों का प्रकाशन हुआ करता था। एक प्रातःकालीन था तो दूसरा सांध्य दैनिक। हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों अख़बारों के बीच लेखन युद्ध छिड़ गया। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का सिलसिला जो शुरु हुआ तो कई दिनों तक चलते रहा। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि दोनों ही अख़बार के संपादक लिखने पर से अपना नियंत्रण खो चुके थे और छद्म नाम से आर्टिकल लिखकर एक दूसरे के कपड़े उतारने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे थे। एक संपादक ने अन्य काल्पनिक व्यक्ति के नाम से लास्ट पेज पर शाब्दिक हमले वाला आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक था- “बोल कुत्ते बोल अपनी भाषा बोल।“ ठीक इसके दूसरे दिन दूसरे अख़बार के संपादक ने भी दूसरे नाम इस्तेमाल करते हुए ख़तरनाक किस्म का आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक था- “रायपुर का कुत्ता कफ़न फाड़कर बोला।“ इसके अलावा समाचार पत्रों में विज्ञापन के मामले में असावधानी बरतने वाले उदाहरण भी सामने आते रहे हैं। आज जैसा खुलापन हम देख रहे हैं 90 के दशक में वैसा खुलापन नहीं था। सामाजिक स्तर पर नियम कायदे काफ़ी कड़े थे और मर्यादा का अपना स्थान था। 90 के दशक में रायपुर से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक बड़े अख़बार में एक लघु विज्ञापन कुछ इस तरह देखने में आया था कि “एक ऐसी सुंदर और सुशील युवती की ज़रूरत है जो बिना शादी के साथ रहे सके।“ इस लघु विज्ञापन को लेकर काफ़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। तब ‘लिव इन रिलेशनशिप’ जैसा शब्द सुनने में भी नहीं आता था, जो कि अब आम हो गया है।

क्षेत्रिय पार्टी खड़ी करने

की तैयारी में जुटे अफ़सर

पिछले कुछ सालों में देखें तो आला अफसरों का सक्रिय राजनीति के प्रति क्रेज बढ़ा है। कुछ रिटायरमेंट के बाद राजनीति में कदम रखते हैं तो कुछ बिना देर किए सीधे नौकरी से इस्तीफ़ा देकर मैदान में कूद पड़ते हैं। छत्तीसगढ़ में आईएएस ओ.पी. चौधरी बड़ा उदाहरण हैं जिन्होंने 2018 में सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। चौधरी खरसिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे और कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल के हाथों उन्हें पराजय मिली थी। वर्तमान कांग्रेस विधायक शिशुपाल सोरी पूर्व में बड़े अफ़सर हुआ करते थे। वहीं विधानसभा उपाध्यक्ष संत राम नेताम एवं कांग्रेस विधायक अनूप नाग की पूर्व में सेवाएं पुलिस विभाग में थीं। अंदर की ख़बर यही है कि एक युवा आला अफ़सर राजनीति के मैदान में उतरने का मन बनाए हुए हैं। उनका मन कांग्रेस या भाजपा में जाने का नहीं है। वे खुद एक क्षेत्रिय पार्टी बनाना चाह रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भी रख लिया है और रजिस्ट्रेशन के लिए भेज दिया है। साहब ने एकदम क़रीबी लोगों से कह रखा है कि “यदि मनचाहा नाम रजिस्टर्ड हो जाता है तो इस साल नौकरी को नमस्ते कर देंगे और विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाएंगे।“ युवा अफ़सर अपने क़रीबी मित्रों से यह भी कहते रहे हैं कि “ताराचंद जी, विद्या भैया एवं जोगी जी का तीसरी ताकत के रूप में चुनावी मैदान में आना मजबूरी रही थी, लेकिन मेरी पार्टी अगर सामने आई तो किसी मजबूरी के चलते नहीं आएगी। वह छत्तीसगढ़ राज्य की तस्वीर बदल देने का मकसद लेकर राजनीति के अखाड़े में उतरेगी।“

चुनावी वर्ष में ईश्वर

के दरबार हाज़री

चुनावी वर्ष है। कोई टिकट के लिए मन्नत मांगते हुए धार्मिक स्थल में जाते दिखेगा तो कोई इस प्रार्थना के साथ परमात्मा के दरबार में हाज़री देते नज़र आएगा कि हे प्रभु, इस बार के भी चुनाव में नैया पार लगाना। रायपुर उत्तर विधायक कुलदीप जुनेजा अपनी धर्म पत्नी के साथ स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने अमृतसर पहुंचे हुए हैं। वहां से व्यास जी भी जाएंगे और धार्मिक स्थल पर हाज़री लगाएंगे। रायपुर उत्तर से ही पूर्व में विधायक रहे श्रीचंद सुंदरानी का सांई बाबा के दर्शन करने शिरडी जाना होते रहता है। कुछ नेतागण हैं जो बाबा बैजनाथ धाम के दर्शन करने जाते रहते हैं। उज्जैन के बाबा महाकाल के प्रति भी हमारे यहां के बहुत से राजनीतिज्ञों की गहरी आस्था है। विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद डॉ. चरणदास महंत सपरिवार अजमेर शरीफ दरबार पहुंचे थे।

तरह-तरह के अपराध

छत्तीसगढ़ में जुए-सट्टे पर रोक लगाने के लिए बने कानून को राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन ने मंजूरी दे दी है। इसमें कई तरह के प्रावधान रखे गए हैं। दोषी पाए जाने पर 3 साल की कैद से लेकर 10 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। इसे छत्तीसगढ़ सरकार का एक सख़्त कदम माना जा रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ में जुए सट्टे के अलावा और भी अपराधों पर सख़्ती बरतने की ज़रूरत है। 23 मार्च, जिस दिन छत्तीसगढ़ के बजट सत्र का अवसान हुआ, भाजपा विधायकों ने प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था पर स्थगन प्रस्ताव लाया था। भाजपा विधायकों ने अपनी बात रखते हुए कहा था कि “हमारी गाड़ियों के सामने से बाइक चलाते बिगड़ैल लड़के कट मारते हुए निकल जाते हैं, उनके ख़िलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती। राजधानी रायपुर में स्कूलों के पास स्मैक, गांजा, चरस बिक रहा है। रायपुर अब चाकूपुर कहलाने लगा है।“ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने गंभीर आरोप लगाते हुए विधानसभा में कहा था कि “अंडरवर्ल्ड का शूटर छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा रहा है। नकली नोट यहां पर खपाए जा रहे हैं। कहने में शर्म आती है लेकिन कहना पड़ रहा है कि जिगोलो बने पुरुष सेक्स वर्कर सोशल मीडिया में खुला आमंत्रण देकर यहां के लोगों से ठगी कर रहे हैं।“

बिलासपुर एयरपोर्ट

के दिन कब फिरेंगे

हाल ही में यह ख़बर सामने आई है कि केंद्रीय नागर विमानन मंत्रालय ने बिलासपुर के बिलासा बाई केंवटीन एयरपोर्ट को भावी योजनाओं के लायक नहीं समझा। भावी योजनाओं की सूची में देश भर के 96 एयरपोर्ट रखे गए हैं जिसमें बिलासपुर एयरपोर्ट का नाम नहीं है। उन 96 में छत्तीसगढ़ से केवल रायपुर का माना एयरपोर्ट शामिल है। रायपुर के अलावा बिलासपुर एवं जगदलपुर के ही एयरपोर्ट ऐसे हैं जहां से नियमित उड़ान जारी है। उसमें भी बिलासपुर एवं जगदलपुर से गिनी-चुनी ही उड़ानें हैं। छत्तीसगढ़ में जब डॉ. रमन सिंह की सरकार थी तो क्षेत्रिय स्तर पर उड़ानों का कॉसेप्ट लाया गया था, जिसमें रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर, भिलाई, कोरबा, रायगढ़ एवं अंबिकापुर जैसे शहर शामिल किए गए थे। वह योजना मूर्त रूप नहीं ले पाई। रायपुर को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा का दर्जा दिलाने का प्रयास पिछली सरकार के समय से चल रहा है और इस कांग्रेस सरकार को भी चार साल से ज़्यादा समय हो गया। रायपुर हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई उड़ानों के लायक बनाने प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार के बीच कोई बातचीत चल रही हो हाल फिलहाल ऐसा कुछ सुनने में तो नहीं आया है। पिछले वर्ष जब केन्द्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया छत्तीसगढ़ आए थे तब उन्होंने रायपुर एवं बिलासपुर एयरपोर्ट के विस्तार नहीं हो पाने के पीछे छत्तीसगढ़ की सरकार पर ही जमकर दोष मढ़ा था।

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