● कारवां (16 अप्रैल 2023)- पर्यटन रिसॉर्ट में शराब मिले तो क्या बुरा……

■ अनिरुद्ध दुबे

“और भी जाम टकराएंगे

इस शराबख़ाने में

मौसमों के आने में

मौसमों के जाने में”

भाजपा लगातार शोर मचाती रही है कि छत्तीसगढ़ की सरकार शराब बंदी के अपने वादे को पूरा नहीं कर रही है। जहां तक सरकार की बात है तो उसे बहुत से पहलुओं पर पूरी गंभीरता के साथ विचार करते हुए ही आगे कोई कदम उठाना पड़ता है। जो लोग मदिरा पान का शौक रखते हैं वो भी तो आख़िर अपने ही हैं, कोई पराये नहीं। फटाक से किसी तरह का निर्णय लेकर किसी की भावनाओं को कैसे आहत किया जा सकता है। तभी तो नया फैसला हुआ है कि पर्यटन विभाग के रिसॉर्ट में भी अब शराब मिलेगी। प्रथम चरण में यह महत्वपूर्ण सुविधा पांच रिसॉर्ट बारनवापारा, सरोदा दादर, चित्रकोट, जशपुर एवं मैनपाट में बार खोलकर उपलब्ध कराई जाएगी। अगर यहां प्रयोग सफल रहा तो धार्मिक स्थानों को छोड़कर अन्य पर्यटन स्थलों में भी शराब सेवा जैसा महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सकता है। पर्यटन विभाग का तर्क है कि कुछ ऐसे रिसॉर्ट हैं जहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं और वहां से 40 से 50 किलोमीटर दूर तक शराब दुकानें नहीं हैं। यहा कारण है कि मदिरा प्रेमियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया जा रहा है। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि रिसॉर्ट में शराब 20 प्रतिशत तक महंगी मिलेगी। घुमंतू किस्म के शराब प्रेमियों का यही कहना है कि 20 प्रतिशत महंगी भी मिले तो भी ‘मय’ का यह सौदा बुरा नहीं है।

मई में दिख सकता है भाजपा

का एक और बड़ा आंदोलन

इस चुनावी वर्ष में हर महीने भाजपा का किसी न किसी मुद्दे पर एक बड़ा आंदोलन देखने मिल जा रहा है। पहला बड़ा आंदोलन बेरोजगारी को लेकर था, फिर पूर्ण शराब बंदी की मांग पर हुआ। मार्च महीने में आंदोलन का मुद्दा प्रधानमंत्री आवास था फिर इस अप्रैल माह में बिरनपुर की घटना आंदोलन का मुद्दा थी। बताते हैं मई में होने वाले आंदोलन को लेकर पार्टी के दिग्गजों के बीच गहन विचार विमर्श चल रहा है। पार्टी के सात बड़े मोर्चे हैं। सातों मोर्चे के पदाधिकारियों को समझा दिया गया है कि कौन से मुद्दे को लेकर किस तरह सड़क की लड़ाई लड़नी है। निश्चित रूप से सुलगते हुए मई महीने में विपक्ष की राजनीति और गरमाती नज़र आएगी।

विधायकी का मोह

बस्तर के एक नेता जी इन दिनों काफ़ी सुर्खियों में हैं। जब पहली बार विधानसभा चुनाव की टिकट मिली थी, जीते। दोबारा विधानसभा चुनाव की टिकट मिली तब भी जीते। उनकी काबिलियत को देखते हुए विधानसभा चुनाव के क़रीब 5 महीने बाद उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया गया। वहां भी वे जीते। सांसद बने तो विधायक पद छोड़े। बताते हैं विधायक पद का आकर्षण उन्हें आज भी खिंचता है। यही कारण है कि वे मन बना चुके हैं कि दिसंबर में फिर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। यह भी सोच रखा है कि उनके चुनाव लड़ने में किसी तरह का अड़ंगा आया तो टिकट के लिए अपनी पत्नी का नाम आगे करेंगे। दिल्ली में लोकसभा के भीतर की बात हो या बाहर, अपने बड़े नेताओं का ध्यान खींचने के लिए नारेबाजी करने में ये नेता हमेशा अव्वल रहे। दिल्ली के बाबा से इनका मामला तो ठीकठाक है ही यहां के मुखिया की भी ये पहली पसंद हैं। इनकी आगे की तैयारियों का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि विधायकी से इस्तीफ़े के बाद इनकी जगह जो दूसरे नेता विधायक बने उन पर भी अब ये तीर चलाने से पीछे नहीं हट रहे हैं। हाल ही में हुए कुछ सार्वजिनक कार्यक्रमों में मंच से ये उसी विधायक के ख़िलाफ बोलते दिखे जिनके लिए इन्होंने कभी उप चुनाव में पूरे तन मन से काम किया था। वैसे भी खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए दूसरे को कमजोर दिखाना राजनीति में हमेशा से ज़रूरी समझा जाता रहा है।

कुत्ते की ख़ास ट्रेनिंग

पिछले हफ़्ते हमने अपने ‘कारवां’ कॉलम में बड़े साहब लोगों के अपने कुत्तों से गहरे लगाव के बारे में चर्चा की थी। गहरे लगाव की एक और नई कहानी भरोसेमंद सूत्रों से सुनने को मिली है। इन दिनों रायपुर में पदस्थ एक बड़े साहब की हमेशा से यही सोच रही है कि उनके कुत्ते की क्वालिटी अन्य दूसरे साहबों के कुत्तों की क्वालिटी से कम नहीं रहनी चाहिए। साहब के ऊंचे-पूरे कुत्ते को ख़ास किस्म की ट्रेनिंग देने एक शख़्स हर हफ़्ते बिलासपुर से यहां आता है। साहब अपने बंगले में काम करने वालों का कितना ध्यान रखते हैं इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके यहां निजी तौर पर कार्यरत एक स्टाफ का जब हफ्ते पंद्रह दिन में दूसरे जिले में स्थित अपने घर जाना होता है तो उन्हें बक़ायदा यहां से कार छोड़ने जाती है। बड़े साहबों के यहां काम करने वालों का ऐसा ही जलवा रहता है।

टाटीबंद ओवर ब्रिज

‘तारीख़ पे तारीख़’

राजधानी रायपुर में निर्माणाधीन ओवर ब्रिज एवं एक्सप्रेस वे ये दो ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनके काम पूरे होने को लेकर तारीख़ पर तारीख़ ही सामने आती रही है। पहले यह जानकारी सामने आई थी कि कोलकाता-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच पड़ने वाले टाटीबंद ओवर ब्रिज का काम जनवरी में पूरा हो जाएगा। फिर ख़बर सामने आई कि मार्च में पूरा होगा। अब तो अप्रैल भी आधा बीत चुका। रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे निर्माणकर्ता एजेन्सी पर लगातार नाराज़गी जताते भी रहे हैं पर काम ऐसा है कि सलट ही नहीं रहा। जहां तक रेल्वे स्टेशन से धमतरी मार्ग के बीच बने एक्सप्रेस वे की बात है तो स्टेशन के ठीक बाजू अंडर ब्रिज का निर्माण कार्य चल रहा है। यह काम जून में पूरा होने की संभावना जताई जा रही है। यानी यहां भी अभी काफ़ी देर लगना है। पक्के तौर पर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि सितंबर या अक्टूबर में लगने वाली चुनावी आचार संहिता से पहले इन दोनों प्रोजेक्ट का लोकार्पण हो जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *