● कारवां (20 मार्च 2022)- ‘द कश्मीर फाइल्स’ और टोटका

■ अनिरुद्ध दुबे

इन दिनों ‘द कश्मीर फाइल्स’ की चर्चा पूरे देश में है। कोई इस फ़िल्म के पक्ष में है तो कोई विरोध में। छत्तीसगढ़ विधानसभा के इन दिनों चल रहे बजट सत्र के दौरान ‘द कश्मीर फाइल्स’ के मुद्दे को नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने जमकर उठाया और अन्य प्रदेशों की तरह छत्तीसगढ़ में भी इसे टैक्स फ्री करने की मांग की। जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि चूंकि मसला जीएसटी से जुड़ा है, अतः इस पर केन्द्र सरकार को फैसला लेते हुए इसे पूरे देश में टैक्स फ्री करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों तरफ के लोगों को इस फ़िल्म को देखने का आमंत्रण दिया। मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री व कांग्रेस विधायकगण तो राजधानी रायपुर के एक मॉल में इस फ़िल्म को देखने पहुंचे लेकिन विपक्षी भाजपा विधायकगण नहीं गए। फ़िल्म देखने के बाद मॉल में ही मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “द कश्मीर फाइल्स’ में आधा सच ही सामने आया है, पूरा सच नहीं। इसमें हिंसा बहुत ज़्यादा है।“ बहरहाल छत्तीसगढ़ के सिनेमा जगत से जुड़े कुछ लोग हल्के फुल्के अंदाज़ में ही सही यह कहते नज़र आ रहे हैं कि यह टोटका है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस फ़िल्म को हॉल में जाकर देख लें वह सुपर डूपर हिट हो जाती है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा जब लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ रहा था भूपेश बघेल डायरेक्टर सतीश जैन की फ़िल्म ‘हॅस झन पगली फॅस जबे’ देखने गए थे। मुख्यमंत्री के देखने के बाद यह फ़िल्म ऐसी दौड़ी की सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसी तरह बघेल जिस दिन ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखकर निकले उसके दूसरे दिन ही यह फ़िल्म सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई। यानी बहुत ही कम बजट में बनी यह फ़िल्म सौ करोड़ से ऊपर का बिजनेस कर चुकी है।

होली में ख़ूब बही शराब

कोरोना जैसी महा आपदा से फिलहाल छुटकारा मिल जाने के बाद मदिरा प्रेमियों के भीतर मानो ग़ज़ब का उत्साह जागा है। ख़बर तो यही आ रही है कि होली के पावन पर्व पर रायपुर में 4 करोड़ से ऊपर की शराब बिकी। सड़क से लगी शराब दुकानों में तो खरीदने वालों की भीड़ दिखा ही करती थी राजधानी रायपुर के दो मॉल के भीतर की शराब दुकानों में भी रंगों के इस त्यौहार में अंगूर की बेटी के दीवाने टूटे पड़े थे। खुद मॉल की शराब दुकानों में ड्यूटी बजा रहे लोग हैरानी जता रहे थे कि यहां तो लिमिटेड लोग ही बॉटल लेने आते थे, पता नहीं इस बार इतनी भीड़ कहां से टूट पड़ी। इस बार पीने वालों के चेहरे पर इसलिए भी खूशी के भाव थे कि दुकानों में न सिर्फ व्हिस्की, वोदका व वाइन बल्कि बियर के भी अलग-अलग ब्रांड उपलब्ध थे। 2019 की होली में आलम यह था कि पूरे रायपुर शहर में शेर जैसे चित्र वाली एक ही ब्रांड की बियर बिक रही थी। दूसरे ब्रांड वाली बियर की अनुपलब्धता ने पीने वालों को बहुत तकलीफ़ पहुंचाई थी। ‘19’ की ही बात है जब एक अफ़सर जिन्हें अन्य ब्रांड की बियर पसंद थी उसे हासिल करने उन्होंने नये रायपुर तक की दौड़ लगा दी थी। वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी। शेर छाप नया रायपुर में भी कब्ज़ा जमाया हुआ था। फिर दो साल कोरोना का असर रहा और होली, होली जैसी नहीं रही थी। बहरहाल इस बार पीने का शौक़ रखने वाले भारी ख़ूश थे। जिसे जो चाहिए था उसे वो मिल गया था।

सुर्खियों में बने

ही रहते हैं बाबा

विधानसभा का बजट सत्र 7 मार्च से शुरु हो चुका है और 25 मार्च तक चलना संभावित है। कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि सत्र अब 21 या 22 मार्च तक ही चलेगा। अनुमान तो स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव को लेकर भी ख़ूब लगाया जा रहा था। सिंहदेव 7 एवं 8 मार्च को विधानसभा के सत्र में हिस्सा लिए फ़िर वहां नहीं दिखे। यहां तक कि सिंहदेव के विभागों से संबंधित जो प्रश्न लगे थे प्रश्नकाल में जवाब उनकी जगह वन मंत्री मोहम्मद अक़बर ने दिए। बीच में होली त्यौहार एवं शनिवार-इतवार मिलाकर 4 दिन की छूट्टी पड़ गई। सिंहदेव जब विधानसभा में दिखना बंद हो गए तो नेता व मीडिया के लोग एक दूसरे से सवाल करते दिखे कि आख़िर बाबा गए कहां? रंगोत्सव वाले दिन बाबा का यह वक्तव्य पढ़ने को मिला कि “कपिल सिब्बल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए।“ इसके साथ ही यह ख़बर भी सुनने में आ रही है कि सोमवार से बाबा विधानसभा में दिखना शुरु हो जाएंगे। बीच में किसी परिजन के अस्वस्थ रहने के कारण वे दिल्ली प्रवास पर थे न कि किसी अन्य कारण से। जो हो, बाबा सामने दिखें तब और न दिखें तब भी सुर्खियों में तो बने ही रहते हैं।

खैरागढ़ उप चुनाव और

रानियों के बीच टकराव

खैरागढ़ उप चुनाव को अब 3 हफ्ते ही शेष बचे हैं। स्वाभाविक है कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां इस महत्वपूर्ण सीट को अपनी खाते में लाने की कोशिश करेंगी। खैरागढ़ के जोगी कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह के निधन हो जाने के कारण यहां उप चुनाव हो रहा है। देवव्रत सिंह की पूर्व पत्नी श्रीमती पद्मा सिंह ने खैरागढ़ से कांग्रेस टिकट के लिए ताकत लगा दी है। वहीं देवव्रत सिंह की दूसरी पत्नी विभा सिंह पद्मा के ख़िलाफ मुहिम चला रही हैं। देवव्रत सिंह के बेटे-बेटी खुलकर अपनी मां पद्मा सिंह के साथ हैं और खैरागढ़ राज महल को प्रशासन ने सील कर रखा है। स्वाभाविक है इससे विभा सिंह का पड़ला कमजोर नज़र आ रहा है। विभा सिंह बीच-बीच में राजधानी रायपुर में पद्मा के खिलाफ़ कोई न कोई स्टेटमेंट जारी करने से पीछे नहीं रहतीं। मीडिया से जुड़े लोग भी जानते हैं कि क़ब किससे कौन सा सवाल करना है। विभा के लिए मीडिया की तरफ से एक सवाल हमेशा तैयार रहता है कि जब देवव्रत सिंह का असमय निधन हुआ तब आप कहां थीं? कारण जो भी रहा हो देवव्रत के निधन के समय विभा छत्तीसगढ़ में नहीं थीं। देवव्रत के निधन के बाद देवव्रत व विभा के बीच बातचीत वाले तथाकथित टेप किए हुए अंश राज परिवार के सदस्यों ने मीडिया के बीच जो जारी किए वह भी कई बड़े सवाल खड़े करते नज़र आते हैं। बहरहाल राज परिवार में दो रानियों के बीच चल रहे इस युद्ध की छाया उप चुनाव में भी पड़ती नज़र आएगी इस बात से इंकार नहीं किया जा रहा है।

महामहिम ने निगम में पढ़ाया

पाठ- “अहंकार का करें त्याग!”

हाल ही में हुई रायपुर नगर निगम की बजट की सामान्य सभा कई मायनों में यादगार रहेगी। सामान्य सभा के बीच में महापौर, सभापति, पार्षदों एवं वरिष्ठ अफसरों का हौसला बढ़ाने स्वयं राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके वहां मौजूद थीं। राज्यपाल का जब भाषण हुआ तो समस्त भाजपा पार्षदगण अपनी जगह पर मौजूद नहीं थे। कुछ मुद्दों पर विरोध दर्ज कराते हुए वे सदन से बाहर थे और उनकी जगहों पर बाहरी तत्वों ने कब्ज़ा जमा रखा था। इस तरह कुछ अनोख़ा ही दृश्य निर्मित हो गया था। राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि “व्हाइट हाउस (निगम मुख्यालय) का नाम काफ़ी सुन रखा था। आज इसे देखने यहां आई हुई हूं। मैंने लोकसभा, राज्यसभा एवं विधानसभा की कार्यवाही तो देखी है लेकिन निगम की सामान्य सभा की कार्यवाही कभी नहीं देखी। इसे देखने दोबारा आऊंगी। लोग पद प्राप्त करने परिक्रमा लगाते हैं। मैं नहीं समझती आगे बढ़ने यह रास्ता ज़रूरी है। अपने कर्म क्षेत्र में डटे रहें, अपने आप सब कुछ मिलते चले जाएगा। बड़ों का सम्मान और आदर करें। जीवन में कभी अहंकार न पालें।“ राज्यपाल की इन बातों से निगम के कुछ नेता व अफ़सर काफ़ी प्रभावित नज़र आए। ख़ासकर ‘अहंकार’ वाली बात से। इन दूरदर्शी नेताओं व अफ़सरों का मानना है कि नगर निगम जिस दिन ‘अहंकार’ से ऊपर उठ जाएगा रायपुर शहर चमन हो जाएगा। ‘अहंकार’ का त्याग किस शीर्ष पुरुष को करने की ज़रूरत है यह दूरदर्शी नेता व अफ़सर भलीभांति जान रहे हैं।

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