● कारवां (1 मई 2022)- 1 मई पर “तूम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा…”

■ अनिरुद्ध दुबे

1 मई को पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल एवं रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर दोनों का जन्म दिन पड़ता है। दोनों नेता यह सोचकर हमेशा से खुद में गौरवान्वित महसूस करते रहे हैं कि उनका जन्म दिन ‘श्रमिक दिवस’ पर पड़ता है। एजाज़ तो कांग्रेस के श्रमिक संगठन ‘इंटुक’ के पदाधिकारी भी रह चुके हैं। बृजमोहन अग्रवाल की बात करें तो हर साल 1 मई को जन्म दिन पर उन्हें बधाई और आशीर्वाद देने वालों का तांता लगे रहता है। यह बात कम लोग जानते हैं कि बृजमोहन को मध्यप्रदेश में विधायक रह चुकीं शबनम मौसी का विशेष आशीर्वाद मिलते रहा है। बीच में शबनम मौसी का छत्तीसगढ़ फेरा लगे रहता था। शबनम मौसी थर्ड जेंडर हैं। उन पर फ़िल्म भी बन चुकी है, जिसमें शबनम मौसी का किरदार आशुतोष राणा ने निभाया था। ऐसी मान्यता रही है कि किन्नरों का आशीर्वाद काफ़ी फलित होता है। कहने वाले यह भी कहते हैं कि बृजमोहन पर राजिम पहुंचे नागा साधुओं और शबनम मौसी का आशीर्वाद इतने गहरे तक उतरा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस का सैलाब आया हुआ था तब भी वे रायपुर दक्षिण सीट से वे बड़ी आसानी से विजयी रहे। रायपुर में चार विधानसभा सीटें आती हैं, तीन में कांग्रेस जीती लेकिन चौथे में बृजमोहन ही अजेय रहे। किन्नरों के आशीर्वाद की बात चल ही निकली है तो डॉ. रमन सिंह का भी एक जन्म दिन याद आ जाता है। वह जन्म दिन तब पड़ा था जब डॉ. रमन सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री थे। जन्म दिन पर डॉ. रमन को आशीर्वाद देने कुछ किन्नर उनके बंगले पहुंचे हुए थे। उनके आशीर्वाद का अंदाज़ काफ़ी लाजवाब था। किन्नरों ने डॉ. रमन के लिए आशीर्वाद स्वरुप यह फ़िल्मी गाना गाया था- “तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा, तुमको हमारी उमर लग जाए…।“ छत्तीसगढ़ में भाजपा अभी जिस कठिन राह पर खड़ी नज़र आ रही है उससे तो यही लगता है कि डॉ. रमन को फिर बड़े आशीर्वाद का ज़रूरत है।

काफ़ी बदलाव दिखेगा

राजनीतिक फ़िज़ाओं में

लोग किस मायने में यह कहते होंगे ये तो पता नहीं लेकिन कहते यही हैं कि दिल्ली में जो हाल कांग्रेस का है वही छत्तीसगढ़ में भाजपा का है। चर्चा यह भी है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ में दोनों ही पार्टियों के भीतर काफ़ी बदलाव दिखेगा। कहा तो यह भी जाता है कि वो समय ज़्यादा दूर नहीं जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने मंत्री मंडल में फेरबदल करेंगे। कुछ मंत्रियों का रिपोर्ट कॉर्ड ठीक नहीं होने की ख़बर है। एक मंत्री के बारे में कहा जा रहा है कि उनका परफार्मेंस जैसा ‘शिक्षाप्रद’ होना चाहिए वैसा नहीं है। इसके अलावा कई बार विधायक रह चुके एक अन्य मंत्री के कामकाज को भी लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। मुखिया जो भी फैसला लेंगे ठोक बजाकर ही लेंगे। दूसरी तरफ भाजपा की बात करें तो हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य को लेकर दिल्ली में इनके नेताओं की जो बैठक हुई वह कई दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जैसा कि विधानसभा चुनाव को क़रीब डेढ़ साल बचे हैं अब भाजपा के धीरे-धीरे पत्ते ओपन होने शुरु होंगे। भाजपा में नये ऊर्जावान नेताओं को प्रमोट करने पर काफ़ी गंभीरता से सोचा जा रहा है। बहुत से खाटी कांग्रेसी खुद यह मान रहे हैं कि भले ही भाजपा विधायकों की संख्या इस समय 14 पर है लेकिन आने वाले चुनाव में राह पहले जैसी आसान नहीं होगी। कुछ दिग्गज कांग्रेसियों ने यह भी हिसाब लगाना शुरु कर दिया है कि यदि आम आदमी पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ती है तो ज्यादा नुकसान किसे पहुंचेगा।

रायपुर एयरपोर्ट के

आएंगे अच्छे दिन

संकेत तो यही मिल रहे हैं कि रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट के अब अच्छे दिन आने वाले हैं। रन वे विस्तार के लिए एक कमेटी बना दी गई है। इस कमेटी में अफसरों के साथ जन प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। रन वे विस्तार के लिए आसपास की जमीनों की ज़रूरत है जिस पर पेंच फंसा हुआ है। यदि ज़रूरत के हिसाब से ज़मीनें मिल जाती हैं और रन वे का विस्तार हो जाता है तो रायपुर एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर का एयरपोर्ट कहलाने में देर नहीं लगेगी। एयरपोर्ट में थ्री स्टार रेस्टॉरेंट खोले जाने का भी प्लान है। इस तरह आगे सब कुछ अच्छा ही अच्छा होना है।

कुछ तो बने ‘तूता’

रायपुर शहर में धरना प्रदर्शन, रैली, जुलूस लंबे समय से बहस का विषय रहे हैं। धरना स्थल बदलने को लेकर लंबे समय से मांग उठती रही है। प्रशासन के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि नया धरना स्थल बनाएं भी तो कहां बनाएं। वैसे तूता नाम की जगह प्रशासन के दिमाग में है जो माना से लगकर है। तूता नये रायपुर व पुराने रायपुर के बीच का पार्ट है। बरसों पहले ए.डी. मोहिले जब रायपुर संभाग के कमिश्नर थे तूता को बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का उनका प्लान था, जो कि कागज़ों में रह गया। तूता पर्यटन स्थल नहीं बना तो न सही, धरना स्थल बन जाए यही सही।

प्रवक्ता बनने की हसरत

कोई बड़ी राजनीतिक पार्टी हो या छोटी, उसका प्रवक्ता कहलाने का अलग ही गौरव होता है। अख़बारों से ज़्यादा चैनलों में प्रवक्ताओं की पूछपरख होती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया राजनीति को चमकाने का एक जोरदार माध्यम है। इधर, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस प्रभारी महामंत्री (संगठन) पद पर अमरजीत चावला की नियुक्ति हुई, उधर यह चर्चा जोर पकड़ ली कि कांग्रेस संचार विभाग यानी प्रवक्ताओं वाले विभाग में नये चेहरे शामिल किए जा सकते हैं। कुछ चेहरे इन दिनों संचार विभाग के चेयरमेन सुशील आनंद शुक्ला की परिक्रमा करते दिख जाते हैं। सुशील भी कहां आसानी से पिघलने वाले हैं, वे एक-एक कर प्रवक्ता पद की दौड़ में शामिल लोगों को ताड़ने में लगे हुए हैं। कहना यही होगा कि जो लोग संचार विभाग की दौड़ में हैं उन्हें कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।

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