मिसाल न्यूज़
रायपुर। ख्याति प्राप्त नाट्य निर्देशक स्व. हबीब तनवीर की 99 वीं जयंती पर आज राजधानी रायपुर में अभिनट फ़िल्म एवं नाट्य फाउंडेशन ने गरिमामय आयोजन कर उन्हें याद किया। शहीद स्मारक भवन (रजबंधा) में आयोजित हबीब तनवीर स्मरण समारोह के प्रथम सत्र में कला जगत से जुड़ी हस्तियों ने हबीब साहब से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। निचोड़ यही निकला कि छत्तीसगढ़ के ‘नाचा’ को विश्व पटल पर पहुंचाने वाली हबीब साहब जैसी हस्ती को शासन ने नज़रअंदाज़ कर रखा है।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध पंडवानी गायिका पद्म विभूषण तीजन बाई ने कहा कि हबीब साहब के साथ मैंने कितने ही कार्यक्रम किए। उनसे अक्सर मिटिंग के सिलसिले में भोपाल में मुलाकात हो जाया करती थी। एक बार उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि तूम पढ़ी लिखी नहीं हो, ट्रेन से भोपाल तक कैसे आ जाती हो? मैंने उनसे कहा था बेटा ट्रेन में बिठा देता है, इसलिए यहां तक आ जाती हूं। तीजन बाई ने कहा कि मैं कामना करती हूं कि उनके जैसा कलाकार दोबारा जन्म ले और भारत का नाम रोशन हो।
वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर अग्रवाल ने कहा कि असगर वज़ाहत का लिखा ‘जिसने लाहौर नहीं देख्या वो जम्या नई’ कोई आसान कृति नहीं है। हबीब साहब ने नाटक के रूप में इसे मंच पर खेल दिखाया। उन्हें पद्मश्री दी गई राज्यसभा भी भेजा गया, लेकिन यह उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। वह हर बार कुछ नया कर गुजरते थे। साहित्य, कला व संस्कृति सरकार के आखरी पायदान पर होती है। अचरज की बात है कि आज एक सितंबर को छत्तीसगढ़ की सरकार का हबीब साहब की तरफ ध्यान नहीं गया। छत्तीसगढ़ में हबीब साहब के नाम पर कोई थियेटर या अकादमी होनी चाहिए।
जाने माने लोक कलाकार एवं फ़िल्म अभिनेता अमर सिंह लहरे ने कहा कि हबीब साहब ने छत्तीसगढ़ के नाचा को देश विदेश में पहुंचाने का काम किया। यह बात बिलकुल असत्य है कि हबीब साहब ने कलाकारों का शोषण किया। मैं खुद बरसों तक उनके ‘नया थियेटर’ से जुड़ा रहा। उनसे जुड़े हर कलाकार को हर महीने तन्ख्वाह मिलती थी। सरकार हबीब साहब के नाम पर अकादमी नहीं खोल सकती तो कम से कम एक लाइब्रेरी ही बनवा दे।
साहित्यकार महावीर अग्रवाल ने कहा कि मुझे हबीब साहब के कितने ही नाटकों की समीक्षा लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 1958 का वह समय टर्निंग प्वाइंट था जब हबीब साहब ने दिल्ली में ‘आगरा बाज़ार’ नाटक खेला। उसी वर्ष उन्होंने शूद्रक लिखित संस्कृत नाटक ‘मृच्छकटिकम’ को छत्तीसगढ़ी में ‘माटी के गाड़ी’ के नाम से खेला। इसके बाद नाचा की टीम को वे दिल्ली लेकर गए जहां उन्होंने अपनी संस्था ‘नया थियेटर’ की शुरुआत की। जैसा कि सुनने में आता है कि हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के कलाकारों का शोषण किया यह एकदम गलत बात है। वे तो नाचा टीम को खुद से जोड़ने के पहले ही काफ़ी बड़ी शख्सियत बन चुके थे। हबीब साहब के नाटकों को एक शब्द में यदि समझना है तो वह है- इम्प्रोवाइजेशन।
वरिष्ठ रंगकर्मी वाहिद शरीफ ने कहा कि नाचा और हबीब साहब एक दूसरे के पूरक थे। 1971 में मैंने पहली बार हबीब साहब को देखा था। तब वे रायपुर के रंग मंदिर में ‘आगरा बाज़ार’ नाटक लेकर आए थे। रंग मंदिर में उन्होंने ‘आगरा बाज़ार’ का जो सेट बनवाया था वह आज भी आंखों के सामने घूमता है। सरकार की तरफ से अभी तक उनके नाम को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार रहे।
समीक्षक राजेश गनोदवाले ने कहा कि भारत को आज़ाद हुए 75 साल और हबीब साहब को सौ साल हो गए। हबीब साहब जब अपने नाटक का मंचन करते तब न तो खाली कुर्सियां उन्हें परेशान करती थीं और न ही भरी कुर्सियों पर वे खुश होते थे। वे ऐसी शख़्सियत थे जब उनके नाटक को विदेशों में ख्याति मिली, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उनको एवं उनकी टीम को चाय पर बुलाया था।
रंगकर्मी संतोष पांडे ने कहा कि सन् 1980 में भोपाल में भारत भवन का उद्घाटन हुआ। वहां पर हबीब साहब के निर्देशन में नाटक ‘मुद्रा राक्षस’ में छोटी सी भूमिका करने को मिली थी। उनके सानिध्य में काफ़ी कुछ सीखने को मिला। हबीब साहब जैसे लोग दुनिया से जाते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं।
कार्यक्रम का संचालन अभिनट फ़िल्म एवं नाट्य फाउंडेशन के डायरेक्टर तथा समारोह के संयोजक योग मिश्रा व उर्वी मिश्रा ने किया।