■ अनिरुद्ध दुबे
प्रदेश में इस समय सर्वत्र आदिवासी मुद्दा छाया हुआ है। 1 व 2 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र आदिवासी आरक्षण मुद्दे पर होने जा रहा है। 5 दिसंबर को बस्तर के भानुप्रतापपुर में विधानसभा उप चुनाव जो होना है वह आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीट है। चुनाव व विधानसभा सत्र से पहले सर्व आदिवासी समाज ने आरक्षण में कटौती के विरोध में प्रदेश भर में नेशनल हाईवे जाम किया। कहीं पर तो आंदोलनकारी रेल पटरियों पर ही बैठ गए। इसके ठीक दूसरे दिन राजधानी रायपुर में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का आंदोलन हुआ जिसमें आंदोलनकारियों व पुलिस के बीच जमकर झुमाझटकी हुई। इन दोनों आदोलनों से पहले आदिवासी मुद्दे को ही लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बीच जमकर जुबानी वार चला। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है। भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपने को आदिवासी वर्ग का हितैषी बताती आई हैं। यह अलग बात है कि जब-जब विधानसभा चुनाव की बारी आती है आदिवासी नेताओं को अपने हक़ को लेकर ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ चलाना पड़ता है।
कहां पर अरविंद नेताम
सर्व आदिवासी समाज का जो बड़ा आंदोलन चला उसका नेतृत्व पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम करते नज़र आए। नेताम इस समय कांग्रेस में हैं। पार्टी में उनकी स्थिति पितामह वाली है। सवाल यह है कि उन्हें क्यों विरोध करने सड़क पर आना पड़ा? आंदोलन से पहले अपनी पार्टी के अन्य बड़े नेताओं से क्या उनकी चर्चा हो पाई थी? 2018 के विधानसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले राजधानी रायपुर में राहुल गांधी की जो विशाल आमसभा हुई थी उसमें अरविंद नेताम न सिर्फ मंच पर नज़र आए थे अपितु सभा को संबोधित भी किए थे। 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नेताम के क्या क्रियाकलाप रहे कभी कुछ जानने सुनने में नहीं आया। अभी जब सर्व आदिवासी समाज के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने सामने आए तब लोग थोड़ा बहुत यह समझ पा रहे हैं कि नेताम कौन से मिशन को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
मोहन भागवत का
फिर छत्तीसगढ़ आना
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) इस बात को अच्छी तरह समझ पा रहा है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को साधे बिना ‘मिशन 2023’ की तरफ तेजी से आगे बढ़ पाना आसान नहीं। यही कारण है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने कुछ दिन आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग को दिए। जशपुर में दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा का अनावरण भी किया। कुछ हफ्तों पहले की ही तो बात है जब मोहन भागवत लगातार तीन दिन रायपुर रहे थे। यहां वे चंदखुरी स्थित कौशल्या माता के मंदिर दर्शन के लिए भी गये थे जिसकी राजनीतिक स्तर पर काफ़ी चर्चा रही थी। इसके कुछ ही समय के बाद मोहन भागवत का फिर से छत्तीसगढ़ प्रवास होना संकेत यही दे रहा है कि संघ ‘मिशन 2023’ को लेकर अपने ढंग से काम कर रहा है। वह आदिवासी बेल्ट पर कोई चूक नहीं होने देना चाह रहा।
जोगी कांग्रेस से तो मांगा
ही नहीं था समर्थन
भानुप्रतापपुर विधानसभा उप चुनाव में आम आदमी पार्टी के कोमल हुपेंडी जहां चुनावी मैदान से पीछे हट गए वहीं छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) ने कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती सावित्री मंडावी को समर्थन देने की घोषणा कर दी। जोगी कांग्रेस के इस फैसले पर बहुत से कांग्रेसी कुछ अलग ही तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इनका कहना है कि हमने तो जनता कांग्रेस से किसी तरह का समर्थन मांगा ही नहीं था। फिर ये क्या बात हुई जकां के कर्ता-धर्ता अपने मन से कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन देने की बात कर गए। जकां के समर्थन वाले फैसले का कोई भी कांग्रेसी स्वागत करते नज़र नहीं आया। इसके विपरीत जाति वाले मामले को लेकर श्रीमती ऋचा जोगी के ख़िलाफ ज़रूर थाने में रिपोर्ट दर्ज हो गई। इसी को कहते हैं न माया मिली न राम मिले।
दो बार सेफा कैसे?
5 दिसंबर को होने जा रहा भानुप्रतापपुर उप चुनाव 2022 का दूसरा विधानसभा उप चुनाव होगा। इससे पहले इसी साल खैरागढ़ उप चुनाव हो चुका है। जनता कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह के निधन के कारण खैरागढ़ सीट रिक्त हो गई थी। जहां से कांग्रेस की उम्मीदवार यशोदा वर्मा ने जीत हासिल की। खैरागढ़ उप चुनाव के लिए न सिर्फ नेता बल्कि मीडिया वालों ने भी सेमी फाइनल शब्द गढ़ दिया था। अब भानुप्रतापपुर उप चुनाव है तो इसे भी सेमी फाइनल कहते नज़र आ रहे हैं। खैरागढ़ में मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच था और भानुप्रतापपुर में भी संग्राम इन दोनों के बीच ही होना है। आखिर जब मैदान में असल मुक़बले में दो ही टीम हों तो उन दोनों के बीच दो बार सेमीफाइनल कैसे हो सकता है?
भाजपाइयों को अब
होंगे ओम दर्शन
भानुप्रतापपुर उप चुनाव के लिए भाजपा ने जो अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की उसमें भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर का नाम प्रमुखता से है। माना जा रहा है कि दो महीने के लंबे इंतज़ार के बाद यहां के भाजपाइयों को अब ओम माथुर के दर्शन होने जा रहे हैं। यहां यह बता दें कि राजधानी रायपुर में सितंबर में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की चलती सभा के बीच यह ख़बर आई थी कि डी. पुरंदेश्वरी की जगह अब ओम माथुर भाजपा के प्रदेश प्रभारी होंगे। जब यह संदेश आया पुरंदेश्वरी नड्डा जी की सभा में मंच पर ही विराजमान थीं। मोहन भागवत जब संघ की महत्वपूर्ण बैठक लेने रायपुर आए थे तब संभावना जताई गई थी कि ओम माथुर आएंगे, लेकिन वे नहीं आ पाए। इसके अलावा गंगरेल में भाजपा का जो चिंतन शिविर हुआ उसमें भी माथुर के आने की संभावना जताई गई थी लेकिन वे नहीं आए। अब भानुप्रतापपुर का उप चुनाव सामने है। भाजपा के बड़े से लेकर छोटे नेता तक ओम माथुर के दर्शन के लिए बेताब हैं। लोग जानना चाह रहे हैं कि आखिर इस शख़्स में ऐसी कौन सी ख़ासियत है जिसने पूर्व में उत्तरप्रदेश का प्रभारी रहते हुए वहां की राजनीतिक हवा की दिशा बदल दी थी।
उजड़ी सिंचाई कॉलोनी
का कब होगा उद्धार
राजधानी रायपुर में भगत सिंह चौक के पास कभी कई एकड़ में शांति नगर सिंचाई कॉलोनी आबाद थी। 2018 में प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार आई तो यही सुनने में आया कि हाउसिंग बोर्ड सिंचाई कॉलोनी को बिलकुल नया स्वरूप देते हुए वहां हाउसिंग व कॉमर्शियल प्रोजेक्ट लाएगा। इस चक्कर में शांति नगर के कितने ही सरकारी मकान खाली करवा दिए गए। रोड से लगकर एक सुंदर गॉर्डन था उसे भी तहस नहस कर दिया गया। अब वहां सिवाय उजाड़ के कुछ नहीं। रिडेव्हलपमेंट पॉलिसी के तहत हाल ही में लोक निर्माण मंत्री ताम्रध्वज साहू की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय परियोजना समिति की बैठक हुई। बैठक में आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अक़बर, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया एवं खाद्य व संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत शामिल हुए। बैठक में बीटीआई आवासीय परिसर तथा सिंचाई कॉलोनी शांति नगर के व्यवस्थित विकास पर चर्चा हुई। देखा जाए तो इस सरकार के कार्यकाल को दस से ग्यारह महीने ही बचे हैं। इस बीच उजाड़ नज़र आने वाली सिंचाई कॉलोनी शांति नगर का उद्धार की शुरुआत हो जाए तो हो जाए, नहीं तो लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा। इससे पहले भाजपा की सरकार के समय में जिस तरह ईएसई कॉलोनी को तोड़कर ऑक्सीजोन बनाया गया उसी तरह सिंचाई कॉलोनी को भी ऑक्सीजोन का स्वरूप देने का प्रस्ताव बना था। यह अलग बात है कि सिंचाई कॉलोनी पर न तो पूर्ववर्ती सरकार कुछ कर पाई और न ही वर्तमान सरकार अब तक कुछ कर पाई है।