0 रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में व्याख्यान
रायपुर। “आम तौर पर पागल कुत्तों की वजह से होने वाला रोग रेबीज यानी हाइड्रोफोबिया सौ प्रतिशत जानलेवा है लेकिन सावधानी बरतने और समय पर उपचार मिलने से मौतों को रोका जा सकता है। अक्सर कुत्ते और बिल्लियों से होने वाले इस रोग में अंत समय में पीड़ित व्यक्ति पानी से डरने लगता है, इसीलिए इसे हाइड्रोफोबिया भी कहा जाता है। यह रोग संक्रमित जानवर के काटने के अलावा महज चाटने से भी हो सकता है। संक्रमित चमगादड़ों की गुफाओं में सांस लेने से भी इंसान इस बीमारी की चपेट में आ सकता है लेकिन ऐसे मामलों में हाइड्रोफोबिया के लक्षण नहीं पाए जाते और इंसान की मौत लकवे की वजह से होती है।”
ये कहना था प्रो डॉ अजय सहाय का। अवसर था रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, रायपुर में रेबीज नाम की बीमारी पर आयोजित एक कार्यशाला का। विदित हो कि पूरी दुनिया में पाए जाने वाले इस रोग के एक तिहाई मामले सिर्फ भारत में मिलते हैं। हमारे यहां प्रति वर्ष बीस हजार से ज्यादा मौतें होती हैं। लगभग चालीस से पचास प्रतिशत मामलों में छोटे बच्चे इसके शिकार होते हैं। घाव को लगातार पंद्रह मिनट तक नल की धार में साबुन से धोकर एंटीसेप्टिक लगाने, इम्यूनोग्लोबुलिन एवम एंटी रेबीज वैक्सीन का पूरा कोर्स लेने से पीड़ित व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। इस रोग की भयावहता से आम जनता को अवगत कराने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पूरी दुनिया में प्रत्येक वर्ष 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है ।
कार्यक्रम में प्रो डॉ रामगोपाल ध्रीतलहरे, डॉ संजय अग्रवाल एवं डॉ श्याम शर्मा ने चेयरपर्सन की भूमिका निभाई। अंत में एक इनामी क्विज का भी आयोजन किया गया एवं विजयी प्रतिभागियों को कालेज के डीन प्रो डॉ गंभीर सिंह द्वारा पुरस्कृत किया गया। इस वैज्ञानिक सत्र में कालेज के स्टाफ मेंबर्स सहित लगभग तीन सौ छात्र छात्राएं उपस्थित थे।