● कारवां (19 नवंबर 2023)- कांग्रेस का ‘भरोसा’ और मोदी की ‘गारंटी’

■ अनिरुद्ध दुबे

इस बार के विधानसभा चुनाव में दो स्लोगन ख़ूब चले। कांग्रेस की तरफ से ‘भरोसे की सरकार’ और भाजपा की तरफ से ‘मोदी की गारंटी।‘ और तो और दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र तक में यह स्लोगन छाया रहा। कांग्रेस के घोषणा पत्र के कव्हर पेज पर ‘भरोसे का घोषणा पत्र’ लिखा हुआ था, वहीं भाजपा के घोषणा पत्र के कव्हर पेज पर ‘छत्तीसगढ़ के लिए मोदी की गारंटी’ छपा हुआ था। मतदान संपन्न हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। कांग्रेसी कहते नज़र आ रहे हैं कि 2018 के चुनाव में किसानों की कर्ज़ माफ़ी का वादा किया गया था। सरकार बनते ही दो घंटे के भीतर कर्ज़ माफ़ी की फाइल पर दस्तख़त हो गए थे। वहीं पूर्ववर्ती भाजपा सरकार किसानों से किए गए समर्थन मूल्य व बोनस के वादे को समय पर पूरा नहीं कर पाई थी। इसलिए हमारी भरोसे की सरकार वाली लाइन इस बार के चुनाव में भी लोगों के मन में गहरी छाप छोड़ेगी। दूसरी तरफ गहन चिंतन मनन में लगे रहने वाले भाजपाई इस बात को तो मान रहे हैं कि ‘अब नई सहिबो बदल के रहिबो’ लाइन जनता के मन में गहरा प्रभाव शायद कम ही पड़े। इसलिए कि छत्तीसगढ़ में ज़ुर्म ढाने जैसा कोई सीन तो रहा नहीं कि ‘अब नई सहिबो’ जैसी लाइन काम आए। लेकिन यही भाजपाई मोदी की गारंटी वाले स्लोगन को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। इनका कहना है कि जब गारंटी प्रधानमंत्री की तरफ से सामने आए तो यह अपने आप में बहुत बड़ी हो जाती है। फिर मोदी की गारंटी वाली बात केवल कागज़ों पर नहीं है बल्कि हर चुनावी सभा में प्रधानमंत्री खुद मंच से कहते नज़र आए कि “यह मोदी की गारंटी है।“ भाजपाइयों का मानना है कि यह गारंटी ही है जो कमाल कर जाएगी।

राजनांदगांव का किला

फिर से मजबूत होते

देखना चाहते हैं बघेल

विधानसभा चुनाव के दरम्यान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का  राजनांदगांव क्षेत्र में ख़ास फ़ोकस रहा। राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी चयन में न सिर्फ़ उनकी एकतरफा भूमिका रही बल्कि वहां पर पार्टी का घोषणा पत्र भी उन्होंने ही जारी किया। कांग्रेस में बहुत भीतर तक घुसे हुए कुछ लोगों का मानना है कि भूपेश बघेल के मन में काफ़ी समय से यह चिंतन चलते रहा था कि राजनांदगांव क्षेत्र में कांग्रेस ने जो पकड़ खो दी है उसे कैसे मजबूत किया जाए। राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें जो आती हैं उनमें राजनांदगांव एवं खैरागढ़ को छोड़कर बाक़ी छह सीटों पर 2018 के चुनाव में कांग्रेस ही जीती थी। जनता कांग्रेस विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद हुए उप चुनाव में खैरागढ़ सीट भी कांग्रेस की झोली में आ चुकी थी। पूरे राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो मोतीलाल वोरा, उदय मुदलियार एवं देवव्रत सिंह जैसे नेताओं के नहीं रहने के बाद जो खालीपन आया उसे बघेल भली भांति समझते रहे हैं। ऐसे में बघेल ने अपने बेहद क़रीबी गिरीश देवांगन को राजनांदगांव क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतारकर ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश तो की ही, साथ ही वहां चुनावी सभा को संबोधित करते हुए जनता को आश्वस्त भी किया कि फिर से कांग्रेस की सरकार बनने पर राजनांदगांव को संभाग बनाया जाएगा।

जो दिखता है

वो बिकता है

रायपुर दक्षिण से चुनाव लड़ रहे वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल से मीडिया ने जब सवाल किया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के कई बड़े चेहरे हैं। इस चुनावी रण में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शब्दों के बाण पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और आप पर ही क्यों चलाते रहे, उनकी तरफ से यही ज़वाब आया कि “जो दिखता है वो बिकता है।“ छोटे से छोटे सवालों का बड़ा ज़वाब देने में माहिर समझे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के कम शब्दों में आए इस ज़वाब के क्या मायने हो सकते हैं यह सोचने और समझने का विषय हो सकता है।

दीपावली में भी घर

नहीं गए मनसुख भाई

भाजपा छत्तीसगढ़ में कितना दम लगाकर चुनाव लड़ रही थी इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं छत्तीसगढ़ सह चुनाव प्रभारी मनसुख मांडविया सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली मनाने अपने शहर भाव नगर (गुजरात) नहीं गए। छत्तीसगढ़ में ही बने रहे। टिकट कट जाने पर पूर्व मंत्री गणेशराम भगत बोरिया बिस्तर के साथ कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में धरने पर बैठ गए थे, दूसरों से संभाले नहीं संभल रहे थे। ये मनसुख मांडविया ही थे जो कि भगत का धरना समाप्त करवाने में क़ामयाब रहे थे। माना यही जाता है कि मांडविया काफ़ी सूझबूझ वाले हैं। शैली आक्रामक है। तभी तो भाजपा के केन्द्रीय मीडिया संयोजक एवं प्रयागराज विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह कहते नज़र आए थे कि “बड़ा भाई, मोटा भाई के बाद अब हमारे पास एक और ताकतवर छोटा भाई हो गया है।“ छोटा भाई यानी मनसुख भाई।

कांग्रेस के लिए मुश्किल रहा

बागियों को संभाल पाना

कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही तरफ के कई बड़े जाने-पहचाने दावेदार टिकट कट जाने पर भारी उद्वेलित दिखाई दिए। भाजपा तो काफ़ी हद तक अपने लोगों को चुनाव लड़ने से रोक पाने में क़ामयाब रही, लेकिन कांग्रेस के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल काम रहा। भाजपा में पूर्व मंत्री गणेशराम भगत (जशपुर) से लेकर डॉ. विमल चोपड़ा (महासमुन्द), देवजी पटेल (धरसींवा) एवं योगेश तिवारी (बेमेतरा) कुछ ऐसे नाम थे जिन्होंने टिकट नहीं मिलने पर तूफान खड़ा कर दिया था। ऐसा लग रहा था कि बागी होकर इनका चुनावी मैदान में उतरना पक्का है। पार्टी के बड़े नेता इन सभी को किसी तरह मनाने में कामयाब रहे। अब कांग्रेस की बात करें, सराईपाली विधायक किस्मतलाल नंद तथा अंतागढ़ विधायक अनूप नाग इस बार टिकट कट जाने पर अपने-अपने क्षेत्र से बागी होकर चुनावी मैदान में कूद पड़े। यही नहीं टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर रायपुर नगर निगम के कांग्रेस पार्षद अजीत कुकरेजा जहां रायपुर उत्तर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सामने आ गए वहीं लोक कलाकार गोरेलाल बर्मन टिकट से वंचित हो जाने पर जनता कांग्रेस की टिकट पर पामगढ़ से दो-दो हाथ करने चुनावी रणभूमि में उतर गए।

भाजपा ने बुलाए फ़िल्मी

चेहरे, कांग्रेस ने रखा दूर

सिनेमा से राजनीति में आए कुछ बड़े फ़िल्मी चेहरे जहां छत्तीसगढ़ में भाजपा का चुनाव प्रचार करने कूदे हुए थे वहीं कांग्रेस ने इस बार फ़िल्मी चेहरों को दूर रखा। भोजपुरी सिनेमा के तीन स्टार कलाकार मनोज तिवारी, रवि किशन एवं निरहुवा छत्तीसगढ़ में भाजपा का प्रचार करने पहुंचे हुए थे। फिर किसी ज़माने में छोटे पर्दे की मलिका रहीं स्मृति ईरानी तो यहां भाजपा के पक्ष में सभा लेने आई ही हुई थीं। यही नहीं छत्तीसगढ़ी सिनेमा के हीरो अनुज शर्मा को तो भाजपा ने धरसींवा सीट से प्रत्याशी बनाकर उतारा है। 2018 में ज़रूर अभिनेता से नेता बने राज बब्बर कांग्रेस का चुनाव प्रचार करने छत्तीसगढ़ आए थे। इसके अलावा क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू भी पिछले चुनाव में कांग्रेस का प्रचार करने छत्तीसगढ़ आए थे।

गुजरात कनेक्शन

की बड़ी अहमियत

भाजपा में किसी का गुजरात कनेक्शन तगड़ा होना सफलता की गारंटी माना जाने लगा है। यह अलग बात है कि सफलता किसी के ज़ल्द गले लगती है तो किसी के बाद में। वरिष्ठ भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता ने ठीक दीपावली के दूसरे दिन फेसबुक पर जो पोस्ट डाली उस पर न जाने कितने ही लोगों की निगाहें कुछ देर के लिए ठहरी रही। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं छत्तीसगढ़ भाजपा चुनाव सह प्रभारी मनसुख मांडविया ने दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजन केदार गुप्ता के निवास में किया। लक्ष्मी पूजन वाली ये कुछ तस्वीरें केदार ने बड़ी श्रद्धा के साथ फेसबुक पर पोस्ट की है। मोदी व शाह के बाद मांडविया इस समय गुजरात का तीसरा बड़ा चेहरा हैं जिनकी गिनती राष्ट्रीय नेता के रूप में होती है। स्वाभाविक है ऐसे राष्ट्रीय नेता का सानिध्य पाकर केदार का मन गदगद तो होगा ही।

चिंता मत कर, मैं

दिलाऊंगा पार्षद टिकट

रायपुर की चारों सीट में से एक सीट ऐसी है जहां कांटे की टक्कर बताई जा रही है। इस सीट पर राष्ट्रीय पार्टी से विधायक चुनाव लड़ रहे युवा नेता की राजनीतिक शैली भी गज़ब की है। वे अपने विधानसभा क्षेत्र के जिस किसी भी वार्ड में जनसम्पर्क अभियान में जाते तो वहां के चार-पांच युवा नेताओं को अलग-अलग कोने में ले जाकर आश्वस्त करते थे कि “तू चिंता मत कर। मैं दिलाऊंगा न तूझे पार्षद टिकट।“ यानी रायपुर की इस विधानसभा में आने वाले वार्डों में पार्षद टिकट के 50 से 60 प्रबल दावेदार अभी से तैयार हो गए हैं। विधानसभा चुनाव में तो घमासान मचा ही रहा, अगले साल होने वाले पार्षद चुनाव में भी इन कुछ वार्डों में टिकट को लेकर भयंकर टाइप का सिर फुटव्वल दिखाई दे सकता है।

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