मिसाल न्यूज़
रायपुर। प्रभा खेतान फाउंडेशन के कार्यक्रम ‘कलम’ में मशहूर फिल्म समीक्षक और लेखक अजय ब्रह्मात्मज शामिल हुए। उनसे गौरव गिरिजा शुक्ला ने ख़ास बातचीत की। हयात रायपुर में आयोजित हुए इस कार्यक्रम के सहयोगी श्री सीमेंट, अभिकल्प फाउंडेशन और एहसास वूमन थे। श्री ब्रह्मात्म व्दारा अभिनेता इरफ़ान खान पर लिखी गई किताब पर भी चर्चा हुई। श्री ब्रह्मात्मज ने बताया कि इरफ़ान को सोलह साल संघर्ष करना पड़ा था, तब जाकर फ़िल्म इंडस्ट्री को उनके टैलेंट का अंदाजा हुआ।
कार्यक्रम में उपस्थित लोगों से अपने अनुभव शेयर करते हुए अजय ब्रह्मात्मज ने बताया कि बिहार के दरभंगा के नजदीक के गाँव से मेरे सफर की शुरुआत हुई। बचपन में पढ़ाई में मैं कोई तेज नहीं था। ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली जेएनयू में आगे की शिक्षा के लिए चला गया। 1986 से 1991 तक चीन में विदेशी भाषा से संबंधित विभाग में नौकरी करने का अवसर मिला। उसके बाद मुंबई आ गया। वहां फ्री लांस पत्रकारिता और लेखन करते रहा और यह सिलसिला आज भी जारी है। मुंबई के शुरुआती दिनों में ही फिल्म कलाकार इरफ़ान खान से दोस्ती हुई और धीरे-धीरे संबंध प्रगाढ़ होते गए। इरफ़ान औऱ कुछ अन्य दोस्तों के कहने पर मैंने फिल्मी पत्रकारिता की ओर ध्यान देना और काम करना शुरु किया था। धीरे-धीरे इस फील्ड में आनंद मिलने लगा। अनेक कलाकारों, निर्देशकों लेखकों से संबंध बनते चले गए। अमिताभ बच्चन के घर उनका ढाई घंटे का इंटरव्यू करने के दौरान एक महानायक अपने पिता को याद करते हुए किस तरह बेटा हो जाता है यह महसूस करने का मौका मिला।
फिल्मी पत्रकारिता में
आज की चुनौतियाँ
पाठकों के सवालों के ज़वाब देते हुए उन्होंने कहा कि आज डिजिटल की दुनियाँ में बहुत सी चुनौतियाँ हैं। ऐसा नहीं है कि हम हमेशा यह मानते रहें कि पहले का जमाना ही ठीक था और आज सब खराब हो चुका है। पहले हमें किसी खबर के लिए इत्मीनान से एक दिन से लेकर एक हफ्ते तक रिपोर्टिंग करने का मौका मिलता था। लेकिन आज सबको एक घंटे में स्टोरी चाहिए। ऐसे में रिपोर्टरों का धैर्य भी जवाब दे देता है। 90 के दशक में फिल्म निर्देशक बासू भट्टाचार्या ने इंटरव्यू देने के लिए मुझे एक हफ्ते का इंतजार करवाया था। आज के पत्रकार के पास इतना समय नहीं है। आज के दौर की मांग है कि वह इतना इंतजार करने के बजाए किसी और का साक्षात्कार कर ले।
जिंदगी में कोई रिग्रेट नहीं
उन्होंने कहा कि जिंदगी के खराब अनुभवों को बहुत ज्यादा दिनों तक ढोते नहीं रहना चाहिए। अगर कोई फैसला गलत हो गया या किसी से संबंध खराब हो गए, तो इन सब बातों में अपने दिल को दुखी कर बहुत दिनों तक रोना नहीं चाहिए। आगे बढ़ने का नाम जिंदगी है।
कार्यक्रम में आईएएस अधिकारी और साहित्यकार संजय अलंग ने लेखक अजय ब्रह्मात्मज को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कल्पना मिश्रा ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में शहर के अनेक गणमान्य साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।