■ अनिरुद्ध दुबे
2023 के अंतिम दिन यानी 31 दिसंबर की सुबह राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड स्थित एक कैफे में अनूठा प्रयोग हुआ। भाषा की गहरी समझ रखने वाली नई और पुरानी पीढ़ी के बीच ख्याति प्राप्त कवि विनोद कुमार शुक्ल ने कविताएं पढ़ीं। यह भी दिलचस्प है कि 1 जनवरी को शुक्ल जी का जन्म दिन पड़ता है। 1 जनवरी को वे 87 साल के हो गए। कैफे की खुली ज़गह पर पेड़ों के नीचे गुनगुनी धूप के बीच शुक्ल जी की मर्मस्पर्शी कविताएं उपस्थितजनों को अलग ही आनंद दे गईं। न भूला सकने वाली सुबह। लीक से हटकर शुक्ल जी के कविता पाठ वाले इस आयोजन पर ही चाहे तो कोई नई कविता लिख ले। शुक्ल जी ने श्रोताओं के बीच कहा कि “इन दिनों मुझे कम सुनाई देने लगा है। मशीन लगी हुई है तो थोड़ा सुन लेता हूं। जब सुनता हूं तो चकित होता हूं कि मेरी कविता किसी दूसरे देश में पहुंच जाती है। पता नहीं यह आगे कैसे पहुंच जाती है। इसके पास स्वयं का हवाई जहाज़ है।“ अभिनय की गहराइयों में उतरकर चरित्र को जीने वाले फ़िल्म अभिनेता मानव कौल, शुक्ल जी की लेखनी के बड़े प्रशंसक हैं। मानव कौल ने 2023 के साल में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी डाली थी कि वे शुक्ल जी की कविता पढ़ने में मग्न हैं। शुक्ल जी कविताओं पर तो देश-विदेश में चर्चा होती ही रहती है, वहीं उनके गद्य यानी उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक मणि कौल ने फ़िल्म बनाई थी।
बड़े उद्देश्य की पूर्ति के
लिए राजनीतिक वनवास
माना तो यही जा रहा था कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे लेकिन पार्टी के शीर्ष पर बैठे लोगों ने चौंकाने वाला निर्णय लेते हुए कमान मोहन यादव के हाथों सौंप दी। हाल ही में चौहान ने सीहोर में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि “किसानों से जो मैंने वादे किए वह पूरे होंगे।“ इसके बाद संबोधन में शिवराज यह गहरी बात कह गए कि “हर बड़े कदम के पीछे कोई न कोई बड़ा उद्देश्य होता है। कई बार राजतिलक होते-होते वनवास हो जाता है, जो किसी न किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।“ चौहान के इस कथन पर राजधानी रायपुर में भाजपा के कुछ चिंतनशील लोग बंद कमरे में अपने-अपने ढंग से व्याख्या करते नज़र आए और यहां की परिस्थितियों पर भी अपने हिसाब से विचार रखते दिखे। अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत एवं पुन्नूलाल मोहले ये पांच ऐसे बड़े चेहरे थे जिनके नाम लगातार मंत्री पद के लिए चर्चा में रहे थे लेकिन शीर्ष पर बैठे लोगों ने मध्यप्रदेश की तरह यहां भी चौंकाने वाला निर्णय लिया। अंदर की ख़बर रखने वाले तो यह भी बताते हैं इन पांच में से एक को मंत्री बनवाने में एक वृद्ध नेता ने दिल्ली में अपनी तरफ से पूरी ताकत लगा रखी थी। छत्तीसगढ़ से नाता रखने वाले उस वृद्ध नेता ने दिल्ली में सक्षम लोगों के बीच यहां तक कह दिया था कि “यह लड़का मेरी गोद में खेला है और उसके परिवार का पार्टी के प्रति क्या योगदान है दुनिया जानती है।“ लेकिन शीर्ष पर बैठे लोगों ने अंतिम फैसला वही लिया जिस पर कि पहले से सोच रखा था।
गैंग्स ऑफ वासेपुर
नहीं रायपुर…
हाल ही में एक फ़िल्म बनाने की घोषणा हुई है जिसका नाम होगा ‘गैंग्स ऑफ रायपुर।‘ वैसे तो रायपुर में महीने-पंद्रह दिन में किसी न किसी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनाने की घोषणा होते ही रहती है लेकिन जब टाइटल ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ हो तो उस पर चर्चा होना स्वाभाविक है। सोशल मीडिया में अग्रणी रहने वाले डॉ. विजय कापसे ने जहां यह जानना चाहा कि ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की तर्ज पर कहानी है क्या? वहीं जाने-माने साहित्यकार गिरीश पंकज ने टिप्पणी की कि “बॉलीवुड की नकल क्यों, छॉलीवुड मौलिक रहे और अधिक सफल होगा।“ ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ के पीछे का सच क्या होगा यह तो डायरेक्टर के. शिव कुमार ही बता सकते हैं। उन्होंने घोषणा करते हुए यह ज़रूर कहा कि “यह बढ़ते हुए क्राइम एवं नशाखोरी पर केन्द्रित होगी।“ के. शिव कुमार ने कहा कि “कोविड लॉकडाउन के समय में जब रोजमर्रा की चीजें लोगों की पहुंच से दूर थीं वहीं शराब आसानी से उपलब्ध थी। इन सारे तथ्यों को ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ में समेटा जाएगा।“ के. शिव कुमार के इस कथन पर भोजपुरी फ़िल्मों के स्टार एवं भाजपा सांसद रवि किशन की याद आ जाती है। विधानसभा चुनाव के दौरान रवि किशन ने अपने छत्तीसगढ़ प्रवास में मीडिया के सामने कहा था कि “छत्तीसगढ़ में आजकल एक के बाद एक ऐसी अपराधिक घटनाएं घट रही हैं जिन पर बॉलीवुड वालों को फ़िल्म एवं वेब सीरीज़ बनाने का बड़ा-बड़ा आइडिया मिल रहा है।“
क्यों नहीं है
पुलिस का खौफ़
राजधानी रायपुर की कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने न जाने कितने ही पुलिस अफ़सरों ने पसीने बहाए होंगे लेकिन अपराधी हैं जिनके चेहरे पर खौफ़ नाम की चीज़ नज़र ही नहीं आती। केवल जोगी शासनकाल में एक ऐसा दौर आया था जब रायपुर शहर के बड़े-बड़े अपराधी भूमिगत हो गए थे। जोगी सरकार की जो कुछ बेहतर छवि बनी थी वह आख़री में जग्गी हत्याकांड के कारण धूमिल हो गई थी। जोगी शासनकाल के बाद फिर कभी ऐसा देखने नहीं मिला कि पुलिस के नाम पर अपराधी थर्राते नज़र आए हों। ख़ून-खराबे से हटकर दूसरी तरह के अपराधों की थोड़ी चर्चा हो जाए। राजधानी में हाल ही में दो ऐसे मामले आए जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं। एकतरफा प्रेम का एक ऐसा मामला सुनने व पढ़ने में आया जिसमें फाइनेंस कंपनी में कार्यरत एक युवक को फैशन डिज़ाइनर युवती से एकतरफा प्यार हो गया। उसने मौका देखकर युवती की एक्टिवा में जीपीएस ट्रैकर लगवा दिया। युवती जिस किसी भी जगह होती युवक उसके आसपास चमत्कारिक तरीके से मौजूद मिलता और प्रेम का इज़हार करता। युवती समझ ही नहीं पा रही थी कि आख़िर यह सब कुछ कैसे घट रहा है। वो तो खुलासा तब हुआ जब युवती अपनी एक्टिवा सुधरवाने मैकेनिक के पास गई और गाड़ी के भीतरी हिस्से में जीपीएस ट्रैकर लगा मिला। युवती की शिकायत पर डीडी नगर पुलिस ने युवक को गिरफ्तार किया। दूसरा मामला काशीराम नगर का है, जहां रहने वाली एक युवती के घर से 3 लाख के जेवर और 50 हज़ार नगद चोरी हो गए। महीने भर तक युवती तेलीबांधा थाने के चक्कर लगाती रही जहां उसकी एफआईआर नहीं लिखी गई। पूर्व में शहर में लगातार यह संदेश देने की कोशिश की जाती रही थी “पुलिस आपकी मित्र है गैर नहीं।“ कई चक्कर काटे जाने के बाद थाने में चोरी की रिपोर्ट नहीं लिखे जाने पर अब लोग कहीं यह न कहना शुरु कर दें कि “पुलिस अपनी कब थी?”
अदृश्य शक्ति के बीच नये
निगम कमिश्नर की इंट्री
रायपुर नगर निगम में नये कमिश्नर अबिनाश मिश्रा ने निगम दफ़्तर में चार्ज ले लिया। पुराने निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी एवं नये निगम कमिश्नर अबिनाश मिश्रा में एक समानता रही है। मयंक रायपुर जिला पंचायत में सीईओ के पद से होते हुए निगम आए थे। अबिनाश भी रायपुर जिला पंचायत के सीईओ रहते हुए निगम आए हैं। अबिनाश ने कार्यभार ग्रहण किया ही था कि महापौर एजाज़ ढेबर एक बैठक में उनके सामने यह कहने से नहीं चूके कि “पहले व्यवस्थापन करें उसके बाद ही ठेले, गुमटियों को हटाने का काम करें।“ उल्लेखनीय है कि इससे ठीक एक दिन पहले जोन अफ़सरों की बैठक में महापौर ने कहा था कि “लगता है निगम के अधिकारीगण किसी अदृश्य शक्ति के कहने पर काम कर रहे हैं।“ माना यही जा रहा है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद जिस तरह राजधानी रायपुर में महापौर से बिना पूछे अवैध ठेले गुमटियों को हटाने की ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई उससे उनके भीतर का दर्द बैठक में छलक आया।