■ अनिरुद्ध दुबे
जब भी संसदीय परंपराओं की बात होती है छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल को बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। डॉ. शुक्ल के बाद क्रमशः डॉ. प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक एवं गौरीशंकर अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष रहे और वर्तमान में डॉ. चरणदास महंत हैं। इस बार के बजट सत्र में कई मौकों पर डॉ. महंत जिस तरह कनिष्ठ विधायकों को मार्गदर्शन देते नज़र आए या कभी कड़े शब्दों में आदेश देते नज़र आए उससे निश्चित रूप से आसंदी का सम्मान बढ़ा है। कांग्रेस के पहली बार के एक विधायक प्रश्नकाल में मुद्दा काफ़ी अच्छा लेकर आए थे लेकिन उनसे ठीक से सवाल करते नहीं बन रहा था। डॉ. महंत ने उन विधायक को टोका कि “वरिष्ठजनों से सीखिए कि मंत्रियों को सवालों में कैसे फंसाया जाता है।“ स्कूली शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के विभाग से जुड़ी कुछ अनियमितताओं पर जब चर्चा हो रही थी तब डॉ. महंत ने उनसे कहा कि “आप इसकी जांच करवाने की घोषणा कर रहे हैं या मैं करूं।“ एक मौके पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के सवालों का जवाब देते हुए कृषि एवं संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे ने स्वीकार किया कि ब्लेक लिस्टेड कंपनी को 2 करोड़ से ऊपर का भुगतान हुआ है। डॉ. महंत ने यहां पर भी यह कहने में देर नहीं की कि “इस मामले की मैं विधानसभा की समिति से जांच करवाने की घोषणा करता हूं।“ प्रश्नकाल में नगरीय प्रशासन एवं श्रम मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया के सामने श्रमिकों के पलायन को लेकर सवाल पर सवाल हो रहे थे। डॉ. महंत ने यहां पर कड़े शब्दों में कहा कि “पलायन छत्तीसगढ़ के माथे पर कलंक है।“
खिलाड़ियों का छत्तीसगढ़ से पलायन
राज्य में बेरोजगारी का प्रतिशत नीचे आने और लगातार रोजगार के अवसर खोले जाने के दावे होते रहे हैं। हाल ही में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा था कि मनरेगा में सीमित दिनों के लिए कराए जाने वाले कामों को रोजगार से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। फिर एक नई रिपोर्ट सामने आई है कि सबसे कम बेरोजगारी वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ तीसरे नंबर पर है। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी संगठन की रिपोर्ट में ऐसा ही बताया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कम बेरोजगारी दर वाले राज्यों में पहले नंबर पर ओड़िशा एवं दूसरे नंबर पर मेघालय है। समाचार पत्रों के माध्यम से चौंकाने वाली यह ख़बर सामने आई है कि लगातार कई प्रयासों के बावजूद नौकरी नहीं मिलने पर छत्तीसगढ़ की दो बड़ी खेल प्रतिभाओं का धैर्य ज़वाब दे गया। दोनों ने छत्तीसगढ़ छोड़ बाहर नौकरी तलाश ली है। वेट लिफ्टिंग में राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करने वाले रायपुर के सुभाष लहरे ने मुंबई में रोजगार तलाश लिया है। इसी तरह नौकायन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकीं कौशलनंदिनी ठाकुर ने यहां नौकरी का इंतज़ाम नहीं होते देख उत्तरखंड में ज्वाइनिंग दे दी है। वहीं देश के लिए ओलंपिक क्वॉलीफाई करने वाले रायपुर के वेट लिफ्टर आतिश पाटिल और हिरेंद्र सारंग पहले ही छत्तीसगढ़ छोड़ चुके हैं। इनके अलावा राजनांदगांव के जाने-माने वेट लिफ्टर जगदीश विश्वकर्मा को भी नौकरी के लिए दूसरे प्रदेश जाना पड़ा है।
‘शराब’ है कि चर्चा थमती ही नहीं
होली के त्यौहार में छत्तीसगढ़ में शराब की रिकॉर्ड बिक्री पर आबकारी मंत्री कवासी लखमा का बड़ा बयान आया है। उन्होंने कहा कि “पूरे देश में सबसे अच्छी शराब नीति हमारे छत्तीसगढ़ की है। इसे पड़ोसी राज्य झारखंड ने अपनाया है। मध्यप्रदेश सरकार के अधिकारी हमारे सम्पर्क में हैं। शराब का पैसा विकास के काम आता है। पेंशन से लेकर सड़क बनाने व नौकरी तक हर जगह यह काम आता है।“ दूसरी तरफ भाजपा बार-बार कांग्रेस को याद दिलाती आ रही है कि “घोषणा पत्र में शराब बंदी का वादा था उसे पूरा करो।“ पिछले दो साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ से यही जवाब आता रहा था कि “शराब बंदी करेंगे, लेकिन नोटबंदी की तरह नहीं।“ दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम अलग-अलग मौकों पर कह चुके हैं कि “पूरे प्रदेश में एक साथ शराब बंदी नहीं की जा सकती। एक ऐसा भी समुदाय है जहां शराब उनकी जीवन शैली का हिस्सा है।“ यानी शराब को लेकर राजनीति के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की राय भिन्न ही है। वैसे छत्तीसगढ़ में शराब का बखान बड़ी शान के साथ करना कोई आज की बात नहीं है। छत्तीसगढ़ में 2003 से 2008 के बीच जब भाजपा सरकार का पहला दौर था तब वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने ब्रेवरेज़ कार्पोरेशन के अध्यक्ष थे। तब मीडिया के सामने वे मासूमियत से कह गए थे कि “शराब की खपत के मामले में हमारा छत्तीसगढ़ देश में तीसरे स्थान पर है।“ उपासने ने इसे आय के बड़े स्त्रोत के दर्शाना चाहा था लेकिन बाल की खाल निकालने वालों की यहां कहां कमी है। लोग उपासने पर निशाना साधने से नहीं चूके थे।
क्या आरडीए से टैक्स
वसूल पाएगा निगम?
रायपुर नगर निगम जब भी बकायादारों की सूची जारी करता है उसमें रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) का नाम ज़रूर होता है। आरडीए के कुछ पढ़ाकू किस्म के लोगों ने हाल ही में कानून की पुस्तक के खूब पन्ने पलटे हैं और जवाब देने का रास्ता ढूंढ निकाले हैं। आरडीए के इन बौद्धिक किस्म के लोगों का कहना है कि धारा 135 में छूट की जो व्याख्या है उसमें स्पष्ट उल्लेखित है कि ऐसे भवन व अन्य अचल संपत्तियां जो संघ सरकार, राज्य सरकार एवं निगम के स्वामित्व की हों वहां संपत्ति कर लागू नहीं होगा। इस तरह आरडीए सरकार का पार्ट तो है ही इसका स्वरूप निगम-मंडल की तरह है, इसलिए नगर निगम टैक्स लेने की बात तो दिमाग से निकाल ही दे।
स्मार्ट सिटी में भूचाल
रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड में इन दिनों भूचाल आया हुआ है। वहां पदस्थ एक बड़े अफ़सर के व्यवहार से आहत होने की बात कहते हुए जीएम कम्यूनिकेशन आशीष मिश्रा एवं सीईओ के पीए विकास श्रीवास्तव ने इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा यह भी ख़बर है कि स्मार्ट सिटी लिमिटेड के 3 कम्प्यूटर ऑपरेटरों ने भी काम छोड़ दिया है। पिछले 4 वर्षों से स्मार्ट सिटी का काम अच्छा ही चल रहा था। 2022 का साल लगते ही वहां आपस में तालमेल गड़बड़ाने लगा। कुछ लोगों की यह भी राय है कि एकतरफा किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ताली दोनों हाथ से बजती है। आग यूं ही नहीं सुलगती। उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी लिमिटेड में रायपुर नगर निगम के कुछ इंजीनियर सेवाएं दे रहे हैं। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं कि स्मार्ट सिटी में जो कुछ चल रहा है उस पर हाल ही में इन इंजीनियरों एवं महापौर एजाज़ ढेबर के बीच बातचीत भी हुई। स्मार्ट सिटी ऐसी जगह है जहां न जाने कितनों की ही नज़र है। स्मार्ट सिटी में आया तूफान फिलहाल थमते नहीं दिख रहा है।