■ अनिरुद्ध दुबे
विधानसभा का इस बार का बजट सत्र कई मायनों में यादगार हो सकता है। विपक्ष के 35 कांग्रेस विधायक तो हैं ही लेकिन उनसे कहीं ज़्यादा आक्रामक तेवर भाजपा के दिग्गज विधायकों के नज़र आ रहे हैं। पहले ही दिन प्रश्नकाल में पीडीएस सिस्टम को लेकर धरमलाल कौशिक ने बम फोड़ा। दूसरे दिन अजय चंद्राकर ने राजधानी रायपुर के तेलीबांधा से वीआईपी चौक तक के डिवाइडर के ऊपर हुए विवादास्पद सौंदर्यीकरण को लेकर प्रश्न चिन्ह लगाया। तीसरे दिन राजेश मूणत व्दारा उठाए गए महादेव ऐप के मुद्दे की जबरदस्त गूंज रही। प्रश्नकाल एक घंटे का होता है लेकिन पूरे 30 मिनट यानी आधे घंटे महादेव ऐप छाया रहा। राजेश मूणत की आक्रामकता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता था कि महादेव ऐप्प पर उन्होंने उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा से कहा कि “किसका लिहाज़ कर रहे हैं। ये कभी किसी के नहीं हुए।“ कभी किसी के नहीं होने वाले वे कौन लोग हैं इस पर लगातार बहस छिड़ी हुई है। चर्चा तो यही कि महादेव ऐप की आड़ में कुछ लोगों पर जमकर लक्ष्मी की कृपा बरसी। ऐसे घटनाक्रम में चालाक किस्म के लोग तो अपने आप को बचाकर निकल जाते हैं, लेकिन नेता पीस जाते हैं।
नये स्लोगन की ज़रूरत
राहुल गांधी की छत्तीसगढ़ में न्याय यात्रा ज़ारी है। कांग्रेस के भीतर यह जुमला भी चला हुआ है कि “राहुल आएंगे बदलाव लाएंगे।“ विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भी रहे हों या लोकसभा चुनाव के नतीजे जो भी रहेंगे, लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पक्ष में जोरदार माहौल राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के आने के बाद ही बनता है। ओड़िशा-छत्तीसगढ़ बॉर्डर के रेंगालपाली में सभा को संबोधित करते हुए राहल ने वही पुरानी बात दोहराई कि “नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान, यही कांग्रेस की विचारधारा है।“ राहुल ने यात्रा के दौरान अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी का भी स्मरण किया। लगातार चिंतन-मनन करते रहने वाले छत्तीसगढ़ के कुछ दिग्गज कांग्रेसियों का मानना है कि राहुल-प्रियंका के दौरे से यहां के नेता व कार्यकर्ता चार्ज तो होते हैं लेकिन चुनावी खेल के समय मैदान में खुद को मज़बूत करने बहुत कुछ नया करने की ज़रूरत होती है और इसमें भाजपा बाजी मार ले जा रही है। हम नफ़रत का बाज़ार एवं मोहब्बत की दुकान की बात में लगे रहते हैं और वो लोग ऐसे नारे ईज़ाद कर जाते हैं जिसका सीधा असर आम जनता के अंतस मन पर पड़ते दिखता है। “बदलबो बदलबो बदल के रहिबो” या फिर “अब नई सहिबो बदल के रहिबो” जैसे उदाहरण सामने हैं। दिग्गज कांग्रेसी यह भी कहते हैं कि राहुल जी ने इंदिरा जी का स्मरण किया यह अच्छी बात है। इंदिरा जी जैसा दूसरा करिश्माई व्यक्तित्व कांग्रेस में नहीं हुआ। राहुल जी के ज़ेहन में यह बात भी आनी चाहिए कि केवल दो शब्द वाले नारे ‘ग़रीबी हटाओ’ ने इंदिरा जी के लिए सत्ता तक पहुंचने की राह खोल दी थी। अब समय ऐसा है कि नफ़रत का बाज़ार एवं मोहब्बत की दुकान से ऊपर उठकर कुछ नये स्लोगन तैयार करने की ज़रूरत है।
शर्मा व चौधरी
की जुगलबंदी
राजनीतिक हलकों में तो चर्चा यही है कि दो मंत्रियों उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा एवं वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी में ग़ज़ब का तालमेल देखने आ रहा है। भाजपा से गहराई से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि दोनों मंत्रियों को ऊपर से निर्देश मिला हुआ है कि कोई भी बड़ा निर्णय लें तो उसे आपस में ज़रूर साझा करें। माना जा रहा था कि बजट पेश होने के बाद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं ओ.पी. चौधरी मीडिया से रूबरू होंगे। जब बजट पर प्रकाश डालने की बात आई तो साय व चौधरी के अलावा शर्मा भी मौजूद थे। बजट पर अपनी बात रखने से पहले चौधरी ने जहां शर्मा को बड़े भाई जैसा संबोधन दिया वहीं शर्मा ने तारीफ़ के पूल बांधते हुए कहा कि “चौधरी विधानसभा में जब बजट पर अपनी बात रख रहे थे तो मुझे महसूस हो रहा था कि बहुत ऊंची लहरों में कहीं तैर रहा हूं।“
जेल का टोटका
राजनीति के क्षेत्र में सिद्धांतों को लेकर जेल जाना गर्व की बात होती है। सैद्धांतिक जेल यात्रा व्यक्ति का गौरव ही बढ़ाती है। अभी के दौर में छत्तीसगढ़ में जेल यात्रा नेताओं को किसी न किसी रूप में राजनीतिक ऊंचाई दे रही है। गौर करिये, भूपेश बघेल जेल यात्रा के बाद मुख्यमंत्री बने थे, विनोद वर्मा जेल यात्रा के बाद मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार बने थे और अब विजय शर्मा जेल यात्रा के बाद उप मुख्यमंत्री बने हैं।
‘लाल सलाम’ नहीं
‘जय श्रीराम’ गूंजेगा
उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा है कि “वह दिन दूर नहीं जब नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में ‘लाल सलाम’ नहीं बल्कि ‘जय श्रीराम’ का नारा गूंजेगा।“ बताया यही जाता है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बस्तर पर लगातार पैनी दृष्टि है। बस्तर को लेकर उनकी आंखों में कई बड़े सपने पल रहे हैं। उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा को गृह मंत्रालय का प्रभार काफ़ी सोच समझकर ही दिया गया है। नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए सलवा जुडूम से लेकर सेवानिवृत्त आईपीएस के.पी.एस. गिल को सलाहकार नियुक्त करने, घर वापसी अभियान चलाने जैसे न जाने कितने ही प्रयोग पूर्व में हो चुके हैं। माना यही जा रहा है कि बस्तर को लेकर रायपुर से लेकर दिल्ली तक लगातार विचार मंथन जारी है। बस्तर में शांति स्थापित करने आने वाले महीनों में कौन-कौन से कदम उठाए जाएंगे इस पर अभी पत्ते खोले नहीं जा रहे हैं।
चुनाव से पहले नक्सलवाद
पर बनी फ़िल्म
मचा सकती है बवाल
लोकसभा चुनाव से पहले 15 मार्च को बस्तर से जुड़े नक्सलवाद पर फ़िल्म ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ रिलीज़ होने जा रही है। यह प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह एवं डायरेक्टर सुदीप्तो सेन की फ़िल्म है। इन दोनों की फ़िल्म ‘द केरला स्टोरी’ काफ़ी विवादों में रही थी और उस फ़िल्म ने बाक्स आफिस पर धूम मचा दी थी। ‘द केरला स्टोरी’ की तरह ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ की कहानी भी कोई आसान नहीं। प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह बेहिचक कहते हैं कि “बस्तर में जब 76 जवानों को नक्सलियों ने बेरहमी से मारा था तो जेएनयू में उसका जश्न मनाया गया था।“ दिलचस्प बात यह है कि ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ के स्क्रीन प्ले व डायलॉग लिखने में उन अमरनाथ झा का बड़ा रोल है जो खुद पूर्व में नक्सली रहे हैं और नक्सलवाद की विचारधारा से जुड़े रहने के कारण लंबा समय जेल में काट चुके हैं।