कारवां (7 अप्रैल 2024) ● क्या वाकई अभिशप्त है सागौन बंगला… ● सुर्खियों में राजनांदगांव लोकसभा सीट… ● कांग्रेस से भाजपा में गईं 3 देवियां…● कोषाध्यक्ष अब भी गायब… ● बिन जेब वाला नेता… ● बलौदाबाजार का सेक्स स्कैंडल…

■ अनिरुद्ध दुबे

जोगी परिवार ने राजधानी रायपुर का सरकारी सागौन बंगला ख़ाली कर दिया। जोगी परिवार यहां क़रीब 20 वर्ष रहा। पूर्व विधायक एवं जनता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने सोशल मीडिया में जानकारी शेयर करते हुए कहा कि “अलविदा सागौन बंगला।“ बंगले की चाबी लोक निर्माण विभाग को सौंपी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ सरकार व्दारा सागौन बंगले को गिराकर वहां पर कामर्शियल कॉम्पलेक्स बनाने की योजना है। छत्तीसगढ़ की राजनीति के इतिहास के पन्ने जब कभी भी पलटे जाएंगे सागौन बंगले का ज़िक्र ज़रूर होगा। सागौन बंगले को लेकर चर्चा का दौर तब शुरु हुआ था जब जुगल किशोर साहू तत्कालीन रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष की हैसियत से यहां रहा करते थे। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में उनका जिला पंचायत अध्यक्षीय कार्यकाल 1994 से 1999 तक रहा। जुगल पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता धनेन्द्र साहू के छोटे भाई हैं। जुगल दोस्ताना व्यवहार के लिए जाने जाते थे। तब कांग्रेस के लोगों एवं पत्रकार मित्रों का उनसे मेल मुलाक़ात करने सागौन बंगला आना-जाना लगे रहता था। 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायपुर लोकसभा सीट पर जुगल को उतारकर बड़ा दांव खेला। उनके सामने पूर्व में तीन बार सांसद रह चुके रमेश बैस भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में थे। रमेश बैस ने भारी मतों से जुगल को हराया था। इस लोकसभा चुनाव के बाद जुगल की राजनीतिक पारी मानो सिमट गई। यानी 99 के लोकसभा चुनाव के बाद वे कभी चर्चा में नहीं रहे। सन् 2000 की शुरुआत में श्रीमती छाया वर्मा रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। श्रीमती वर्मा को भी वही सागौन बंगला दिया गया। श्रीमती वर्मा ने बंगले की साफ सफाई करवा ली थी और बिजली का मीटर भी लगवा लिया था। श्रीमती वर्मा ने बंगले में शिफ्ट होने से पहले अपने एक परिचित ज्योतिषी को सागौन बंगला दिखा लेना मुनासिब समझा। ज्योतिषी ने सागौन बंगला का कोना-कोना देखा और श्रीमती वर्मा से कहा कि यहां आप रहने आईं तो अपशकुन हो सकता है। बेहतर होगा कि कोई दूसरी ज़गह तलाशें। श्रीमती वर्मा ने ज्योतिषी की बात को काफ़ी गंभीरता से लिया और सागौन बंगले में शिफ्ट होने से मना कर दिया। बस यहीं से सागौन बंगले को लेकर कथा कहानियां कहने का दौर शुरु हो गया। कहने वालों ने कहना शुरु कर दिया कि सागौन बंगले में जबरदस्त वास्तु दोष है और यह अभिशप्त है। जून 2000 में आईएएस अफ़सर विवेक कुमार देवांगन को रायपुर नगर निगम कमिश्नर की ज़िम्मेदारी मिली। रायपुर नगर निगम के कमिश्नर पद का दायित्व संभालने वाले वे पहले आईएएस अफ़सर थे। देवांगन को सागौन बंगला दिया गया। देवांगन सिद्धांतों के पक्के और नियम कायदे से चलने वाले व्यक्ति माने जाते रहे हैं। तत्कालीन कांग्रेस महापौर तरुण चटर्जी को समझ आ चुका था कि देवांगन के साथ तालमेल बैठ पाना मुश्किल है। नियम कायदे से चलने के कारण देवांगन न सिर्फ़ तरुण चटर्जी बल्कि मीडिया जगत के एक शक्तिशाली व्यक्ति की भी आंखों की किरकिरी बन चुके थे। पॉवरफुल लोगों ने देवांगन को रायपुर नगर निगम से हटवाने पूरी ताकत लगा दी। जनवरी 2001 में उनका तबादला हो गया। रायपुर नगर निगम में वे साल भर से भी कम की छोटी पारी खेल पाए। कहने वालों ने यही कहा कि देवांगन साहब को सागौन बंगला नहीं फला। देवांगन के जाने के बाद सागौन बंगला विधानसभा के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष नंद कुमार साय को आबंटित हुआ। साय ने भी सागौन बंगले के बारे में तरह-तरह की कहानियां सुन रखी थीं। उन्होंने यहां शिफ्ट होने से इंकार कर दिया। फिर उन्हें जेल रोड पर सरकारी बंगला दिया गया। दिसंबर 2003 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा की सरकार बनी तो सागौन बंगला पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को आबंटित हुआ। जोगी इस बंगले में आने के ज़रा भी इच्छुक नहीं थे। वे सिविल लाइन में गांधी उद्यान से लगे बंगले में ही रहना चाह रहे थे जहां वे लगभग 3 वर्षों तक मुख्यमंत्री की हैसियत से रहे थे। नवम्बर 1978 से जून 1981 तक जोगी जब रायपुर कलेक्टर थे तब भी इसी बंगले में रहे थे। यही कारण है कि इस बंगले से उनका गहरा लगाव था। काफ़ी कोशिशों के बावजूद जोगी को जब गांधी उद्यान से सटा वह बंगला नहीं मिला तो मजबूरी में ही सही सागौन बंगले में शिफ्ट होने तैयार हो गए। शिफ्ट होने के बाद जोगी ने सागौन बंगले को नया नाम दिया ‘अनुग्रह।‘ जोगी को ‘अनुग्रह’ में शिफ्ट हुए कुछ ही हफ़्ते बीते रहे होंगे कि 2004 का लोकसभा चुनाव सामने आ गया। कांग्रेस आलाकमान ने जोगी को महासमुन्द सीट से भाजपा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ़ चुनावी मैदान में उतारा। विडंबना देखिए कि मतदान से कुछ दिनों पूर्व चुनाव प्रचार के दौरान जोगी भयंकर सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए और चलने फिरने में असमर्थ हो गए। मतदान होने से लेकर रिजल्ट आने के कई दिनों बाद तक जोगी दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे और उन्हीं हालातों में उन्होंने विद्याचरण शुक्ल जैसे कद्दावर नेता के खिलाफ़ भारी मतों से जीत दर्ज करने का करिश्मा कर दिखाया था। उस दुर्घटना के बाद अपने शेष जीवनकाल में जोगी को व्हील चेयर में रहना पड़ा। कहने वाले यही कहते रहे कि जोगी को भी यह बंगला नहीं फला। जोगी भी दृढ़ निश्चयी ठहरे और उसी बंगले में रहते हुए लगातार अपनी राजनीतिक ताकत का अहसास कराते रहे। उसी बंगले में रहते हुए में पहले अजीत जोगी फिर उनकी पत्नी रेणु जोगी एवं उनके बाद पुत्र अमित जोगी विधायक बने। मई 2020 की एक सुबह अजीत जोगी गंगा इमली खा रहे थे। अचानक गंगा इमली का एक बीजा जोगी की श्वास नली में जा फंसा। उन्हें तत्काल रायपुर के एक बड़े निजी अस्पताल में दाख़िल कराया गया। 21 दिनों तक जीवन और मौत के बीच संघर्ष के बाद 29 मई 2020 को जोगी ने अस्पताल में ही अंतिम सांसें ली। छत्तीसगढ़ की राजनीति के इतिहास के पन्नों में अजीत जोगी का नाम दर्ज हो चुका है, सागौन बंगले का नाम भी दर्ज रहेगा।

सुर्खियों में राजनांदगांव

लोकसभा सीट

देखा जाए तो इस बार के लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सुर्खियों में कोई लोकसभा सीट है तो राजनांदगांव लोकसभा सीट। राजनांदगांव लोकसभा सीट ने मानो रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर एवं कोरबा जैसी सीटों का भी ग्लैमर फ़ीका कर दिया है। राजनांदगांव क्षेत्र से कोई न कोई ऐसी कहानी सामने आ ही जा रही है जो कि उसे न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रखे हुए है। सबसे पहली चौंकाने वाली ख़बर तो यह रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव से कांग्रेस प्रत्याशी होंगे। फिर राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता सम्मेलन में सुरेन्द्र वैष्णव उर्फ सुरेन्द्र दाऊ मंच से भूपेश बघेल की मौजूदगी में ही कांग्रेस सरकार के समय कार्यकर्ताओं की हुई उपेक्षा को लेकर कुछ ऐसी बातें कह गए जिसका वीडियो प्रदेश भर में वायरल हुआ। उस वीडियो से ऐसा हंगामा बरपा कि सुरेन्द्र दाऊ को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल ने ईवीएम पर गहरी आशंका जताई। बघेल ने अपील की कि “हमारी पार्टी के लोग राजनांदगांव सीट से 375 नामांकन भरें। कुल नामांकन की संख्या 384 पर पहुंच गई तो ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की मजबूरी हो जाएगी।“ यह अलग बात है कि नामांकन की आख़री तारीख़ तक राजनांदगांव में 23 लोगों के ही नामांकन जमा हुए। बघेल के कथन पर भाजपा एवं कांग्रेस की तरफ से लगातार प्रतिक्रियाओं का दौर चल ही रहा था कि राजनांदगांव में कांग्रेस की नामांकन रैली के दौरान छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत कुछ ऐसा कह गए कि बवाल मच गया। महंत ने छत्तीसगढ़ी भाषा में कहा कि “मतदाताओं को ऐसे व्यक्ति को चुनने की ज़रूरत है जो उनके मुद्दों को उठा सके और डंडे से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सिर फोड़ सके।“ इसके बाद उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने राजधानी रायपुर में प्रेस कांफ्रेंस लेकर डॉ. महंत के कथन पर न सिर्फ़ गहरी आपत्ति जताई बल्कि यह कहा कि “फोड़ना है तो पहले मेरा सिर फोड़ें।“ इसके बाद रायपुर में डॉ. महंत के निवास के सामने भाजपा का जो प्रदर्शन हुआ उसका नेतृत्व भी विजय शर्मा ने ही किया। विजय शर्मा के पास प्रदेश का गृह मंत्रालय है। सोचिए डॉ. महंत के बंगले का सामने जब प्रदर्शन चल रहा होगा तो पुलिस को कितनी सावधानी बरतनी पड़ी होगी। बहरहाल डॉ. महंत ने नामांकन रैली में जो कुछ भी कहा था भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली के निर्देश पर राजनांदगांव में उनके खिलाफ़ एफआईआर दर्ज़ हो चुकी है।

कांग्रेस से भाजपा

में गईं 3 देवियां

प्रदेश की 3 बड़ी कांग्रेस नेत्रियों वाणी राव, अनिता जी. रावटे एवं उषा पटेल ने अपनी पुरानी पार्टी को टाटा, बॉय बॉय कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। तीनों नेत्रियां कांग्रेस का बड़ा चेहरा रही हैं। वाणी राव बिलासपुर से हैं तो अनिता जी. रावटे तथा उषा पटेल महासमुन्द से। तीनों में कुछ समानताएं हैं। किसी समय में वाणी राव बिलासपुर महापौर, अनिता रावटे महासमुन्द नगर पालिका अध्यक्ष एवं उषा पटेल महासमुन्द जिला पंचायत अध्यक्ष रही थीं। वाणी राव एवं अनिता रावटे दोनों ही पूर्व में प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकी हैं। तीनों ही नेत्रियों ने घोर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कांग्रेस को छोड़ा है। देखना यह है कि भाजपा की डगर इनके लिए आसान रहती है या कठिन।

कोषाध्यक्ष अब भी गायब

लोकसभा चुनाव सामने है और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल अज्ञातवास पर हैं। अग्रवाल तो विधानसभा चुनाव के समय में भी अज्ञातवास पर थे। जब चुनाव सामने हो तो कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी और भी अहम् हो जाती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कोषाध्यक्ष की इस गैर मौजूदगी में आर्थिक मामलों को लेकर कैसे व्यवस्था बनाए रख पा रहे होंगे यह तो वे ही बेहतर जानते होंगे।

बिन जेब वाला नेता

एक राष्ट्रीय पार्टी के बैनर तले छत्तीसगढ़ से चुनाव लड़ रहे एक युवा नेता के बारे में ज़माने से नये-नये विशेषण गढ़े जाते रहे हैं। विशेषण की पुड़िया छोड़ने में माहिर रायपुर के शरीर से ऊंचे कद के एक नेता का कहना है कि मुझे दो जगह जेब नहीं दिखाई देती, “एक तो कफ़न में, दूसरा चुनाव लड़ रहे युवा नेता के कुर्ते में।“ समझदार लोगों के लिए इशारा काफ़ी है।

बलौदाबाजार का

सेक्स स्कैंडल

जैसा कि अब धीरे-धीरे लोकसभा चुनाव का रंग पकड़ते जा रहा है इस बीच एक और ख़बर भारी चर्चा में है, बलौदाबाज़ार में सेक्स परोसने और उसका वीडियो बनाकर बाद में ब्लेक मेलिंग। इस मामले ने वहां के जिला एवं पुलिस प्रशासन की नींदें उड़ा दी। आदतन अपराधिक प्रवृत्ति के लोग सेक्स परोसने के बाद ब्लेक मेलिंग का खेल खेलें बात समझ में आती है लेकिन जब किसी पूर्व विधायक के क़रीबी, तथाकथित पत्रकार, वकील एवं पुलिस विभाग से जुड़े लोगों की ही ऐसे काम में संलग्नता हो जाए तो फिर कौन किसे बचाए। यह तो गाने की ठीक उस लाइन की तरह हो गया- “कोई दुश्मन ठेंस लगाए तो मीत जिया बहलाये… मन मीत जो घाव लगाये उसे कौन मिटाये।“ अभी तो केवल दो पीड़ितों से 25 लाख वसूले जाने की जानकारी सामने आ रही, लेकिन यह भी चर्चा है कि पैसा गंवा चुके कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इज़्ज़त बचाने के चक्कर में सामने नहीं आ रहे हैं। बलौदाबाजार जिले में स्थित एक निजी कंपनी के रिटायर्ड अफ़सर भी इन ब्लेकमेलरों के चक्कर में आ गए और लाखों गंवा बैठे। बताते हैं वो तो बलौदाबाजार क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व करने वाले प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा एवं कुछ स्थानीय पत्रकारों ने ज़बरदस्त दबाव बनाया तब कहीं जाकर पुलिस ने इस नीले अपराध में संलग्न लोगों की कॉलर पकड़ना शुरु किया।

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