■ अनिरुद्ध दुबे
कांग्रेस की नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर राधिका खेड़ा एवं छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला के बीच हुआ वाक युद्ध पिछले लगातार 4 दिनों से राजनीतिक एवं मीडिया जगत में सुर्खियों में बना हुआ है। छोटे सी बात पर हुआ झगड़ा नये-नये रंग लेते हुए कहां से कहां पहुंच जाता है उसकी मिसाल है राधिका-सुशील विवाद। ख़बर तो यही है कि राजीव भवन में सुशील आनंद शुक्ला के कक्ष में यह वाक युद्ध हुआ। उस दौरान कांग्रेस के दो सीनियर प्रवक्ता नितिन भंसाली एवं सुरेन्द्र वर्मा वहां मौजूद थे। क़रीब छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के समय में भी राधिका लंबे समय तक रायपुर में थीं और तब भी संचार विभाग की ज़िम्मेदारी सुशील के कंधों पर ही थी। तब दोनों के बीच अच्छा तालमेल बना हुआ था। छत्तीसगढ़ में तीन चरणों के लोकसभा चुनाव के दो चरण हो जाने के बाद राधिका और सुशील के बीच हुई इस लड़ाई की जड़ कहां है यह सवाल कितने ही कांग्रेसियों के मन में कौंध रहा है? सुशील के बारे में अधिकांश कांग्रेसियों की यही राय है कि वे अपने काम के प्रति ज़िम्मेदार हैं। गोल-मोल बात करना उनकी आदत में नहीं है। जो सच लगे सामने वाले के मूंह पर कह देते हैं। वहीं राधिका हमेशा मुस्कराती नज़र आने वाली नेत्री रही हैं। राजीव भवन में जिन प्रेस कांफ्रेंस में राधिका मौजूद रहतीं उनका मुस्कराता चेहरा सामने होता। सवाल यह कि ऐसी नेत्री का गुस्सा ऐसे कैसे फूट पड़ा? वाक युद्ध के बाद राधिका का एक के बाद तीन ट्विट आया। सबसे ज़्यादा बहस उस ट्विट पर छिड़ गई जिसमें राधिका ने लिखा- ‘दुशील’ को लेकर ‘कका’ का मोह एक लड़की की इज़्ज़त से बढ़कर है लेकिन, “लड़की हूं, लड़ रही हूं” “मर्यादा पुरुषोत्तम” प्रभु श्री राम जी के ननिहाल में दीदी का स्वागत है… यह ट्विट उस दिन जारी हुआ जब कोरबा लोकसभा क्षेत्र में प्रियंका गांधी की चुनावी सभा थी। इस ट्विट को पढ़कर लगाने वालों ने यही अर्थ लगाया कि दुशील यानी सुशील, कका यानी भूपेश बघेल एवं दीदी यानी प्रियंका गांधी। इस ट्विट को पढ़ने के बाद भाषा के एक जानकार की यह राय सामने आई कि ‘एक्स’ पर लिखे गए शब्द एवं मात्राओं को देखने के बाद यही अनुमान लगता है कि लिखने वाला जो भी है भाषा का ज़बरदस्त जानकार है। राधिका खेड़ा कोई अभी के विधानसभा या लोकसभा चुनाव से नहीं, बल्कि 2018 से लगातार छत्तीसगढ़ आ रही हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव एवं 2019 के लोकसभा चुनाव के समय में भी वे लंबे समय तक यहां थीं। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी किसी न किसी काम से उनका छत्तीसगढ़ आना-जाना होते रहा था। इस बार चलते लोकसभा चुनाव के बीच अनोखा घट गया। इस अनोखी घटना के कारण राधिका एवं सुशील का नाम जिस तरह राजनीति के गलियारे एवं मीडिया जगत में लगातार गूंज रहा है उतना शायद ही पहले कभी गूंजा हो। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री अरुण साव, महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े से लेकर पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर, पूर्व विधायक श्रीमती रंजना साहू तथा भाजपा प्रदेश प्रवक्ता केदार गुप्ता की ओर से राधिका-सुशील विवाद पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ी करने वाली प्रतिक्रियाएं सामने आईं हैं। कुछ चैनलों, अख़बारों एवं वेब पोर्टलों में विवाद वाला यह एपिसोड कुछ इस तरह चला मानो लोकसभा चुनाव के बीच कोई बहुत बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हो गया हो। यूं ही कोई बात इतनी लंबी नहीं खींची चली जाती। विवाद के बाद राजीव भवन के ही एक कमरे में राधिका जब किसी से रोते हुए बात कर रही थीं तो बिना उनके चेहरे पर फ़ोकस करते हुए दरवाज़े के बाहर उनका वीडियो कैसे बन गया यह अहम् सवाल है! जब तीसरे चरण का चुनाव सामने है तो किन लोगों ने पर्दे के पीछे रहकर इस घटनाक्रम को ख़ूब हवा देने की कोशिश की यह प्रश्न कांग्रेस के ही भीतर न जाने कितने लोगों को मथ रहा है! इसी राजीव भवन में 2018 के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले तोड़फोड़ की बड़ी घटना हुई थी जिसे सुलझाने में 24 घंटे का भी समय नहीं लगा था। वही समय था जब कुछ युवा नेता तत्कालीन छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी पी.एल. पुनिया को क्या कुछ नहीं कह गए थे और उसका भी वीडियो वायरल हुआ था, लेकिन वह मामला तूल नहीं पकड़ा था। सवाल यह भी है कि सुशील-राधिका को सामने बिठाकर समाधान निकालने की कोशिश में इतनी देर क्यों लगी?
कहां पर टक्कर दे सकने
की स्थिति में है कांग्रेस
सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता खो देने के बाद प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में कांग्रेस कहां-कहां अच्छा चुनाव लड़ी या लड़ने जा रही है। दो चरण में चार लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हो चुका। 7 में होना बाक़ी है। चुनावी घटनाक्रमों पर पैनी नज़र रखने वालों का मानना है कि जहां चुनाव हो चुके उनमें राजनांदगांव, बस्तर एवं कांकेर में भाजपा-कांग्रेस के बीच बढ़िया मुक़ाबला रहा है और जहां चुनाव होने जा रहे उनमें कोरबा, जांजगीर चांपा एवं महासमुन्द में कांग्रेस की अच्छी उपस्थिति दिख रही है। यह अलग बात है कि चुनावी रणनीति पर गौर करें तो भाजपा ज़्यादा मज़बूत नज़र आ रही है। कोरबा से कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती ज्योत्सना महंत कांग्रेस उम्मीदवार हैं। श्रीमती महंत के पति डॉ. चरणदास महंत राजनीतिक दांव-पेंच में माहिर माने जाते हैं। 2019 में श्रीमती महंत जब कोरबा से ही चुनाव लड़ रही थीं, इसी सीट पर जनता कांग्रेस की टिकट पर अजीत जोगी का उतरना तय माना जा रहा था। जानकार लोग बताते हैं कि तब डॉ. महंत जोगी को मनाने में क़ामयाब रहे थे। माना यही जाता है कि जोगी जब चुनाव लड़ने से पीछे हटे तभी श्रीमती महंत की जीत का मार्ग प्रशस्त हो सका था। इस बार श्रीमती महंत के सामने भाजपा की तेज-तर्रार अनुभवी नेत्री सरोज पांडे हैं। सरोज दुर्ग शहर की नेता हैं और इस बार कोरबा के किले को भेदने का लक्ष्य लेकर वहां से चुनावी मैदान में उतरी हैं। बात करें जांजगीर-चाम्पा लोकसभा सीट की। यहां नतीजा चाहे जो सामने आए कांग्रेस प्रत्याशी शिव कुमार डहरिया पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। जांजगीर चाम्पा में 8 विधानसभा सीटें आती हैं और आठों विधानसभा में कांग्रेस के विधायक हैं। बताया जाता है कि जांजगीर चाम्पा पहुंचकर शिव डहरिया ने जब चुनावी अभियान की शुरुआत की थी, उनकी पार्टी के कुछ विधायक किन्हीं कारणों से रुष्ट नज़र आ रहे थे। थोड़ा वक़्त लगा, डहरिया उन विधायकों को मनाने में क़ामयाब रहे। जांजगीर चाम्पा से भाजपा से कमलेश जांगड़े उम्मीदवार हैं। महासमुन्द की बात करें तो वहां साहू मतदाताओं की बहुलता को देखते हुए कांग्रेस ने दुर्ग जिले के नेता ताम्रध्वज साहू को उतारने का दांव खेला है। साहू पूर्व में न सिर्फ़ प्रदेश सरकार में मंत्री रहे बल्कि विधायक के साथ सांसद रहने का भी उन्हें अनुभव रहा है। सवाल यह है कि महासमुन्द में साहू समाज का वोट एकतरफा जाएगा या फिर कांग्रेस-भाजपा में बंट जाएगा? महासमुन्द से भाजपा ने पूर्व विधायक रूप कुमारी चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है। ताम्रध्वज साहू की तरह रूप कुमारी चौधरी भी पिछड़ा वर्ग से हैं।
नक्सलवाद बड़ा मुद्दा
इस लोकसभा चुनाव में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में अपनी पहली चुनावी सभा में कहा था कि 3 साल में हम छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे। फिर बाद वाली चुनावी सभाओं में उन्होंने 3 की जगह 2 साल में नक्सलवाद को ख़त्म करने की बात कही। वैसे बस्तर में चलने वाले नक्सल आपरेशन में लगे सूरक्षा जवानों को लगातार सफलता मिल रही है। मुठभेड़ों में बड़ी संख्या में नक्सली मारे जा रहे हैं, तो कही-कहीं से नक्सलियों के आत्मसमर्पण की ख़बरें भी आ रही हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 2024 के इस लोकसभा चुनाव में जो बड़े मुद्दे हैं उनमें नक्सलवाद भी बड़ा मुद्दा है।
बातचीत के रास्ते खुले
भाजपा की सरकार पहले भी थी और अब भी है। 2008 से 2013 के बीच भाजपा की सरकार में ननकीराम कंवर गृह मंत्री थे। वह मंत्री रहते हुए में कहा करते थे कि नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मारेंगे। अभी गृह मंत्रालय उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के पास है। विजय शर्मा लगातार यही कहते आ रहे हैं कि नक्सलियों से बातचीत के रास्ते खुले हुए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो अपनी बात रख दी अब नक्सली नेता क्या चाहते हैं यह सामने आना अभी बाक़ी है।
जकां से इस्तीफे के बाद
फ़िल्म बनाएंगे गोरेलाल
छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार गोरेलाल बर्मन ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस यानी जोगी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। गोरेलाल पहले कांग्रेस में थे। 2013 एवं 2018 दो बार वे कांग्रेस की टिकट पर पामगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। दुर्भाग्य से दोनों बार नहीं जीत पाए। वे 2023 के चुनाव में भी पामगढ़ से ही कांग्रेस से टिकट चाह रहे थे। इस बार कांग्रेस ने उनको टिकट नहीं दी और शेषराज हरबंश को चुनावी मैदान में उतारा। बागी होकर गोरेलाल जनता कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में आ गए। इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। छह महीने में जनता कांग्रेस से उनका मोह भंग हो गया और उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। गोरेलाल अब एक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म प्रोड्यूस करने की तैयारी में हैं। स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है। वहीं दूसरे छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार दिलीप लहरिया किस्मत वाले निकले। 2023 के चुनाव में लहरिया मस्तूरी से कांग्रेस की टिकट पाए और जीते भी। इसके पहले 2013 के चुनाव में भी लहरिया मस्तूरी से ही कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे। इसी को कहते हैं नसीब अपना अपना।