■अनिरुद्ध दुबे
चलते लोकसभा चुनाव के बीच सैम पित्रौदा (पूरा नाम सत्यनारायण पित्रौदा) सुर्खियों में हैं। पित्रौदा कुछ ऐसा कह गए जिससे कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी सभा में राहुल गांधी का बिना नाम लिए उन पर निशाना साधते हुए कहा कि “शहजादे के विदेश में बैठे हुए अंकल उन्हें नये-नये ज्ञान की घूंटी पिला रहे हैं। अंकल ने भारत की व्याख्या करते हुए कहा कि यह देश कुछ ऐसी विशेषता लिए हुए है कि यहां लोग रंग-रूप में बंटे हुए हैं। यहां पूर्व के लोग चाइनीस, पश्चिम के अरब, उत्तर के गोरे एवं दक्षिण के लोग अफ्रीकी जैसे दिखते हैं।“ मोदी जी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि “कांग्रेस विचारधारा के लोग रंगभेदी हैं। इन्हें द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति बनना बर्दाश्त नहीं हो रहा था।“ रायपुर में उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर कहा कि “कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सलाहकार सैम पित्रोदा ने चमड़ी के आधार पर भारतीयों को गाली दी है। नाम से भले ही वह सैम पित्रोदा हों, पर नस्ल और रंग भेद को लेकर उनके ताजा बयान के बाद उन्हें देश ‘शेम’ पित्रोदा नाम से जानेगा। मैं सैम को सैम नहीं ‘शेम’ कहूंगा।“ राजनीति से जुड़े लोग अपने-अपने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं और करते रहेंगे, कम लोगों को यह बात मालूम है कि सैम पित्रोदा के रिश्तेदार राजधानी रायपुर में रहते हैं। समय-समय पर सैम का रायपुर आना होते रहा है। वे एक बार पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अतिथि बनकर भी आए थे। उस दीक्षांत समारोह के कभी गवाह रहे शिक्षा विद् एवं छात्रगण सोच में पड़ गए हैं कि राजनीति में कब किसे कैसे विशेषण से नवाज़ दिया जाए कहा नहीं जा सकता।
किसी सिनेमाई कहानी से
कम नहीं नेत्री
का राजनीतिक सफ़र
कहानी है दूरदराज़ में रहने वाली उस नेत्री की जिसने छत्तीसगढ़ से गहरा रिश्ता बनाया। ख़ासकर राजधानी रायपुर से। एक राष्ट्रीय पार्टी में लंबा सफ़र तय कर लेने के बाद अब वह दूसरी राष्ट्रीय पार्टी में जा चुकी हैं। दो हफ़्ता होने को आ रहा, उस नेत्री की कहानी से जुड़े ताजे एपिसोड को लेकर छत्तीसगढ़ में चर्चाओं का दौर अभी थमा नहीं है। 7 मई को छत्तीसगढ़ की 7 सीटों पर तीसरे व अंतिम चरण का लोकसभा चुनाव होने जा रहा था तब मुद्दों पर बातें कम नेत्री से जुड़े पहलुओं की चर्चा ज़्यादा हो रही थी। आख़िर कौन हैं ये नेत्री? जानकार लोग बताते हैं- “नेत्री का राजनीतिक क्रियाकलाप स्कूल लाइफ के समय में ही शुरु हो गया था। कॉलेज़ की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे राजनीति की मुख्य धारा में आ गईं। वह कभी राष्ट्रीय पार्टी की टिकट पर दिल्ली की किसी सीट से विधानसभा चुनाव भी लड़ी थीं, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय में उनका छत्तीसगढ़ आना शुरु हुआ। 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद नेत्री की मानो तरक्की की राह खुल गई।“ रोज़ाना काफ़ी हाउस में लंबा वक़्त बिताने वाले कुछ नेता बताते हैं “नेत्री के जितने बड़े सपने रहे हैं उतने ही बड़े शौक। जब कभी वे रायपुर आतीं फाइव स्टार हॉटल से नीचे ठहरना उन्हें क़बूल नहीं होता था। बड़े लोगों के जो शौक होते हैं वो सारे शौक उनके रहे हैं। नेत्री की मां की फ़िल्म निर्माण कंपनी है। राम यात्रा पर फ़िल्म बनाने का बड़ा ठेका नेत्री की मां को मिला था। फ़िल्म का ठेका क़रीब 5 करोड़ का था। ठेका मिलने के पीछे एक मंत्री का बड़ा हाथ था। फ़िल्म के निर्माण का काम बस्तर के सुकमा क्षेत्र की तरफ से शुरु हुआ था। बताते हैं इस प्रोजेक्ट में 16 गाड़ियां सरकारी खर्चे पर लगी थीं। फ़िल्म निर्माण का काफ़ी कुछ काम हुआ भी। इससे पहले कि फ़िल्म के एवज़ में बड़ी राशि का भुगतान हो पाता सरकार बदल गई। नेत्री ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। ‘जहां चाह वहां राह’ वाली कहावत पर उनका गहरा यक़ीन है। उन्हें भरोसा है छत्तीसगढ़ तब भी काम आया था, आगे भी काम आएगा।“ सही तो है, जहां की ज़मीन इतनी उर्वरा हो वहां पर कौन अपनी फसल नहीं काटना चाहेगा।
वो तो मैं था…
छत्तीसगढ़ की एक हाई प्रोफाइल सीट से लड़े एक राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार के बोलने का अंदाज़ प्रदेश के लोगों को ही नहीं दिल्ली के लोगों को भी घायल कर देता है। जहां बोलना था वहां पर इस उम्मीदवार ने पूरी बेबाक़ी के साथ कहा कि “वह तो मैं था जो वज़नदार नेता के सामने पूरी दमदारी से लड़ा। कोई दूसरा होता तो मध्यप्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट इंदौर के उम्मीदवार अक्षय कांति बम की तरह अंतिम समय में नाम वापस लेकर ऊपर वालों को मुश्किल में डाल देता।“
प्रत्यक्ष प्रणाली से हो सकता
है महापौर का चुनाव
अंदर ही अंदर चर्चा यह है कि भारतीय जनता पार्टी महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने के पक्ष में है। प्रत्यक्ष प्रणाली यानी महापौर का फैसला सीधे जनता के मतदान से। यह परंपरा उस समय शुरु हुई थी, जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले और उसके बाद चार ऐसे मौके आए जब महापौर का चुनाव जनता के वोटों से हुआ। 2018 में जब भूपेश बघेल की सरकार आई तो कैबिनेट का फैसला हुआ कि महापौर चुनाव प्रत्यक्ष नहीं अप्रत्यक्ष प्रणाली से होगा। अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्षदों के बीच से महापौर चुना जाना, जैसा कि काफ़ी पहले हुआ करता था। कांग्रेस की सरकार में जिस तरह अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव हुआ, कुछ नगर निगमों में ज़बरदस्त अराजकता का माहौल देखने को मिला, जिसकी चर्चा प्रदेश भर में होती रही है। महापौर चुनने का जनता को जो अधिकार मिला हुआ था उसे छिने जाने का मैसेज कोई अच्छा नहीं रहा। यही कारण है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद महापौर चुनाव को लेकर नये सिरे से विचार हो रहा है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया जा सकता है।
ऑफिसर्स कॉलोनी
में ही कम वोट
राजधानी रायपुर के देवेन्द्र नगर क्षेत्र में ऑफिसर्स कॉलोनी है, जहां आला अफ़सर रहते हैं। बड़ी संख्या में आईएएस एवं आईपीएस तथा कुछ बाद के क्रम के। कुछ नेताओं के भी सरकारी बंगले यहीं हैं। यह एरिया रायपुर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में आता है। यह बात चौंकाती है कि इस वीआईपी कॉलोनी में 870 वोटर हैं और वोट डालने सिर्फ़ 372 ही पहुंचे। यानी आधे से भी कम। जबकि इस कॉलोनी में रहने वालों के लिए अलग से मतदान केन्द्र बनाया गया था। रायपुर कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह ने राजधानी में ज़्यादा से ज़्यादा मतदान कराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। मतदान के प्रति जागरुकता लाने उन्होंने क्या-क्या प्रयोग नहीं किए थे। वे समाज के किन-किन बड़े तबकों के पास जाकर मतदान की अपील नहीं किए होंगे, लेकिन ये क्या कम अनोख़ी बात है कि उनकी अपील का असर उन्हीं की बिरादरी में कितना कम हुआ।