■ अनिरुद्ध दुबे
आने वाले दिनों में विष्णु देव साय सरकार के मंत्री मंडल का नये सिरे से गठन होना है। दो मंत्री पद खाली हैं, जिनके भरे जाने की चर्चा है। राजनीति के गलियारे में इन दिनों मेगा टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तर्ज़ पर लोग एक दूसरे से यह सवाल करते नज़र आ रहे हैं कि सामान्य़ वर्ग से कौन मंत्री बनेगा- अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, पूरंदर मिश्रा या फिर इनमें से कोई नहीं? अमर अग्रवाल का नाम तो प्रथम बार जब मंत्री मंडल का गठन हो रहा था तब भी चला था। भाजपा के ही लोग अब भी यह चर्चा करते नज़र आते हैं कि तब के छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर ने अमर अग्रवाल को मंत्री बनवाने दिल्ली में पूरा जोर लगाया था लेकिन बात बनते-बनते रह गई थी। अमर अग्रवाल बिलासपुर से हैं। अब मुश्किल यह है कि बिलासपुर के ही नेता अरुण साव पहली ही बार के मंत्री मंडल के गठन में उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उसके बाद हाल ही में बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते युवा भाजपा नेता तोखन साहू केन्द्र सरकार में मंत्री बन चुके हैं। यानी बिलासपुर क्षेत्र के एक नेता प्रदेश सरकार तो दूसरे नेता केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। ऐसे में अमर अग्रवाल की राह अब भी थोड़ी कठिन है। राजेश मूणत की बात है तो वह डॉ. रमन सिंह जैसी बड़ी शख़्सियत के बेहद क़रीबी रहे हैं। मूणत के नाम के आगे बढ़ने का रास्ता खुला हुआ है। रही बात पुरंदर मिश्रा की तो उनकी रायपुर उत्तर से टिकट ‘अदृश्य शक्ति’ के माध्यम से पक्की हुई थी। उस ‘अदृश्य शक्ति’ का साया अब भी उनके साथ चल रहा है। बताते हैं वह ‘अदृश्य शक्ति’ उनको मंत्री बनवाने के लिए भी ज़ोर लगाए हुए है।
इतना आसान नहीं रायपुर
के मतदाताओं के
मन की थाह ले पाना
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बन जाने के बाद रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट जो खाली होने जा रही है उस पर तरह-तरह की चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने मीडिया के सामने एक बात कह दी कि “रायपुर दक्षिण सीट पर भाजपा का छोटे से छोटा कार्यकर्ता कांग्रेस के किसी भी नेता को हरा सकने में सक्षम है।“ मूणत के इस कथन को लोग अपने-अपने नज़रिये से देख रहे हैं। सच तो यह कि रायपुर की जनता के मन को पढ़ पाना उतना आसान नहीं है जितना कि लोग समझते रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद राजेश मूणत हैं। 2003 का चुनाव याद कर लें, जब भाजपा ने रायपुर ग्रामीण सीट से कांग्रेस प्रत्याशी तरुण चटर्जी के सामने मूणत को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा की थी। तब मूणत भारतीय जनता युवा मोर्चा के जाने-पहचाने चेहरा ज़रूर थे, लेकिन रायपुर शहर में उनका क़द कोई बहुत ज़्यादा बड़ा नहीं था। मूणत के नाम की जब घोषणा हुई थी तो कितने ही लोग यह कहने से पीछे नहीं रहे थे कि तरुण दादा को वाक ओव्हर मिल गया। इसलिए कि तब तक तरुण दादा लगातार जीत पर जीत दर्ज करते आ रहे थे। उसी रायपुर ग्रामीण सीट पर तरुण दादा बारी-बारी से कांग्रेस, जनता दल उसके बाद भाजपा की टिकट पर चुनाव जीते थे। यही नहीं सन् 1998 में रायपुर ग्रामीण से भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सन् 1999 में पहली बार प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनाव हुआ तो वे रायपुर से महापौर चुनाव भी जीते थे। वह उनके राजनीतिक कैरियर का सुनहरा दौर रहा था जब लगभग 2 वर्ष तक वे रायपुर विधायक एवं महापौर दोनों भूमिकाओं का निर्वहन कुशलतापूर्वक करते नज़र आए थे। परिदृश्य उस समय बदलना शुरु हुआ जब सन् 2001 के आख़री में वे तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कहने पर भाजपा छोड़ कांग्रेस में आ गए। हालांकि तरुण दादा के कांग्रेस में आने के बाद जोगी ने उन्हें अपनी सरकार में लोक निर्माण मंत्री भी बनाया था लेकिन रायपुर की राजनीतिक हवा का रूख़ जो धीरे-धीरे बदल रहा था उसे समझने में दादा बूरी तरह चूक गए थे। 2003 के चुनाव में जिस राजेश मूणत को लोग कम करके आंक रहे थे उन्होंने तरुण दादा को 20 हज़ार से भी ज़्यादा मतों से हराया। इसी चुनाव के बाद दादा के राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लग गया। इसके साथ ही मूणत के राजनीतिक ग्राफ का सूचकांक ऐसा उछाल मारा कि वे लगातार 2003, 2008 एवं 2013 का चुनाव जीते और लगातार 3 बार डॉ. रमन सिंह की सरकार में मंत्री रहे। 2023 के ही चुनाव की बात कर लें। रायपुर दक्षिण से भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल के सामने कांग्रेस ने महंत रामसुंदर दास को उतारा। खुद को राजनीति का ज्ञाता समझने वाले कितने ही लोगों ने कहा था कि दो बार के विधायक रहे (पामगढ़ एवं जैजैपुर) महंत रामसुंदर दास से मुक़ाबला कर पाना बृजमोहन अग्रवाल के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए कि लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले महंत जी उस दूधाधारी मठ के सर्वेसर्वा हैं जो कि रायपुर दक्षिण में ही आता है। फिर रायपुर दक्षिण में महंत जी को पूजने वाले कम नहीं हैं। लेकिन दक्षिण का नतीजा भारी चौंकाने वाला सामने आया। बृजमोहन अग्रवाल पूरे प्रदेश में सबसे ज़्यादा 67 हज़ार से अधिक मतों से चुनाव जीतने वाले विजेता रहे और हार मिलने के बाद महंत जी ने कांग्रेस ही छोड़ दी। इसी तरह 23 के चुनाव में ही रायपुर उत्तर से जब भाजपा प्रत्याशी के रूप में पुरंदर मिश्रा के नाम पर मुहर लगी तो कहने वालों ने कह दिया था कि कांग्रेस को वाक ओव्हर मिल गया। कुछ ऐसी हवा बह चली थी कि दो बार के विधायक रहे कांग्रेस प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा को पुरंदर मिश्रा के सामने हार का सामना करना पड़ा। थोड़ा रायपुर ग्रामीण की तरफ भी नज़र कर लें। जब रायपुर ग्रामीण सीट पर भाजपा ने मोतीलाल साहू को अपना प्रत्याशी घोषित किया तो कितने ही भाजपाइयों को ही यही लगते रहा था कि यह सीट तो कांग्रेस प्रत्याशी पंकज शर्मा के खाते में जाएगी। जब चुनाव परिणाम सामने आया तो मोतीलाल का सितारा चमक चुका था और वे 35 हज़ार से अधिक मतों से जीतने में क़ामयाब रहे। साफ है कि कोई कितना भी बढ़-चढ़कर दावा क्यों न करता रहे रायपुर शहर की जनता जब अपनी वाली में आ जाए तो चौंकाने वाला फैसला ही देती है।
मसला सड़क
चौड़ीकरण का
रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर हाल ही में उप मुख्यमंत्री (नगरीय प्रशासन) अरुण साव से मिले। महापौर ने उप मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि जीई मार्ग में तात्यापारा चौक से शारदा चौक तक के प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण हेतु प्रभावित व्यापारियों को मुआवजा देने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय में जो 137 करोड़ रूपये स्वीकृत हुए थे उसे नगर निगम को उपलब्ध कराएं। महापौर ने इस संबंध में उप मुख्यमंत्री को एक पत्र भी सौंपा। नगर निगम में सत्ता किसी भी पार्टी की रहे और कोई भी महापौर रहे वह बड़ी आशा भरी निगाहों से प्रदेश सरकार की तरफ ही देखता है। कोई महापौर अपने नगर निगम को राज्य सरकार से कितना पैसा दिला सकता है यह उसकी क़ाबिलियत पर निर्भर करता है। बात उस समय की है जब 1995 से 1999 के दौर में वरिष्ठ कांग्रेस नेता बलबीर जुनेजा रायपुर महापौर थे। वह अविभाजित मध्यप्रदेश वाला दौर था और सरकार कांग्रेस की थी, मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे। उस दौर में रायपुर नगर निगम की माली हालत बेहद ख़राब रहा करती थी। कभी-कभी तो कर्मचारियों के वेतन के लाले तक पड़ जाते थे। तब महापौर जुनेजा ने रायपुर नगर निगम को सरकार की तरफ से बड़ी राशि मिल सके, इसके लिए अनूठा रास्ता खोज निकाला था। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का रायपुर प्रवास हुआ था। एयरपोर्ट पर जैसे ही दिग्विजय सिंह विमान से उतर कर बाहर की तरफ आए बलबीर जुनेजा ने उनके सामने घुटने टेक दिए। दिग्विजय सिंह ने हैरान होकर पूछा “अरे बलबीर ये तूम क्या कर रहे हो?” जुनेजा ने कहा- “रायपुर नगर निगम कंगाली की हालत में है। कुछ तो कीजिए।“ बताते हैं जुनेजा का अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के समक्ष घुटने टेकना काम आया और प्रदेश सरकार से बड़ी राशि रायपुर नगर निगम को मिल गई थी। वैसे जुनेजा की तरह ढेबर भी प्रयोगधर्मी नेता माने जाते हैं। कोरोना काल में जब वैक्सीन की पहली खेप माना एयरपोर्ट पहुंची थी तब उन्होंने उस नई खोज का ज़मीन पर लेटकर साष्टांग दंडवत प्रणाम किया था। रोड चौड़ीकरण के लिए प्रस्तावित बड़ी रकम को रायपुर नगर निगम तक लाने के लिए ढेबर चाहें तो कोई अनूठा उपाय ढूंढ सकते हैं।
पहले थाने को तो
‘निजात’ दिला दें
रायपुर शहर में इन दिनों ‘निजात’ शब्द की गूंज है। रायपुर में पुलिस विभाग ने ‘निजात’ शब्द को लेते हुए स्लोगन निकाला है। ‘निजात’ मतलब छूटकारा। किसी प्रकरण से छुटकारा पाने की आस में रायपुर में ही पदस्थ एक अधिकारी शहर के बीच स्थित किसी थाने में गए। थाने में उनको एक ऐसा पुलिस वाला बैठा दिखा जो ड्यूटी टाइम में शराब के कुछ घूंट उतारे हुआ था। थाने से जब वह अफ़सर बाहर निकले तो कोई उनसे पूछ बैठा, क्या हुआ? बेचारे क्या कहते, बस पूछने वाले से इतना ही कहा कि पहले पुलिस वाले अपने थाने को तो ‘निजात’ करा लें!