कारवां (27 अक्टूबर 2024) ● एक तरफ बृजमोहन की छाया दूसरी तरफ ‘फ्रेश’ चेहरा… ● नामांकन पत्र खरीदना नागवार गुजरा… ● सरोज दीदी के समय क्यूं चूप थे… ● कोतवाली चौक का बूढ़ा पेड़ और हसदेव जंगल… ● उपासने परिवार की लड़ाई सड़क पर…

■ अनिरुद्ध दुबे

पूरे प्रदेश की निगाहें इस समय रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर टिकी हुई है, जहां 13 नवंबर को विधानसभा उप चुनाव होने जा रहा है। और ऐसा हो भी क्यूं न, लगातार 4 बार इस सीट से कद्दावर नेता पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल विधायक चुनकर जो आते रहे थे। बृजमोहन अग्रवाल के रायपुर सांसद बन जाने के बाद भाजपा ने अब सुनील सोनी पर दांव खेला है जो खुद पहले रायपुर से ही सांसद व महापौर रहे हैं। इधर, कांग्रेस में नाम तो प्रमुखता से पूर्व महापौर एवं वर्तमान नगर निगम सभापति प्रमोद दुबे का चला हुआ था लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों ने प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा पर दांव खेलना मुनासिब समझा। बताते हैं कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी लगातार ‘फ्रेश चेहरा’ शब्द पर ज़ोर दे रहे थे। और फ्रेश चेहरा आकाश शर्मा सामने आ गए। रायपुर दक्षिण की बात करें तो यहां कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। योगेश तिवारी, श्रीमती किरणमयी नायक, कन्हैया अग्रवाल एवं महंत रामसुंदर दास जैसे कांग्रेस के जाने-पहचाने चेहरों को एक के बाद एक पराजय का मुंह देखना पड़ा। भाजपा की तरफ सोचकर देखें तो लगातार चार बार विजयी रहे बृजमोहन अग्रवाल के बाद अब भाजपा ने सुनील सोनी को आज़माया है। फिर गौर करने वाली बात यह भी है कि 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले ही एक तरह की हवा बना दी गई थी कि पार्टी इस बार मोहन भैया को नहीं लड़ाएगी और नये चेहरे को उतारेगी। लेकिन 2023 के चुनाव में मोहन भैया उतरे और पूरे प्रदेश में रिकॉर्ड मतों से जीते भी। बृजमोहन अग्रवाल लगातार यही कह रहे हैं कि “यदि सुनील सोनी जीतते हैं तो रायपुर दक्षिण को दो विधायक मिलेंगे। सोनी और खुद मैं। प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो दक्षिण में विकास की गंगा तो बहेगी ही और सांसद होने के नाते दिल्ली से क्या हो सकता है यह देखना मेरा काम।“ इधर, प्रियंका गांधी की गुड बुक में गिने जाने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी के दामाद आकाश शर्मा के बारे में यही कहा जा रहा है कि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का आशीर्वाद मिला हुआ है। इससे माना जा सकता है भूपेश एवं बैज टीम पूरी ताकत के साथ शर्मा के लिए जुटेगी। कुल मिलाकर रायपुर दक्षिण का उप चुनाव 23 के आम चुनाव की तरह रोचक रहेगा।

नामांकन पत्र खरीदना

नागवार गुजरा

रायपुर दक्षिण उप चुनाव के लिए दोनों बड़ी पार्टियों की तरफ से प्रत्याशियों की घोषणा हो जाने के बाद भाजपा से तो नहीं लेकिन कांग्रेस में टिकट की दौड़ में जो शामिल थे और टिकट नहीं ले पाए उनका अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया में वक्तव्य सामने आया। विशेषकर पूर्व महापौर एवं वर्तमान नगर निगम सभापति प्रमोद दुबे तथा 2018 में रायपुर दक्षिण से चुनाव लड़ चुके कन्हैया अग्रवाल की सोशल मीडिया में आई अभिव्यक्ति की ख़ूब चर्चा रही। यह भी उल्लेखनीय है कि टिकट की घोषणा होने से पहले इन दोनों ही नेताओं ने नामांकन पत्र खरीद लिया था। बताते हैं नामांकन खरीदने वाली बात को ऊपर वालों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर रखने में कुछ लोगों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। यानी प्रत्याशी घोषणा से पहले ही नामांकन पत्र खरीद लेने की बात ऊपर वालों को नागवार गुजरी।

सरोज दीदी के

समय क्यूं चूप थे

दक्षिण उप चुनाव में कांग्रेस व्दारा आकाश शर्मा को प्रत्याशी घोषित किए जाने के कुछ देर बाद भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अजय चंद्राकर की सोशल मीडिया एक्स पर प्रतिक्रिया सामने आई। चंद्राकर ने एक्स पर लिखा कि “कांग्रेस में नेतृत्व एवं कार्यकर्ताओं का बेहद अभाव है। इसीलिए दक्षिण उप चुनाव में बालोद जिले के अर्जुंदा निवासी को चुनावी मैदान में उतारा गया है।“ ऐसे में भला कांग्रेसी भी बोलने से भला कहां पीछे रहने वाले थे। कुछ वाचाल किस्म के कांग्रेसियों की तरफ से  लगातार यही कहा जा रहा है कि “आकाश शर्मा की उम्मीदवारी पर सवाल उठाने वाले लोग तब क्यूं चूप थे जब इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में दुर्ग की सरोज दीदी को चुनाव लड़ने कोरबा भेज दिया गया था!“

कोतवाली चौक का बूढ़ा

पेड़ और हसदेव जंगल

हसदेव में लगातार जंगल कटने की ख़बरें आ भी रही हैं तो केवल सोशल मीडिया पर। जंगल कटाई को लेकर किसका क्या रूख़ है समझ पाना मुश्किल है। पूर्व में कुछ बड़े आंदोलन होते दिखे, फिर मामला शांत हो गया। राजनीति से जुड़ा कोई व्यक्ति पूर्व में जंगल कटाई को लेकर मुखर हुआ भी तो बाद में ठंडा पड़ गया। ख़बरें तो यही आती हैं कि कटाई हज़ारों एकड़ में हो रही है, लेकिन गहरा सन्नाटा छाया हुआ है। कुछ ही साल पहले की तो बात है राजधानी रायपुर के सिटी कोतवाली चौक पर यातायात बाधित होने के नाम पर कोने में स्थित एक विशाल पीपल पेड़ को रायपुर स्मार्ट सिटी (नगर निगम) वालों ने कटवा दिया था। डेढ़ सौ साल से भी ज़्यादा पुराने इस पेड़ के कटने पर ऐसा बवाल मचा था कि पूछो मत। अख़बारों में विस्तार से ख़बरें छपी थीं। चैनलों में डिबेट तक हुए थे। बात हसदेव की करें तो उससे जुड़ी कहानी को न कोई कहने वाला दिख रहा है और न ही सुनने वाला।

उपासने परिवार की

लड़ाई सड़क पर

उपासने परिवार की लड़ाई सड़क पर आ गई। इससे निश्चित रूप से भाजपा एवं संघ के उन पुराने लोगों के मन में पीड़ा है जो उपासने परिवार के संघर्ष एवं त्यागपूर्ण अतीत को जानते हैं। वायरल हुए उस एक वीडियो की ज़बरदस्त चर्चा है जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार रह चुके जगदीश उपासने अपने छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने को झापड़ मारते दिख रहे हैं। जगदीश उपासने ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि “क्या कोई बेटा अपनी मां के घर का ताला तोड़कर दिन दहाड़े डकैती डाल सकता है। मेरे छोटे भाई ने मां के घर में बने ऑफिस ताला तोड़कर वहां रखा सामान लूट लिया।“ वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस विवाद में टिप्पणी करने से नहीं चूके। बघेल ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि “मुख्यमंत्री को इस विवाद में हस्तक्षेप करना चाहिए। इसलिए कि मामला पूर्व विधायक श्रीमती रजनी ताई उपासने के परिवार का है।“ उल्लेखनीय है कि उपसाने परिवार का संघ (आरएसएस) से गहरा नाता रहा है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्रीकाल में जब इमर्जेन्सी लगाई थी, उसका विरोध करते हुए जगदीश उपासने एवं सच्चिदानंद उपासने दोनों लंबे समय तक जेल में रहे थे। उपासने परिवार के योगदान को देखते हुए ही 1977 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन जनता पार्टी ने रायपुर शहर सीट से रजनी ताई को टिकट दी थी। ताई ने चाणक्य कहे जाने वाले कांग्रेस के शारदाचरण तिवारी जैसे दमदार प्रत्याशी को हराकर वह चुनाव जीता था। उसी दौर में जगदीश उपासने की रायपुर के युगधर्म अख़बार से पत्रकारिता शुरु हुई थी। आगे चलकर लंबे समय तक उन्होंने दिल्ली में रहते हुए राष्ट्रीय स्तर की एक पत्रिका तथा कुछ अन्य अख़बारों में सेवाएं दी। रजनी ताई के विधायक बनने के बाद सच्चिदानंद उपासने वकालत के पेशे से जुड़ गए। 1980 में जब भाजपा अस्तित्व में आई तब से लेकर आज तक सच्चिदानंद उपासने भाजपा संगठन का अहम् हिस्सा रहे हैं। सच्चिदानंद भाजपा संगठन में लगातार काम करते तो आ ही रहे हैं उन्होंने 2008 में रायपुर उत्तर से विधानसभा चुनाव तथा 2014 में रायपुर महापौर चुनाव लड़ा था। दोनों ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। राजनीतिक हलकों में कभी कभार यह भी चर्चा होती नज़र आ जाती है कि दोनों ही चुनाव में छोटे भाई की टिकट पक्की कराने में बड़े भाई की भूमिका रही थी। जो हो, उपासने परिवार की लड़ाई जो खुलकर सड़क में सामने आई उस पर न सिर्फ़ राजनीति बल्कि पत्रकारिता क्षेत्र में भी लगातार चर्चा का दौर जारी है।

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