■ अनिरुद्ध दुबे
रायपुर दक्षिण में होने जा रहे उप चुनाव के लिए जब भाजपा एवं कांग्रेस दोनों प्रत्याशियों की घोषणा हो गई, रायपुर से ही लोकसभा चुनाव लड़े चुके एक बेहद अनुभवी नेता ने कहा था कि “यह चुनाव नौ दिनों का है!“ उन्होंने जिस जगह पर यह बात कही वहां बैठे लोगों को सुनने में अजीब लगा था, लेकिन अब बात सही उतरती दिख रही है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशियों ने धूम धड़ाके के साथ बड़ी रैली निकाल नामांकन भरा। दोनों ही प्रत्याशी जनसंपर्क में कोई कमी नहीं कर रहे। दोनों ही तरफ से कार्यकर्ताओं की बैठक लेने में कोई कमी नहीं हो रही, लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में जो चुनावी माहौल नज़र आना चाहिए वह अब तक नज़र नहीं आया है। माना यही जा रहा है कि दीपावली त्यौहार की खुमारी रविवार के दिन तक तो रहना ही रहना है। 4 नवम्बर से ही चुनावी माहौल पर रंग चढ़ेगा। 13 नवम्बर को मतदान है। 4 से 13 का हिसाब लगा लें, आंकड़ा 9 पर ही जाकर ठहरता है। राजनीति के कई रंग देख चुके उस नेता ने 9 दिनों का खेल जो कहा था, क्या ग़लत कहा था!
उधर 3 तो
इधर 1 क्यों
कम खर्चे में चुनाव लड़ना तो होता नहीं। फिर निर्वाचन आयोग की नज़रें अलग गड़ी रहती हैं। थोड़ा चूक हुई नहीं कि कारण पूछने में देर नहीं लगती। पार्टी के बाहर जाकर खर्चे करने होते हैं और पार्टी के भीतर भी। रायपुर दक्षिण उप चुनाव में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार मैदान में हैं। एक पार्टी व्दारा बूथ स्तर पर 3000 रुपये दिया जा रहा है तो दूसरी व्दारा 1000 रुपये। जहां एक हज़ार रुपये वाली बात हो तो वहां असंतोष का स्वर उठना स्वाभाविक है। दूसरी पार्टी वाले कार्यकर्ता अपने बड़े नेताओं से यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि वहां 3000 हज़ार मिल रहा है तो यहां 1000 हज़ार क्यों? फिर सबसे कठिन काम तो हर वार्ड में पर्ची बांटने का है। कुछ मामलों में राष्ट्रीय पार्टी के बड़े नेताओं में ही नहीं बल्कि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में भी तालमेल बने रहता है। तभी तो 3000 वाली बात दूसरे वालों के पास पहुंचने में देर नहीं लगी।
सुनील सोनी के
बाल तो कर्ली थे
रायपुर दक्षिण उप चुनाव के प्रचार के बीच सुनील सोनी के नाम पर एक वीडियो जो वायरल हुआ उस पर चर्चा का दौर अभी थमा नहीं है। वीडियो में नज़र आ रहे तथाकथित सुनील सोनी मुस्लिम समाज के एक बुजुर्ग व्यक्ति से गले मिलकर उन्हें चूमते नज़र आ रहे हैं। जो लोग सुनील सोनी को बचपन से देखते आ रहे हैं उनका साफ शब्दों में कहना है कि “वीडियो फर्ज़ी है। वीडियो में नज़र आ रहा व्यक्ति बालों में अच्छी तरह कंघी किया हुआ है और बीच से मांग निकाला हुआ है। सच्चाई यह है कि सुनील सोनी के बाल घूंघराले (कर्ली) हुआ करते थे और उनकी मांग ही नहीं निकला करती थी।“
रायपुर दक्षिण उप चुनाव
में भी कार्टून वॉर
कोई भी चुनाव रहे, भाजपा का कार्टून यानी पोस्टर वॉर पर बड़ा भरोसा रहते आया है। विधानसभा आम चुनाव एवं लोकसभा आम चुनाव के बाद अब रायपुर दक्षिण विधानसभा उप चुनाव में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों तरफ से होने वाले कार्टून हमले में कमी होती नहीं दिख रही है। भाजपा की ओर से जो कार्टून जारी हुआ उसमें कांग्रेस प्रत्याशी आकाश शर्मा को रस्सी में बंधे दिखाया गया है। महापौर एजाज़ ढेबर, नगर निगम सभापति प्रमोद दुबे एवं कन्हैया अग्रवाल रस्सी को खींचते नज़र आ रहे हैं और कार्टून में लिखा नज़र आ रहा है कि “तूझे जीतने तो नहीं देंगे हम।“ उल्लेखनीय है कि ढेबर, दुबे एवं अग्रवाल तीनों ही रायपुर दक्षिण सीट से टिकट के दावेदार थे। दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से जो ज़वाबी कार्टून जारी हुआ, उसमें भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी को डूबते दिखाया जा रहा है। डूबते सोनी का हाथ बृजमोहन अग्रवाल थामे दिख रहे हैं और दूसरी ओर पीएम नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह तथा मुख्यमंत्री विष्णु देव साय मुस्कराते दिख रहे हैं। तीनों मंत्रियों के ऊपर लिखा नज़र रहा है कि “डूबने दो… डूबने दो… न ये जनता के काम का है… न हमारे…”
नगर निगम चुनाव के
दिसम्बर-जनवरी
में ही होने की संभावना
कुछ दिनों पहले बड़े जोरों से यह बात कही जा रही थी कि नगर निगमों के चुनाव दिसम्बर में नहीं होकर फरवरी या मार्च में होंगे। यहां तक कि कुछ ही दिनों पहले नगर निगम की सामान्य सभा में पहुंचे रायपुर उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा भी कह गए थे कि “निगम चुनाव को अभी दिल्ली दूर है।“ लेकिन पिछले कुछ दिनों से नगरीय निकाय चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की जो तैयारी दिख रही है उससे आसार तो यही नज़र आ रहे हैं कि चुनाव फरवरी या मार्च में नहीं बल्कि दिसम्बर या जनवरी में होंगे। रायपुर नगर निगम की ही बात करें वर्तमान महापौर एवं पार्षदों का कार्यकाल 4 जनवरी 2025 को ख़त्म होने जा रहा है। यदि चुनाव टले तो नगर निगमों में वर्तमान निर्वाचित परिषद का कार्यकाल ख़त्म होते ही तत्काल आईएएस अफ़सरों को प्रशासक बनाकर वहां बिठाना पड़ेगा। इस काम में कई पेचिदगियां हैं, फिर विधानसभा का बजट सत्र फरवरी-मार्च में संभावित है। यानी दिसम्बर में विधानसभा का पांच या सात दिनों का संक्षिप्त शीतकालीन सत्र समाप्त होते ही क़रीब 3 हफ़्ते का बजट सत्र फरवरी-मार्च में होगा, जिसकी तैयारियां शासन एवं प्रशासन को जनवरी लगते ही शुरु कर देनी पड़ेगी। भाजपा की डबल इंजन सरकार आगे निकाय चुनाव में भी झंडे गाड़कर ट्रिपल इंजन सरकार के सपने देख रही है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भीतर ही भीतर यही फुसफुसाहट है कि निकाय चुनाव का टलना पार्टी की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। आगामी निकाय चुनाव में सबसे बड़ा रोड़ा आरक्षण का जो नज़र आ रहा था उसे भी क़रीब-क़रीब सुलझा ही लिया गया है। ऊपर तैयारियां दिसम्बर-जनवरी के हिसाब से ही हो रही हैं।
हवाई सुविधाओं से
कोसों दूर छत्तीसगढ़
इधर अंबिकापुर में दरिमा हवाई अड्डे का लोकार्पण हुआ उधर रायपुर जगदलपुर के बीच चलने वाली फ्लाइट के बंद होने की ख़बर आ गई। रायपुर-जगलपुर के बीच 27 अक्टूबर को आखरी फ्लाइट ने उड़ान भरी। इस तरह हाल-फिलहाल रायपुर-जगदलपुर हवाई मार्ग सामान्य यात्रियों की पहुंच से दूर हो गया है। कहां तो जब 2008 से 2013 के बीच प्रदेश में तीसरी वाली सरकार थी उसने रायपुर, भिलाई, बिलासपुर, जगदलपुर, कोरबा, रायगढ़ एवं अम्बिकापुर के बीच घरेलू उड़ान का सपना देखा था और अभी की स्थिति में रायपुर के बाद जगदलपुर, बिलासपुर एवं अम्बिकापुर का ही एयरपोर्ट अस्तित्व में आ पाया है। उस पर भी अम्बिकापुर से किसी अन्य बड़े शहर या अन्य किसी राज्य के लिए हवाई उड़ान के चिन्ह फिलहाल दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं। रायपुर एयरपोर्ट के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कहलाने को भी अभी दिल्ली दूर नज़र आ रही है। दूसरी तरफ बिलासपुर में हवाई सुविधाओं के विस्तार की मांग को लेकर वहां की हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के समक्ष बिलासपुर को 4 सी श्रेणी स्वरुप में लाने 300 करोड़ की घोषणा की मांग कर दी। यह भी मांग रखी कि 287 एकड़ भूमि एयरपोर्ट प्रबंधन या विमानन विभाग को ज़ल्द हस्तांतरित हो। यही नहीं हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति ने अपने आंदोलन के पांच साल पूरे होने पर सर्व धर्म सभा का आयोजन भी किया।
नक्सलियों के बाद
हाथी बड़ी चुनौती
छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक नया जुमला चल पड़ा है कि सरकार के सामने नक्सलियों के बाद यदि कोई दूसरी बड़ी चुनौती है तो वह हाथी है। इन दिनों हम राज्योत्सव मना रहे हैं। 1 नवम्बर 2000 को जब छत्तीसगढ़ राज्य बना, नक्सलवाद एवं हाथियों का आतंक दोनों ही समस्याएं विरासत में मिलीं। नक्सलवाद की तरह हाथियों से भी जन एवं धन दोनों हानियां होती आई हैं। 28 अक्टूबर सोमवार को हाथियों से जुड़ी 3 ख़बरें मीडिया में थीं। पहला- रायगढ़ जिले के तमनार रेंज में करेंट से 3 हाथियों की मौत, दूसरा- दंतैल हाथी छोटू गरियाबंद जिले से होते हुए महासमुन्द जिले में प्रवेश कर चुका जिससे ग्रामीणों में दहशत, तीसरा- रायगढ़ जिले के जमरगी डी (धरमजयगढ़) गांव में एक युवक को शराबियों से यह पूछना महंगा पड़ गया कि इस तरफ हाथी दिखा क्या! इतनी सी बात पर शराबियों ने युवक की धुनाई कर दी। कुछ वर्षों पहले तो स्थिति यहां तक आ गई थी कि हाथियों का समूह महासमुन्द जिले से होते हुए रायपुर जिले में प्रवेश कर गया था। तब यह ख़बर मीडिया में छा गई थी कि नया रायपुर के क़रीब पहुंचा हाथियों का झुंड।
पानी मिलाकर बेची
जा रही थी शराब
छत्तीसगढ़ में शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब शराब से जुड़ा मामला सामने न आता हो। बेमेतरा जिले के पिकरी में स्थित शराब दुकान से निकाले गए प्लेसमेंट कर्मचारियों ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि शराब की पेटी खोलकर बोतलों में पानी मिलाया जाता था, फिर उसे वापस पैक कर बेचा जाता था। इस काम में आबकारी विभाग के लोगों की मिलीभगत रही है। वहीं राजधानी रायपुर में एक ऐसे युवक को पकड़ा गया जो हरियाणा से कूरियर के जरिए यहां शराब मंगाता था और डिमांड के आधार पर मदिरा प्रेमियों के घर जाकर उसे महंगे दाम में बेचता था।

