मिसाल न्यूज़
छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों के अनुभवी एक्टर एवं डायरेक्टर चंद्रशेखर चकोर ‘बेटा’ फ़िल्म से अपने बेटे पुमंग राज को लॉच करने जा रहे हैं। ‘बेटा’ 22 नवंबर को छत्तीसगढ़ के सिंगल स्क्रीन एवं मल्टीप्लेक्स में रिलीज़ होने जा रही है। ‘बेटा’ विशुद्ध पारिवारिक ड्रामा है। चकोर कहते हैं- “छत्तीसगढ़ी सिनेमा का दर्शक पारिवारिक ड्रामा ही पसंद करते आया है। इतिहास उठाकर देख लीजिए।“
चंद्रशेखर चकोर का जन्म रायपुर से लगे कांदुल गांव में हुआ। अभी भी उनका कांदुल में ही रहना होता है। गांव की माटी से गहरा लगाव जो है। प्रायमरी स्कूल की पढ़ाई गांव में ही हुई। मिडिल व हाई स्कूल की पढ़ाई रायपुर के सप्रे शाला स्कूल में हुई। वे गांव से कई किलोमीटर का सफर सायकल से तय करते हुए रायपुर पढ़ने आते थे। ‘मिसाल न्यूज़’ से बातचीत के दौरान अपने पुराने अनुभवों को शेयर करते हुए चकोर ने बताया कि “बचपन में मुझे खेत खार में घूमना अच्छा लगता था। छत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेलों के प्रति मेरा बचपन से ही रुझान रहा। आगे चलकर ‘छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोक खेल’ नाम से पुस्तक लिखा। इसमें छत्तीसगढ़ के सौ से अधिक पारम्परिक खेलों का संग्रह है। गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में इस पुस्तक का नाम दर्ज़ है। ‘छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोक खेल’ का पहला संस्करण सन् 2004 में आया था। कॉलेज़ की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैं ड्रामे की दुनिया से जुड़ गया। डायरेक्टर प्रदीप श्रीवास्तव जी के निर्देशन में पहला ड्रामा ‘बगिया बाघा का पानी’ खेला। यह मनोज मित्र लिखित बांग्ला नाटक का अनुवाद था। इसके बाद मिर्ज़ा मसूद जी, आनंद चौबे जी एवं अख़्तर अली जी जैसे जाने-माने निर्देशकों के निर्देशन में ड्रामा किया। ‘अंधा युग’, ‘जांच पड़ताल’, ‘जिसने लाहौर नहीं देखा वो जन्म्या नहीं’, ‘गधे की बारात’, ‘खुल्लम खुल्ला’ एवं ‘जंगीराम की हवेली’ जैसे नाटकों में अहम् किरदार निभाया। नाटक करते-करते सिनेमा की राह खुली। डायरेक्टर मधुकर कदम जी व्दारा निर्देशित छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘बन सुंदरी’ में लीड रोल करने का मौका मिला। इस फ़िल्म की शूटिंग कम्पलीट हो चुकी थी, लेकिन आगे का काम नहीं हो पाया। इस तरह ‘बन सुंदरी’ मेरी पहली फ़िल्म होते-होते रह गई। सन् 2009 में मैंने खुद छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘गुरावट’ बनाने का संकल्प लिया। ‘गुरावट’ को न सिर्फ़ प्रोड्यूस किया बल्कि बतौर हीरो मेरी यह पहली फ़िल्म रही। गुरावट के डायरेक्टर पुनीत सोनकर थे। इसके बाद मैंने ‘चक्कर गुरुजी के’ नाम से न सिर्फ फ़िल्म प्रोड्यूस की बल्कि डायरेक्शन के साथ इसमें लीड रोल भी किया। इस बीच बतौर हीरो मेरी दो और छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘धरती पुत्र’ एवं ‘नाग अउ अर्जुन’ आई। एक और फ़िल्म ‘मयारू दगाबाज’ बनकर तैयार है, जिसके प्रदर्शन का इंतज़ार है।“

बेटे को ‘बेटा’ फ़िल्म में लॉच करने के पीछे की कहानी क्या है, इस सवाल पर चकोर कहते हैं- “मैंने फ़िल्म ‘बेटा’ जो लिखी उसमें हीरो के रोल के लिए ऐसे आर्टिस्ट की ज़रूरत थी जो किशोरावस्था से जवानी की तरफ कदम रख रहा हो। जब मैं प्लानिंग कर रहा था बेटा पुमंग राज 17 साल का होने जा रहा था। पुमंग का भी सपना हीरो बनने का था। एक दिन ख़्याल आया कि कहानी की जैसी डिमांड है उसके कैरेक्टर के हिसाब से पुमंग युवावस्था की तरफ कदम रख रहा है। क्यूं न उसे ही फ़िल्म में लिया जाए। इस तरह पुमंग जब 17 साल 1 महीने का था, मैंने उसे लेकर ‘बेटा’ का शूट शुरु कर दिया। फ़िल्म का बड़ा हिस्सा शूट हो जाने के बाद हमने शूट को रोक दिया और पुमंग के चेहरे पर थोड़ा मैच्योरिटी आने का इंतजार करने लगे। 8-9 महीने बाद जब उसके चेहरे पर बदलाव दिखना शुरु हुआ, हमने बचा हुआ शूट पूरा किया। वह बॉलीवुड एवं छॉलीवुड दोनों ही फ़िल्में देखता है। फ़िल्म देखने के बाद वह कहानी एवं किरदारों को लेकर कभी-कभी मुझसे चर्चा भी करता है। मेरी तरह अभिनय के साथ-साथ डायरेक्शन में भी उसका रूझान है।“

