धनबाद। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनन स्कूल) धनबाद ने बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप सेंत्रा.वर्ल्ड के साथ एक समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। सेंत्रा.वर्ल्ड औद्योगिक निर्माण के डिकार्बोनाइजेशन में विशेषज्ञता रखता है। यह साझेदारी भारत के लौह और इस्पात उद्योग में डिकार्बोनाइजेशन को बढ़ावा देने के लिए एक अग्रणी अनुसंधान पहल की शुरुआत करती है।
यह समझौता इस्पात निर्माण प्रक्रिया में बायोचार—कोयले का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प—के उपयोग पर केंद्रित है। यह अनूठा शोध भारत के 10 से अधिक राज्यों से प्राप्त बायोमास का विश्लेषण करेगा। उच्च गुणवत्ता वाले बायोचार के उत्पादन के लिए प्रक्रिया विकसित करेगा। कोक निर्माण, सिंटरिंग, स्पंज आयरन उत्पादन जैसे सभी इस्पात अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होगा। यह अनुसंधान देश में उपलब्ध लगभग 720 मीट्रिक टन अधिशेष बायोमास के उपयोग को लक्षित करता है, जिसमें कृषि अवशेष जैसे पराली (धान का भूसा), वन अवशेष जैसे बांस, कृषि-प्रसंस्करण अपशिष्ट जैसे गन्ने की खोई और बबूल जैसी प्रजातियां शामिल हैं। इस बायोमास को मूल्यवान संसाधनों में बदलकर, यह पहल पराली जलाने को रोकने का प्रयास करती है, जो वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है, और किसानों को कृषि अपशिष्ट का व्यावसायिक उपयोग कर अतिरिक्त आय प्रदान करती है।
प्रोफेसर सागर पाल, डीन (अनुसंधान और विकास), आईआईटी (आईएसएम) धनबाद ने कहा कि भारतीय इस्पात क्षेत्र, जो देश के कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 8-12% योगदान करता है, में बायोचार के उपयोग से उत्सर्जन में 40% तक की कमी हो सकती है। यह नवाचार न केवल जलवायु प्रभाव को काफी हद तक कम करेगा बल्कि ग्रामीण आजीविका उत्पन्न करेगा, किसानों की आय बढ़ाएगा और देश के सतत् विकास में योगदान देगा। यह नवोन्मेषी उद्योग सहयोग प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित अमृत काल की ओर बढ़ने और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।
सेंत्रा.वर्ल्ड के सह-संस्थापक विकास उपाध्याय ने कहा 50 से अधिक ग्राहक कार्बन फुट प्रिंट में कमी के उपाय सक्रिय रूप से खोज रहे हैं। ऐसे में, यह साझेदारी देश के कठिन-से-डिकार्बोनाइज क्षेत्रों को डिकार्बोनाइज करने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
इस अनुसंधान के परिणाम उत्पाद मानकीकरण को बढ़ावा देने, स्थिरता में सुधार करने और इस्पात उद्योग में नवाचार के लिए एक वैश्विक मानक स्थापित करने की उम्मीद है।