■ अनिरुद्ध दुबे
रायपुर दक्षिण विधानसभा उप चुनाव का परिणाम कोई कम चौंकाने वाला नहीं रहा। 50.50 प्रतिशत की वोटिंग में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी ने कांग्रेस के युवा प्रत्याशी आकाश शर्मा को 46 हज़ार 167 मतों से हरा दिया। यह जीत भारी मतों से अंतर की जीत मानी जा रही है। इसलिए कि 2023 में रायपुर दक्षिण के लिए हुए आम चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत 61 था। तब भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास को 67 हजार 851 मतों से हराया था। बृजमोहन अग्रवाल को 1 लाख 92 हजार 263 वोट मिले थे और महंत रामसुंदर दास को 41 हजार 412। वहीं सुनील सोनी को 89 हज़ार 220 एवं आकाश शर्मा को 43 हज़ार 53 वोट मिले हैं। 10 प्रतिशत कम वोटिंग के फ़र्क में यदि सुनील सोनी 46 हज़ार से ज़्यादा मतों से जीते हैं तो इसे छोटी-मोटी जीत नहीं माना जा सकता। वहीं आकाश शर्मा को महंत रामसुंदर दास से 1641 वोट ज़्यादा मिले। सुनने तो यही मिलते रहा है कि इस उप चुनाव में कांग्रेस का प्रबंधन देख रहे लोग मानकर चल रहे थे कि अल्पसंख्यक वर्ग तो कांग्रेस का कमिटेड वोट है, जिसे इधर-उधर कहीं नहीं जाना है और रायपुर दक्षिण में ब्राह्मण वोटरों की बहुतायत है। ब्राह्मण सध गए यानी सब कुछ सध गया। इसलिए कांग्रेस का प्रबंधन देख रहे लोगों ने ब्राह्मण बहुल इलाके सुंदर नगर एवं ब्राम्हणपारा में काफ़ी समय और ऊर्जा खर्च की, लेकिन इन दोनों ही क्षेत्रों में कांग्रेस भाजपा से पिछड़ गई। चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेस में चुनावी प्रबंधन ऐसे लोगों के हाथ में रहा जिनका रायपुर दक्षिण से शायद ही कभी गहरा वास्ता रहा हो। यही कारण है कि निचले क्रम के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का ऊपर वालों से जैसा संवाद होते रहना था वह नहीं हो पाया। वहीं पूर्व में रायपुर दक्षिण से लगातार चार बार जीत दर्ज कर चुके बृजमोहन अग्रवाल अपने क्षेत्र को लेकर पूरी तरह पके हुए हैं। प्रत्याशी सुनील सोनी बृजमोहन की पसंद के थे तो स्वाभाविक है प्रबंधन भी उन्हीं का रहा। और माना यही जा रहा है कि हर बार की तरह इस उप चुनाव में भी बृजमोहन का मैनेजमेंट कमाल कर गया। सुनील सोनी को निष्क्रिय ठहराते हुए कांग्रेस की ओर से ‘निष्क्रिय के विरुद्ध सक्रिय’ ईज़ाद किया गया नारा भी काम नहीं आया। भारी मतों से जीत भाजपा के ही पक्ष में गई।
पोलावरम बांध और
छत्तीसगढ़
में चिंता की लकीरें
आंध्रप्रदेश विधानसभा में वहां के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि पोलावरम सिंचाई योजना का काम 2027 तक पूरा कर लेंगे। पोलावरम में बनने वाले बांध की ऊंचाई 45.72 मीटर होगी। पूरी परियोजना करीब 55 हज़ार करोड़ की होगी। चंद्रबाबू नायडू की इस घोषणा के बाद बस्तर अंतर्गत सुकमा जिले के कोंटा ब्लाक के 400 से अधिक गांवों में रहने वाले ग्रामीणों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। पोलावरम में बांध बना तो कोंटा ब्लाक की 18 ग्राम पंचायतें डूबान क्षेत्र में आ जाएंगी। क़रीब 50 हज़ार लोगों को अपनी ज़मीन छोड़कर इधर-उधर जीने की राह तलाशनी होगी। कहा तो ये भी जा रहा है कि डूबान की स्थिति आने पर दोरला आदिवासियों की संस्कृति एवं सभ्यता भी ख़त्म हो जाएगी। देखने वाली बात यह रहेगी कि पोलावरम बांध को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार का अगला कदम क्या होगा! ऐसा नहीं है कि पोलावरम का मुद्दा कोई अभी का है। इस पर से तो बरसों से आवाज़ उठती आ रही है। 2008 से 2013 के बीच डॉ. रमन सिंह की सरकार का दूसरा कार्यकाल था। तब भाजपा के ही विधायक देव जी पटेल ने पोलावरम बांध वाले मुद्दे को विधानसभा में प्रमुखता से उठाया था। उसके बाद कोंटा कांग्रेस विधायक कवासी लखमा भी समय-समय पर विधानसभा में पोलावरम परियोजना को लेकर चिंता जताते रहे हैं।
कहां गईं 400 गायें?
इन दिनों गायों को लेकर दुर्भाग्यजनक बड़ी ख़बर है। नगरीय निकायों व्दारा समय-समय पर सड़क पर घूमने वाली गायों को सड़कों से हटाकर कांजी हाऊस में रखने की कार्यवाही की जाती रही है। बसना नगर पंचायत व्दारा सड़कों पर घूम रही क़रीब 400 गायों को पकड़ा गया था। बसना के ही एक नागरिक व्दारा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई कि ये गायें कहां हैं? नगर पंचायत की ओर से बताया गया कि इन गायों को अस्थायी कांजी हाऊस में रखा गया है। नागरिक ने जब इन गायों को दिखाने की मांग की तो पंचायत के अधिकारी-कर्मचारी एक भी गाय नहीं दिखा पाए। सवाल यह है कि इन गायों को ज़मीन निगल गई या आसमान खा गया?
सिंघम रिटर्न्स
सीनियर आईएएस अफ़सर अमित कटारिया छुट्टी से लौट आए हैं। मंत्रालय जाकर वे मुख्य सचिव अमिताभ जैन से मिले। माना जा रहा है कि ज़ल्द कटारिया को कोई महत्वपूर्ण विभाग मिलेगा। काफ़ी पहले कटारिया रायपुर नगर निगम कमिश्नर एवं रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के सीईओ रहे थे। निगम कमिश्नर रहते हुए जहां उन्होंने असंभव कार्य समझे जाने वाले कुछ अवैध कब्ज़ों को तुड़वाया था, वहीं आरडीए सीईओ रहते हुए कागज़ी कार्यवाही में बुरी तरह उलझे कमल विहार प्रोजेक्ट को शुरु करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शांत नज़र आने वाले लेकिन कोई बेवज़ह चुनौती पेश करे तो आक्रामक हो जाने वाले कटारिया को एक समय में ‘सिंघम’ कहा जाने लगा था। प्रतिनियुक्ति पर बाहर लंबा समय बिताकर अब वे वापस छत्तीसगढ़ आ गए हैं तो उनको पुराने जानने वाले कुछ लोग यही कहते नज़र आए ‘सिंघम रिटर्न्स।‘
लोवर मिडिल क्लास के
लिए योजना और
बकाया 20 करोड़
रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के संचालक मंडल की बैठक में तय हुआ कि हीरापुर, रायपुरा, सरोना और बोरियाखुर्द योजना के डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी आवासीय फ्लैट्स जो 2007 में निम्न मध्य आय वर्ग (लोवर मिडिल क्लास) के लिए बनाए गए थे पूर्व के मूल आबंटितियों जिनके फ्लैट्स निरस्त कर दिए गए थे उन्हीं को बहालीकरण के अन्तर्गत पुनः आबंटित किए जाएंगे। फ्लैट्स जहां हैं, जैसे हैं के आधार पर संबंधित मूल आबंटितियों की ओर से आवेदन दिए जाने पर उसका बहालीकरण किया जाएगा। इसमें जिस अवधि की बकाया राशि है उस पर सरचार्ज की 12 प्रतिशत राशि एकमुश्त जमा करने पर उनके फ्लैट्स का बहालीकरण किया जाएगा। ऐसे फ्लैट्स केवल मूल आबंटितियों को ही दिए जाएंगे, किरायेदार या काबिज़ व्यक्ति को नहीं। यह फैसला पढ़ने या सुनने में बहुत छोटा लगता है, लेकिन है बड़ा। आरडीए से जुड़े जानकार लोग बताते हैं कि वर्तमान में आरडीए को विभिन्न योजनाओं से 175 करोड़ वसुलना है। उसमें से करीब 20 करोड़ की वसूली इन लोवर मिडिल क्लास के लिए चार स्थानों पर लाई गई योजनाओं से होनी है। उस पर भी क़रीब 10 करोड़ की वसूली इन चार स्थानों में से एक बोरियाखुर्द में लाई गई योजना से करनी है।
तो नगर निगम में क्या
फिर होगा कर्मचारी
संगठन का विस्फोट
हाल ही में रायपुर नगर निगम के कर्मचारियों ने कार्यकारी कर्मचारी समिति का गठन किया। कार्यकारी अध्यक्ष प्रमोद जाधव, कार्यकारी महामंत्री आशुतोष सिंह, संरक्षक अरुण दुबे एवं सुरेन्द्र दुबे समेत कुछ अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति अल्प समय के लिए हुई है। संकेत यही मिल रहे हैं कि नगर निगम चुनाव से पहले स्थायी कर्मचारी संगठन अस्तित्व में आ सकता है। उसका नाम नगर निगम कर्मचारी महासंघ भी हो सकता है। नगर निगम कर्मचारी महासंघ टाइटल कोई नया नहीं बल्कि पुराना है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से काफ़ी पहले का। किसी ज़माने में विभिन्न मांगों को लेकर निगम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले आंदोलन होता था तो पूरा रायपुर शहर हिल जाता था। महासंघ की एक आवाज़ में नगर निगम के दरवाज़ों पर ताले लग जाते थे। कुछ मर्तेबे ऐसी भी परिस्थितियां बनी थीं कि आंदोलकारी कर्मचारियों ने पानी की सप्लाई तक रोकी थी। हालांकि फिर निगम प्रशासन एवं कर्मचारी महासंघ के बीच समझौता होने में भी देर नहीं लगती थी। ऐसा भी दौर था जब नगर निगम के नेतागण एवं निगम प्रशासक महासंघ के नाम से खौफ़ खाते थे। अब न वैसा दौर रहा न वैसे लोग। भले ही खुलकर कोई कुछ न बोले लेकिन नगर निगम के अधिकांश अधिकारी एवं कर्मचारी लंबे समय से महसूस करते आ रहे हैं कि परेशानी काम करने को लेकर नहीं, परेशानी उन नेताओं या उच्चाधिकारियों से होती है जो गैरज़रूरी कामों को करवाने अनावश्यक हुक्म चलाते हैं। निगम के अधिकांश अफ़सरों एवं कर्मचारियों की दबे स्वर में यही राय सामने आ रही है कि आगे के हालातों से निपटने के लिए अब संगठित होने का समय आ गया है!