■ अनिरुद्ध दुबे
ओड़िशा की नई सरकार ने अदाणी कंपनी को गंधमार्दन पर्वत की तरफ कदम बढ़ाने से रोक दिया है। ओड़िशा में इन दिनों चल रहे विधानसभा सत्र में बीजू जनता दल के विधायक प्रसन्न आचार्य ने गंधमार्दन पर्वत को अदाणी कंपनी को सौंपने को लेकर सवाल उठाया था। इस सवाल पर करारा ज़वाब देते हुए ओड़िशा सरकार के उप मुख्यमंत्री के.वी. सिंहदेव ने कहा कि “अदाणी को अनुमति हमारी मोहन माझी सरकार ने नहीं बल्कि पूर्ववर्ती आपकी नवीन पटनायक सरकार ने दी थी।“ सिंहदेव ने कहा कि “अदाणी हो या कोई और, गंधमार्दन पर्वत पर हाथ नहीं लगा पाएगा। यदि किसी ने आगे बढ़कर कुछ किया तो मैं खुद आंदोलन पर उतर जाऊंगा।“ ओड़िशा विधानसभा में जो कुछ भी हुआ उसकी चर्चा छत्तीसगढ़ में भी कहीं-कहीं पर होती दिखी है। हसदेव जंगल कटाई पर सतत् नज़र रखते आ रहे कुछ लोगों की यही प्रतिक्रिया है कि ओड़िशा में अदाणी के खिलाफ़ बोलने की हिम्मत वहां के सिंहदेव ने तो दिखाई। हमारे यहां की पिछली सरकार के सर्वोच्च नेता तो दिल्ली में प्रेस कांफ्रेस लेते समय अदाणी का नाम तक ज़ुबान पर नहीं ला पाए थे। हालांकि अदाणी का बिना नाम लिए वे हसदेव पर बोले काफ़ी कुछ थे। बरसों पहले दुर्ग जिले के बॉर्डर पर स्थित एक शराब फैक्ट्री से सालों तक जो वायु प्रदूषण होते रहा था उसके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत न सत्ता पक्ष कर पाता था और न ही विपक्ष! यहां तक कि अख़बार वाले उस दौर में ऐसी कोई स्याही नहीं बन पाई थी जिसका इस्तेमाल कर कोई उस शराब फैक्ट्री के बारे में लिख सके।
फ़िल्म सिटी… सपना
देखा किसी ने था
पूरा करेगा कोई और
अब कहीं जाकर लग रहा है कि मुर्दा शहर नया रायपुर से लगे माना-तूता के दिन फिरने वाले हैं। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने घोषणा की कि माना तूता में फ़िल्म सिटी का निर्माण होगा। इसकी पहचान चित्रोत्पला फ़िल्म सिटी के रूप में होगी। क़रीब 96 करोड़ की लागत से इसका निर्माण होगा। विष्णु देव साय सरकार ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा होने के एक महीने पहले ही यह बड़ी उपलब्धि अपने खाते में दर्ज़ कर ली। कहां तो फ़िल्म सिटी निर्माण का बड़ा सपना पिछली सरकार के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने देखा था। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भगत ने संस्कृति मंत्री के रूप में जो आख़री प्रेस कांफ्रेंस ली थी में खुले मन से स्वीकार किया था कि संस्कृति मंत्री के रूप में जिन सपनों को लेकर चला था सारे पूरे हुए, फ़िल्म सिटी को छोड़कर!
अब जाकर फिरेंगे
माना तूता के दिन
कहते हैं भाग्य से ज़्यादा समय से पहले कुछ नहीं होता। बात केवल समय की करें तो यह माना तूता पर खरी उतरती है। 1992-93 की बात रही होगी जब ए.डी. मोहिले रायपुर संभागायुक्त (कमिश्नर) थे। उस दौर में एक बार मोहिले वन विभाग के अफ़सरों एवं पत्रकारों की टीम को लेकर दिन भर के भ्रमण पर निकले थे। पहला भ्रमण माना तूता का ही था। तब पचपेड़ी नाका चौक को रायपुर शहर का अंतिम छोर माना जाता था। माना तूता भ्रमण में मोहिले ने पत्रकारों को बताया था कि यहां बहुत बड़ा पिकनिक स्पॉट बनाने जा रहे हैं। मोहिले की इच्छा के अनुरुप पिकनिक स्पॉट नहीं बन पाया। वहां कुछ और भी योजनाएं लाने का ज़िक्र होते रहा था लेकिन कदम आगे नहीं बढ़े। शायद इस जगह पर फ़िल्म सिटी का निर्माण होना लिखा था। संभावना यही है कि भाजपा सरकार के इसी कार्यकाल में 70 एकड़ ज़मीन पर फ़िल्म सिटी का निर्माण हो जाएगा।
द साबरमती रिपोर्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह अपील कि “फ़िल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ देखकर ज्ञानवर्धन करें”- का व्यापक असर कहीं हुआ हो या न हुआ हो छत्तीसगढ़ में ज़रूर हुआ है। स्वयं मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं भाजपा के ज़िम्मेदार लोगों ने राजधानी रायपुर के एक मॉल में जाकर ‘द साबरमती रिपोर्ट’ देखी। साय व भाजपा के लोगों के साथ यह फ़िल्म देखने भारतीय समाज को एक अनोखी नई दिशा देने वाली बहुचर्चित सीरियल एवं फ़िल्म प्रोड्यूसर एकता कपूर स्वयं मौजूद थीं। उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने अपने लोरमी विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ बिलासपुर में, कला एवं संस्कृति की गहरी समझ रखने वाले पूर्व मंत्री एवं विधायक अजय चंद्राकर ने अपने साथियों के साथ कुरुद में तथा पूर्व विधायक एवं प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा ने अपनी पार्टी के लोगों के साथ भाटापारा में यह फ़िल्म देखी।
पटवारी, वन विभाग
अधिकारी और गिरफ़्तारी
पिछले सप्ताह पटवारी, अधिकारी और गिरफ़्तारी- ये 3 शब्द ख़ूब पढ़ने, सुनने और देखने मिले। कांकेर में वन विभाग में पदस्थ एक रेंजर और एक महिला असिस्टेंट प्रोफेसर के बीच फ़ेस बुक के माध्यम से दोस्ती हुई। रेंजर ने प्रोफेसर को शादी का झांसा दिया और रायपुर के वीआईपी रोड की एक सितारा हॉटल में बुलवाया। जहां रेंजर ने बंद कमरे में शारीरिक संबंध बनाए। बाद में रेंजर शादी से मुकर गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया। रेंजर को गिरफ़्तार कर लिया गया है। दूसरा मामला भी वन विभाग का। जशपुर नगर के बगिया क्षेत्र में वन विभाग में पदस्थ एक अफ़सर अपने ही विभाग की अधिनस्थ महिला अधिकारी पर नज़र रखे हुए थे। ड्यूटी के दौरान वह कहा करते थे- “तूम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।“ यह अलग बात है कि महिला अधिकारी को बड़े साहब अच्छे नहीं लगते थे। बड़े साहब महिला अधिकारी पर अनावश्यक दबाव बनाने लगे। मामला इस कदर बढ़ा कि थाने तक पहुंच गया। छत्तीसगढ़ के तक़रीबन सभी जिलों में गिरदावरी में भारी गड़बड़ी पाई गई है। गिरदावरी का काम पटवारियों के माध्यम से होता है। गलत गिरदावरी होने का ख़ामियाज़ा किसानों को भुगतना पड़ा रहा है। ख़बर यही है कि प्रदेश भर में अलग-अलग स्थानों पर 300 से अधिक पटवारियों को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ है। दूसरी तरफ बलरामपुर जिले के राजपुर तहसील अंतर्गत ओकरा पतरापारा के पटवारी को 12 हज़ार रुपये की रिश्वत लेते हुए एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने रंगे हाथ गिरफ़्तार किया। गिरफ़्तार हुआ पटवारी अपने संघ का नेता भी बताया जाता है।
नगर निगम चुनाव
अनिश्चितता का आलम
हर बार की तरह नगर निगम चुनाव दिसंबर में होगा ऐसी कोई आहट नहीं मिल रही है। सुनने यही आ रहा है कि काफ़ी ज़ोर लगा लेने के बाद भी आरक्षण व कुछ अन्य काम पूरा नहीं हो पाया है। फिर नगर निगम व पालिका से लेकर पंचायत चुनाव एक ही समय पर करा लेने की शासन की इच्छा शक्ति अलग जोर मार रही है। कोई कह रहा है चुनाव जनवरी में होगा तो कोई कह रहा है मार्च में। अब तो यह भी माना जा रहा है कि नगरीय निकाय चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही विधानसभा के बजट सत्र की तारीखें तय होंगी। यानी आज तारीख़ तक तो सारा कुछ ही अनिश्चित है।
निगम में अब केवल
मिटिंग मिटिंग का खेल
रायपुर नगर निगम की निर्वाचित परिषद का कार्यकाल 6 जनवरी को समाप्त हो जाना है। प्रदेश में जहां भाजपा की सरकार है वहीं रायपुर नगर निगम में कांग्रेस की। महापौर एजाज़ ढेबर के पास अब एक ही बड़ा हथियार बचा रह गया गया है, मेयर इन कौंसिल की बैठक बुलाने का अधिकार। इस अधिकार का इस्तेमाल करने में वे कोई कमी नहीं कर रहे हैं। दिसंबर 2023 में जब प्रदेश की सरकार बदली उसके बाद से ही ढेबर एमआईसी की बैठक पर बैठक बुलाने का सिलसिला बरक़रार रखे हुए हैं। यह सिलसिला कुछ समय के लिए तभी थमे रहा जब लोकसभा चुनाव एवं रायपुर दक्षिण विधानसभा उप चुनाव के लिए आचार संहिता लगी रही। दक्षिण उप चुनाव को लेकर लगी आचार संहिता के हटते ही ढेबर 25 नवंबर को एमआईसी की एक बैठक ले चुके हैं और दिसंबर महीना लगते ही 2 दिसंबर को फिर एमआईसी की बैठक बुलाने की सूचना जारी हो चुकी है। तेज गेंदबाजी करने वाले नगर निगम के कुछ नेता यह सोचकर चल रहे हैं कि कार्यकाल को महीने भर ही तो बचा है। बैठक बुलाते रहने में क्या बुरा। मीडिया में बढ़िया कव्हरेज़ मिल जाएगा और जिधर निशाना साधना है उधर निशाना भी सध जाएगा।