कारवां (29 दिसबंर 2024) ● मंत्री मंडल विस्तार को लेकर फिर अटकलें… ● कांग्रेस छोड़कर गए लोगों का अब घर वापसी पर जोर… ● चुनाव जनवरी-फरवरी में नहीं हुआ तो सीधे मई में… ● भगवती चरण शुक्ल वार्ड पर ढेबर प्रमोद की नज़र… ● 31 की रात का जश्न और विदेशी कलाकारों की डिमांड…

■ अनिरुद्ध दुबे

एक बार फिर अटकलों का दौर शुरु हो गया है कि विष्णुदेव साय सरकार के मंत्री मंडल का विस्तार नगरीय निकाय चुनाव से पहले हो जाएगा। दो नये मंत्री बनाएं या तीन इस पर विचार मंथन जारी है। माना जा रहा है कि एक नया मंत्री ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) से होगा। ओबीसी की बात करें तो धरमलाल कौशिक एवं अजय चंद्राकर जैसे दिग्गज कतार में हैं। वहीं दुर्ग के विधायक गजेन्द्र यादव भी ओबीसी वर्ग से हैं जिनके नाम की चर्चा पिछले कई महीनों से चल रही है। केदार कश्यप के बाद बस्तर क्षेत्र से किसी एक और मंत्री बनाने की बात हो रही है। बस्तर से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण सिंह देव समेत लता उसेंडी एवं विक्रम उसेंडी जैसे नेता लाइन में हैं। सामान्य वर्ग की बात करें तो अमर अग्रवाल एवं राजेश मूणत का नाम कम करके नहीं आंका जा रहा है। यदि मंत्री मंडल में 3 नये चेहरे आते हैं तो अमर अग्रवाल या राजेश मूणत में से किसी एक की लॉटरी खुल सकती है।

कांग्रेस छोड़कर गए

लोगों का अब

घर वापसी पर जोर   

कांग्रेस छोड़कर गए बहुत से लोग अब घर वापसी के लिए आतुर हैं। यहां तक कि जोगी कांग्रेस की मुखिया श्रीमती रेणु जोगी भी अब अपनी पार्टी को मूल कांग्रेस में विलय कर देने की इच्छुक हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट व्दारा कांग्रेस प्रवेश के आवेदनों पर विचार करने के लिए सात सदस्यों की कमेटी बनाई गई है जिसमें नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत समेत तीनों प्रभारी सचिव जरिता लैतफलांग, विजय जांगिड़, एस. ए. सपंत कुमार, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, धनेन्द्र साहू एवं मोहन मरकाम शामिल हैं। कांग्रेस में वापसी के लिए पूर्व विधायक वृहस्पत सिंह समेत क़रीब 3 दर्जन जाने-पहचाने चेहरों के आवेदन लगे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि पिछली बार जब कांग्रेस की सरकार थी तो वृहस्पत सिंह के व्यवहार से तत्कालीन मंत्री टी.एस. सिंहदेव काफ़ी क्षुब्ध थे। वृहस्पत सिंह ने सिंहदेव पर ऐसे गंभीर आरोप लगा दिए थे जो कल्पना के बाहर के थे। वृहस्पत सिंह को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। जहां तक रेणु जोगी के जनता कांग्रेस में विलय का सवाल हैं बताते हैं कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं का तो रुख़ नरम है लेकिन लेकिन पूर्व मुखिया का भारी विरोध है। पूर्व मुखिया अपने क़रीबी लोगों से कह चुके हैं पूर्व की तरह पार्टी को कई साल पीछे ले जाना है तो फिर विलय होने दो।

चुनाव जनवरी-फरवरी

में नहीं हुआ

तो सीधे मई में 

पूर्व में घोषणा हुई थी कि महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष का आरक्षण 27 दिसंबर को होगा, फिर आरक्षण की तारीख बढ़ाकर 7 जनवरी कर दी गई। प्रदेश में इस समय 14 नगर निगमें हैं। 14 में से 10 नगर निगमों के महापौर का कार्यकाल 7 जनवरी तक ख़त्म हो ही जाएगा। अभी भी दो तरह की चर्चाएं जोर पकड़ी हुई हैं कि 7 या 8 जनवरी की शाम-रात में नगर निगम व नगर पालिका के चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लग जाएगी। यदि अभी घोषणा हुई तो चुनाव 28 जनवरी से 15 फरवरी के बीच हो सकता है। दूसरी चर्चा यह कि यदि जनवरी या फरवरी में तक चुनाव नहीं हुआ तो मामला मई तक के लिए टल सकता है। वैसे उप मुख्यमंत्री (नगरीय निकाय) ने तो संकेत यही दिए हैं कि बोर्ड परीक्षाओं के होने से पहले चुनाव हो जाएंगे। यदि अभी चुनाव की तारीख की घोषणा नहीं होती है तो महापौर आरक्षण हो जाने के बाद नगर निगमों में प्रशासक का बैठना तय है। परंपरा यही रही है कि आईएएस स्तर के अधिकारी को ही प्रशासक पद का दायित्व सौंपा जाता है। रायपुर नगर निगम का पहला पार्षद चुनाव दिसंबर 1978 में हुआ था। उस कार्यकाल में थोड़े-थोड़े समय के लिए स्वरूपचंद जैन, संतोष अग्रवाल, एस. आर. मूर्ति एवं तरुण चटर्जी महापौर चुने गए थे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री, 7 बार रायपुर सांसद एवं 3 राज्यों में राज्यपाल रह चुके रमेश बैस 1978 के ही चुनाव में ब्राम्हणपारा वार्ड से पार्षद रहे थे। देखा जाए तो बैस की सक्रिय राजनीति में शुरुआत 78 के चुनाव में पार्षद बनने के साथ ही हुई थी।

भगवती चरण शुक्ल

वार्ड पर ढेबर

प्रमोद की नज़र

रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर के कार्यकाल को हफ्ते भर का समय बचा है। मानने वाले तो अभी से मान ले रहे हैं कि वे अब पूर्व महापौर की श्रेणी में आ चुके हैं। इसी तरह रायपुर नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे के भी कार्यकाल को हफ्ते भर का समय बचा है। विधानसभा, लोकसभा चुनाव के बाद रायपुर दक्षिण का उप चुनाव भी हो चुका। ढेबर तथा दुबे रायपुर दक्षिण के ही रहवासी हैं। रायपुर दक्षिण उप चुनाव के समय इन दोनों का टिकट को लेकर दावा था। उस पर भी दुबे का तो प्रबल दावा था लेकिन टिकट मिल गई प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को। यानी कहानी वहां भी ख़त्म हो गई। अब ढेबर के सामने एक बड़ा विकल्प रायपुर नगर निगम का निकट भविष्य में होने जा रहा चुनाव बचा है। लगातार चर्चा इसी बात की हो रही है कि रायपुर महापौर सीट आरक्षित हो सकती है। ढेबर व दुबे सामान्य वर्ग से हैं। महापौर सीट आरक्षित हुई तो वहां महापौर को लेकर भी संभावना ख़त्म। अंदर की ख़बर आहिस्ता आहिस्ता कानों तक पहुंची है कि महापौर रह चुके इन दोनों ही नेताओं की पार्षद चुनाव लड़ने की संभावना बनी हुई है। दुबे और ढेबर दोनों ही पूर्व में तीन-तीन बार पार्षद चुनाव लड़ चुके हैं और जीते भी हैं। यदि नगर निगम की राजनीति के माध्यम से खुद को जिंदा रखे रहना है तो एक बार फिर पार्षद चुनाव लड़ लेना क्या बुरा! यदि कांग्रेस का बहुमत आया तो सभापति और न आया तो नगर निगम नेता प्रतिपक्ष बनने का रास्ता तो खुला ही रहेगा। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात सुनने में आ रही वह यह कि दोनों ही नेता एक ही पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड से पार्षद चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। 2019 में प्रमोद दुबे इसी पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड से पार्षद चुनाव जीते थे और आरक्षण में यह वार्ड सामान्य घोषित हुआ है। चर्चा यही है कि दुबे इस बार भी इसी वार्ड से संभावनाएं तलाशने में लगे हुए हैं। बात करें ढेबर की। वह जिस मौलाना अब्दुल रऊफ वार्ड से चुनाव जीतते रहे वह सामान्य महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो गया है। अब उनके पास आगे पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड का ही विकल्प बचता है जहां पर उनका घर है और जहां मुस्लिम मतदाताओं की अधिकता भी है।

31 की रात का जश्न और

विदेशी कलाकारों की डिमांड

31 दिसंबर की रात को नये साल का जश्न मनाने के लिए अब राजधानी रायपुर में रशियन आर्टिस्टों बुलाया जाने लगा है। सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद राजधानी रायपुर में नये साल का जश्न मनाने का क्रेज नये अंदाज़ में सामने आया। रायपुर के वीआईपी रोड पर उस दौर में एकड़ में फैला हुआ ओबेराय गुलशन हुआ करता था। वहां कुछ सालों तक नये साल का जश्न बेहतरीन तरीके से मना। ओबेराय गुलशन में यूथ और उम्रदराज़ लोगों के लिए अलग-अलग डॉसिंग फ्लोर हुआ करते थे। किसी से किसी को खलल नहीं होती थी। डिनर के लिए व्यंजन ऐसे होते थे कि खाने वाला खाता ही रह जाए। मालिकों व्दारा ग़ज़ब का अनुशासन बनाए रखने के कारण वहां कभी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। हालात कुछ ऐसे बने कि ओबेराय गुलशन का वज़ूद ही मिट गया। अब वहां सिर्फ खाली पड़ी ज़मीन देखी जा सकती है। उस शुरुआती दौर में फार्म हाउस में नये साल का जश्न मनाने का कल्चर आ चुका था। मुम्बई-दिल्ली से लड़कियां बुलाई जाने लगी थीं। 19-20 साल पहले की बात है नये साल की पूर्व संध्या को रंगीन करने मुम्बई से रायपुर पहुचीं कुछ बेहद खूबसूरत लड़कियां माना एयरपोर्ट पर एक महिला थानेदार व्दारा पकड़ ली गई थीं। साल दर साल रायपुर पर कुछ ऐसा रंग चढ़ा कि विदेशी युवतियों की डिमांड बढ़ने लगी। उसी परंपरा को बढ़ाते हुए इस बार भी रशियन आर्टिस्टों की बुलाए जाने ख़बरें सुनने को मिल रही हैं। बताते हैं इनका कार्यक्रम मुम्बई एवं दिल्ली में बैठे एजेंटों के माध्यम से तय होता है।

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