■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव की कथा मानो किसी दिलचस्प जासूसी उपन्यास की तरह हो गई है। उलझाव ही उलझाव है। दिलचस्प उलझाव। सस्पेंस पर से पर्दा उठ ही नहीं रहा। राय अब तक बंटी हुई है। कोई कह रहा फरवरी में तो कोई कह रहा मई में। गौर करने वाली बात यह है कि गुरुवार को जगदलपुर रवाना होने से पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि देर होगी लेकिन चुनाव टलेगा नहीं। कुछ ऐसी ही मिलती-जुलती बात उप मुख्यमंत्री (नगरीय निकाय) अरुण साव ने भी तो कही थी। अब संभावना यह जताई जा रही है कि 20 जनवरी के आसपास चुनाव की तारीख़ सामने आ सकती है। इससे पहले दिसंबर में कुछ इसी तरह की अटकलों का दौर चला था कि 16 से 20 दिसंबर तक विधानसभा का शीतकालीन सत्र जैसे ही निपटेगा चुनाव की तारीख़ सामने आ जाएगी। दिसंबर यूं ही निकल गया। 27 दिसंबर को महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष का जो आरक्षण होना था उसकी भी तारीख़ बढ़कर 7 जनवरी हो गई। प्रदेश के कितने ही चैनलों में इस पर डिबेट हुआ। एक प्रतिष्ठित चैनल ने तो निकाय चुनाव पर आयोजित डिबेट में फ़िल्म ‘दामिनी’ का वो सनी देवल वाला वह सीन भी चला दिया “तारीख़ पे तारीख़…”
मंत्री पद की दौड़
में किरण देव आगे
पिछले ‘कारवां’ कॉलम में संभावना जताई जा चुकी है कि विष्णुदेव साय सरकार के मंत्री मंडल का जब भी विस्तार होगा बस्तर से एक और मंत्री बनना तय है। जिस तरह की ख़बरें बाहर आ रही हैं उससे संकेत यही मिल रहे हैं कि बस्तर से किरण सिंह देव का नाम सबसे ऊपर है। किरण सिंह देव इस समय विधायक होने के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी हैं। अभी तक में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में किरण देव की पारी शानदार ही चली है। निकट भविष्य में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने हैं। भाजपा से गहराई से जुड़े बहुत से लोगों का मानना है कि किरण देव अध्यक्ष पद से हटे तो उनके मंत्री बनने की राह खुली हुई है। बस्तर से इस समय अनुभवी केदार कश्यप तो मंत्री हैं ही, साथ ही यहां से जिस तेज तर्रार नेता की तलाश होती रही थी वह किरण देव के रूप में पूरी होती दिख रही है। एक और चर्चा जोर पकड़े हुए है कि बिलासपुर के दिग्गज नेता अमर अग्रवाल अगर मंत्री बनते हैं तो वित्त का प्रभार उन्हें मिल सकता है। वित्त इस समय मंत्री ओ.पी. चौधरी के पास है।
लखमा को आबकारी ही क्यों
ईडी ने इस समय पूर्व आबकारी मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस विधायक कवासी लखमा को अपने घेरे में ले रखा है। ईडी का दावा है कि जांच में कुछ ऐसी बातें पता चली हैं जिनका सीधा संबंध कवासी लखमा से है। जानकार लोगों का मानना है कि शराब घोटाले मामले में पूर्व में गिरफ्तार हुए लोगों से जो लंबी पूछताछ चली उसकी तूलना में जो दस्तावेज जब्त हुए उनके कारण लखमा के सामने ज़्यादा बड़ी मुसीबतें खड़ी हुई हैं। जब तक सब ठीक-ठाक चलता है तो कोई बात तूल नहीं पकड़ती, लेकिन जहां कुछ अजब ग़ज़ब घटता है कई-कई तरह की चर्चाएं जोर पकड़ने लगती हैं। बड़ी-बड़ी व्याख्याएं होने लगती हैं। अब कांग्रेस के ही कुछ धीर-गंभीर चिंतनशील लोग कहने लगे हैं कि ईडी के छापे के बाद लखमा जी ने तो खुद खुले तौर पर कहा है कि “मैं ठहरा अनपढ़ आदमी। मुझे विभाग का बड़ा अधिकारी जहां दस्तख़त करने कहता कर दिया करता था।“ जब लखमा जी की शैक्षणिक योग्यता से पूर्व में सरकार चला रहे लोग वाक़िफ थे तो उन्हें शराब से जुड़े संवेदनशील आबकारी विभाग का मंत्री क्यों बनाया गया! ऊपर से उद्योग मंत्रालय की भी ज़िम्मेदारी उन्हें दे दी गई थी, जहां काफ़ी दिमागी घोड़े दौड़ाने की ज़रूरत होती है। लखमा जी को मंत्री बनाना ही था तो उन्हें खेलकूद, युवा कल्याण, संस्कृति, पर्यटन, धर्मस्व जैसा विभाग दे दिए होते, जहां ज़्यादा मगचमारी की ज़रूरत नहीं होती है। जब मालूम था कि लखमा जी पढ़ने लिखने में असमर्थ हैं तो आबकारी विभाग से जुड़े ब्रेवरेज़ कार्पोरेशन में किसी क़ाबिल नेता को ही बिठा दिए होते, लेकिन वहां भी किसी की नियुक्ति आख़री समय तक नहीं की गई।
मोदी जी को शादी का न्यौता
राज परिवार से जुड़े राजनीति में एक सक्रिय नेता का निकट भविष्य में विवाह होने जा रहा है। बताते हैं ‘कमल’ की तरह खिले हुए राज परिवार के इस नेता ने हाल ही में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाक़ात की और अपने विवाह में आने का निमंत्रण दिया। राज परिवार से जुड़े लोग पूरी तरह आशान्वित नज़र आ रहे हैं कि विवाह समारोह में वर को आशीर्वाद देने मोदी जी छत्तीसगढ़ ज़रूर आएंगे। यदि राज परिवार का सम्मान करते हुए मोदी जी का आना होता है तो उनका छत्तीसगढ़ में किसी विवाह समारोह में शामिल होने का पहला मौका होगा।
हमें तो अपनों ने लूटा
अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर ने जो प्रेस कांफ्रेंस ली उसमें शेर ओ शायरी एवं फ़िल्मी डायलॉग भी चले। ढेबर ने कहा कि एक प्रसिद्ध शेर है “हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, कश्ती वहां जाकर डूबी जहां पानी कम था।” उन्होंने कहा कि शेर की दूसरी लाइन मुझ पर फिट नहीं बैठती। मेरी कश्ती नहीं डूबी। ढेबर की यह बात सुनकर वहां मौजूद कुछ लोग इस सोच में डूब गए कि महापौर जी कह रहे हैं कि शेर की दूसरी वाली लाइन मुझ पर लागू नहीं होती। तो क्या यह मान लिया जाए कि पहली वाली लाइन “हमें तो अपनों ने लूटा…” उन पर लागू होती है!
‘भूलन द मेज़’ फ़ेम
डायरेक्टर की ‘सुकवा’
दीपावली का त्यौहार निकलते ही छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों का मौसम आ जाता है। दीपावली के बाद से फरवरी माह तक धड़ाधड़ छत्तीसगढ़ी फ़िल्में रिलीज़ होती हैं। मार्च-अप्रैल में प्रदर्शन का सिलसिला थोड़ा थमता है, फिर मई लगते ही गर्मी के मौसम में छत्तीसगढ़ी सिनेमा का फिर उफान आ जाता है। ‘भूलन द मेज़’ जैसी फ़िल्मों से काफ़ी ख्याति अर्जित कर चुके डायरेक्टर मनोज वर्मा की छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘सुकवा’ का 10 जनवरी को प्रदर्शन होने जा रहा है। फ़िल्म में भूत-प्रेत, झाड़-फूंक के अलावा और भी बहुत कुछ देखने मिलेगा। वो भी भरपूर कॉमेडी के साथ। मन कुरैशी-दीक्षा जायसवाल स्टारर इस फ़िल्म में छत्तीसगढ़ की जानी-मानी लोक गायिका गरिमा दिवाकर एक ख़ास किरदार में नज़र आएंगी। यही नहीं छत्तीसगढ़ के एक और जाने-माने फ़िल्म सिंगर अनुराग शर्मा भी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘बलि’ से अभिनय की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं।

