कारवां (26 जनवरी 2025) ● निगम-पालिका चुनाव 10 दिनों का खेल… ● राजनीतिक महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं… ● दो पूर्व महापौर की पत्नियां दिख सकती हैं चुनावी मैदान में… ● बृजमोहन कुंभ और काव्य प्रेम…

■ अनिरुद्ध दुबे

कहां तो यह अनुमान लगाया जा रहा था कि नगर निगम व पालिका चुनाव 20 से 28 फरवरी के बीच हो सकता है, उसके विपरीत राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से चौंकाने वाली तारीख़ सामने आई। 11 फरवरी को मतदान एवं 15 फरवरी को रिज़ल्ट आने की घोषणा हो गई। चुनाव की घोषणा 20 जनवरी को हुई। नामांकन के बाद नाम वापसी की तारीख़ 31 जनवरी है। यानी 10 दिनों का चुनाव। छत्तीसगढ़ ही नहीं अविभाजित मध्यप्रदेश के समय को लेते हुए नगरीय निकाय चुनाव के इतिहास की बात करें तो यह पहला मौका है जब चुनाव की घोषणा की तारीख़ और चुनाव होने की तारीख़ के बीच इतना कम फ़ासला है। राजनीतिक हलकों में चर्चा यही है कि प्रदेश में भाजपा डबल इंजन सरकार वाली है, अतः यहां महापौर, पालिका अध्यक्ष एवं पार्षदों की टिकट के फैसले तो धड़ाधड़ हो जाएंगे, लेकिन कांग्रेस को काफ़ी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ऐसा होते दिख भी रहा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार गई सो गई, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 11 में से 1 ही लोकसभा सीट जीत पाई, इससे हवा का रुख़ साफ़ तौर पर समझा जा सकता है। एक महत्वपूर्ण बात और… कोई भी राजनीतिक चुनाव हो… पैसा, शराब व सामान बंटने की चर्चाएं जमकर होती हैं। अभी की चर्चाओं में यह सुनने मिल रहा है कि इस बार राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों पर बांटने को लेकर ज़्यादा प्रेशर नहीं रहेगा। इसलिए कि पूर्व के चुनावों में टिकटों पर फैसले की तारीख़ तथा मतदान की तारीख़ के बीच काफ़ी अंतर हुआ करता था। यही कारण है कि पोलिंग की तारीख़ से काफ़ी पहले ही प्रत्याशियों के घर के बाहर सुबह या फिर रात में भीड़ दिख जाया करती थी। माना जा रहा है भीड़ की मौज-मस्ती इस बार बहुत कम समय के लिए होगी। आख़िर खेल मात्र 10 दिनों का जो है।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा

का कोई अंत नहीं

राजनीति में पद का अपना अलग महत्व होता है। नगर निगम की राजनीति में तो और भी ज़्यादा। रायपुर में भाजपा व कांग्रेस दोनों तरफ के ऐसे बहुत से नेता मिल जाएंगे जो चार से पांच बार पार्षद रह चुके हैं और अब कि बार भी टिकट पाने प्रयासों में कोई कमी करते नहीं दिखे। पिछली बार के कुछ पुरुष पार्षदों का वार्ड इस बार महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो गया है। चार से पांच बार पार्षद रहे बेचारे वो नेता क्या करते, अपनी पत्नी को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी में हैं। कई ऐसे भी हैं जो अपना वार्ड आरक्षित हो जाने पर आसपास के वार्ड पर नज़र रखे हुए हैं, इस उम्मीद में कि चाहे जो हो, वहां से टिकट मिल जाए। नगर निगम की राजनीति में तो अब ऐसा भी कल्चर देखने मिलने लगा है कि महापौर पद पर रहने के बाद भी उसके बाद वाले पद में संभावनाएं तलाशने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी जा रही है। 2014 में प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव जीतकर महापौर बने प्रमोद दुबे 2019 में पार्षद चुनाव लड़ गए और सभापति बने। 2019 में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर बने एजाज़ ढेबर की बात करें। उनके बारे में ख़बर यही है कि राजधानी रायपुर के पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड से उनकी पार्षद चुनाव लड़ने की ज़बरदस्त तैयारी है। ये वही भगवती चरण शुक्ल वार्ड है जहां से प्रमोद दुबे पिछली बार पार्षद चुनाव जीतकर सभापति पद तक पहुंचे थे। यही नहीं एजाज़ ने मौलाना अब्दुल रऊफ़ वार्ड से अपनी पत्नी श्रीमती अर्जुमन ढेबर का नाम भी आगे कर दिया है। यानी कांग्रेस से पार्षद टिकट की दौड़ में एजाज़ और उनकी धर्मपत्नी दोनों ही नज़र आ रहे हैं। नगर निगम में 3 पद महापौर, सभापति एवं नेता प्रतिपक्ष काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। तीनों में से जो कोई पद किसी को मिल जाए वह अपने राजनीतिक जीवन को धन्य समझता है। महापौर रह लेने के बाद आगे एजाज़ को रायपुर नगर निगम में कौन से पद की चाह है यह तो वे ही जानें।

दो पूर्व महापौर की

पत्नियां दिख सकती

हैं चुनावी मैदान में…

छत्तीसगढ़ के जाने-माने संपादक कुमार साहू जी जब एक बड़े दैनिक समाचार पत्र के संपादक हुआ करते थे अपनी संपादकीय में समय-समय पर इस वाक्य का ज़रूर इस्तेमाल किया करते थे- “राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है न कोई स्थायी शत्रु।“ इसका उदाहरण इस नगर निगम चुनाव में राजधानी रायपुर में देखने को मिल रहा है। आगे की दास्तान को संकेत में समझने की कोशिश कीजिए। 2019 की बात है। रायपुर के एक भूतपूर्व महापौर के निवास वाले वार्ड में दूसरे भूतपूर्व महापौर पार्षद का चुनाव लड़ गए थे और जीत भी गए थे। अब ख़बर यह है कि इस बार नये वाले भूतपूर्व महापौर अपने निवास वाले वार्ड से ही पार्षद चुनाव लड़ने जा रहे हैं और उन्हें दूसरे वाले पूर्व महापौर का भरपूर समर्थन मिल रहा है। दूसरे वाले पूर्व महापौर ने तो पूरा ज़ोर लगाया कि प्रत्याशी चयन को लेकर होने वाली बैठक में जो पैनल रखा जाए उसमें नये वाले पूर्व महापौर का सिंगल ही नाम ऊपर जाए। कहा तो यही जाता है कि दोनों पूर्व महापौर पूर्व में जब कभी एक-दूसरे के सामने होते तो लोगों के समक्ष भले ही भरपूर प्रेम दर्शाते नज़र आते थे, लेकिन सच्चाई यह थी कि दोनों एक दूसरे की कमज़ोरी तलाशने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखते थे। सवाल यह कि उस समय जब एक दूसरे को पचा नहीं पाते थे तो इस समय एक दूसरे के प्रति गहरा प्रेम क्यों! इसका ज़वाब यही सामने आया है कि पुराने वाले महापौर के यहां की भाभी जी को इस बार महापौर टिकट मिलने की ज़मकर चर्चा है। यही कारण है कि पुराने वाले महापौर को नये वाले पूर्व महापौर से सहयोग लेना ज़रूरी लग रहा है। एक दूसरे के सहयोग से ही तो दुनिया चलती है। पुराने वाले पूर्व महापौर ने नये वाले पूर्व महापौर से कह दिया है कि “खुद भी पार्षद चुनाव लड़िये और भाभी जी को भी पार्षद चुनाव लड़ाइये।“ नये वाले पूर्व महापौर का तो पार्षद चुनाव लड़ना तय माना जा ही रहा है और साथ में उनके यहां की भाभी जी भी पार्षद चुनाव लड़ती हैं तो एक नया इतिहास बन जाएगा। यानी दो पूर्व महापौर की पत्नियां चुनावी मैदान में होंगी। एक महापौर चुनाव लड़ रही होंगी और दूसरी पार्षद।

बृजमोहन कुंभ

और काव्य प्रेम

चुनाव सामने रहे और सांसद बृजमोहन अग्रवाल सुर्खियों में न रहें, भला ऐसे कैसे हो सकता है। इन दिनों बृजमोहन अग्रवाल के सुर्खियों में बने रहने के एक नहीं दो कारण हैं, जिसमें चुनाव तो है ही, बेटे की शादी भी है। राजधानी रायपुर के जोरा मैदान में बृजमोहन के बेटे की शादी शाही अंदाज़ में हुई। शादी में न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों के भी दिग्गज नेतागण शामिल हुए। कुछ लोगों के तो विदेश से भी  शादी में शामिल होने के लिए यहां आने की ख़बर रही। इलाहाबाद में इस समय महा कुंभ पर्व चल रहा है। शादी में जिस तरह शाही अंदाज़ वाली व्यवस्था थी और संबंधों के आधार पर लोगों का जो हुजूम टूट पड़ा था उस महौल को देखते हुए इसे कितने ही लोगों ने इसे ‘बृजमोहन कुंभ’ का नाम दे दिया। वैसे भी ‘कुंभ’ शब्द से बृजमोहन जी का गहरा नाता रहा है। ‘राजिम कुंभ कल्प’ मंत्री रहते समय में उन्हीं की देन मानी जाती है। अब थोड़ी बात निकाय चुनाव की कर लें। शुक्रवार को प्रत्याशी चयन की बैठक में हिस्सा लेकर जब बृजमोहन बाहर आए तो मीडिया की तरफ से उनसे सवाल पर सवाल हुए। ज़वाब में उन्होंने इतना ही कहा कि पार्टी का जो भी निर्णय होगा शिरोधार्य। पार्टी जो भी निर्णय लेगी उसे सारे कार्यकर्ता मानेंगे। बृजमोहन ने मीडिया के सामने कविता की यह लाइन कहते हुए अपनी बात समाप्त की-

“अपना क्या है इस दुनिया में

सब कुछ लिया उधार

लोहा भी तेरा तलवार भी तेरी

अपनी केवल धार…”

अभी तक बृजमोहन अग्रवाल सवालों का ज़वाब गद्य में देते रहे थे, लेकिन इस बार उन्होंने जिस हिसाब से पद्य की लाइनें ठोंक दी उसका लोग अपने-अपने ढंग से अर्थ निकाल रहे हैं।

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