कारवां (16 फरवरी 2025) ● महापौर चुनाव… अंडर करंट… एंटी इंकम्बेंसी… ● एक टिकट की कीमत तूम क्या जानो रमेश बाबू… ● ढेबर के वार्ड में गिदवानी ने रचा इतिहास… ● थका देने वाली प्रेस कांफ्रेंस… ● रायपुर में विदेशी युवतियों का ये कैसा पर्यटन…

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ की 14 में से 10 नगर निगमों में इसी हफ़्ते महापौर चुनाव हुए और दसों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। 2019-20 में इन सभी दस नगर निगमों में कांग्रेस के महापौर बने थे। इस बार प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनाव होने के बाद अधिकांश राजनीतिक पंडितों का यही कहना रहा था कि आठ में तो भाजपा निकाल लेगी लेकिन चिरमिरी एवं अम्बिकापुर के बारे में दावा कर पाना मुश्किल है। इन दोनों में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के बीच बराबर का मुक़ाबला है। लेकिन इन दोनों नगर निगमों में भी भाजपा जीत दर्ज़ करने में क़ामयाब रही। महापौर चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद कल दोपहर से यह बहस छिड़ी हुई है कि आख़िर ऐसी क्या वज़ह रही कि कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा हुई। तूरंत में समझने की कोशिश करें तो तीन-चार बड़े कारण समझ में आते हैं। याद करें 2018 के विधानसभा चुनाव को, जिसमें कांग्रेस ने 68 सीट के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज़ की थी और लगातार 3 बार सरकार बना चुकी भाजपा को 15 सीट पर सिमट जाना पड़ा था। उस समय भाजपा के पतन को लेकर तत्काल में दो कारण गिनाए गए थे अंडर करंट एवं एंटी इंकम्बेंसी। इस बार के महापौर चुनाव के नतीजे के पीछे भी इन दो कारणों को प्रमुखता से देखा जा रहा है। फिर प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार रहती है उसे निकाय चुनाव में फायदा मिलता है। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो 2019 के निकाय चुनाव में उसे बड़ा फायदा मिला था। अभी विष्णु देव साय की सरकार है तो स्वाभाविक है इस बार इसे फायदा मिला। सभी नगर निगमों से कांग्रेस का तम्बू उखड़ जाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी गिनाया जा रहा पिछली सरकार व्दारा अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनाव कराए जाने का फ़ैसला। कहा तो यह भी जाता है कि महापौर की कुर्सी तक केवल एक व्यक्ति की राह आसान करने अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का निर्णय लिया गया था। अप्रत्यक्ष यानी महापौर का चुनाव सीधे जनता नहीं बल्कि पार्षदों के बीच से। महापौर यानी शहर का प्रथम नागरिक। महापौर यानी पूरे शहर का लीडर। ठीक है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली में महापौर जीतकर आए पार्षदों में से कोई एक बनता है लेकिन क्या यह समझने वाली बात नहीं कि कोई नेता पार्षद चुनाव जीत जाए भले ही वह अपने वार्ड का बड़ा नेता हो लेकिन ज़रूरी नहीं कि उसकी स्वीकार्यता महापौर के रूप में पूरे शहर में हो। कुछ नगर निगमें ऐसी रहीं जहां के महापौरों को लेकर आम जनता के मन में गहरी नाराज़गी घर की हुई थी आज नतीजा सबके सामने है।

एक टिकट की कीमत तूम

क्या जानो रमेश बाबू…

चुनाव में टिकट को लेकर कभी-कभी ऐसा समीकरण बैठता है कि सब तरफ उथल पुथल मच जाती है। बात रायपुर के एक वार्ड पार्षद चुनाव की है। पिछली बार नगर निगम की मेयर इन कौंसिल में रहे एक पार्षद की किसी राजा जैसे तालाब वाले वार्ड से टिकट पक्की मानी जा रही थी। मिल गई दूसरे को और जिसे मिली वह भी पिछले कार्यकाल में पार्षद था। दूसरे वाले की टिकट पक्की होने की कहानी भी ज़ोरदार है। पहले वाले की टिकट के लिए जहां पूर्व विधायक लगे हुए थे वहीं दूसरे वाले की टिकट के लिए पूर्व सांसद लगी हुई थीं। पूर्व सांसद ने टिकट तय करने वालों को साफ शब्दों में समझाया था कि मेरे समर्थक की टिकट कटी तो पार्टी से अपना इस्तीफ़ा रायपुर नहीं सीधे दिल्ली जाकर दूंगी। टिकट तय करने वाले मरते क्या न करते, वरिष्ठ नेत्री के समर्थक की टिकट पक्की कर दी। जो एमआईसी सदस्य थे उनसे रहा नहीं गया और बागी होकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में कूद पड़े। वरिष्ठ नेत्री के जिस समर्थक को टिकट मिली वह एक समुदाय विशेष से हैं और उस वार्ड में समुदाय विशेष के वोटरों की संख्या निश्चित रूप से ज़्यादा है। मामला यहीं जाकर नहीं रुका, वरिष्ठ नेत्री के समर्थक की टिकट पक्की हुई तो पिछली बार एमआईसी सदस्य रहे एक और नेता की दूसरे वार्ड में टिकट कट गई। दूसरे वार्ड में जिस एमआईसी नेता की टिकट कटी वह भी समुदाय विशेष से ही हैं और उनकी जहां से कटी उस वार्ड में भी समुदाय विशेष के वोटरों की संख्या ज़्यादा है। ये दूसरे वाले पूर्व एमआईसी सदस्य भी निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े। अब दूसरे पूर्व एमआईसी वाले की क्यों कटी यह कहानी भी सुन लीजिए। जातिगत समीकरण के तहत वरिष्ठ नेत्री के समर्थक की टिकट को मिला लें तो समुदाय विशेष के चार उम्मीदवार हो चुके थे। समुदाय विशेष को लेकर तीन या चार टिकट का समीकरण बनाकर रखा गया था। मामला ऐसा जाकर उलझा कि समुदाय विशेष के उस भले आदमी की टिकट कट गई जिसे प्यार से समीर हवा का झोंका कहा जाता रहा है। कल जो नतीजा सामने आया चौंकाने वाला रहा। पूर्व महिला सांसद के समर्थक हार गए और उनके खिलाफ़ निर्दलीय खड़े हुए पूर्व एमआईसी सदस्य जीत गए। दूसरे एक और वार्ड से लड़े एक और पूर्व एमआईसी सदस्य हार गए। यानी एक बागी जीते दूसरे बागी हारे। जो बागी जीते उसकी जीत की खुशी में एक पूर्व विधायक तो कल ही भांगड़ा डॉस कर लिए। बल्ले-बल्ले।

ढेबर के वार्ड में गिदवानी

ने रचा इतिहास…

रायपुर नगर निगम चुनाव के दौरान पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड काफी सुर्खियों में रहा। यहां से पूर्व महापौर एजाज़ ढेबर यह कहते हुए पार्षद चुनाव लड़ने के लिए उतरे कि मेरा घर तो बैरन बाजार में ही है। यह अलग बात है कि पिछला पार्षद चुनाव मैं मौलाना अब्दुल रऊफ वार्ड से लड़ा था। भाजपा ने एजाज़ के खिलाफ़ अमर गिदवानी को उतारा। अमर वह शख़्स हैं जो कांग्रेस एवं जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) से अपना राजनीतिक सफ़र तय करते हुए भाजपा का दामन थामे। जब गिदवानी की टिकट हुई तो न जाने कितने ही लोगों ने कहा था कि ढेबर को वॉक ओव्हर मिल गया। यही नहीं पूर्व में तो भाजपा के ही कितने लोगों की तो पंडित भगवती चरण शुक्ल वार्ड को लेकर किसी तरह की कोई दिलचस्पी ही नहीं दिख रही थी। बताते हैं यह बात भाजपा प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन के कानों तक पहुंची। बस फिर क्या था नितीन नबीन रायपुर दक्षिण विधायक सुनील सोनी, प्रवक्ता केदार गुप्ता समेत पार्टी के अन्य कुछ ज़िम्मेदार लोगों को साथ लेकर बैठे और कहा कि भगवती चरण शुक्ल वार्ड में कोई कसर बाक़ी नहीं रहे। इस सीट को जितने एड़ी-चोटी एक कर दें। एड़ी-चोटी एक हो गई। गिदवानी जीत गए, एजाज़ हार गए। अमर गिदवानी कभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के क़रीबी माने जाते थे। गिदवानी को पार्षद चुनाव लड़ते देखकर उनके एक पुराने दिनों के नेता साथी ने एक दिलचस्प कहानी सुनाई। उस नेता ने बताया कि सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में साहब (जोगी) महासमुन्द लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में थे। भाजपा ने उनके ख़िलाफ़ राजिम के पूर्व विधायक चंदूलाल साहू को चुनावी मैदान में उतारा था। वह चुनाव इसलिए और भी रोचक बन गया था कि एक मास्टर माइंड नेता ने चंदूलाल नाम के दस और लोगों को महासमुन्द सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतार दिया था। ऐसे कठिन हालात को सामने देख भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू ने सीधे दिल्ली में बैठे मुखिया से संपर्क करते हुए कहा था कि साहब जोगी जैसे खाटी नेता के सामने मुझे उतार दिया गया। दूसरों की बात क्या करें अपने ही साथ नहीं दे रहे। बस फिर क्या था दिल्ली से फ़रमान जारी हुआ था कि बाक़ी सीटों का नहीं मालूम किसी भी कीमत में महासमुन्द सीट चाहिए। मुखिया के निर्देश को नज़र अंदाज़ करने की भला किसमें हिम्मत। पार्टी के कई ज़िम्मेदार लोग चंदूलाल के पक्ष में काम करने महासमुन्द लोकसभा क्षेत्र में कूद पड़े थे। नतीजा चौंकाने वाला सामने आया था। उस चुनाव में जोगी हारे थे और चंदूलाल जीते थे।

थका देने वाली

प्रेस कांफ्रेंस

नगर निगम एवं पालिका चुनाव से पहले राजधानी रायपुर में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही तरफ प्रेस कांफ्रेंस का ख़ूब दौर चला। भाजपा की बात करें तो उप मुख्यमत्री अरुण साव से लेकर रामविचार नेताम, वित्त आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी. चौधरी, घोषणा पत्र समिति के संयोजक अमर अग्रवाल एवं सांसद बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गज मीडिया से मुख़ातिब हुए। बताते हैं भाजपा के एक दिग्गज की एकात्म परिसर में हुई चुनावी प्रेस कांफ्रेंस की समयावधि का अपना एक अलग ही रिकॉर्ड बन गया। ये दिग्गज आंकड़ों वाला कोई ऐसा विषय लेकर आए थे कि एक घंटे से भी ज़्यादा समय तक मीडिया के समक्ष अपनी बातों को रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखे। वैसे तो प्रेस कांफ्रेंस लेने वाले नेता बीस से पच्चीस मिनट की समयावधि में अपनी पूरी बात रख देते हैं, लेकिन कोई नेता लगातार एक घंटे बोले तो वहां पर मीडिया वालों की धैर्य की परीक्षा तो हो ही जाती है। यानी ऐसी कांफ्रेंस थका देती है।

रायपुर में विदेशी युवतियों

का ये कैसा पर्यटन…

राजधानी रायपुर की बदनाम वीआईपी रोड पर उज़बेकिस्तान गर्ल ने जो तबाही मचाई उस पर चर्चा का दौर अभी थमा नहीं है। दुखद बात यह कि जिस तरह इस विदेशी युवती ने कार चलाते हुए एक दुपहिया वाहन को ठोंका, एक युवक की जान चली गई और दो अन्य युवक गभीर रूप से घायल हो गए। शर्मनाक यह कि नशेड़ी विदेशी युवती किसी वकील की गोद में बैठकर कार का स्टीयरिंग थामे हुए थी। पुलिस जब इस विदेशी कनक्शन के तह में गई तो एक बार फिर नई कहानियां सामने आ रही हैं। देखा जाए तो रायपुर में तो ऐसी कोई घूमने लायक जगह नहीं जिसका विश्व पर्यटन के मानचित्र में विशेष स्थान हो। फिर भी टूरिस्ट वीज़ा के आधार पर विदेशी युवतियों का रायपुर पहुंचने का सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है। पहले अय्याशी के लिए यहां मुम्बई, दिल्ली एवं कोलकाता से लड़कियां बुलाई जाती रही थीं। अब दलालों ने अपना स्टैंडर्ड ऊंचा कर लिया है और विदेशी युवतियों को रायपुर बुलाकर महंगी होटलों या फार्म हाऊस में ठहराने तथा हज़ारों की गड्डियां लहराने वाले अय्याशों के सामने उन्हें नुमाइश के लिए खड़ा करने का काम होने लगा है। ज़्यादा नहीं दो या तीन साल पहले की ही बात रही होगी जब राजधानी रायपुर के मरीन ड्राइव (तेलीबांधा तालाब) में उज़बेकिस्तान की ही एक लड़की नशे की हालत में बेसुध मिली थी। मौज मस्ती के बाद कोई मनचला उसे रोड में इसी हाल में छोड़ गया था। पुलिस ने जब उस युवती को हिरासत में लिया था तो कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उज़बेकिस्तान की उस युवती को न हिन्दी आती थी न अंग्रेज़ी। रायपुर की रंगीनियत का एक उदाहरण तो 17-18 साल पहले तब देखने मिला था जब माना एयरपोर्ट पर तीन-चार युवतियों को एक महिला पुलिस अफ़सर ने पकड़ा था। ये युवतियां कुछ अमीरज़ादों की 31 दिसंबर की शाम-रात रंगीन करने किसी मेट्रो सिटी से यहां पहुंची हुई थीं। इस तरह रायपुर मौज-मस्ती का अड्डा कोई चार-छह साल से नहीं बल्कि बरसों से रहा है।

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