■ अनिरुद्ध दुबे
श्रीमती मीनल चौबे रायपुर महापौर की शपथ ले चुकी हैं और सुर्यकांत राठौर सभापति (स्पीकर) बन चुके हैं। इन दोनों ही नेताओं का नगर निगम की राजनीति से बरसों पुराना संबंध है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, जिनका नगर निगम की राजनीति से बरसों पुराना जुड़ाव रहा है, वह आज भी महापौर पद पर रहे दिग्गज नेता तरुण चटर्जी को याद करते हैं। चटर्जी 1999 में प्रत्यक्ष प्रणाली से भाजपा की टिकट पर महापौर चुनाव जीते थे। लगभग 4 वर्ष वे भाजपा नेता के रुप में महापौर पद की गरिमा बढ़ाते नज़र आए थे, लेकिन जब क़रीब एक साल का कार्यकाल बचा था उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी से प्रभावित होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। चूंकि चटर्जी महापौर होने के साथ रायपुर ग्रामीण से विधायक भी थे, अतः जोगी ने उन्हें अपने मंत्री मंडल में लोक निर्माण मंत्री की जगह दी थी। मंत्री बनने के कुछ समय बाद चटर्जी ने महापौर पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उनके बाद सुनील सोनी साल भर के लिए तत्कालीन कार्यवाहक महापौर रहे। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बस यहीं से सुनील सोनी का राजनीतिक उत्कर्ष काल शुरु हुआ और तरुण चटर्जी का राजनीतिक पतन। अजीत जोगी एवं तरुण चटर्जी दोनों ही नेताओं का निधन हो चुका है।
तरुण चटर्जी जब महापौर थे, उनका साक्षात्कार मैंने सांध्य दैनिक अख़बार ‘हाईवे चैनल’ के लिए लिया था, जिसका प्रकाशन 5 जनवरी 2001 को हुआ था। उस साक्षात्कार की कुछ बातें आज भी प्रासंगिक हैं। तरुण दादा ने साक्षात्कार के दौरान कहा था कि “मैं भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हूं। इस पार्टी को छोड़ने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।“ क्या तरुण दादा का कांग्रेस में जाना उनके जीवन की बड़ी राजनीतिक भूल थी? साक्षात्कार के दौरान उनके व्दारा कही गई कुछ बातें राजनीति की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक हो सकती हैं और कुछ बातें सबक भी। वह साक्षात्कार शब्दशः यहां प्रस्तुत है-
● साक्षात् भगवान भी नगर निगम में बैठ जाएं तो
भी जनता संतुष्ट नहीं होने वाली- तरुण चटर्जी
■ अनिरुद्ध दुबे
रायपुर। महापौर तरुण चटर्जी का कहना है कि नगर निगम की माली हालत खराब होने के कारण हमें राज्य सरकार पर निर्भर रहना पड़ रहा है। ऊपर से जनता की बहुत सी उम्मीदें नगर निगम से जुड़ी होती हैं। नगर निगम एक ऐसी संस्था है जहां साक्षात् भगवान भी बैठ जाएं तो जनता उनसे संतुष्ट नहीं होने वाली।
महापौर का पदभार सम्हाले हुए तरुण चटर्जी को आज एक साल पूरे हो गए। एक साल के कार्यकाल को लेकर महापौर से ‘हाईवे चैनल’ की जो लम्बी चर्चा हुई उसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-
0 महापौर पद की ज़िम्मेदारी सम्हाले आपको एक साल पूरा हो गया। इस बीते एक साल का मूल्यांकन आप किस तरह करेंगे?
00 नगर निगम एक ऐसी संस्था है आप यहां कितना भी काम करें उसका कोई अंत नहीं है। नगर निगम सड़क बनाता है, यह बात लोगों को कुछ दिन याद रहती है फिर उसे भूल जाते हैं। दूसरी समस्याओं का ज़िक्र करने लगते हैं। नगर निगम में साक्षात् भगवान भी बैठ जाएं तो लोग उनसे भी संतुष्ट नहीं होने वाले। फिर भी नगर निगम में रहकर मैं कुछ काम कर पाता हूं तो मन को शांति मिलती है। नगर निगम की माली हालत इतनी ख़राब है कि हमें राज्य सरकार पर निर्भर रहना पड़ रहा है। मैं तीसरी बार महापौर बना हूँ और चौथी बार विधायक, इसलिए मुझे मालूम है कि विकास कार्यों के लिए पैसा कहां से मिल सकता है। पार्षदों के बारे में बात करूं तो उनके पास दो काम हैं। पहला- मोहल्ले का विकास, दूसरा- आम आदमी का व्यक्तिगत काम। वहीं शहर के प्रमुख मार्गों की मरम्मत एवं उसकी साफ-सफाई का ज़िम्मा महापौौर पर होता है। पार्षद अपने वार्ड की समस्याओं में ही इतने उलझे हुए हैं कि दूसरी बातों की तरफ सोचने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है। वहीं महापौर होने के नाते मुझे तो हर पहलुओं पर सोचना है।
0 एक साल पहले और अब में नगर निगम की वित्तीय स्थिति में आप क्या फ़र्क पाते हैं?
00 एक साल पहले नगर निगम पर तीन करोड़ का ओवर ड्राफ्ट था। हालांकि रायपुर नगर निगम आज भी आर्थिक दृष्टि से पूरी तरह सक्षम नहीं हो पाया है, फिर भी छत्तीसगढ़ राज्य के दूसरे नगर निगमों की तुलना में यहां स्थिति बेहतर है। इसीलिए यहां कुछ काम करते भी बन रहा है।
0 बीते एक साल में क्या आपके खाते में कोई विशेष उपलब्धियां दर्ज़ हुईं?
00 हमने नगर निगम में काम सम्हालने के बाद रायपुर शहर को 25 लाख गैलन अतिरिक्त पानी दिया है। नल जल योजना जो लम्बे समय से बंद पड़ी थी, उसे चालू कराया। राज्य सरकार से 15 करोड़ रुपए बकाया मिल जाए तो रायपुर शहर को हम दो गैलन अतिरिक्त पानी उपलब्ध करा सकेंगे। बीते एक साल में कई स्थानों पर गली से गली सड़कें बनीं। कुछ मार्गों पर फुटपाथ बने। शहर की मुख्य सड़कों पर दुधिया लाइटें लगीं। पिछली गर्मी में 1 करोड़ 54 लाख खर्च कर पानी की व्यवस्था को दुरुस्त कराया गया था। वहीं 41 वार्डों में गंदी बस्ती योजना के तहत 2 करोड़ 20 लाख रुपए के विकास कार्य हो रहे हैं। हर पार्षद के वार्ड में एक साल के भीतर 50 लाख रुपए से ऊपर का काम हो गया है।
0 आप जब महापौर का चुनाव लड़ रहे थे तब चुनावी घोषणा पत्र में आपने शहर को धूल एवं मच्छर मुक्त करने का वायदा किया था। लेकिन शहर के लोग सबसे ज़्यादा इन्हीं दो समस्याओं से त्रस्त नज़र आते हैं?
00 शहर को धूल से मुक्त करने का प्रयास जारी है। शहर को इस समय हम करीब 40 प्रतिशत धूल से मुक्त कर चुके हैं। नाली से नाली सड़क बनाए जाने से ऐसा संभव हो सका है। इस समय कई स्थानों पर सड़कें बन रही हैं, जिनसे धूल और कम होगी। धूल को हटाने के लिए ठेका सिस्टम से सफाई कराने का निर्णय नगर निगम व्दारा लिया गया है। इसमें कोई दो मत नहीं कि सफाई व्यवस्था को लेकर सारे पार्षद नाराज़ हैं। लेकिन बिना संतुलन और धैर्य के काम हो पाना संभव नहीं है। अब देखिए न अचानक सीमेंट के भाव में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई। यही कारण है कि ठेकेदारों ने काम को रोक दिया है। हमारी ओर से कुछ सीमेंट कारखानों से बातचीत की कोशिश जारी है। जैसे ही पर्याप्त मात्रा में सीमेंट उपलब्ध हो जाएगा, हम काम को गति दे देंगे। जहां तक मच्छरों की समस्या की बात है तो इसके निराकरण के लिए हमने एक पार्टी तैयार की है जो 15 जनवरी से काम शुरू कर देगी। तीन महीने बाद इस पार्टी के काम की समीक्षा होगी।
0 आपके घोषणा पत्र में तो विद्युत शवदाह गृह को शुरू करने एवं स्पोर्ट्स काम्पलेक्स का काम पूरा कराने का वायदा था?
00 स्पोर्ट्स काम्पलेक्स का काम काफी तेजी से चल रहा है। इसके लिए हमारे पास इस समय ढाई करोड़ रुपए सुरक्षित है। डेढ़ साल के भीतर हम स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स की सौगात जनता को दे सकेंगे। वहीं विद्युत शवदाह गृह को भी शुरू कराने का प्रयास जारी है। बिजली विभाग से अनुरोध किया है कि हमें वह कम दर पर विद्युत शवदाह गृह के लिए बिजली उपलब्ध कराए। ताकि हम जल्द इसका लोकार्पण कर सकें।
0 शहर में बहुत से स्थानों पर सड़कें बनने के लिए खुदी पड़ी हैं, क्या इससे आपको नहीं लगता कि लोगों के सामने नगर निगम की गलत तस्वीर पेश हो रही है?
00 जिसे खोदकर रख दिया गया है वह पी.डब्ल्यू.डी. की सड़क है। हमने जिन स्थानों को खोदा वहां पर काम चालू है। जिस समय राज्य पुनर्गठन समिति बनी थी उस समय उक्त समिति की ओर से नगर निगम को सड़क निर्माण के लिए 10 करोड़ रुपये देने की सिफारिश हुई थी। वास्तव में सड़क निर्माण के लिए हमें एक भी पैसा राज्य शासन की ओर से नहीं मिला है। इसलिए सड़कों का काम हमें धीमा करना पड़ा है।
0 नगर निगम ने तो मंत्रियों के बंगले के आसपास या फिर सिविल लाइन की सड़कों को बनाने में ज्यादा रुचि दिखाई है…
00 28 सड़कों को बनाने का प्रस्ताव नगर निगम की सामान्य सभा से पास हुआ था। जिसमें राजभवन के आसपास की सड़क भी शामिल थी। चूंकि रायपुर राजधानी का स्वरूप ले रहा था, अतः मुख्यमंत्री निवास, सचिवालय एवं राज भवन के आसपास की सड़कों को प्राथमिकता से बनाना ज़रूरी था। शहर में सबसे ख़राब सड़क समता कॉलोनी की मानी जाती है। वहां पर भी हम ज़ल्द काम शुरू कर रहे हैं। हमारे काम में कुछ तो विश्वसनीयता है, तभी तो राज्य शासन ने कचहरी चौक से जीरो प्वाईंट तक 11 किलोमीटर तथा जयस्तंभ चौक से भनपुरी तक 5 किलोमीटर की सड़क बनाने की ज़िम्मेदारी नगर निगम को सौंपी है। इस काम के लिए राज्य शासन ने करीब 6 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं।
0 भूमिगत नाली (अंडर ग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम) योजना कई साल से अटकी पड़ी है। इस काम को कब पूरा कर रहे हैं?
00 वास्तव में रायपुर शहर में भूमिगत नाली योजना पूरी तरह फेल है। इसे पूरा करने के लिए और 9 करोड़ रुपए की ज़रूरत है और नगर निगम के पास इतना पैसा नहीं है। भूमिगत नाली योजना पर काम तब होना चाहिए जब नया शहर तैयार हो रहा हो।
0 शहर के आसपास के गांवों को नगर निगम में शामिल किए जाने के प्रस्ताव पर हाल ही में काफ़ी विवाद हुआ था…
00 सन् 1977 में मास्टर प्लान बना था उसमें आसपास के गांवों को नगर निगम में लेने का उल्लेख है। 1978 में जब नगर निगम में कांग्रेस के पदाधिकारी थे तब राज्य शासन की ओर से नगर निगम में एक पत्र भी आया था, जिसमें आसपास के गांवों को नगर निगम में शामिल करने की बात कही गई थी। इसके बाद 1999 में पुनः राज्य शासन की ओर से पत्र आया कि आसपास के गांवों को शामिल करने के संबंध में प्रस्ताव बनाकर भेजें। इस सिलसिले में नगर निगम से प्रस्ताव पास हुआ तो सरपंचों ने इसका विरोध किया। अब आगे इस पर क्या निर्णय लेना है यह हमने मुख्यमंत्री जी पर छोड़ दिया है। लेकिन हमारा यह ज़रूर मानना है कि यदि इन गांवों को नगर निगम में शामिल किया जाता है तो इनके विकास के लिए राज्य शासन से अलग से पैसे नगर निगम को दिया जाना चाहिए।
0 आपने तो रायपुर विकास प्राधिकरण के भी नगर निगम में विलय की बात कही थी…
00 हमारा यह मानना है कि एक एजेंसी शहर में होना चाहिए। अब देखिए न सड़कों का कुछ काम नगर निगम कर रहा है तो कुछ काम रायपुर विकास प्राधिकरण कर रहा है। कुछ काम पीडब्लूडी कर रहा है तो कुछ नेशनल हाईवे कर रहा। ऐसे में कामों में एकरूपता कहां रह जाती है। भिलाई को देखें। वहां सब कुछ कितना अच्छा नज़र आता है और वहां पर निर्णय भी कितना अच्छा हुआ है। साडा खत्म हुआ तो नगर निगम अस्तित्व में आया। केवल एक एजेंसी काम कर रही है। हमारी सलाह तो यह है कि राजधानी के जो भी प्रोजेक्ट बनाए जाएं, वह सारे काम नगर निगम के मार्फत कराए जाएं।
0 विवादास्पद ठेकेदारों को सड़क निर्माण का ठेका देने व उन्हें लम्बा भुगतान करने का हल्ला विपक्षी पार्षद खूब मचाते रहे हैं…
00 मुझे यह बताएं कि कौन ठेकेदार विवादास्पद नहीं होता? चाहे आप रायपुर विकास प्राधिकरण की तरफ नज़र दौड़ाएं या पी.डब्लू.डी. की तरफ। आपको विवादास्पद ठेकेदार हर जगह नज़र आ जाएंगे। फिर हमारे ऊपर ग्वालियर का एजी ऑडिट बैठा हुआ है। टेंडर बुलाने एवं उन्हें स्वीकृत करने का काम नगर निगम आयुक्त व अन्य अफ़सरों का है, मेरा नहीं। केवल, कौव्वा कान ले गया… शोर मचा देने से काम नहीं चलता।
0 रवि भवन में पार्किंग स्थल की जगह पर अवैध तरीके से निर्माण कर दिए जाने के आरोप भी विपक्षी पार्षद उछालते रहते हैं…
00 यह शिकायत आज की नहीं, दस साल पुरानी है। इस मामले में संबंधित पक्षकार को नोटिस भेजा जा चुका है। इस मामले में संभागायुक्त एवं राज्य शासन की ओर से जो निर्देश मिलेगा वही मान्य होगा।
0 कालीबाड़ी चौक पर स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगे या डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की, क्या यह विवाद सुलझ गया है?
00 सन् 1984 में जब नगर निगम में कांग्रेस के पदाधिकारी आसीन थे, तब सामान्य सभा में कालीबाड़ी चौक पर स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव पारित हुआ था। वहीं भाजपा के पदाधिकारियों के आने के बाद सामान्य सभा में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस बात को लेकर युवक कांग्रेस के नेताओं ने आपत्ति सामने रखी। इस सिलसिले में हम मुख्यमंत्री अजीत जोगी से भी मिले। मैं तो मुख्यमंत्री जी को इस बात के लिए धन्यवाद दूंगा कि वह इस विवाद का हल मिल बैठकर निकालने के पक्ष में हैं। हमने तो यह मामला मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया है।
0 चर्चा तो यही होती है कि प्रभाकर राब अम्बिलकर के नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे नेपथ्य में आपकी भूमिका रही। बतौर नेता प्रतिपक्ष उनका आपको कहां तक सहयोग मिल रहा है?
00 यह सच है कि श्री अम्बिलकर से मेरे पारिवारिक संबंध हैं। उनके पिता स्व. नारायणराव अम्बिलकर का काफी यश था। चूंकि श्री अम्बिलकर सेनानी परिवार से जुड़े हैं, अतः नेता प्रतिपक्ष के लिए उनका दावा मजबूत रहा। उन्हें नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस ने बनाया है, मैंने नहीं। मेरा यह मानना है कि नेता प्रतिपक्ष का रोल सकारात्मक होना चाहिए। किसी भी काम का सिर्फ़ विरोध करना, यह रोल तो नेता प्रतिपक्ष का नहीं होना चाहिए। मुख्यमंत्री जी कोई अच्छा काम करें और मैं भाजपा का आदमी हूं सिर्फ़ इसलिए उनका विरोध करूं यह तो गलत है। नेता प्रतिपक्ष का काम निगरानी रखने का होता है सिर्फ आलोचना करते रहने का नहीं।
0 चर्चा तो यह भी होते रही है कि आपके और सभापति सुनील सोनी के बीच कभी बेहतर तालमेल नहीं रहा। कभी-कभी तो आप दोनों के बीच संवादहीनता भी रहती है…
00 संवादहीनता वाली बात बिल्कुल ग़लत है। सभापति जी और हमारा काम अलग-अलग है। वह बिल्कुल प्रजातांत्रिक ढंग से सामान्य सभा चलाते हैं। उनमें सूझ-बूझ की कोई कमी नहीं है। चाहे सत्ता पक्ष के पार्षद हों या विपक्ष के, वे सबकी बराबर से सुनते हैं। वैसे भी वह भाजपा के काफ़ी वरिष्ठ नेता हैं।
0 क्या आप सभापति का पद अनिवार्य मानते हैं…
00 पहले सामान्य सभा का संचालन महापौर किया करते थे। सभापति को तो यह अधिकार बाद में मिला। मेरी नज़र में महापौर एवं उपमहापौर, पहले वाली व्यवस्था ठीक थी। इस व्यवस्था में नगर निगम में और बेहतर काम हो सकता है। यह सिर्फ़ मेरी व्यक्तिगत राय है। इस पर निर्णय लेना तो राज्य शासन का काम है। फिर भी एक बात मैं यह कहना चाहूंगा कि छत्तीसगढ़ राज्य की और नगर निगमों की तुलना में रायपुर नगर निगम में वाद-विवाद काफ़ी कम है।
0 नगर निगम द्वारा जोन सरकार को अस्तित्व में लाए 3 महीने हो गए। इन 3 महीनों में आप काम में क्या प्रगति देखते हैं?
00 दरअसल मैंने यह व्यवस्था भोपाल नगर निगम में देखी थी। वहां पर इस व्यवस्था को लागू करने में 4 साल का समय लग गया था। यहां तो अभी 3 ही महीने अस्तित्व में आए हुआ है। इतने कम समय में किसी चीज की समीक्षा कर पाना मुश्किल काम है। मैं कार्यों एवं अधिकारों के विकेन्द्रीकरण के पक्ष में हूं।
0 जोन अध्यक्ष काफी असंतुष्ट नजर आ रहे हैं?
00 यह सच है कि जोन तीन एवं पांच में जोन अध्यक्षों की नाराज़गी सामने आई। ऐसा अध्यक्षों व अफ़सरों के बीच तालमेल के अभाव के कारण हुआ। इसे दूर करने के लिए दोनों जोन की अलग से बैठकें की जा रही हैं।
0 मेयर इन कौंसिल के सदस्य सुरेन्द्र छाबड़ा की शिकायत है कि नगर निगम आयुक्त विवेक देवांगन ने उनसे दुर्व्यवहार किया…
00 निगम आयुक्त का उद्देश्य कभी ग़लत नहीं रहा। असल में उन दोनों के बीच गलतफ़हमियां हो गई थीं, जो दूर हो गई हैं। क्या एक परिवार में टकराव नहीं होता!
0 आपकी व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की निकटता की चर्चा अक्सर होती रहती है?
00 जोगी जी जब रायपुर कलेक्टर थे और मैं नेता था, तब से हमारे संबंध हैं और फिर बिना मधुर संबंध के काम कैसे चलेगा। वह बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनके मन में किसी तरह का दुराग्रह नहीं है। वे मुझे अपना छोटा भाई मानते हैं और यह उनकी महानता है।
0 राजनीतिक गलियारे में यह भी सुनने को मिलते रहता है कि ज़ल्द ही आप कांग्रेस के महापौर कहलाएंगे?
00 मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। मैंने विद्याचरण शुक्ल का आख़री तक साथ दिया। जब मैं विद्या भैया के साथ था तो अर्जुन सिंह ने मुझे मंत्री बनने का लालच दिया था। लेकिन मैंने विद्या भैया को नहीं छोड़ा। जबकि बहुत से लोग टिकट की लालच में भैया का साथ छोड़कर चले गए थे। बड़ों का आशीष मिला तो मैं भारतीय जनता पार्टी में आया। मैं भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हूं और इस पार्टी के छोड़ने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।