कारवां (27 अप्रैल 2025) ● नक्सलवाद पर गिल साहब की वह रिपोर्ट… ● मानसून सत्र से पहले होगा नये मंत्रियों पर फैसला… ● दो नेता प्रतिपक्ष में सही कौन, संदीप या आकाश… ● संविदा तो मिली ही, विदेश जाने का भी मिला सौभाग्य… ● ‘ट्रेजर आईलैंड’ जो ‘ज़ोरा’ में बदल गया…

■ अनिरुद्ध दुबे

माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलवाद के खिलाफ़ निर्णायक लड़ाई लड़ रही है। बीजापुर की कर्रेगुट्टा के पहाड़ी इलाके को क़रीब 5 हज़ार जवान घेरे हुए हैं। यह छत्तीसगढ़-तेलंगाना-महाराष्ट्र का सीमावर्ती इलाक़ा है। तीनों राज्यों का संयुक्त सूरक्षा बल इस मिशन को पिछले 5 दिनों से अंजाम देने में जुटा हुआ है। 40 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पहाड़ी इलाके में इन दिनों तापमान दोपहर में 44 या 45 डिग्री के आसपास रह रहा है। इस बीच क़रीब 40 जवान डिहाइड्रेशन के शिकार हो चुके हैं, पर इस बड़े मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे लोगों का मनोबल काफ़ी ऊंचा है। इस मेगा ऑपरेशन को चलाने के पीछे वज़ह यह बताई जा रही है कि इन पहाड़ियों पर माड़वी हिड़मा, दामोदार एवं देवा जैसे कुख्यात नक्सली लीडरों के होने की ख़बर है।

सवाल यह उठता रहा है कि मेगा ऑपरेशन के लिए भीषण गर्मी वाला यह अप्रैल महीना क्यों चुना गया? नक्सलवाद एवं उसके खिलाफ़ लगातार चलते रहे अभियान का अध्ययन करते रहे लोगों का यही मानना रहा है कि यदि नक्सलियों से बड़ी लड़ाई लड़ना हो तो अप्रैल-मई से ज़्यादा उपयुक्त समय दूसरा कोई और नहीं है। बरसात के दिनों में दुर्गम मार्गों पर पहुंचा नहीं जा सकता एवं ठंड के दिनों में पर्वतीय इलाकों पर छाई हरियाली नक्सलियों को छिपने या भाग निकलने का पूरा मौका देती है। फिर गर्मियों में दिन बड़ा होता है। यही कारण है कि कर्रेगुटा की पहाड़ियों पर बड़े नक्सली लीडरों के होने की आहट मिलने के बाद सोची समझी रणनीति के तहत तीन राज्यों में तैनात सूरक्षा बलों ने एक साथ धावा बोला। दूसरा सवाल यह कि क्या ऐसा बड़ा अभियान क्या पहले कभी चलाया जा सकता था? गहरी जानकारी रखने वाले लोग पंजाब में आतंकवाद का खात्मा करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आईपीएस अफ़सर के.पी.एस. गिल को याद करते हैं। पुलिस की नौकरी से जब के.पी.एस. गिल रिटायर हुए थे तो कभी छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने सूरक्षा मामलों के लिए उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था। उन्हें सलाहकार नियुक्त करने के पीछे मक़सद नक्सलवाद से निपटना था। मासिक वेतन पर गिल साहब की नियुक्ति एक साल के लिए हुई थी और रायपुर में उन्हें सरकारी बंगला भी अलॉट हुआ था। सलाहकार रहते हुए गिल साहब ने कुछ मर्तबे बस्तर जाकर वहां की पृष्ठभूमि का अध्ययन किया था। गहन अध्ययन के बाद गिल साहब ने नक्सलवाद का खात्मा कैसे हो, इस पर एक रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी थी। बताते हैं वह रिपोर्ट आई और गई हो गई। वह रिपोर्ट तो कभी सार्वजनिक नहीं हुई, लेकिन अंदर की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि गिल साहब ने नक्सलियों से छापामार शैली में युद्ध करने की वक़ालत की थी। उन्होंने भी अप्रैल और मई महीने को नक्सलियों से लड़ने का सबसे उपयुक्त समय बताया था। गिल साहब ने यह रिपोर्ट क़रीब 17 वर्ष पहले सौंपी थी!

मानसून सत्र से पहले

होगा नये मंत्रियों पर फैसला

मार्च में विधानसभा का बजट सत्र ख़त्म होने के बाद साय मंत्री मंडल के विस्तार का पूरा माहौल बन चुका था। माना यही जा रहा था कि अप्रैल माह में निगम-मंडलों में नियुक्ति और मंत्री मंडल का विस्तार दोनों ही काम हो जाएंगे। निगम मंडलों में नियुक्ति की भारी भरकम सूची तो जारी हो गई लेकिन मंत्री मंडल विस्तार का मामला लटक गया। पार्टी कार्यालय से गहराई से जुड़े लोग तो यही बताते हैं कि मंत्री मंडल के विस्तार में बिलासपुर को लेकर कोई किन्तु-परन्तु नहीं है, अड़चन रायपुर को लेकर है। रायपुर से मंत्री मंडल में लेना एक को है लेकिन ताकत दो लोगों के लिए अलग-अलग दिशाओं से लगी हुई है। कभी लंबे समय तक सत्ता की बागडोर संभाले रहे नेता जहां अपने आक्रामक शैली वाले चहेते को मंत्री पद पर बिठाने पूरी ताकत लगाए हुए हैं, वहीं दूसरे के लिए फील्डिंग लगातार दिल्ली तरफ से होती रही है। फिर एक सवाल यह भी रहा कि दुर्ग एवं बस्तर की तरफ से जिनका मंत्री पद के लिए नाम चला हुआ है उनका क्या होगा? फिलहाल मुखिया मंत्री मंडल के विस्तार में अभी कोई ज़ल्दबाजी दिखाने के मूड में नहीं हैं। कहा यही जा रहा है कि जुलाई माह में होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र से पहले ज़रूर मंत्री मंडल का विस्तार हो जाएगा।

दो नेता प्रतिपक्ष में सही

कौन, संदीप या आकाश

रायपुर नगर निगम का नेता प्रतिपक्ष कौन, संदीप साहू या आकाश तिवारी, इसे लेकर अब तक संशय बरकरार है! रायपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश दुबे ने तो संदीप साहू के नाम का नियुक्ति पत्र जारी किया था, जो नगर निगम पहुंचा। उसी नियुक्ति पत्र का आधार पर मार्च में हुई निगम की बजट सामान्य सभा में संदीप साहू को नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से बोलने का अवसर मिला था। यही नहीं उन्हें निगम मुख्यालय में कक्ष भी आबंटित हो गया और कक्ष के दरवाज़े के ऊपर उनके नाम के साथ नेता प्रतिपक्ष वाली पट्टिका भी लग गई। इधर, प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से आकाश तिवारी को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने वाला पत्र जारी हो गया। सवाल यह खड़ा है कि निगम नेता प्रतिपक्ष के नाम की घोषणा किसके तरफ से होती है? अपनी पूरी उम्र कांग्रेस में खपा चुके कुछ कांग्रेसियों का कहना है कि निगम नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति शहर कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से ही होती है। इस पर बुजुर्ग कांग्रेसी सन् 1999 के घटनाक्रम का उदाहरण देते हैं। तब भाजपा की टिकट पर तरुण चटर्जी रायपुर महापौर चुनाव जीते थे और नगर निगम में बहुमत भी भाजपा पार्षदों का था। उस दौरान कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते प्रखर नेता दीनानाथ शर्मा को नगर निगम का नेता प्रतिपक्ष बनवाने कांग्रेस के एक तबके ने पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन कुछ ऐसी गोटियां बैठा दी गईं कि एक अन्य कांग्रेस पार्षद प्रभाकर राव अंबिलकर को तत्कालीन शहर कांग्रेस अध्यक्ष अब्दुल हमीद हयात ने निगम नेता प्रतिपक्ष बनाने की घोषणा कर दी। यानी शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने जिसे चाहा था वही उस समय नेता प्रतिपक्ष बना था।

संविदा तो मिली ही, विदेश

जाने का भी मिला सौभाग्य

रायपुर के एक प्राधिकरण से जुड़े एक अफ़सर के सितारे इन दिनों बुलंद हैं। जब सितारे बुलंदी पर हों तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा चलता है। इन साहब की खुशकिस्मती की इन्हें तीसरी बार संविदा नियुक्ति मिल गई। इधर संविदा नियुक्ति मिली उधर साहब सुकून के कुछ पल गुज़ारने विदेश यात्रा पर रवाना हो गए। पिछली सरकार के समय में जो नेता प्राधिकरण के अध्यक्ष थे उनसे तो इन साहब की ज़बरदस्त ट्यूनिंग थी ही, इस सरकार में जो अध्यक्ष बनकर आए हैं उनसे भी इन्होंने थोड़े ही दिनों में बढ़िया तालमेल बैठा लिया है। इसी को तो कहते हैं क्वालिटी, जो हर किसी के पास नहीं होती।

‘ट्रेजर आईलैंड’ जो

‘ज़ोरा’ में बदल गया

नया रायपुर से लगे जोरा क्षेत्र में ज़ोरा मॉल की ओपनिंग हो गई। ज़ोरा मॉल में न सिर्फ़ बड़ी-बड़ी शॉप हैं, बल्कि मनोरंजन के लिए सिनेमा हॉल भी है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने ज़ोरा मॉल का फीता काटा। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने पते की बात कही कि “12-13 वर्ष पहले ‘ट्रेजर आईलैंड’ के नाम से इस मॉल का काम प्रारम्भ हुआ था, परन्तु लम्बी यात्रा के बाद आज नए कलेवर के साथ इसका शुभारम्भ हुआ।“

देखा जाए तो राजधानी रायपुर में मैग्नेटो, आर.के., अम्बूजा तथा ट्रेजर आईलैंड का काम थोड़े समय के अंतराल में शुरु हुआ था। बाकी 3 मॉल तो खुले, लेकिन ‘ट्रेजर आइलैंड’ का काम बीच में ही रुक गया था। बताते हैं कुछ रसूख़दार लोगों की ‘ट्रेजर आइलैंड’ के काम को रुकवाने में बड़ी भूमिका रही थी। लंबे समय तक ‘ट्रेजर आईलैंड’ का आधा-अधूरा स्ट्रक्चर वहां से गुज़रने वालों के मन में अनेकानेक बार सवाल छोड़ते रहा था कि क्या यह कभी शुरु हो पाएगा या फिर खंडहर में तब्दील हो जाएगा! कहावत है कि घूरे के दिन भी पलटते हैं, फिर यह तो ‘ट्रेजर आईलैंड’ था, भला इसके दिन क्यों नहीं पलटते! दिन ही नहीं बदले, बल्कि नाम भी बदल गया। ‘ट्रेजर आईलैंड’ से ‘ज़ोरा’ मॉल हो गया। माल का नाम ‘ज़ोरा’ रखे जाने पर जोरा क्षेत्र के रहवासी गर्व महसूस कर रहे हैं। जोरा के लोग कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले यह जोरा गांव था, राज्य बनने के कुछ वर्षों बाद यह शहर का हिस्सा कहलाने लगा। बदलते वक़्त ने अब जोरा को पॉश एरिया बना दिया।

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