■ अनिरुद्ध दुबे
नक्सली संगठन के राष्ट्रीय महासचिव नम्बाला केशव राव उर्फ बसव राजू के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद नक्सली प्रवक्ता की तरफ से पत्र जारी हुआ कि युद्ध विराम कर हम सरकार के बातचीत करने आगे आने तैयार थे, जिसे संज्ञान में नहीं लिया गया। दूसरी तरफ नक्सलवाद का गहरा अध्ययन रखने वाले विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सरकार कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, बातचीत के रास्ते तो पहले से खुले हुए थे। उस समय का सदुपयोग नहीं किया गया। कांग्रेस की सरकार के समय में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि भारत के संविधान पर आस्था जताते हुए यदि नक्सली बातचीत के लिए आगे आते हैं तो हम तैयार हैं। वहीं 2023 में भाजपा की सरकार बनने के बाद उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने यहां तक कहा था कि वे वाट्स अप कॉल तक में बात करने को तैयार हैं, लेकिन उस समय भी माओवादियों के कदम बातचीत के लिए आगे बढ़ते नहीं दिखे थे। अब नक्सली बातचीत के लिए कदम बढ़ाना चाह रहे हैं तो सरकार तैयार नहीं है।
क्या नक्सल मुक्त जिला
हो गया है बस्तर…
इन दिनों एक प्रश्न गहराया हुआ है कि क्या वास्तव में बस्तर जिला को केन्द्र सरकार ने नक्सल मुक्त घोषित कर दिया है? केन्द्र सरकार की ओर से ऐसा कोई पत्र तो जारी नहीं हुआ है। फिर भी हवा बना दी गई कि बस्तर जिला नक्सलवाद से मुक्त हो गया है। यह लाइन अख़बारों की हेड लाइन बनी और टीवी के स्क्रीन पर भी चली। कहा यही जा रहा है कि किसी जिले का लेफ्ट विंग एक्स्ट्रिज्म (एलडब्ल्यूई) जिलों की सूची से बाहर होना अलग बात है और नक्सलवाद से मुक्त होना अलग बात। यहां तक कि बस्तर में बैठे जिला या पुलिस प्रशासन के किसी अधिकारी ने भी स्वीकार नहीं किया है कि बस्तर नक्सलवाद से मुक्त हो चुका। यह हो सकता है कि बस्तर में नक्लवाद काफ़ी कमजोर पड़ गया हो और आगे जाकर मिट भी जाए। अब तक की स्थिति में बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बस्तर के अलावा नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कोंडागांव एवं कांकेर कुल सात जिले गिने जाते रहे हैं। पिछली बार जब कांग्रेस की सरकार थी तब के मंत्री व सरकार के प्रवक्ता रवीन्द्र चौबे ने कई बार दोहराया था कि हमारी सरकार में नक्सलवाद 3 जिलों में सिमटकर रह गया है। जब जिसकी सरकार रहती है वैसे उसके दावे होते हैं। आज की तारीख़ में माना यही जा रहा है कि नक्सलवाद के खिलाफ़ सरकार की तरफ से अभी जैसी मुहिम चली है वैसी बस्तर के इतिहास में पहले कभी नहीं चली।
तोल मोल के बोल
प्रशिक्षण शिविर
दिल्ली से ख़बर यही आ रही है कि भाजपा अपने सासंदों, विधायकों एवं अन्य नेताओं को बोलने की कला में पारंगत करने के लिए देश भर में विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाने की तैयारी में है। इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से हो रही है। और हो भी क्यों न, ज़ुबान फिसलने का सबसे ज़्यादा खतरा वहीं जो बना हुआ है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के एक मंत्री जी कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम लेते हुए जो कुछ कह गए, पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं। इसी तरह उनसे भी बड़े एक और मंत्री किसी कार्यक्रम में कह गए कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पूरा देश व सेना मोदी जी के आगे नतमस्तक हैं। इस अनमोल वचन पर चहूं ओर आलोचना का दौर चला हुआ है। बताते हैं प्रशिक्षण शिविर 14 से 16 जून तक मध्यप्रदेश में जो होने जा रहा है उसमें भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा एवं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत और भी बड़े नेता बोलने का ढंग सिखाएंगे कि कहां पर किस तरह प्रभावी ढंग से बात रखी जाए। बात करें छत्तीसगढ़ की, तो बताते हैं यहां पर भी इस तरह के प्रशिक्षण की ज़रूरत महसूस की जाती रही है। छोटे और मध्यम कद के लोगों की बात और है, एक-दो काफ़ी बड़े कद के ऐसे भी लोग हैं जिनकी वाणी में फूल झरते रहते हैं। उनकी वाणी के ओज से यदा-कदा दिक्कतें भी खड़ी होती रही हैं। जब कभी छत्तीसगढ़ में तोल मोल के बोल प्रशिक्षण लगेगा, हो सकता है यहां पर भी कुछ तेज तर्रार लोगों की वाणी सध जाए।
80 पार नेता जी की
नागपुर में पूछपरख
बस्तर के एक मोस्ट सीनियर नेता को नागपुर बुलावा आया है। वहां वे संघ के सर्वेसर्वा के साथ मंच साझा करेंगे। सीनियर नेता को एक-दो नहीं आधा दर्जन राजनीतिक पार्टियों का गहरा अनुभव रहा है। शुरुआत कांग्रेस से हुई थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में जब लगा सम्मान में कमी हो रही है तो बहुजन समाज पार्टी की राह पकड़ ली। छत्तीसगढ़ राज्य बना तो 2003 के विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिए। राकांपा में कुछ ठीक नहीं लगा तो भाजपा में चले गए। भाजपा में सम्मान में कमी नज़र आई तो वापस कांग्रेस में लौटे। कुछ समय एक गुमनाम सी राष्ट्रीय पार्टी में भी रहे। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर कांग्रेस में आ गए। 2018 की राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज़ मैदान में हुई कांग्रेस की चुनावी सभा में इन्होंने राहुल गांधी के साथ मंच भी साझा किया था। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी, इन्हें फिर महसूस होने लगा कि उपेक्षा हो रही है। धीरे से खुद को कांग्रेस से दूर कर लिए। जैसा कि अब नागपुर से बुलावा आया है, 80 की उम्र पार कर गए बुजुर्ग नेता जी एक बार फिर नई संभावनाएं तलाश रहे हैं।
आया ख़ातिरदारी
का मौसम…
जून-जुलाई महीने के चलते में रायपुर की आधी सरकारी कहलाने वाली संस्था में कार्यरत अफ़सरों की धड़कनें तेज हो जाएंगी। कारण, कोई सबसे बड़े साहब शहर में जो हैं। जून-जुलाई यानी सबसे बड़े साहब के बच्चों के शिक्षा सत्र शुरु होने का मौसम। उनके यूनिफार्म व जूतों का ध्यान रखना पड़ता है। फिर बड़े लोग किसी सूट-बूट को ज़्यादा समय तक टिकाकर नहीं रखते। सूट-बूट की ज़िम्मेदारी भी नीचे वालों पर रहती है। एक बहुत पुराना गाना है- “बम्बई से आया मेरा दोस्त…दोस्त को सलाम करो… रात को खाओ पियो… दिन को आराम करो…।“ सबसे बड़े साहब का कोई दोस्त बाहर से आ गया तो उसकी ख़ातिरदारी की ज़िम्मेदारी भी तो नीचे वालों पर रहती है।