1975 में आपातकाल थोपने वाली कांग्रेस न अपने किए पर पछताती है, न माफी मांगती है- अरुण साव

0 बेटों को माता, पिता की चिता को अग्नि देने तक नहीं दी थी

0 लाखों लोगों को जेल,प्रेस की बिजली गुल,न्यायपालिका तक के अधिकार छीने थे

मिसाल न्यूज़

रायपुर। उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा है कि कांग्रेस ने 25 जून, 1975 को देश पर आपातकाल थोपकर लोकतंत्र के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात किया लेकिन आज भी वह अपने किए के लिए न तो माफी मांगती है और न ही पछतावा प्रकट करती है। आज ‘संविधान बचाओ का नारा देने वाली कांग्रेस वही पार्टी है जिसने संविधान को सबसे पहले और सबसे ज्यादा गहराई से रौंदा था। साव ने कहा कि आपातकाल की घोषणा कोई राष्ट्रीय संकट का नतीजा नहीं थी, बल्कि यह एक डरी हुई प्रधानमंत्री की सत्ता बचाने की रणनीति थी, जिसे न्यायपालिका से मिली चुनौती से बौखलाकर थोपा गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘आंतरिक अशांति’ की आड़ लेकर अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग किया, जबकि न उस समय कोई युद्ध की स्थिति थी, न विद्रोह और न ही कोई बाहरी आक्रमण हुआ था।

एकात्म परिसर में आज पत्राकर वार्ता में अरुण साव ने कहा कि कांग्रेस ने आपातकाल काले अध्याय में न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं को रौंदा, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की निष्पक्षता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलकर यह स्पष्ट कर दिया कि जब-जब उनकी सत्ता संकट में होती है, वे संविधान और देश की आत्मा को ताक पर रखने से पीछे नहीं हटते। आज 50 वर्ष बाद भी कांग्रेस उसी मानसिकता के साथ चल रही है। आज भी सिर्फ तरीकों का बदलाव हुआ है, नीयत आज भी वैसी ही तानाशाही वाली है। आज कांग्रेस में चेहरे बदल गए हैं, लेकिन तानाशाही की प्रवृत्ति और सत्ता का लोभ जस का तस है। 50 वर्ष बाद आज आपातकाल को याद करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यह इतिहास की एक घटना मात्र नहीं बल्कि कांग्रेस की मानसिकता का प्रमाण भी है। राहुल गांधी ने अपनी ही केंद्र सरकार के अध्यादेश को प्रेस कॉन्फ्रेंस में फाड़कर संविधान के प्रति कांग्रेस की इसी अधिनायकवादी सोच का प्रदर्शन किया गया। सन 1971 से 1974 और फिर 1975 के राजनीतिक हालात, अस्थिरता, महंगाई, खाद्यान्न संकट, आर्थिक बदहाली और भ्रष्टाचार के दौर को याद दिलाते हुए साव ने कहा कि तब गुजरात और बिहार में छात्रों के नेतृत्व में नव निर्माण आंदोलन खड़ा हो चुका था। 8 मई 1974 को जॉर्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में ऐतिहासिक रेल हड़ताल ने पूरे देश को जकड़ लिया। इस आंदोलन को रोकने के लिए 1974 में गुजरात में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। यही राष्ट्रपति शासन 1975 में लगने वाले आपातकाल की एक शुरुआत था। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में दोषी ठहराया और उन्हें 6 वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर रहने से अयोग्य करार दिया। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को ‘आंतरिक अशांति’ का हवाला देकर राष्ट्रपति से आपातकाल लगा दिया और पूरे राष्ट्र को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया।

साव ने कहा कि जिस संविधान की शपथ लेकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं, उसी संविधान की आत्मा को कुचलते हुए उन्होंने लोकतंत्र को एक झटके में तानाशाही में बदल दिया। तत्कालीन इंदिरा-सरकार ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सहित लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को बंधक बनाकर सत्ता के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। प्रेस की स्वतंत्रता पर ऐसा हमला हुआ कि बड़े-बड़े अखबारों की बिजली काट दी गई थी। सेंसरशिप लगाई गई थी और 253 पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया था। जो कांग्रेस एक समय प्रेस पर सेंसरशिप थोपती थी, वही आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरें फैलाने वालों को खुला संरक्षण देती है और वैचारिक विरोधियों की आवाज दबाने के लिए मुकदमे दर्ज कराती है। मीसा जैसे काले कानूनों के जरिए एक लाख से अधिक नागरिकों को बिना किसी मुकदमे के जेलों में ठूँस दिया गया, जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह सहित तमाम वरिष्ठ विपक्षी नेता तो शामिल थे ही, छात्रों तक को जेल में सड़ने पर मजबूर कर दिया गया था। साव ने कहा कि इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को महफूज रखने के लिए संविधान में 39 वां और 42 वां जैसा क्रूर और अलोकतांत्रिक संशोधन किया जिसके तहत प्रधानमंत्री और अन्य शीर्ष पदों को न्यायिक समीक्षा से परे कर दिया, ताकि इंदिरा गांधी को अदालत में घसीटा न जा सके। कांग्रेस न सिर्फ अपनी सत्ता को बचाने के लिए बल्कि वैचारिक एजेंडे थोपने के लिए भी संविधान के साथ खिलवाड़ किया। संविधान में संशोधन कर ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ जैसे शब्द जोड़े गए, ताकि कांग्रेस अपने वैचारिक एजेंडे को राष्ट्र पर थोप सके। इसी संशोधन से आपातकाल की अवधि बढ़ा दी गई और राष्ट्रपति को संसद की पूर्व मंजूरी के बिना भी आपातकाल घोषित करने का अधिकार मिल गया। इसके अलावा 38 वें संशोधन के तहत आपातकाल की घोषणा को न्यायपालिका की जांच से बाहर कर दिया, इन मनमाने संशोधनों के जरिए इंदिरा गांधी ने सीधे-सीधे तानाशाही के लिए रास्ता खोल दिया था।

साव ने कहा कि कांग्रेस शासन में लोकतंत्र का ऐसा पतन हुआ कि जेलों में बंद लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार में शामिल होने तक की अनुमति नहीं दी गई और इन लोगों में वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक शामिल थे। उन्होंने खुद खुलासा किया है कि उन्हें उनकी माताजी की अंत्येष्टि में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई थी। विडम्बना यह कि आज वही कांग्रेस मोदी सरकार पर तानाशाही की तोहमत मढ़ने में लगी है। इसके अलावा विरोधियों को जेलों में मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गईं, किसी को दवा नहीं दी गई, किसी को गर्मी में बिना पंखे के बंद रखा गया। महिला कैदियों के साथ भी अमानवीय व्यवहार हुआ, उन्हें न तो समुचित चिकित्सा दी गई, न ही उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया गया। साव ने कहा कि आपातकाल गांधी परिवार की उस सोच का परिचायक था, जिसमें स्पष्ट हो गया था कि उनके लिए पार्टी और सत्ता परिवार के लिए होती है, देश और संविधान के लिए नहीं। आजादी के बाद देश में पहली बार ऐसा हुआ था कि सरकार ने राष्ट्र को शत्रु नहीं, बल्कि अपनी जनता को ही बंदी बना लिया था। लोकतंत्र पर हुए इस आघात पर एक बड़ी चोट संजय गांधी का नीतियों पर निर्णय लेना भी था। एक निर्वाचित और किसी भी संवैधानिक पद पर न रहा व्यक्ति देश की नीतियों पर निर्णय लेने लगा, जो आपातकाल में कांग्रेस की अघोषित सत्ता का असली केंद्र बन चुका था। इंदिरा गांधी की तानाशाही का सबसे भयावह चेहरा यह था कि उन्होंने अपने पुत्र के माध्यम से सत्ता को वंशवाद की जकड़ में पूरी तरह कैद कर लिया और सत्ता की लोलुपता में कांग्रेस ने लोकसभा का कार्यकाल 5 से बढ़ाकर 6 साल कर दिया, ताकि जनता को मतदान का अवसर न मिले।

साव ने कहा कि आपातकाल की जांच के लिए गठित शाह आयोग ने 6 अगस्त 1978 को अपनी फाइनल रिपोर्ट में साफ लिखा था कि आपातकाल लगाने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं था और यह सिर्फ इंदिरा गांधी का व्यक्तिगत राजनीतिक षड्यंत्र था। 1980 में दोबारा कांग्रेस सरकार बनने पर इंदिरा गांधी ने इस आयोग की रिपोर्ट को भी नष्ट करवा दिया था। इंदिरा गांधी की यही तानाशाही मानसिकता आज के कांग्रेस नेतृत्व में दिखाई देती है। आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में पत्रकारों पर मुकदमे होते हैं, सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारी हो जाती है और एक्टिविस्टों पर पुलिस कार्रवाई होती है। आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में कानून व्यवस्था का हाल यह है कि वहां विरोध का दमन, धार्मिक तुष्टीकरण और सत्ता का अहंकार खुलेआम दिखता है। यह सब आपातकालीन सोच की ही उपज है।

साव ने कहा कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बाकायदा बहिष्कृत पत्रकारों की लिस्ट जारी की थी जिनकी डिबेट में जाने से कांग्रेस प्रवक्ताओं को मना किया गया था। सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाना और देश की छवि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खराब करना कांग्रेस की नई ‘डिजिटल इमरजेंसी’ रणनीति बन चुकी है। जब देश हर मोर्चे पर प्रगति कर रहा है, तब कांग्रेस सरकार की हर उपलब्धि को झुठलाने में लगी है। देश की सुरक्षा, सैन्य कार्रवाई या विदेश नीति पर कांग्रेस जिस तरह सवाल उठाती है, वह राष्ट्रहित के विरुद्ध तर्कहीन विरोध है। न्यायपालिका में हस्तक्षेप, ‘फ्री स्पीच’ के नाम पर अराजकता और मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देकर कांग्रेस आज नए तरीकों से अपनी उसी आपातकाल की मानसिकता का प्रदर्शन कर रही है। गरीबों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने का नाटक रच रहे राहुल गांधी यह कैसे भूल जाते हैं कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर अपने घरों को बचाने के लिए गुहार लगाने वाले गरीबों पर गोलियाँ चलवाई थी। क्या कांग्रेस इस तरह गरीबी हटाओ के नारे को चरितार्थ कर रही थी?

साव ने कहा कि आज 50 साल के बाद संविधान और लोकतंत्र के इतिहास के इस काले अध्याय से देश को और खासकर देश की नई पीढ़ी को अवगत कराने भारतीय जनता पार्टी 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मना रही है ताकि लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देकर राजनीतिक ढोंग कर रही कांग्रेस का असली चरित्र देश-प्रदेश के सामने आ सके। प्रदेश में हमने पूर्ववर्ती शासनकाल में आपातकाल के दौरान मीसाबंदी के तौर पर अमानवीय यंत्रणा सहने वाले लोकतंत्र के सेनानियों/उनके परिजनों को सम्मान निधि देने की योजना शुरू की थी लेकिन कांग्रेस की भूपेश सरकार ने आपातकाल वाली कांग्रेसी मानसिकता का परिचय देकर इसे बंद कर दिया था। तब न्यायालय ने भूपेश सरकार के इस फैसले गलत ठहराया था। साव ने कहा कि प्रदेश की मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों की सम्मान निधि को पुन: लागू किया है। संविधान हत्या दिवस पर प्रदेशभर में भाजपा कार्यक्रम करके आपातकाल का काला सच जनता के सामने ला रही है और लोकतंत्र सेनानियों अथवा उनके परिजनों का सम्मान कर रही है।

पत्रकार वार्ता में रायपुर जिला शहर जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर, प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, प्रदेश मीडिया सह-प्रभारी अनुराग अग्रवाल, प्रदेश प्रवक्ता उमेश घोरमोड़े और मीडिया पैनलिस्ट निशिकांत पाण्डेय भी उपस्थित थे।

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