■ अनिरुद्ध दुबे
राजधानी रायपुर के राजीव भवन में चलती बैठक के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का मोबाइल चोरी हो गया। किसी ने सोचा भी नहीं रहा होगा कि मोबाइल चोरी पर राजनीतिक जगत में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों तरफ से तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगेंगी, लेकिन ऐसा हुआ। मोबाइल चोरी पर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों तरफ से जो प्रतिक्रियाएं आईं, चैनलों ने उस पर डिबेट तक रखवाया। बैज जी का मोबाइल चोरी चले जाना निश्चित रुप से दुखद है लेकिन कौन जानता था कि यह घटनाक्रम इतना अज़ब- ग़ज़ब का हो जाएगा। भाजपा के लोगों को जितना बोलना था बोल चुके, लेकिन कांग्रेस के भीतर दबी ज़ुबान से चर्चाओं का दौर अभी थमा नहीं है। कांग्रेस के ही भीतर कोई यह कह रहा है कि मोबाइल गायब हुआ, तो कोई कह रहा है कि गायब नहीं हुआ, गायब करवाया गया। बाहर वाले किसी अपराधी किस्म के आदमी में भला कैसे इतनी हिम्मत हो सकती है कि राजीव भवन की दहलीज़ पर कदम रख दे और पार्टी के मुखिया के ही मोबाइल पर हाथ साफ़ कर दे। यदि किसी क़ाबिल व्यंग्यकार की इस पूरे घटनाक्रम पर दृष्टि रही हो तो हो सकता है वह इस पर व्यंग्य लेख या फिर व्यंग्य नाटक ही लिख डाले।
आगे 3 महीने और बढ़
सकता है अमिताभ
जैन का कार्यकाल
मुख्य सचिव अमिताभ जैन की सेवानिवृत्ति की तारीख़ जब नज़दीक थी, इस पद की दौड़ में मनोज पिंगुआ व सुब्रत साहू का नाम था। माना जा रहा था कि 30 जून को कैबिनेट की बैठक के ठीक बाद नये मुख्य सचिव के नाम की घोषणा हो जाएगी, लेकिन जो भी घटनाक्रम रहा वह काफ़ी चौंकाने वाला रहा। कैबिनेट की चलती बैठक के बीच दिल्ली से फोन आया कि जैन को मुख्य सचिव पद पर 3 महीने एक्सटेंशन दिया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार हुआ है कि किसी आला अफ़सर के मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उसे उसी पद पर काम करने का अतिरिक्त समय मिला हो। चर्चा तो यह भी चल पड़ी है कि इस तीन महीने का कार्यकाल पूरा होने के बाद आगे और तीन महीने के लिए जैन को एक्सटेंशन मिल सकता है। जैन की कुंडली में यश का योग कुछ ऐसा रहा कि वे छात्र जीवन से ही ख्याति पाते रहे। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में 11 वीं बोर्ड परीक्षा में पूरे प्रदेश में अव्वल आए थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद राजधानी रायपुर में कलेक्टर रहे। रायपुर कलेक्टर वाला कार्यकाल न सिर्फ़ निर्विवाद रहा बल्कि सहयोगी अफसरों व कर्मचारियों से सामंजस्य बनाए रखने के कारण वे प्रशंसा के पात्र रहे थे। यही नहीं, उन्होंने दो सरकार यानी भूपेश सरकार एवं विष्णु देव साय सरकार दोनों समय में मुख्य सचिव का दायित्व संभाला।
अपनी ही पार्टी की नेत्री
के शिक्षण संस्थान पर
नेता ने छोड़े तीर
राजधानी रायपुर में एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का एक युवा नेता कुछ नहीं तो साल भर से शिक्षण संस्थाओं के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। और तो और उसने अपनी ही पार्टी की एक नेत्री की शिक्षण संस्था को टारगेट में ले लिया। वो नेत्री राजनीति के मैदान में कोई नई नहीं है। नगर निगम चुनाव में वह महापौर टिकट के लिए कतार में थी और पार्टी के संगठन में भी उसे पद मिला हुआ है। दूसरी पार्टी का कोई उखाड़ पछाड़ कर रहा होता तो नेत्री ज़वाब देने की स्थिति में होती, लेकिन जब कोई अपनी ही पार्टी वाला बिजली गिराए तो फिर उसका कोई खुले तौर पर कोई कैसे ज़वाब दे!
मीनल ने कुछ सोचकर
ही चुना होगा
जीई रोड वाला बंगला
रायपुर महापौर श्रीमती मीनल चौबे जीई रोड पर स्थित सरकारी बंगले में शिफ्ट हो गईं। अपने आप में यह नई ख़बर तो है। उनसे पहले सुनील सोनी, श्रीमती किरणमयी नायक, प्रमोद दुबे एवं एजाज़ ढेबर महापौर रहे थे तो नलघर चौक (ओसीएम चौक) के पास स्थित सरकारी बंगले में रहे थे। मीनल चौबे अभी जिस बंगले में रहने आई हैं उसमें विकास उपाध्याय तब रहे थे जब वे रायपुर पश्चिम से विधायक थे। पहले विकास और अभी मीनल ने जिस बंगले को चुना वह रायपुर पश्चिम विधानसभा में ही है। फिर मीनल का मूल निवास चंगोराभाठा में जो है, वह भी पश्चिम विधानसभा का ही हिस्सा है। इसके अलावा मीनल, राजेश मूणत ग्रुप की मानी जाती हैं और मूणत पश्चिम से ही विधायक हैं। इस समय विकास कार्यों के सबसे ज़्यादा नारियल पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में ही फूट रहे हैं। वहां जो भी काम हो रहे, करोड़ों के हो रहे हैं। यानी नज़र सबसे ज़्यादा पश्चिम में हो रहे विकास कार्यों पर रखना होगा। ऐसे में महापौर ने दीनदयाल ऑडिटोरियम के पास वाला बंगला चुना तो कुछ सोचकर ही चुना होगा।
पतियों के बैठक में
शामिल होने पर बरसों
से होती रही है आपत्ति
पिछले जून महीने की ही तो बात थी, मनेंद्रगढ़ जनपद पंचायत की सामान्य सभा सिर्फ़ इसलिए स्थगित करनी पड़ गई थी कि कुछ महिला सदस्यगण इस बात पर अड़ गईं कि सभा में पतियों को साथ बिठाने की अनुमति दी जाए। इसके पीछे वे यह कारण बताते नज़र आई थीं कि पति ही सारे निर्णयों में सहायक होते हैं। वहीं बीते पंचायत चुनाव में कबीरधाम जिले (कवर्धा) में जीतकर आईं छह महिला पंचों की जगह उनके पतियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ले ली थी। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो इस क़दर दौड़ा था कि पंचायत सचिव सस्पेंड कर दिए गए थे।
थोड़ा रायपुर नगर निगम पर नज़र डालें। भाजपा की टिकट पर लगातार पार्षद चुनाव जीतते रहे प्रमोद साहू का कालीमाता वार्ड इस बार महिला हो गया। प्रमोद ने इस बार अपनी पत्नी श्रीमती साधना साहू को चुनावी मैदान में उतारा। वह भी जीतने में क़ामयाब रहीं। वे न सिर्फ़ पार्षद बल्कि नगर निगम के वीआईपी जोन कहलाने वाले जोन क्रमांक 3 की अध्यक्ष भी बनीं। अब हो यह रहा है नगर निगम की महत्वपूर्ण बैठकों जिनमें साधना जी के उपस्थित रहने की ज़रूरत है वहां प्रमोद जी मौजूदगी दर्ज़ करा रहे हैं। न सिर्फ़ मौजूदगी दर्ज़ करा रहे, बल्कि बैठकें भी ले रहे हैं। ऐसे में भला बड़ी बारीक नज़र रखने वाले मीडिया के साथी कहां चुकने वाले थे, प्रमोद साहू से इस पर सवाल कर डाले। प्रमोद का कहना रहा कि “साधना साहू किसी कारण से बैठक में नहीं आ पाईं। उनके प्रतिनिधि के तौर पर मैं बैठक में पहुंचा, इसमें कुछ ग़लत नहीं।“ वहीं दूसरी तरफ महापौर श्रीमती मीनल चौबे ने बिना कोई लागलपेट के कहा- “पार्षद और जन प्रतिनिधि ही निगम की अधिकारिक बैठकों में शामिल हो सकते हैं। यदि महिला पार्षद की जगह उनके पति बैठक में शामिल होते हैं तो यह ग़लत है।“
सही-ग़लत को समझने के लिए आइये इसी रायपुर नगर निगम के इतिहास के पिछले पन्नों को पलटें। वह 1999 से 2004 के बीच महापौर तरुण चटर्जी का कार्यकाल था। सन् 2000 में विवेक देवांगन रायपुर नगर निगम में कमिश्नर बनकर आए थे। देवांगन रायपुर नगर निगम के पहले आईएएस कमिश्नर थे। उस कार्यकाल में किसी महत्वपूर्ण मसले पर बैठक बुलाई गई थी, जिसमें महापौर तरुण चटर्जी एवं निगम कमिश्नर विवेक देवांगन समेत सभी पार्षदगण मौजूद थे। तभी देवांगन की नज़र बैठक में मौजूद लखमीचंद गुलवानी पर पड़ी। गुलवानी अपनी पार्षद पत्नी श्रीमती कविता गुलवानी के साथ बैठक में पहुंचे हुए थे। देवांगन ने लखमीचंद से परिचय पूछा। लखमीचंद ने बताया पार्षद पति हूं और जनहित से जुड़ी सभी बैठकों व कामों में इनके साथ हिस्सा लेता हूं। देवांगन ने कहा था- “निगम ने अपनी व्यवस्था के तहत यह बैठक बुलाई है, जिसमें पार्षद जी ही शामिल हो सकती हैं, आप नहीं।“ सीधे-सरल, मिलनसार लखमी जी को उस बैठक से बाहर जाना पड़ा था, क्योंकि वहां पर नियम सर्वोपरि था।