■ अनिरुद्ध दुबे
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्राप देते हुए कह दिया कि “मेरे बेटे को जेल भेजने वाली सरकार ज़्यादा समय नहीं टिक पाएगी। इतिहास उठाकर देख लें, मेरे परिवार को जिसने भी जेल भेजा उसकी सरकार गई।“ ज़वाब में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि “किसी के श्राप से कुछ नहीं होता, जिसने भ्रष्टाचार किया है उसका फ़ैसला अदालत में होगा।“ कांग्रेसी सवाल उठा रहे हैं कि डॉ. रमन सिंह विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर हैं। इतना खुलकर वे कैसे किसी बात पर प्रतिक्रिया दे देते हैं। वहीं भूपेश बघेल ने जैसा कि कहा- मेरे परिवार को जिसने भी जेल भेजा, उसकी सरकार गई, इसे कुछ लोग व्यापक दृष्टिकोण से देखने और समझने की कोशिश कर रहे हैं। निसंदेह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नंद कुमार बघेल, फिर उनके पुत्र भूपेश बघेल अब उनके भी पुत्र चैतन्य बघेल अलग-अलग कारणों से जेल गए हैं। रही बात बाल की खाल निकालने वालों की तो उनका क्या! भूपेश जी हों, सिहंदेव जी हों या फिर महंत जी, ये बड़े नेता कुछ भी बोलें, बाल की खाल निकालने वाले खाल उधेड़ने में लग ही जाते हैं। खाल उधेड़ने वाले कहते नज़र आ रहे हैं कि “2006 में भाजपा की सरकार के रहते में ही जब अमित जोगी जेल भेजे गए थे, तब उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का कहना रहा था कि सरकार को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। सरकार कोई परिणाम तो नहीं भुगती थी, 2008 में भाजपा फिर से सत्ता में आ गई थी।“
बाल की खाल निकालने वाले यह कहने से भी पीछे नहीं हैं कि “बघेल परिवार के साथ विचित्र संयोग जुड़ा हुआ है। भूपेश बघेल को मिलाकर छत्तीसगढ़ में अब तक 4 मुख्यमंत्री हुए हैं। भूपेश बघेल के मुख्यमंत्रित्वकाल को अलग रखकर बात करें तो अजीत जोगी की सरकार में पिता नंद कुमार बघेल, डॉ. रमन सिंह के शासनकाल में खुद भूपेश बघेल तथा अब विष्णु देव साय के शासनकाल में पुत्र चैतन्य बघेल की गिरफ़्तारी हुई है। नंद कुमार जी की गिरफ़्तारी विवादित पुस्तक लिखने, भूपेश जी की गिरफ़्तारी सीडी कांड तथा अभी चैतन्य की गिरफ़्तारी शराब घोटाले में हुई है।“ आरोप लगना और आरोप सिद्ध होना दो अलग बातें हैं। आरोप सिद्ध होता है तो फ़ैसला अदालत के हाथ में होता है।
बैज के कारण
सुर्खियों में बैस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भाजपा को बिन मांगे एक बड़ी सलाह दे डाली कि छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता रमेश बैस को उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाएं। बैज ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है। बैस से पहले थोड़ा बैज को समझने की कोशिश करें। वरिष्ठ युवा आदिवासी नेता दीपक बैज यूं ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बन गए। अध्यक्ष से पहले वे विधायक व सांसद रहे। इस तरह वह न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ बल्कि दिल्ली की हवा से भी बख़ूबी परिचित हैं। बैज ने बैस के बारे में मोदी जी को पत्र लिखा तो कुछ सोचकर ही लिखा होगा। रमेश बैस ओबीसी वर्ग से हैं। 2018 से 2023 में कांग्रेस की सरकार रही और पहली बार ऐसा हुआ कि ओबीसी वर्ग के नेता भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। क्या बैज के मोदी जी को पत्र लिखे जाने के पीछे ओबीसी वर्ग का ध्यान अपनी ओर खिंचने जैसा कोई अदृश्य कारण है! अब रमेश बैस की तरफ आएं। इसमें कोई दो मत नहीं कि बैस जी ने क़रीब 45 वर्ष की शानदार राजनीतिक पारी खेली। 1 बार पार्षद, 1 बार विधायक, 7 बार सांसद, 3 बार राज्यपाल के रूप में उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा रही। त्रिपुरा, झारखंड के बाद जब वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बने तो यह स्पष्ट था कि राज्यपाल के रूप में उनकी यह अंतिम पारी है। 2023 के चुनावी वर्ष में महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए में उनकी छत्तीसगढ़ में दो बड़े आयोजनों में ख़ास उपस्थिति रही थी। प्राचीन राम मंदिर के जीर्णोद्धार के पश्चात् प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में हिस्सा लेने वे चंदखुरी आए थे। इसके बाद 2023 के अगस्त महीने में राजधानी रायपुर के इंडोर स्टेडियम में भव्य स्तर पर उनका जन्म दिन समारोह मना था, जिसे ‘हमर सियान हमर अभिमान’ नाम दिया गया था। 2023 वाले साल में बैस जी से जुड़े इन दो बड़े कार्यक्रमों को इस बात का संकेत माना जा रहा था कि आने वाले समय में वे प्रदेश की राजनीति में वापस लौट सकते हैं। 23 के चुनावी वर्ष में जिस तरह अमित शाह, ओम माथुर, नितीन नबीन एवं मनसुख मांडविया जैसे भाजपा के खाटी नेताओं ने छत्तीसगढ़ में चुनावी गोटियां बिठाईं उससे पूरा सीन ही बदलते चले गया। 23 के चुनाव में छत्तीसगढ़ के किसी भी बड़े नेता का चेहरा सामने नहीं था। था तो सिर्फ़ एक ही चेहरा मोदी जी का। बाकी चुनावी रणनीतिकार के रूप में शाह, माथुर, नबीन एवं मांडविया तो थे ही। ऐसे में भला रमन जी या बैस जी की 23 के चुनाव में कहां, कैसी बड़ी भूमिका रह पाती। साल भर से राजनीतिक चर्चाओं में बैस जी का नाम कम ही सुनने में आते रहा था। फिलहाल बैज जी ने बैस जी का नाम सुर्ख़ियों में ला दिया है।
रवि भगत व नरेश
गुप्ता के कड़वे बोल
किसी पार्टी की सरकार बन जाए तो कोई ज़रूरी नहीं कि उस पार्टी का हर नेता संतुष्ट नज़र आए। पिछले ही हफ़्ते ‘कारवां’ कॉलम में बताया गया था कि विधानसभा के मानसून सत्र में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं विधायक किरण सिंह देव तथा पूर्व मंत्री सुश्री लता उसेन्डी ने अपनी सरकार को ही कटघरे में खड़े करते हुए सवाल पर सवाल किए थे। अब बाद वाले क्रम के नेताओं की बात करें। भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत एवं भाजपा प्रदेश कार्यालय मंत्री नरेश चंद्र गुप्ता के कुछ ऐसे वक्तव्य मीडिया के माध्यम से सामने आए जिससे पार्टी के भीतर हलचल मच गई है। रवि भगत फ़ेस बुक में एक पोस्ट डाले कि “सरकार का पैसा और डीएमएफ तथा सीएसआर का पैसा रायगढ़ विधानसभा में ही खर्च हो, और धर्मजयगढ़ तथा लैलूंगा विधानसभा के लोग रोड एक्सीडेंट में बेमौत मरते रहें। धूल खाएं। ज़मीन देकर बेघर होते रहें। विकास बस रायगढ़ का ही होते रहना चाहिए?” इतना ही नहीं बाद में भगत गीत गाकर डीएमएफ का पैसा विकास कार्यों में लगाने की गुहार लगाते नज़र आए।
बात नरेश चंद्र गुप्ता की करें। पिछले दिनों उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर ट्वीट किया कि “बगावत हमेशा ईमानदार और स्वाभिमानी लोग ही करते हैं, चालाक लोग तो तलवे चाटकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं।“ गुप्ता ने सीधे-सीधे तो कुछ नहीं लिखा है और न ही सीधे तौर किसी तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं, लेकिन निकालने वाले यही अर्थ निकाल रहे हैं कि गुप्ता 3200 करोड़ के शराब घोटाले में लिप्त रहे 29 अफ़सरों की गिरफ़्तारी नहीं होने से खफ़ा हैं।
इसके अलावा कभी भाजपा से जुड़े रहकर मीडिया जगत में ख़ास भूमिका निभाते रहे देवेन्द्र गुप्ता ने तो मानो छत्तीसगढ़ सरकार के एक मंत्री के खिलाफ़ सोशल मीडिया में मुहिम ही छेड़ रखी है।
स्मार्ट सिटी व काम को
बेहतर समझने
वाले अजय चंद्राकर
रायपुर स्मार्ट सिटी के कार्यों में हुई अनियमितताओं की जांच पिछले दिनों छत्तीसगढ़ विधानसभा की प्राक्कलन समिति ने की। कहा तो यही जा रहा है कि जांच का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। समिति के सभापति अजय चंद्राकर व सदस्यगण राजेश मूणत, भैयालाल राजवाड़े, रायमुनि भगत तथा भोलाराम साहू ने बूढ़ातालाब से लेकर जीई रोड पर बने स्मार्ट मार्ग, मोतीबाग स्थित तक्षशिला लाइब्रेरी, आईटीएमएस तथा बी.पी.पूजारी स्कूल जैसे स्थानों में जाकर समझने की कोशिश की कि आख़िर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाकर काम क्या करवाया गया? बूढ़ातालाब के पास हुए स्मार्ट सिटी के काम को तबाही की दास्तान के रूप में याद किया जाता है। नगर निगम व स्मार्ट सिटी लिमिटेड को एक सिक्के का दो पहलू माना जाता है। स्मार्ट सिटी का काम यानी नगर निगम का काम। वैसे भी विधानसभा की प्राक्कलन समिति के सभापति अजय चंद्राकर व राजेश मूणत का बूढ़ातालाब को लेकर हुए कार्यों पर गहरा अध्ययन है। पिछली बार प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार थी तो विपक्षी विधायक की हैसियत से विधानसभा में एक मौके पर अजय चंद्राकर ने कहा था कि “राजधानी रायपुर में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन में मानो यू.एन. ढेबर की आत्मा विचरण कर रही थी।“ विधानसभा में ही किसी चर्चा में हिस्सा लेते हुए चंद्रकार ने साथी सदस्यों को यह भी समझाने की कोशिश की थी कि डिक्शनरी में ‘एजाज़’ व ‘अनवर’ का क्या मतलब बताया गया है।
सड़कों पर अय्याशी
वाला ये कैसा जश्न…
छत्तीसगढ़ में सड़कों पर जश्न मनाने का ऐसा कल्चर चल निकला है कि हाईकोर्ट तक को स्वतः संज्ञान में लेना पड़ रहा है। बिलासपुर को ही लें। वहां एक नेता के बिगड़ैल बेटे और उसके रसूख़दार दोस्तों ने बिलासपुर-रायपुर नेशनल हाईवे पर महंगी कारें आड़ी खड़ी कर दीं। फिर स्टंट करते हुए प्रोफेशनल वीडियोग्राफर से वीडियो बनवाया। इस हरक़त की वज़ह से देर तक नेशनल हाईवे पर ट्रैफिक जाम रहा। ऐसा नहीं है कि इस बात की ख़बर लगने पर पुलिस हरक़त में नहीं आई। आई। कार्यवाही के नाम पर क्या किया, प्रति गाड़ी मात्र 2000 रुपये का ज़ुर्माना लगाया और आरटीओ को ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का प्रस्ताव भेजा। हाईकोर्ट ने रईसज़ादों की ऐसी हरक़त पर मुख्य सचिव को शपथ पत्र के साथ ज़वाब देने कहा है।
पिछले ही महीने की तो बात है सरगुजा में पदस्थ एक पुलिस अफ़सर की पत्नी खुली सड़क पर कार के बोनेट पर केक काटती नज़र आई थी। केक काटने के बाद बोनेट पर ही बैठकर कई एंगल से उसने तस्वीरें खिंचवाई थी, जो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुई थी। सवाल यह कि इस पर हो हल्ला मचने पर आगे क्या हुआ? किसी के खिलाफ़ हुआ हो या न हुआ हो, उस कार के ड्राइवर पर ज़रूर केस दर्ज़ हो गया। इसे कहते हैं- “करे कोई, भरे कोई।“ वैसे सड़क पर बर्थ डे या अन्य तरह की खुशियां सैलिब्रेट करने के मामले में रायपुर शहर भी कोई कम बदनाम नहीं।
राजधानी में ऐसी दहशत
लोग मोहल्ला
शहर छोड़ रहे
राजधानी रायपुर में अपराधियों का किस कदर खौफ़ है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अपराधियों के निशाने पर रहने वाले अब मोहल्ला छोड़ रहे हैं या शहर छोड़ रहे हैं। राजधानी के भावना नगर में कचरा फेंकने जैसे छोटे से विवाद पर कुछ अपराधियों ने घर में घुसकर पिता-पुत्र पर जानलेवा हमला कर दिया। ख़बर यह आ रही है कि पीड़ित परिवार ने भावना नगर वाला वह घर ही छोड़ दिया है।
ज़ुर्म की दुनिया में वसूली किंग के नाम से विख्यात रहे तोमर भाइयों की कहानियां इन दिनों मीडिया में टीवी धारावाहिक की तरह सामने आ रही हैं। 2013 से लेकर अप्रैल 2025 तक तोमर भाइयों से जुड़ी ज़ुर्म की जो भी कहानियां रहीं वह सिलसिलेवार सामने आती रहीं। रायपुर शहर के किसी ज़रूरतमंद शख़्स ने तोमर बंधुओं से कभी ब्याज पर पैसा लिया था। उस शख़्स ने मूल धन व ब्याज दोनों चुकाया, लेकिन फिर ब्याज पर ब्याज लगते चला गया और ब्याज पर पैसा लेने वाला तबाह हो गया। वह चूपचाप राजधानी रायपुर छोड़ बस्तर के नारायणपुर क्षेत्र में जा बसा और गुमनामी वाला जीवन जीते रहा। जब कानून ने तोमर बंधुओं पर शिकंजा कसना शुरु किया तब उस गुमनाम युवक की दर्द भरी कहानी दुनिया के सामने आई। ऐसे और न जाने कितने ही लोग हैं जो न ख़त्म होने वाले ब्याज का दर्द सीने में झेलते हुए तड़फन वाली ज़िन्दगी जीते रहे। तोमर बंधुओं के खिलाफ़ एक-एक कर इन कितने ही सारे लोगों का सच सामने आते चले जा रहा है।