कारवां (21 सितंबर 2025) ● डॉल्फिन से अख़बार व सिनेमा तक बर्बादियों भरा सफ़र… ● न्यूड पार्टी के पीछे राजनीति के कौन लोग… ● सिकंदर की कुटाई… ● कागज़ पर छलका दर्द… ● ‘गजनी’ के हीरो जैसे नेता जी… ● तारीख़ तय होने के बाद भी नहीं हो सका निगम नेता प्रतिपक्ष का फ़ैसला…

■ अनिरुद्ध दुबे

60 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोपी डॉल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा की पत्नी उमा देवी शर्मा की गुरुवार को रायपुर जेल में मौत हो गई। राजेश शर्मा एवं उमा देवी दोनों 2017 से जेल में थे। राजेश शर्मा ने छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी में फिल्में भी बनाई थी और उसकी ख़ुद की कहानी किसी घुमावदार फ़िल्मी कहानी से कम नहीं रही। राजेश को क़रीब से जानने वाले बताते हैं उसे हिन्दी व अंग्रेज़ी के अलावा दो-तीन और क्षेत्रिय भाषाएं आती हैं। भाषा पर पकड़ के पीछे कारण उसकी कुशाग्र बुद्धि का होना था। ज़्यादा तेज दिमाग भी कभी घातक रास्ते पर ले जाता है और राजेश के साथ यही हुआ। पालकों को तरह-तरह का ऑफर देते हुए उसने राजधानी रायपुर में डॉल्फिन स्कूल की बुनियाद रखी। पहली से बारहवीं तक की शिक्षा के लिए डेढ़ लाख का पैकेज लाया गया। रायपुर के अलावा और भी शहरों में डॉल्फिन स्कूल की ब्रांच खुली। 25 फीसदी ब्याज देने का वादा कर सैकड़ों लोगों 50 करोड़ से ज़्यादा की रकम उधार ले ली गई। स्कूलें खोलने तक तो मामला ठीक था, राजेश ने दुनियां के बीच अपना क़द  बढ़ाने ‘नेशनल लुक’ नाम का एक डेली हिन्दी न्यूज़ पेपर भी शुरु कर दिया। ‘नेशनल लुक’ में आने पत्रकारों को बड़ी सेलरी का ऑफर दिया गया। राजधानी रायपुर के एक बड़े अख़बार से टूटकर कुछ पत्रकार ‘नेशनल लुक’ ज़्वाइन कर लिए थे। कुछ और अख़बारों से पत्रकार ‘नेशनल लुक’ में आए। ‘नेशनल लुक’ का ले आउट देखते ही बनता था और ख़बरें भी चटखारेदार होती थीं। राजेश यही नहीं रुका, फ़िल्मी दुनिया की तरफ उसके कदम बढ़े। फ़िल्मों का उस पर जादू छाने के पीछे भी बड़ा कारण था। किसी ज़माने में दूरदर्शन पर धूम मचा चुके धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ में भीष्म पितामह की भूमिका निभाने वाले मुकेश खन्ना व शकुनि मामा का किरदार अदा करने वाले गुफी पेंटल जैसे चर्चित चेहरे डॉल्फिन स्कूल के ब्रांड एम्बेसडर थे और इन दोनों अभिनेताओं का रायपुर आना-जाना लगे रहता था। राजेश ने छत्तीसगढ़ी में ‘महतारी’ और भोजपुरी में ‘धुरंधर’ फ़िल्म बनाने की घोषणा कर दी। ‘महतारी’ में प्रकाश अवस्थी तथा ‘धुरंधर’ में रवि किशन व राजेश अवस्थी हीरो की भूमिका में लिए गए। प्रकाश अवस्थी जहां छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जाने-पहचाने चेहरे थे, वहीं उनके छोटे भाई राजेश अवस्थी छत्तीसगढ़ी व भोजपुरी सिनेमा में जमने की कोशिश कर रहे थे। आगे चलकर राजेश अवस्थी ने भारतीय जनता पार्टी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ से जुड़े रहकर पार्टी में अच्छी पैठ बना ली थी और वर्तमान विष्णु देव साय सरकार में उनका छत्तीसगढ़ फ़िल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा था। क़रीब 8 महीने पहले फरवरी माह में राजेश अवस्थी का असमय निधन हो गया।

बहरहाल माना यही जाता है कि अभिनेता गुफी पेंटल से मित्रता के बाद राजेश शर्मा के मन में फ़िल्म निर्माण का भूत सवार हुआ था। उनकी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘महतारी’ को गुफी पेंटल ने न सिर्फ़ डायरेक्ट किया बल्कि उसमें हीरो प्रकाश अवस्थी के पिता का भी रोल किया था। एक तरफ कई पन्नों वाले रंग-बिरंगे अख़बार के डूबने की ओर अग्रसर होने और दूसरी तरफ बड़े बजट वाली छत्तीसगढ़ी व भोजपुरी फ़िल्मों के निर्माण में पानी की तरह पैसा बहने से राजेश शर्मा का साम्राज्य हिलना शुरु हो गया। वहीं महीनों से सेलरी नहीं मिलने पर डॉल्फिन स्कूलों के टीचरों ने बगावत शुरु कर दी। स्कूलों में पढ़ाई ठप्प रहने लगी। थानों में शिकायतों का दौर शुरु हो गया और ख़ुद अख़बार का मालिक रहा राजेश शर्मा दूसरे अख़बारों में ख़बरें बनकर खलनायक की तरह प्रस्तुत होने लगा। वह दिन भी आया जब राजेश शर्मा व उसकी पत्नी उमा देवी अपनी बेटी के साथ फ़रार हो गए। क़रीब चार साल बाद फरीदाबाद में पति-पत्नी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। तब से अब तक पति पत्नी के ज़िन्दगी का सफ़र रायपुर जेल में कटते रहा। लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को जेल में उमा देवी की मौत हो गई। कभी जिस राजेश शर्मा के इर्द-गिर्द दसों लोग खड़े रहते थे उसकी पत्नी के अंतिम संस्कार के समय में रिश्तेदार या जान-पहचान के दस लोग भी मौजूद नहीं थे। जेल से अनुमति के बाद राजेश शर्मा ने पत्नी का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार के बाद वापस जेल लौट जाना पड़ा। कभी चकाचौंध वाली दुनिया का हिस्सा बने रहे राजेश शर्मा पर पिछले दो-दिनों से लोग अपने-अपने ढंग से उसकी ज़िंदगी के सफ़रनामे को लिख रहे हैं। इस भाव के साथ- “जो जैसा हासिल किया है, उसकी कीमत इसी संसार में जीते जी चुकाना है। स्वर्ग-नरक तो बाद में है।”

न्यूड पार्टी के पीछे

राजनीति के कौन लोग

राजधानी रायपुर में तथाकथित न्यूड पार्टी होते-होते रह गई। उस पर चर्चाओं का दौर अब तक थमा नहीं है। जैसे ही सोशल मीडिया पर न्यूड पार्टी का एड दौड़ा, शहर के जागरुक लोगों की तरफ से सोशल मीडिया पर जमकर विरोध शुरु हो गया। पुलिस प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया। पार्टी तो हुई नहीं, पार्टी के तय तारीख़ के दूसरे-तीसरे दिन पुलिस के हाथ उन लोगों के गिरेबां तक ज़रूर पहुंच गए, जो सामाजिक व्यवस्था पर आघात पहुंचाने वाले इस ख़तरनाक काम को अंजाम देने की तैयारी में थे। सोशल मीडिया पर जब एड दौड़ा, लग रहा था कि इस पार्टी के पीछे लड़के-लपाटों का हाथ होगा, लेकिन जो पकड़ में आए उनमें एक-दो ही जवान हैं, बाक़ी अधेड़ व बूढ़े। ख़बरों की गहराई में जाकर तहकीक़ात करते रहने वालों का तो यही कहना है कि इस तरह के काम में अप्रत्यक्ष रुप से दो ऐसे लोगों की भी संलग्नता रही जो राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं। दोनों का अलग-अलग राजनीतिक पार्टी से लिंक जुड़ा होना बताया जा रहा है। राजनीति को यूं ही काजल की कोठरी नहीं कहा जाता। पिछले दो-तीन साल में राजधानी रायपुर में घटित सारे हाई प्रोफाइल अपराधों को देख लें, उनमें संलग्न रहे लोगों में एक-दो ऐसे मिल ही जाएंगे जो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से संबद्ध हैं। फिर चर्चा ये कि न्यूड पार्टी के आयोजन का एक सिरा किसी बड़े नेता के बेटे से भी कहीं न कहीं जाकर जुड़ा हुआ था।

सिकंदर की कुटाई

इन दिनों जब तथाकथित न्यूड पार्टी को लेकर लोगों का गुस्सा फूटा हुआ है ऐसा ही गुस्सा बरसों पहले कभी रायपुर शहर में किसी एक चर्चित व्यक्ति पर फूटा था। उस व्यक्ति ने व्यापार में ख़ूब पैसे कमा लिए थे। राजनीति, समाज, धर्म के अलावा और भी क्षेत्रों में उसे अपना नाम बड़ा करने की सूझी। उसका मूल नाम जो भी रहा हो, अपना दूसरा नाम सिकंदर रख लिया था। हो सकता है वह महानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन की फ़िल्म ‘मुकद्दर का सिकंदर’ के मूल पात्र सिकंदर से प्रभावित रहा हो। सिकंदर आए दिन कुछ न कुछ कार्यक्रम कराते रहता और अख़बारों में छपते रहता था। तब टीवी चैनल तो थे नहीं, प्रिंट मीडिया का ज़माना था। उसने शाही अंदाज़ में शहर के मुख्य मार्ग से गणेश जी की विसर्जन झांकी निकलवाई थी। हुआ यूं कि उसने महिलाओं की कोई प्रतियोगिता रखी थी। प्रतियोगिता के बाद पुरस्कार वितरण कार्यक्रम हुआ। पुरस्कार में जो गिफ्ट मिला वह रंग-बिरंगी पन्नियों में पेक था। पुरस्कार प्राप्त करने वाली कुछ महिलाएं अपनी उत्सुक्ता को रोक नहीं पाईं और आयोजन स्थल पर ही पन्नी को उधेड़ते हुए पैकेट खोल गईं। जब पैकेट खुला, गुस्से का ठिकाना नहीं था। पैकेट में भीतर पहनने वाले यानी अंतर्वस्त्र थे। बस फिर क्या था, आयोजन स्थल पर बवाल मच गया। सिकंदर की वो कुटाई हुई कि पूछो मत। उस घटना के बाद तथाकथित सिकंदर हमेशा के लिए ग़ायब हो गया।

कागज़ पर छलका दर्द

मंत्री बनने के बाद कोई अपने आप को काम में डूबो लेता है तो कोई काम करते हुए ऊंचाइयों का आनंद लेता है। फिर राजनीति में कुछ ऐसी प्रजाति के लोग भी पाए जाते हैं जिन्हें न तो काम में डूबना आता है और न ही ऊंचाइयों का आनंद लेना। वो तो तक़दीर उन्हें मंत्री के सिंहासन पर पहुंचा देती है। मंत्री पद पर रहते हुए भी जब कोई नेता अपने काम की अमिट छाप नहीं छोड़ पाता तभी कविता की यह लाइन दौड़ लगाने लगती है, “सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है।” ख़ैर, यहां बात काम में डूबे रहने वाले मंत्री की है। दिल्ली दरबार ने उस समय से इनसे ज़्यादा उम्मीदें लगा रखी है जब सरकार नहीं बनी थी। सरकार बनने के बाद बात परफार्मेंस की है, तो स्वाभाविक है मंत्री जी का अपना अलग टाइम मैनेजमेंट यानी समय प्रबंधन है। पिछले दिनों वाकया यह हुआ कि कुछ डॉक्टरों को मंत्री जी से मुलाक़ात का समय मिला हुआ था। उन डॉक्टरों में कोई विधायक था तो कोई संघ का मज़बूत स्तंभ। बताते हैं मंत्री जी के बंगले के गेट पर इनसे काफ़ी पूछाताछ हुई। अंदर गए तो घड़ी का कांटा गोल-गोल घूमते रहा और मिलने की जो घड़ी थी वह आने का नाम ही नहीं ले रही थी। थक-हारकर चिकित्सकों ने एक कोरे कागज़ पर अपनी पीड़ा को लिखा और उसे मंत्री जी के किसी अधिनस्थ को यह कहते हुए सौंपा कि “साहब को बता देना।” इसके बाद बिना देर किए वे वहां से रवाना हो गए। देखते ही देखते दर्द भरी लाइनों वाला वह कागज़ सोशल मीडिया में वायरल भी हो गया। रही बात मंत्री जी की तो वह अब भी कर्म क्षेत्र में डटे हुए हैं, उनका सीधा संबंध दिल्ली से जो है। परफार्मेंस तो ऊपर वालों के सामने दिखाना है। आगे का भविष्य ऊपर से ही तय होना है। यह अलग बात है कि कर्मभूमि छत्तीसगढ़ रहना है।

‘गजनी’ के हीरो

जैसे नेता जी

निगम, मंडल एवं प्राधिकरण में पहले खेप में जिन पदाधिकारियों की नियुक्तियां हुई हैं उनका आकलन लोग अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं। रायपुर शहर को विकास की राह दिखाने वाले निगम-मंडल के एक पदाधिकारी का आकलन किसी ने ‘गजनी’ फ़िल्म को याद करते हुए किया। दूरदर्शिता रखने वाले इस शख़्स ने कहा कि ‘गजनी’ फ़िल्म का हीरो दुर्घटना का शिकार होकर ऐसी बीमारी की गिरफ़्त में चला जाता है, जिसमें हर दस मिनट के अंतराल में उसकी याददाश्त आती है और चली जाती है। शहर को विकास की राह दिखाने वाले नेताजी का मामला इससे थोड़ा अलग है। ऐसा है कि उनकी यादों में बने रहना है तो बीच-बीच में किसी न किसी बहाने उनके सामने हाज़िर होते रहो। यदि छह महीने या उससे ज़्यादा समय उनसे आमना-सामना नहीं हुआ तो बाद में सामने आने पर उन्हें फिर से अपना परिचय देना पड़ता है। फिर वह कहते हैं- “ठीक-ठीक, याद आ गया…”

तारीख़ तय होने के बाद

भी नहीं हो सका निगम

नेता प्रतिपक्ष का फ़ैसला

रायपुर नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर निगम के गलियारे में नये-नये एंगल से चर्चाएं होती रहती हैं। बीच में ख़बर दौड़ गई थी कि अमुक तारीख़ की शाम कांग्रेस के 5 पार्षद नगर निगम पहुंचकर सभापति सूर्यकांत राठौर के समक्ष नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए, अपनी स्पष्ट राय सामने रखेंगे। इसके बाद सभापति, नेता प्रतिपक्ष के नाम पर अंतिम फैसला दे देंगे। उस शाम सभापति निगम पहुंचे, उत्सुक्तावश कुछ भाजपा पार्षद भी पहुंच गए, कुछ मीडिया वाले तो पहले से पहुंचे ही हुए थे, लेकिन जिन्हें पहुंचना था वो नहीं पहुंचे, यानी 5 कांग्रेस पार्षद। आज तारीख़ तक भ्रम की स्थिति इसलिए कायम है कि महापौर कक्ष के बाजू नेता प्रतिपक्ष के कमरे के बाहर संदीप साहू के नाम की पट्टिका लटकी हुई है। दूसरी तरफ रायपुर शहर कांग्रेस कमेटी ने नेता प्रतिपक्ष के लिए आकाश तिवारी का नाम नगर निगम भेजा हुआ है।

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