कारवां (12 अक्टूबर 2025) ● दिल तो पागल है, दिल दीवाना है… ● ‘सेनानी’, बांटना नहीं हुआ तो और क्या…! ● बलि प्रथा ● शहर कांग्रेस अध्यक्ष, एक अनार सौ बीमार… ● नगर निगम की सामान्य सभा ज़ल्द, कौन होगा नेता प्रतिपक्ष…

■ अनिरुद्ध दुबे

कॉफी हाउस के कोने में चर्चा होती दिखी कि एक नेता जी ने अपनी महिला मित्र को राजधानी रायपुर के जीई रोड पर ढाई करोड़ का बंगला गिफ्ट किया है…

भई दिल तो दिल है, किसी पर भी आ सकता है। यशराज फ़िल्म वालों ने अपनी एक फ़िल्म का नाम यूं ही ‘दिल तो पागल है’ नहीं रख दिया था। बताते हैं नेताजी ज़मीन से ऊपर उठे हैं। पहले वे प्रशासनिक दायित्व निभाते रहे थे। प्रशासनिक दायित्व निभाते रहते में ही वे मंत्री, सांसद एवं विधायक जैसे लोगों के क़रीब हुए और वहां उनका राजनीतिक ज्ञान बढ़ा। फिर किस्मत पलटी और वह समय भी आया प्रशासनिक समझ रखने वाले ये सज्जन नेता जी बन गए। फिर कोई ऐसे-वैसे नेता नहीं, बल्कि ऐसे नेता जिनकी आज तारीख़ में ज़मीन में जड़ें काफ़ी मज़बूत हो चुकी हैं। जिज्ञासु प्रवृत्ति के लोग एक ही सवाल बार-बार पूछते हैं कि सुंदर सुशील युवती ने आख़िर नेताजी में क्या देखा होगा? ज़वाब यही कि नेताजी विभिन्न कलाओं में निपुण हैं। वो न सिर्फ़ बेहतरीन गाते हैं, बल्कि वाद्य यंत्र भी अच्छा बजा लेते हैं। यही कारण है कि युवती सांवले-सलोने नेताजी पर मुग्ध हुई। कथा समाप्त।

‘सेनानी’, बांटना नहीं

हुआ तो और क्या!

कुछ नहीं तो पिछले क़रीब 10 सालों से छत्तीसगढ़ में ‘सेनानी’ शब्द की बड़ी गूंज है। डॉ. रमन सिंह की सरकार का जब तीसरा कार्यकाल था, छत्तीसगढ़ में मीसा बंदियों को पेंशन देने की घोषणा हुई और उस पर अमल होना भी शुरु हो गया। मीसा बंदियों को ‘लोकतंत्र सेनानी’ का नाम दिया गया। 2018 में भूपेश बघेल की सरकार आई तो लोकंतत्र सेनानियों की पेंशन रोक दी गई। 2023 में विष्णु देव साय की सरकार आई  तो लोकतंत्र सेनानियों की पेंशन फिर शुरु हुई। ‘लोकतंत्र सेनानी’ शब्द तो चलन में बाद में आया ‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी’ शब्द देश आज़ाद होने के समय से ही लोगों के दिल  दिमाग में रचा बसा हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वो, जिन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हिस्सा लिया था। छत्तीसगढ़ में इस समय कोई भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जीवित तो है नहीं, उनके जो पुत्र-पुत्री हैं वो ज़रूर स्वतंत्रता संग्राम उत्तराधिकारी या सेनानी परिवार सदस्य कहलाते हैं। हाल ही में राजधानी रायपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की स्मृतियों को अमर बनाए रखने वाले शहीद स्मारक भवन की ख़ाली पड़ी विशाल छत पर नगर निगम ने फूड जोन बनाने का निर्णय लिया तो सेनानी उत्तराधिकारी संगठन से जुड़े लोग विरोध पर उतर आए थे। उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए महापौर श्रीमती मीनल  चौबे ने फूड जोन वाली योजना रद्द कर दी। अब एक नया मसला सामने आया है, जो कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से जुड़े लोगों को खटक रहा है, यह अलग बात है कि खुलकर बोलने कोई सामने नहीं आया है। दरअसल नया रायपुर में आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान का चित्रण करते हुए आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय का निर्माण किया गया है, जिसका राज्योत्सव के समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों लोकार्पण होना है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संस्था से जुड़े लोगों की तरफ से सोशल मीडिया में इन दिनों यही भावनाएं सामने आ रही हैं कि “आदिवासी समुदाय की जिन महान विभूतियों ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया उनके प्रति गहरा सम्मान है और उन्हें नमन है, लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को वर्गों में न बांटा जाए।“

जात-पात से ऊपर उठकर जिन लोगों ने भारत छोड़ो आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को क्या सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक या पिछड़ा वर्ग में बांटा जा सकता है…

बलि प्रथा

ख़बर यह कि गुरुवार की शाम खैरागढ़ राज परिवार के भवानी बहादुर सिंह 50-60 आदिवासी युवकों के साथ डोंगरगढ़ स्थित बम्लेश्वरी माता मंदिर पहुंचे और बकरे की बलि देने वाले थे। यह जानकारी मंदिर प्रबंधन तक पहुंची। मंदिर प्रबंधन ने एसडीएम व पुलिस से संपर्क किया। जिला व पुलिस प्रशासन ने मंदिर परिसर पहुंचकर जब भवानी बहादुर को मनाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि “हमारे परिवार में बलि देने की प्रथा है।“ अधिकारियों व्दारा लगातार उन्हें मनाए जाने पर वे मान गए। एहतियात के तौर पर मंदिर परिसर में पुलिस कर्मी तैनात किए गए हैं।

भवानी बहादुर सिंह राजनांदगांव के कांग्रेस सांसद रह चुके शिवेन्द्र बहादुर सिंह के पुत्र हैं। इससे पहले भवानी बहादुर नवरात्रि के समय मीडिया से बातचीत करते हुए बोले थे कि “बम्लेश्वरी देवी मंदिर ट्रस्ट व्दारा राज परिवार को महत्व नहीं दिया जा रहा है।“ बात बलि की करें। डॉ. रमन सिंह की सरकार के समय में जब प्रदेश में बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था, उसकी परवाह नहीं करते हुए उन्हीं की पार्टी के उस समय के राज परिवार से जुड़े एक विधायक ने देवी मंदिर में बकरे की बलि दी थी। कहा तो यही जाता है कि छत्तीसगढ़ में बलि प्रथा अभी भी जारी है। चाहें तो बस्तर तरफ जाकर देख लें।

शहर कांग्रेस अध्यक्ष,

एक अनार सौ बीमार

किसी ने सोचा भी नहीं था कि रायपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दो दर्जन लोगों की दावेदारी सामने आ जाएगी। कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो तीन-चार महीने में एकाध बार राजीव भवन पहुंच जाएं तो बहुत है। कुछ को मालूम है कि वे दौड़ में दूर-दूर तक नहीं हैं लेकिन कुछ ही दिनों के लिए सही, उनका नाम दूसरों की ज़ुबान पर चढ़े रहे, अख़बारों में छपते रहे, बुरा क्या है। राजीव भवन से गहराई से जुड़े कुछ  राजनीतिक पंडितों का तो यही कहना है कि “संगठन सृजन के तहत रायपुर शहर अध्यक्ष जो चुना जाना है उनमें सबसे ज़्यादा मज़बूत नाम श्री कुमार मेनन, सुबोध हरितवाल एवं देवेन्द्र यादव के हैं। ये तीनों ऐसे नाम हैं जिनकी ज़मीनी स्तर पर पकड़ तो मज़बूत है ही, इनके सिर पर बड़े नेताओं का हाथ है।“ नवंबर महीने में नये रायपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो जाएगी।

नगर निगम की सामान्य

सभा ज़ल्द, कौन

होगा नेता प्रतिपक्ष…

28 से 30 अक्टूबर के बीच रायपुर नगर निगम की सामान्य सभा होने के आसार हैं। इस बार की सामान्य सभा के एजेंडे में करोड़ों के कॉमर्शियल प्रोजेक्ट होंगे। इस बार की भी सामान्य सभा में वही पुराना यक्ष प्रश्न बरक़रार रह सकता है, सभा में निगम नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से कौन हिस्सा लेगा- संदीप साहू या आकाश तिवारी? कांग्रेस संगठन ने तो आकाश तिवारी का नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए भेजा था। सात विपक्षी पार्षदों में से दो पहले ही कह चुके हैं कि इस विवाद से हम खुद को अलग रखते हैं। बचे चार, इनका झुकाव अब भी संदीप साहू की तरफ ही बना हुआ है।

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