ईओडब्लू/एसीबी ने अभियुक्तों के खिलाफ झूठे साक्ष्य गढ़े, अदालत की भूमिका भी नजर आ रही संदिग्ध- भूपेश बघेल

मिसाल न्यूज़

रायपुर। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ की जांच एजेंसी ईओडब्लू/एसीबी अभियुक्तों के खिलाफ झूठे साक्ष्य गढ़ रही है। फोरेंसिक जांच से प्रमाणित हुआ कि दो अलग-अलग फॉन्ट का प्रयोग हुआ। दुर्भाग्यजनक है कि इस पूरे मामले में अदालत की भूमिका भी संदिग्ध दिखाई दे रही है। ऊंची अदालतों को इस मामले को संज्ञान में लेकर तुरंत हस्तक्षेप करने की जरूरत है।

राजीव भवन  में आज पत्रकार वार्ता में भूपेश बघेल ने कहा किहमारे लोकतंत्र के तीन घोषित स्तंभ हैं और तीनों स्वतंत्र रूप से लोकतंत्र की मजबूती के लिए कार्य करते हैं। अगर विधायिका के सदस्यों के इशारे पर कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर षडयंत्र रचने लगे तो लोकतंत्र कैसे बचेगा? 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से कार्यपालिका की एक एक इकाई को धीरे धीरे कमज़ोर किया गया। ईडी, सीबीआई, डीआरआई से लेकर आईटी तक सारी एजेंसियां अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर ही काम कर रही हैं और उनके निशाने पर विपक्षी दल के लोग ही हैं। चुनाव आयोग जैसी एक सम्मानित संस्था भी शर्मिंदगी की वजह बन गई है। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) जो वर्तमान में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ( BNSS) बन गई है, एक ऐसा अधिनियम है जो अपराधों की जांच, गिरफ्तारी, सबूत इकट्ठा करने और दोषियों को सजा सुनाने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 की धारा 164 जो कि अब BNSS की धारा 183 है के तहत किसी भी अभियुक्त या गवाह का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाता है। इसे कलमबद्ध बयान कहा जाता है और यह एक गोपनीय दस्तावेज होता है। धारा 164 के तहत दर्ज बयान को बंद कमरे में कलमबद्ध किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि अभियुक्त पर किसी तरह का दबाव न हो और वह अपनी मर्ज़ी से चाहे जो बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करवा ले। इस कलमबद्ध बयान को एक लिफाफे में सील कर दिया जाता है। यह सील बंद लिफाफा तभी खोला जाता है, जब अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरु हो जाती है और उस अभियुक्त के बयान का समय आता है। किसी भी जांच प्रक्रिया में धारा 164 के बयान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए भी क्योंकि एक बार दर्ज हो जाने के बाद बयान वापस नहीं लिया जा सकता या कोई व्यक्ति इससे पलट नहीं सकता। दस्तावेजों से पता चला है कि किसी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करवाने में जांच एजेंसी ईओडब्लू/एसीबी आपराधिक षडयंत्र कर रही है। नियमानुसार अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने अपना मौखिक बयान कलमबद्ध करवाना होता है। यह बयान अदालत के लिपिक की ओर से दर्ज किया जाता है फिर उस पर अभियुक्त के हस्ताक्षर लिए जाते हैं। लेकिन एक मामला ऐसा आया है जिसमें ईओडब्लू/एसीबी ने अभियुक्त को अदालत में तो पेश किया लेकिन उसका मौखिक बयान दर्ज करवाने की जगह पहले से एक बयान तैयार कर रखा था। ईओडब्लू/एसीबी द्वारा एक पेन ड्राइव में पहले से टाइप किया हुआ बयान लाया गया और उसी को अभियुक्त के बयान के रूप में दर्ज करवा दिया गया।  यह न्यायालयीन प्रक्रिया का घोर उल्लंघन है और एक आपराधिक कृत्य है। इससे यह साबित होता है कि जांच एजेंसी न्याय प्रक्रिया को धता बताकर अन्य अभियुक्तों को फंसाने का षडयंत्र कर रही है।

बघेल ने कहा कि कथित कोयला घोटाले के मामले में अभियुक्त सूर्यकांत तिवारी की ज़मानत के मामले में ईओडब्लू/एसीबी की ओर से एक दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। इन दस्तावेजों में सह-अभियुक्त निखिल चंद्राकर का दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज बयान की प्रति भी लगाई गई थी। इसी प्रति से ईओडब्लू/एसीबी के आपराधिक षडयंत्र का भांडा फूटा है। पहली बात तो यह कि जो बयान सीलबंद होना चाहिए था, वह खुला कैसे और वह सर्वोच्च न्यायालय तक कैसे पहुंचा? इसमें अदालत की भूमिका है या ईओडब्लू/एसीबी की? दूसरी बात यह कि दर्ज बयान उस भाषा में नहीं है जिस भाषा में न्यायालयीन प्रक्रिया के तहत किसी अभियुक्त का बयान दर्ज होता है। इस बयान में जो फॉन्ट उपयोग में आया है, वह अदालत में उपयोग होने वाला फॉन्ट नहीं है। इन तथ्यों के सामने आने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील गिरीश देवांगन ने 10 अक्टूबर 2025 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष एक परिवाद पेश किया है।

बघेल ने कहा कि कांग्रेस मांग करती है कि इस पूरे मामले की जांच हो। अदालत विशेष अदालतों से हर उस बयान की प्रतियां मंगाकर जांच करे कि किस किस एजेंसी ने किस किस मामले में इस तरह से बयान दर्ज करवाया है। ईओडब्लू/एसीबी के निदेशक अमरेश मिश्रा व अन्य दो अधिकारियों राहुल शर्मा और चंद्रेश ठाकुर पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हो तथा समुचित कार्रवाई हो। जब तक इस मामले की जांच पूरी न हो जाए छत्तीसगढ़ सरकार इन अधिकारियों को पदमुक्त करके रखे और कोई अन्य ज़िम्मेदारी न दे जिससे कि जांच निष्पक्ष हो सके. यदि सरकार इन्हें पद से नहीं हटाती है तो यह स्वमेव स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब प्रदेश की भाजपा सरकार के संरक्षण में हो रहा है।

पत्रकार वार्ता में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व मंत्रीगण सत्यनारायण शर्मा, मोहम्मद अकबर, डॉ. शिवकुमार डहरिया, पूर्व सांसद छाया वर्मा, प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू, वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेन्द्र तिवारी, गिरीश देवांगन, प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, पूर्व विधायक विकास उपाध्याय, महामंत्री सकलेन कामदार, प्रवक्तागण धनंजय सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र वर्मा, घनश्याम राजू तिवारी, डॉ. अजय साहू, नितिन भंसाली एवं अजय गंगवानी उपस्थित थे।

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