कारवां (19 अक्टूबर 2025) ● ‘गन’ तंत्र से गणतंत्र तक… ● पहल तो चिदम्बरम ने भी की थी लेकिन… ● 72 साल के जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदार… ● मीनल का बना 4 महीने में 2 बार विदेश यात्रा का रिकॉर्ड… ● किसी बूरे सपने जैसा रहा सपना चौधरी का कोरबा वाला प्रोग्राम…

■ अनिरुद्ध दुबे

नक्सलवाद को मिटाने केन्द्र सरकार स्तर पर चल रहे प्रयासों को इस अक्टूबर महीने में बड़ी सफलता मिली है। उधर महाराष्ट्र में वेणुगोपाल उर्फ भूपति और इधर छत्तीसगढ़ में रूपेश ने बड़ी संख्या में अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। दोनों नक्सली लीडर पर करोड़ का ईनाम था। गन तंत्र (बंदूक) से विश्वास उठा, गणतंत्र पर भरोसा जगा। कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि नवंबर या दिसम्बर में दंडकारण्य क्षेत्र में आतंक का दूसरा नाम कहलाने वाला नक्सली लीडर मारवी हिड़मा भी आत्मसमर्पण कर सकता है। किसी समय में बेहद दुर्गम अबूझमाड़ क्षेत्र में जहां नक्सलियों  की समानांतर सरकार चला करती थी अब वह सूरक्षा बल के घेरे में है। बस्तर में आत्मसमर्पण करने वाले रुपेश के बारे में जानकारी सामने आई है कि आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के काफ़िले पर कभी जो नक्सली हमला हुआ था उसका रणनीतिकार यही था। वहीं वेणुगोपाल के बारे में कहा जाता है कि नक्सली वारदातों में उसका सबसे लंबा रोल बस्तर में रहा। वेणुगोपाल का बड़ा भाई किसन जी भी बड़ा नक्सली लीडर हुआ करता था। पश्चिम बंगाल में सूरक्षा बल के साथ हुई मुठभेड़ में किसन जी मारा गया था। किसन जी व भूपति के पिता व दादा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ लडाई में जेल गए थे। किशोरावस्था में किसन जी व वेणुगोपाल का सपना फौज में जाने का था। फिर ऐसा कुछ घटित हुआ कि फौज में जाने के बजाय नक्सली विचारधारा से प्रभावित होकर दोनों से शासन एवं प्रशासन के खिलाफ़ बंदूक उठा ली। किसन जी की पत्नी सूजाता तेलंगाना तथा वेणु गोपाल की पत्नी तारक्का महाराष्ट्र में पहले ही आत्मसमर्पण कर चुकी हैं। पति के कदमों से कदम मिलाकर दोनों नक्सलवाद से जुड़ी थीं। जो लोग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से रहे हों, जिनका सपना फौज में जाकर देश की सेवा करना रहा हो वो कैसे नक्सलवाद जैसे ख़तरनाक रास्ते पर जा सकते हैं, यह समाजशास्त्रियों व मनो वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च का विषय हो सकता है।

पहल तो चिदम्बरम

ने भी की थी लेकिन…

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से ख़त्म करने का बीड़ा उठाए हुए हैं। अमित शाह ने दो विकल्प रखे हैं, समर्पण करोगे तो रेड कालीन में गुलाब का फूल देकर स्वागत करेंगे, नहीं करते हो तो गोली खाने तैयार रहो। सवाल यह कि क्या इससे पहले नक्सलवाद का समाधान निकालने केन्द्र सरकार की तरफ से ठोंस प्रयास हुए थे? यदि हुए तो मिशन कहां पर जाकर फेल हो गया? ज़वाब यह कि हां प्रयास हुए थे। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के समय पी. चिदम्बरम केन्द्रीय गृह मंत्री थे। उन्होंने भी बातचीत के रास्ते से समाधान निकालने की कोशिश की थी। इस काम के लिए उन्होंने स्वामी अग्निवेश को आगे किया था। स्वामी अग्निवेश और नक्सली लीडरों के बीच बातचीत का दौर शुरु  भी हुआ था। इसके पहले कि बातचीत किसी ठोंस नतीजे पर पहुंच पाती नक्सली लीडर आजाद की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इसके साथ ही बातचीत का रास्ता बंद हो चुका था। इसके अलावा चिदम्बरम ने रायपुर आकर यहां मंत्रालय में नक्सलवाद को लेकर तीन राज्यों छत्तीसगढ़, ओड़िशा एवं आंध्रप्रदेश (तब तेलंगाना राज्य नहीं बना था) के मुख्यमंत्रियों की संयुक्त बैठक ली थी। उस बैठक के बाद ठोस तरीके से काम आगे बढ़ते नहीं दिखा था।

हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अब मात्र 3 जिलों तक सिमटकर रह गया। इससे पहले छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार थी, तब के मंत्री एवं सरकार के प्रवक्ता रवीन्द्र चौबे भी कहा करते थे कि नक्सलवाद प्रदेश के 3 जिलों तक सिमटकर रह गया है। किसके दावे में कितना दम रहा, हो सकता अगले साल 2026 में स्पष्ट हो जाए।

72 साल के जिला कांग्रेस

अध्यक्ष पद के दावेदार

कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान ख़त्म हुआ। संगठन सृजन अभियान के तहत प्रदेश के सभी जिला कांग्रेस अध्यक्ष तय होंगे। दिल्ली से यह पॉलिसी बनी है। अध्यक्षों के चयन के लिए बक़ायदा दिल्ली से तय किए गए ऑब्ज़र्वर यहां आए। रायशुमारी होती रही। कांग्रेस जिला अध्यक्ष का ऐसा चुनाव पहले कभी देखने नहीं आया। आब्ज़र्वर जो आए, उन्होंने पार्टी के लोगों के साथ-साथ समाज सेवियों, सम्मानित वरिष्ठ नागरिकों एवं मीडिया के लोगों से भी रायशुमारी की। सभी आब्जर्वरों ने सुनने का ज़्यादा, बोलने का कम काम किया। खुले तौर पर तो कोई बात सामने नहीं आई है, लेकिन दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं राहुल गांधी का जोर उच्च शिक्षा, युवा और स्वच्छ छवि पर है। चूंकि जिला अध्यक्ष की दावेदारी में खुले तौर पर उम्र का कोई बंधन नहीं रखा गया है अतः जवान, अधेड़ और बूढ़े तक दावेदारी में कूद पड़े। गज़ब तो तब हुआ जब 72 साल के उम्रदराज़ पूर्व विधायक की एक जिले से अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी सामने आ गई। उनके नाम पर कथित जिले के कितने ही युवा कांग्रेसी विरोध पर उतर आए हैं। पूर्व विधायक जी का भी अपना तर्क है, उनका कहना है कि जब गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में दिग्गजों को जिला अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दी जा चुकी है। 72 की उम्र में मैंने दावा ठोंक भी दिया तो कौन सा गुनाह कर दिया!

मीनल का बना 4 महीने

में 2 बार विदेश

यात्रा का रिकॉर्ड

रायपुर महापौर श्रीमती मीन चौबे जापान दौरे से लौट आईं। महापौर ने कहा कि काफ़ी तेजी से विकसित होने की मिसाल पेश कर चुके जापान से जो कुछ अनुभव मिला वह राजधानी रायपुर के विकास में काम आएगा। रायपुर के लोग चाह भी रहे हैं कि यहां कि बदसूरत तस्वीर बदले। तस्वीर बदलने में किस स्तर के प्रयास होते हैं इसे देखने व समझने के लिए इंतज़ार करना होगा। मात्र 4 महीने के इतने कम समय के भीतर दो देशों की यात्रा कर लेने का रिकॉर्ड श्रीमती मीनल चौबे के नाम हो गया है। इससे पहले वे जुलाई में इजराइल यात्रा पर गई थीं।

किसी बूरे सपने जैसा रहा

सपना चौधरी का

कोरबा वाला प्रोग्राम

फ़ेमस हरियाणवी सिंगर व डॉसर सपना चौधरी को पिछले दिनों कोरबा में जो कड़वे अनुभव मिले उसे वह शायद ही भूल पाएंगी। सपना कोरबा के एक रिसॉर्ट में परफार्म करने आई थीं। आयोजन स्थल खचाखच था। कार्यक्रम का समय 8 बजे दिया गया था, लेकिन रात 9.30 के आसपास सपना मंच पर पहुंचीं। सपना के परफार्मेंस के दौरान भीड़ बेक़ाबू हो गई। बहुत से लोग नाचते-झूमते स्टेज के क़रीब जा पहुंचे। सपना स्टेज से थोड़ा दूरी बनाकर रखने का अनुरोध करती रहीं लेकिन अति उत्साही लोग कहां सुनने वाले थे वो, तो पीछे हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। नाराज़ सपना ने समय से पहले कार्यक्रम समाप्त कर दिया और सीधे रिसॉर्ट के अपने रुम में चली गईं। आयोजन समिति के लोग रिसॉर्ट पहुंचे और यह कहते हुए हंगामा मचाने लगे कि पैसा ज़्यादा लिये और तय समय तक परफॉर्म भी नहीं किया। हंगामे के बीच सपना चौधरी अपने रुम से तो नहीं निकलीं रिसॉर्ट के मालिक ज़रूर आ गए। नौबत आयोजन समिति व रिसॉर्ट के स्टाफ के बीच मारपीट तक जा पहुंची। घटना स्थल पर पुलिस बल पहुंचा और बड़ी मुश्किल से मामला शांत हुआ। दोनों पक्षों की ओर से पुलिस में रिपोर्ट हुई।

ऐसा नहीं है कि तूफान मचा देने वाले दर्शक कोरबा में ही हैं। रायपुर में भी पूर्व में कुछ इस तरह के उदाहरण देखने को मिल चुके हैं। बरसों पहले नृत्यांगना एवं फ़िल्म एक्ट्रेस कोमल महुवाकर राजधानी रायपुर के रंग मंदिर में प्रस्तुति देने आई हुई थीं। अग्रिम पंक्ति में बैठे कुछ दर्शक चलते कार्यक्रम के बीच ऐसा शोर मचाने लगे जिससे कोमल की एकाग्रता में खलल पड़ने लगी। कोमल ने सीधे सादे शब्दों में समझाने की कोशिश की, लेकिन हुड़दंग मचाने वाले लोग नहीं समझे। फिर कोमल यह कहने से नहीं चूकीं कि “क्या आप लोग चाहते हैं कि रायपुर शहर से हम बुरी यादें लेकर जाएं।“ हुड़दंगी यह सुनने के बाद भी शोर मचाए रहे थे।

एक बार रायपुर के जीई रोड में स्थित सितारा हॉटल में न्यू ईयर का कार्यक्रम था, जिसमें जानी-मानी एक्ट्रेस पूजा बत्रा को बुलवाया गया था। उस न्यू ईयर कार्यक्रम में नशे की हालत में रहे कुछ युवा पूजा के परफार्मेंस के दौरान अजब-गज़ब फरमाइश करने लगे। देखते ही देखते हंगामा खड़ा हो गया। पुलिस आई और हंगामा खड़ा करने वालों की जमकर कुटाई की।

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