कारवां (9 नवम्बर 2025) ● नक्सलवाद- अब आर पार की लड़ाई… ● कौशिक का नाम था तो डॉ. महंत का क्यों नहीं… ● मुर्दा शहर और 5 दिन की चांदनी… ● मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी… ● वृहस्पत का प्रकोप…

■ अनिरुद्ध दुबे

इस महीने राजधानी रायपुर में होने जा रही डीजीपी कांफ्रेंस कई दृष्टि से महत्वपूर्ण होगी। बस्तर में पदस्थ पुलिस उच्चाधिकारी मानो राज्योत्सव की समाप्ति का इंतज़ार कर रहे थे। 1 से 5 नवंबर तक चले राज्योत्सव के ख़त्म होते ही सूरक्षा बलों ने सबसे पहले सुकमा, बीजापुर एवं दंतेवाड़ा बॉर्डर के साथ-साथ तेलंगाना की सरहद को घेर दिया है। हिड़मा, देवा, एर्रा एवं केसा जैसे बड़े नक्सली लीडर अब सूरक्षा बल के टारगेट में हैं। ख़बरें यही आती रही हैं कि पूर्व में जब सूरक्षा बल ने कर्रेगुटा की पहाड़ी को घेरा था ये सभी बड़े नक्सली लीडर तेलंगाना की तरफ भाग निकले थे। बताते हैं बस्तर से नक्सलवाद को पूरी तरह उखाड़ फेंकने क़रीब 50 गांवों को चिन्हित किया गया है। इस मिशन को पूरा करने डीआरजी जवानों की अलग-अलग टीमें बना ली गई हैं। यहां तक की इनकी छुट्टियां तक रद्द कर दी गई हैं। नवंबर के पहले हफ़्ते में 2 अलग-अलग स्थानों पर जो आत्मसमर्पण हुआ, वह भी सुर्खियों में रहा। बीजापुर के इंद्रावती क्षेत्र की रहने वाली महिला नक्सली रामधेर ने मध्यप्रदेश के बालाघाट में जाकर आत्मसमर्पण किया। वहीं धमतरी-गरियाबंद-नुआपाड़ा डिवीजन कमेटी के उदंती एरिया नक्सली कमांडर सुनील समेत 7 लोगों ने आत्मसमर्पण किया। ये वो नक्सली थे जो छत्तीसगढ़ व पश्चिमी ओड़िशा की सीमा पर सक्रिय थे। माना जा रहा है कि इस बार की डीजीपी कांफ्रेंस के लिए छत्तीसगढ़ का चयन करने के पीछे कारण ऑपरेशन 31 मार्च 2026 ही माना जा रहा है, जिसके अंतर्गत नक्सलवाद के पूरी तरह ख़ात्मे का लक्ष्य रखा गया है। इस कांफ्रेंस में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल होंगे यह तो तय है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भी शामिल होने के संभावना जताई जा रही है। इसलिए कि पूर्व में जब ओड़िशा की राजधानी में डीजीपी कांफ्रेंस हुई थी उसमें मोदी भी शामिल हुए थे।

कौशिक का नाम था तो

डॉ. महंत का क्यों नहीं…

नया रायपुर में नये विधानसभा भवन के लोकार्पण अवसर पर लगे शिलालेख में विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत का नाम नहीं होना उनके समर्थकों को नाराज़ कर गया। नाराज़गी होना ही था। पिछली भूपेश बघेल सरकार के समय में डॉ. महंत जब विधानसभा अध्यक्ष थे तब इस नये विधानसभा भवन का शिलान्यास हुआ था। नये विधानसभा भवन के निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन में जो शिलालेख लगा था उसमें तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत समेत तत्कालीन मुख्यमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, लोक निर्माण मंत्री, विधानसभा उपाध्यक्ष तथा ‘तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक’ का नाम उल्लेखित था। सवाल यह कि जब पिछली सरकार के समय में शिलालेख में नेता प्रतिपक्ष के नाम को स्थान दिया गया तो इस सरकार में क्यों नहीं?

नये विधानसभा भवन से जुड़ी एक कहानी यह भी रही है कि पिछली कांग्रेस सरकार के समय में मुख्यमंत्री निवास व राज भवन का निर्माण कार्य तो शुरु हो गया था, लेकिन नये विधानसभा भवन के निर्माण कार्य की शुरुआत नहीं हो पा रही थी। दिसंबर 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी और मार्च 2020 में कोविड आ गया। इस तरह तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल को साल भर ही हुआ था कि वैश्विक संकट सामने था। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की दिली इच्छा थी कि उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में नया विधानसभा भवन अस्तित्व में आ जाए। कुछ नहीं तो उस निर्वाचित सरकार के कार्यकाल के आख़री साल यानी 2023 में विधानसभा का सत्र नये विधानसभा भवन में हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। नये विधानसभा भवन के लोकार्पण के शिलालेख में विधानसभा अध्यक्ष की जगह पर डॉ. रमन सिंह का नाम दर्ज होना लिखा था।

मुर्दा शहर और

5 दिन की चांदनी

नया रायपुर यानी मुर्दा शहर में 1 से 5 नवंबर के बीच मानो जान सी आ गई थी। राज्योत्सव के दौरान कार्यक्रम पर कार्यक्रम जो हो रहे थे। बात घूम-फिरकर वहीं पर आकर रुक जाती है कि अरबों-खरबों पानी की तरह बहाकर नया रायपुर तो बसा दिया लेकिन पुराने रायपुर से नई राजधानी तक पहुंचने के लिए सुदृढ़ परिवहन व्यवस्था आज तक नहीं बन पाई। ऊपर से 1 नवम्बर, जिस दिन राज्योत्सव का शुभारंभ हुआ बाहर से आए ग्रामीणजन नया रायपुर की सड़कों पर मजबूरीवश मीलों पैदल चलते नज़र आए। नया रायपुर में सिटी बसों के अलावा 100 इलेक्ट्रनिक ऑटो चलाने के दावे होते रहे हैं, लेकिन मेला स्थल के आसपास इन वाहनों का अता-पता नहीं था। यही नहीं 5 नवम्बर की सुबह जोरा तथा वीआईपी रोड पर जाम की जो स्थिति थी वह अत्यंत पीड़ादायक थी। बड़ी संख्या में दूध विक्रेता अपने दूपहिया वाहन में दूध ढोकर वीआईपी रोड से होते पुराना रायपुर आते हैं और घर-घर दूध पहुंचाते हैं। 5 नवम्बर की सूबह जाम के कारण हज़ारों घरों में दूध नहीं पहुंच पाया।

“मज़ा तो जब है कि

गिरतों को थाम ले साक़ी”

ख़बर ये कि छत्तीसगढ़ की शराब नीति में बदलाव की तैयारी है। पुरानी ठेका पद्धति फिर से लागू की जा सकती है। 2017 में डॉ. रमन सिंह की सरकार के समय में ठेका पद्धति को हटाते हुए सरकारी व्यवस्था वाली शराब बिक्री नीति लागू की गई थी। 2018 में भूपेश बघेल की सरकार आई तो पुरानी सरकार में रहे लोगों ने शराब व्यवस्था में खोट बताते हुए उंगली उठाना शुरु कर दिया। भूपेश सरकार व अन्य कांग्रेस नेता यह कहते हुए पलटवार करते नज़र आते थे कि आपने जो व्यवस्था लागू की थी उसी पर तो हम काम कर रहे हैं।

बहरहाल पीने वाले राजनीति में भी होते हैं और प्रशासनिक क्षेत्र में भी। मादक पदार्थ पर रिसर्च करके बैठे कितने ही लोग बताते हैं कि पीने के हिसाब से सबसे अच्छा समय 2001 से 2003 के बीच का था। तब के जोगी शासनकाल में रम हो या व्हिस्की या फिर बीयर, एक से बढ़कर एक ब्रांड मार्केट में उपलब्ध थे। फिर वो समय भी आया जब राज्य में घटिया ब्रांड की भरमार हो गई, जो कि आज तक है। यदि घटिया ब्रांड नहीं बिक रहा होता तो 2018 में विधानसभा के बजट सत्र के समय में तत्कालीन विपक्षी कांग्रेस विधायकों ने प्रदेश में यह मामला नहीं उठाया होता। यही नहीं 2018 के आख़री में सरकार बदलने के बाद तत्कालीन विपक्षी भाजपा विधायक नारायण चंदेल ने सदन के भीतर खुलकर कहा था कि “इतना घटिया ब्रांड बिक रहा है कि मेरे ही क्षेत्र के कुछ मदिरा शौकीन शिकायत किए हैं कि पीने के बाद पिकअप नहीं लेता।“

यह तो रही बहुत ऊपर की बात। अब थोड़ा नीचे तरफ की बात करें। प्रशासनिक क्षेत्र की। तब पंजा छाप की सरकार थी। एक अफ़सर का पुराने रायपुर से नया रायपुर जाना हुआ। उन्हें बिदाई देने तेलीबांधा के आगे किसी ख़ास स्थान पर लिमिटेड लोगों के बीच हुए बिदाई समारोह में पूरे एक कार्टून में शराब आई थी। नया रायपुर में सेवाएं देने के बाद वह साहब अब पुराना रायपुर आ चुके हैं। साहब का जीवन दर्शन ही कुछ ऐसा है कि जब शराब रात में अंदर जाती है तभी तो दूसरे दिन पूरी ताकत के साथ काम करने का साहस जुट पाता है। फिर चाहे किसी ताकत वाले से ही टकराना क्यों न पड़े।

“नशा पिला के गिराना

तो सबको आता है,

मज़ा तो जब है कि

गिरतों को थाम ले साक़ी”

वृहस्पत का प्रकोप

दो बार के कांग्रेस विधायक रहे वृहस्पत सिंह ने हाल ही में बड़ी बात कह दी। उन्होंने कहा कि “राज्य में निपटो-निपटाओ के कारण कांग्रेस की सरकार चली गई। निपटो-निपटाओ का खेल बंद हो जाए तो दोबारा कांग्रेस की सरकार आ जाएगी।“ वृहस्पत सिंह यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि “दिल्ली में राहुल गांधी के सामने मैंने अपना यही मत रखा था कि हमारे बड़े नेताओं को ठीक कर दीजिए, बाक़ी सब अपने आप ठीक हो जाएगा। सीएम की कुर्सी के लिए कई बड़े नेता आपस में भिड़े हुए हैं।“ बहरहाल कांग्रेस नेताओं की ओर से यही वक्तव्य आया है कि “वृहस्पत सिंह अब कांग्रेस में नहीं हैं। उनकी कोई भी बात अब पार्टी के लिए मायने नहीं रखती।“

वृहस्पत सिंह के बारे में कहा जाता है कि एक तो वे कहते नहीं, और जब कहते हैं स्थिति विस्फोटक हो जाती है। पिछली बार जब कांग्रेस की सरकार थी उस समय विधायक रहे वृहस्पत सिंह ने राजधानी रायपुर में मीडिया के सामने कह दिया था कि “यदि टी.एस. सिंहदेव मेरी लाश की कीमत पर ही सीएम बनना चाहते हैं तो बन जाएं।“ उस समय वृहस्पत सिंह के इस कथन से राजनीति जगत में खलबली मच गई थी। यह सही है कि ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले के चलते सिंहदेव उस समय मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे लेकिन उनके इस मिशन से वृहस्पत सिंह का दूर तक लेना देना नहीं था। इस घटनाक्रम के कुछ ही दिनों बाद विधानसभा का सत्र था। विधानसभा के भीतर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव की भारी नाराज़गी सामने आने के बाद वृहस्पत सिंह को अपने कहे के लिए ख़ेद व्यक्त करना पड़ा था।

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