कारवां (16 नवंबर 2025) ● हर किसी के लिए नहीं विधायक का सपना… ● 8 वीं पास और पीए! ● प्रशांत व केजरीवाल का एक जैसा हाल… ● बिहार के बाद आगे क्या… ● एम्बुलेंस जैसी बाइक, झकझोर देने वाली तस्वीर… ● अर्बन नक्सल नेटवर्क पर नज़र…

■ अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में ब्याज के धंधे की आड़ में अपराध में लिप्त रहे वीरेन्द्र तोमर उर्फ़ रूबी की गिरफ़्तारी के बाद सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। दूसरे भाई रोहित तोमर की तलाश भी जारी है। वीरेन्द्र तोमर की एक वह पुरानी तस्वीर भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसमें भावी विधायक लिखा हुआ है। रायपुर शहर का इतिहास रहा है कि यहां कोई अंधेर कमाई करे फिर वह राजनीति के क्षेत्र में कदम ज़माने की कोशिश करे, दिग्गज राजनीतिज्ञों के टारगेट में आ ही जाता है। राजनांदगांव के रहने वाले बालकृष्ण अग्रवाल ने रायपुर आकर छात्र राजनीति से एक नई राह पर चलने की शुरुआत की थी। कॉलेज़ की राजनीति का समय निकल गया तो वह ज़मीन के धंधे से जा जुड़ा। तब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था और वह कांग्रेस नेता अजीत जोगी के क़रीबी के रूप में पहचाना जाने लगा था। फिर न जाने क्या धुन सवार हुई, रायपुर से उसने एक दैनिक अख़बार का प्रकाशन शुरु किया। अख़बार निकलने के बाद उसकी इच्छा शक्ति और हिलोरें मारने लगीं। वह सांसद-विधायक बनना चाहता था। एक टीवी चैनल के स्ट्रिंग ऑपरेशन के घेरे में आ जाने के कारण राजनांदगांव के सांसद प्रदीप गांधी को 2005 में अपना पद छोड़ना पड़ा था। तब राजनांदगांव में लोकसभा उप चुनाव की स्थिति बनी। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस में बड़ी ताकत थे। कांग्रेस के भीतर बहुत कुछ वैसा ही हो जाता था जैसा कि जोगी चाहते थे। उस उप चुनाव में बालकृष्ण अग्रवाल ने संबंधों का हवाला देते हुए जोगी जी पर पूरा दबाव बनाया था कि वे उसे कांग्रेस प्रत्याशी बनवाएं। हुआ कुछ और ही। दिल्ली वालों तथा जोगी जी की इच्छा से देवव्रत सिंह कांग्रेस प्रत्याशी बने। वे जीते भी। इसके साथ ही बालकृष्ण अग्रवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर पानी फिर चुका था। रियल स्टेट के क़ारोबार में कभी संजय बाजपेयी का नाम तेजी से उभरा था। संजय का सदैव मुस्कराते रहने वाला सौम्य चेहरा था। रियल स्टेट के क़ारोबार में जब संजय जाने-माने रईसों की सूची में आ गया, कुछ शुभचिंतक कहलाने वाले तथाकथित लोगों ने संजय को यह कहते हुए ज्ञान देना शुरु कर दिया कि तूम काफ़ी लोकप्रियता अर्जित कर चुके, अब तुम्हें किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ लेना चाहिए। जानकार लोग बताते हैं कि रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र को लेकर संजय ने संभावनाएं तलाशना शुरु भी कर दिया था। फिर ज़बरदस्त राजनीतिक प्रभाव रखने वालों ने ज़मीन घोटाले के नाम पर संजय पर ऐसा तगड़ा शिकंजा कसा कि उसकी राजनीतिक पारी शुरु ही नहीं हो पाई। बालकृष्ण और संजय दोनों का स्वर्गवास हो चुका है।

8 वीं पास और पीए!

कोई मंत्री है तो क्या हुआ, है तो आम इंसान, दूरदर्शिता की कमी के कारण कभी-कभी चूक हो जाया करती है। छत्तीसगढ़ सरकार के नये मंत्री राजेश अग्रवाल को ही लें, वे 8 वीं पास युवक तबरेज़ आलम को अपना पीए (निज सहायक) बनाना चाहते थे, लेकिन बात सामान्य प्रशासन विभाग में जाकर अटक गई। सामान्य प्रशासन विभाग का पक्ष रहा कि पीए बनने वाला कम से कम 12 वीं (हायर सेकेंडरी) पास होना चाहिए। अब कांग्रेसियों को मज़े लेने का पूरा मौका मिल गया। यह अलग बात है कि राजेश अग्रवाल कभी कांग्रेस में ही थे। इसी तरह का कुछ डिफ्रेंट किस्म का उदाहरण पिछली कांग्रेस सरकार के समय में भी देखने मिला था। प्रेमसाय सिंह टेकाम मंत्री बने थे। मंत्री पद सम्हालने के बाद उन्होंने शासकीय सेवा में कार्यरत रहीं अपनी पत्नी को ही पीए बना दिया था। मीडिया में यह बात उछलकर सामने आई और तत्कालीन सरकार के मुखिया के कानों तक भी पहुंची। मुखिया ने फौरन एक्शन लिया और भाभी जी पीए बनते-बनते रह गईं।

प्रशांत व केजरीवाल

का एक जैसा हाल

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए। चुनाव प्रचार के समय में प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज पार्टी’ काफ़ी सुर्खियों में रही थी। कितने ही लोग भाजपा, जदयू एवं लोजपा के बाद ‘जन सूराज पार्टी’ को चौथी बड़ी ताकत बताते थक नहीं रहे थे। नतीजे जब सामने आए तो प्रशांत किशोर की पार्टी 243 में से एक भी सीट नहीं पा सकी। चुनावी नतीजे सामने आने वाले दिन राजधानी रायपुर में नतीजों से बेख़बर रहे किसी जिज्ञासु व्यक्ति ने राजनीति की थोड़ी बहुत समझ रखने वाले व्यक्ति से पूछ लिया कि “क्यों बिहार में प्रशांत किशोर की पार्टी का क्या हाल रहा?” पूछने वाले को सटीक ज़वाब मिला कि “वही, छत्तीसगढ़ में जो अरविंद केजरीवाल की पार्टी का रहते आया है।“

बिहार के बाद आगे क्या

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके। छत्तीसगढ़ के भाजपा और कांग्रेस दोनों तरफ के नेता वहां की ज़िम्मेदारी से मुक्त हुए। सवाल यह कि अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में आगे क्या-क्या घटित हो सकता है? छोटा सा सधा हुआ ज़वाब यही सुनने में आ रहा है कि कुछ नहीं, निगम-मंडलों के शेष पद जो ख़ाली रह गए हैं वहां नियुक्तियों में अब ज़्यादा समय नहीं लगेगा। रही बात कांग्रेस की, उसके नये शहर जिला अध्यक्षों के नामों की घोषणा जो अब तक हो जानी थी और नहीं हो पाई, अब वह हो ही जाएगी।

एम्बुलेंस जैसी बाइक

झकझोर देने वाली तस्वीर

प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर समय-समय पर बड़े दावे होते रहे हैं, लेकिन कभी-कभार कोई ऐसी तस्वीर भी सामने आ जाती है जो झकझोर कर रख देती है। कवर्धा जिले के नगवाही गांव से सामने आई एक ऐसी ही तस्वीर ने सिस्टम को हिलाकर रख दिया। तस्वीर में क़रीब 65 साल के समलू सिंह मरकाम बाइक चलाते नज़र आ रहे हैं और वाहन के पिछले हिस्से में उनकी कैंसर पीड़ित पत्नी पटिया में लेटी हुई हैं। बताते हैं पत्नी के इलाज़ के लिए उन्होंने रायपुर, दुर्ग से लेकर मुंबई तक की यात्रा की। उनके घर का जेवर-बर्तन, खेत सब कुछ बिक गया। कर्ज़ का बोझ अलग सिर पर चढ़ गया।   उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के संज्ञान में जब यह बात आई तो उन्होंने तत्काल पीड़ित पक्ष को 10 हज़ार की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। सवाल यह कि समलू को अपनी बाइक को एम्बुलेंस जैसा स्वरुप क्यों देना पड़ा, ज़वाब यही सामने आया है कि जिस जगह पर वह रहते हैं तत्काल में वहां सरकारी एम्बुलेंस पहुंच नहीं पाती। बहरहाल कवर्धा जिले के जन प्रतिनिधियों व जिला प्रशासन ने संज्ञान में लेते हुए कैंसर पीड़ित महिला को राजधानी रायपुर के अम्बेडकर अस्पताल के कैंसर वार्ड में दाखिल कराया है।

अर्बन नक्सल

नेटवर्क पर नज़र

बीजापुर जिले के नेशनल पार्क इलाके में हुई मुठभेड़ में 6 नक्सली मारे गए, जिनमें बड़े नक्सली लीडर पापा राव की पत्नी उर्मिला भी शामिल थी। मुठभेड़ स्थल पर कुछ ऐसे दस्तावेजों के मिलने की ख़बर है जिससे ये पता चला कि मारे गए नक्सली अपने अर्बन नेटवर्क के भी संपर्क में थे। पुलिस तंत्र अब यह जानने में लगा है कि इस अर्बन नेटवर्क के तार कहीं रायपुर से तो नहीं जुड़े हैं! रायपुर में पहले से नक्सली नेटवर्क पर पुलिस की नज़र रहती आई है। किसी समय में रायपुर के डीडी नगर से शहरी नक्सलियों की गिरफ़्तारी हुई थी। पुलिस ने रायपुर में कभी वह स्थान खोज निकाला था जहां नक्सलियों की वर्दी सिला करती थी। नक्सलियों के पक्ष में छद्म नाम से आर्टिकल लिखकर उसे मीडिया तक पहुंचाने वाले किसी व्यक्ति की भी रायपुर में ही कभी गिरफ़्तारी हुई थी।

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