■ अनिरुद्ध दुबे
रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का पिछले दिनों हुआ भारत दौरा काफ़ी चर्चाओं में रहा। पुतिन के दौरे से कुछ घंटे पहले लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि “आमतौर पर परंपरा रही है कि जो विदेशी मेहमान भारत आते हैं उनकी नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात होती है। यह परंपरा अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं डॉ. मनमोहन सिंह जी दोनों के प्रधानमंत्री कार्यकाल में देखने को मिलती रही थी। आजकल होता यह है कि जब बाहर से कोई आता है या मैं कहीं बाहर जाता हूं तो सरकार सुझाव देती है कि बाहर से आने वाले अतिथि या मेरे बाहर जाने पर वहां के लोग मुझसे नहीं मिलें।“ राहुल गांधी ने यह भी कहा कि “हिंदुस्तान का प्रतिनिधित्व हम भी करते हैं, सिर्फ़ सरकार नहीं करती। सरकार नहीं चाहती कि विपक्ष के लोग बाहर के लोगों से मिलें।“
राहुल गांधी के इस कथन के सामने आने के बाद इस घटनाक्रम से परे हटकर किसी दूसरे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम की याद ताजा हो आई जो उनके पिता राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते समय की है। जब सोवियत संघ टूकड़ों में नहीं बंटा था, वहां के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने 1986 से 1988 के बीच दो बार भारत की यात्रा की थी। एक यात्रा में गोर्बाचेव रायपुर एयरपोर्ट में उतरकर यहां से सड़क मार्ग से होते हुए भिलाई भी गए थे। सोवियत संघ और भारत के बीच रिश्ते हालांकि काफी पहले से बन चुके थे, पर इन रिश्तों को बेहतर बनाने में गोर्बाचेव की ख़ास भूमिका रही थी। सोवियत संघ टूटने के बाद भी वो रिश्ते बरक़रार रहे। 1986 में गोर्बाचेव जिस प्रतिनिधि मंडल के साथ भारत आए थे, उसमें 110 से ज़्यादा सदस्य थे। यह यात्रा इसलिए भी ऐतिहासिक थी क्योंकि 1985 में राष्ट्रपति बनने के बाद गोर्बाचेव की किसी एशियाई देश की यह पहली यात्रा थी। उस यात्रा के दौरान उन्होंने भारत की संसद को संबोधित किया था। गोर्बाचेव मार्च 1985 में राष्ट्रपति बने थे, जबकि उससे चार महीने पहले नवंबर 1984 में राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि वह छोटा सा दौर था, पर उसमें दोनों देशों के रिश्तों में जो समझदारी विकसित हुई थी, उसे अंतर्राष्ट्रीय मसलों की गहरी समझ रखने वाले आज भी याद करते हैं।
कब थमेगा नदी
जल विवाद…
ओड़िशा विधानसभा में चल रहे शीतकालीन सत्र में वहां के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की ओर से ज़वाब आया कि “पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के साथ विवाद के कानूनी और सौहार्द्रपूर्ण समाधान के माध्यम से ओड़िशा को ज़ल्द ही महानदी नदी के जल पर अपना अधिकार मिल जाएगा।“ माझी ने विधानसभा में कांग्रेस सदस्य तारा प्रसाद बहिनीपति के लिखित प्रश्न का ज़वाब देते हुए यह बात कही। माझी ने कहा कि “महानदी को ओड़िशा की जीवन रेखा माना जाता है। राज्य सरकार पिछले डेढ़ साल से कानूनी और सौहार्द्रपूर्ण बातचीत के जरिए जल बंटवारे के विवाद को सुलझाने का प्रयास कर रही है।“
ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के बीच महानदी जल बंटवारे को लेकर पिछले कई वर्षों से विवाद जारी है। ओड़िशा की तरफ से यह शिकायत होती रहती है कि छत्तीसगढ़ ने कथित तौर पर नदी के ऊपरी हिस्से में कई बैराज और बांध बना लिए हैं, जिससे नीचे की ओर पानी का मुक्त प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।
पानी को लेकर विवादों से जुड़ी एक और दास्तान लंबे समय से चर्चा में रहती आई है। 2008 से 2013 के बीच जब डॉ. रमन सिंह की सरकार का दूसरा कार्यकाल था, विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान तत्कालीन भाजपा विधायक देवजी पटेल ने अपनी ही सरकार के सामने पोलावरम परियोजना की चिंताजनक तस्वीर सामने रखी थी। देवजी पटेल ने सदन में कहा था कि “पोलावरम बांध के बनने से छत्तीसगढ़ को एक पैसे का फ़ायदा नहीं होना है। उल्टे बस्तर के सुकमा जिले में आने वाले 400 से ज़्यादा मजराटोला डूबान में आ जाएंगे, जिससे बड़ी बरबादी को रोक पाना मुश्किल होगा।“ देवजी भाई को विधानसभा में इस मुद्दे को उठाए काफ़ी साल हो गए, सवाल यह कि क्या कोई समाधान निकल पाया, शायद नहीं!
पोलावरम परियोजना को लेकर पिछले काफ़ी लंबे समय से छत्तीसगढ़, ओड़िशा, आध्रंप्रदेश और तेलंगाना के मध्य विवाद की स्थिति बनी हुई है। आंध्र प्रदेश की पोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना के खिलाफ़ ओड़िशा में लंबे समय से यह कहते हुए आवाज़ उठती रही है कि “यह परियोजना अगर मूर्त रूप लेती है तो मलकानगिरी में बड़े क्षेत्र में बाढ़ आ जाएगी, जिससे कई आदिवासी समुदाय विस्थापित हो जाएंगे।“ पोलावरम बांध की ऊंचाई 150 फीट से ज्यादा नहीं करने साल 2016 में प्रस्ताव पारित हुआ था। 150 फीट के संकल्प को नकारते हुए बांध का निर्माण लगभग 177 फीट ऊंचाई के साथ अपनी गति से चल रहा है।
नक्सलियों की अघोषित
राजधानी में विकास गाथा
राहत वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद समाप्ति को ओर है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद समाप्त करने का लक्ष्य जो तय कर रखा है। इन दिनों ऐसे अलग-अलग क्षेत्रों के नाम पढ़ने या सुनने मिलते रहते हैं जिन्हें नक्सलियों की अघोषित राजधानी के रुप में चित्रित किया जा रहा है। कोई सूरक्षा बलों के हाथों मारे गए कुख्यात नक्सली हिड़मा के पूवर्ती गांव को नक्सलियों की अघोषित राजधानी बताते रहा है तो कोई कर्रेगुट्टा की पहाड़ी को, तो कोई कुतुल को। नक्सलियों की अघोषित राजधानी चाहे जो रही हो, संतोषजनक बात यह कि किसी समय दीन-दुनिया से एकदम अलग-थलग पड़े रहे पूवर्ती गांव में जहां एक के बाद एक रोजमर्रा से जुड़ी सुविधाएं पहुंचती जा रही हैं, वहीं कुतुल गांव में बैंकिंग सेवा की शानदार शुरुआत होने जा रही है, यानी वहां एक बैंक की ब्रांच खुलने जा रही है। बात करें कर्रेगुट्टा पहाड़ी की, वहां सड़क बनाने के साथ जंगल वारफेयर कॉलेज़ खोलने की तैयारी है।
फिर मानव तस्करी
नौकरी का झांसा देकर सरगुजा जिले की दो युवतियों को मध्यप्रदेश के उज्जैन में ले जाकर बेचने पर लगातार नये अपडेट सामने आ रहे हैं। मानव तस्करी का यह जाल सरगुजा, रायगढ़, कोरबा से लेकर बस्तर के अलग-अलग क्षेत्रों तक फैला हुआ है। 14 दिसंबर से छत्तीसगढ़ विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरु होने जा रहा है, हो सकता है सरगुजा जिले की दो युवतियों के बिकने वाली घटना को कोई विधायक विधानसभा में उठाए, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया था जब इसी विधानसभा में मानव तस्करी का मुद्दा एक-दो बार नहीं, कई बार गूंजा था। 2008 से 2013 के इस दौर में जब नंद कुमार पटेल विपक्षी कांग्रेस विधायक थे, मानव तस्करी के मुद्दे को वे पुरज़ोर तरीके से सदन में उठाते रहे थे।
“जहाँ जहाँ पैर पड़े रणवीर
के, तहँ तहँ बंटाधार”
बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह एक बार फिर अपनी उजड्डता के कारण सुर्खियों में हैं। यू ट्यूब पर ‘बॉलीवुड पोल खोल’ कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले क़माल रशीद ख़ान उर्फ़ केआरके ने तो रणवीर सिंह के लिए ‘डबल ढोलकी’ शब्द गढ़ रखा है। हाल ही में हुआ यूं कि गोवा में आयोजित इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में ऋषभ शेट्टी की फ़िल्म ‘कांतारा’ की तारीफ़ करते हुए रणवीर सिंह कुछ ऐसा कह गए कि उन पर ईश निंदा के आरोप लग रहे हैं। रणवीर सिंह की उजड्डता का यह आलम रहा कि उन्होंने फेस्टिवल में चामुंडा देवी वाले दृश्य का ज़िक्र करते हुए फीमेल भूत कह दिया और उस दृश्य की नकल भी उतारी।
अब रायपुर की घटना को याद कर लें। हुआ यूं कि ठीक फ़िल्म ‘सिंबा’ की रिलीज़िंग के समय उसके डायरेक्टर रोहित शेट्टी के सामने कानूनी पचड़े में फंसने का बड़ा संकट खड़ा हो गया था। सामने वाले के दबाव के कारण उन्हें एक तथाकथित नशीले पेय पदार्थ के ब्रांड के प्रचार के लिए अपनी फ़िल्म के कलाकारों रणवीर सिंह, सारा अली ख़ान एवं सोनू सूद के साथ रायपुर आना पड़ा था। रायपुर में हुई प्रेस कांफ्रेंस में रोहित शेट्टी, सोनू सूद एवं सारा अली ख़ान ने पत्रकारों के सवालों का ज़वाब काफ़ी शालीनता से दिया लेकिन रणवीर सिंह से जब सवाल हुए तो वे मीडिया का सामने काफ़ी अभद्रता से पेश आए। फिर वह प्रेस कांफ्रेंस निर्धारित समय के बज़ाय इतनी देर से शुरु हुई थी कि मीडिया वालों का धैर्य ज़वाब दे गया और हंगामा खड़ा हो गया था। पुरानी कहावत है- “जहाँ जहाँ पैर पड़े संतन के, तहँ तहँ बंटाधार”… रणवीर सिंह पर यह कहावत एकदम फिट बैठती नज़र आती है।

