■ अनिरुद्ध दुबे
हालांकि छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को क़रीब 16 महीने बचे हैं लेकिन भाजपा ने अभी से कमर कसनी शुरु कर दी है। अजय जामवाल को छत्तीसगढ़ में नये क्षेत्रीय संगठन मंत्री के रूप में भेजा जाना इसी की आहट है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय कहते हैं- “अजय जामवाल संगठन शिल्पी हैं। उन्होंने पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर और नार्थ ईस्ट में काम किया है। आज अगर नार्थ ईस्ट में भाजपा का परचम लहरा है रहा है तो इसे पीछे जामवाल का बड़ा योगदान है।“ गौर करने लायक बात यह है कि रायपुर में जामवाल ने प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक ली तो उनकी ओर से सबसे पहला और कठिन सवाल यही हुआ कि “2018 में हम क्यों हारे?” कुछ ऐसे नेता ज़माने से जिनके सीने में दर्द छिपा हुआ था वह छलक के बाहर आ गया। दिली तौर पर आहत नेताओं ने अपनी बात रखते हुए यही कहा कि तीसरी बार जब भाजपा की सरकार बनी सरकारी तंत्र हावी हो चुका था। भाजपा जो कैडर बेस्ड पार्टी मानी जाती है उसके कार्यकर्ता बुरी तरह उपेक्षित हो चुके थे। यही कारण है कि लगातार 15 सालों तक राज करने वाली भाजपा 15 सीटों पर आकर सिमट गई। अजय जामवाल ने जिस तरह ज़मीनी कार्यकर्ताओं से सीधे रूबरू होते हुए छत्तीसगढ़ में भाजपा की बैटरी चार्ज करना शुरु कर दिया है उससे अब यह माना जा रहा है कि 2023 का चुनाव एकतरफ़ा नहीं होगा। इस बात को प्रदेश के मुखिया भी समझ रहे हैं। खैरागढ़ उप चुनाव में जीत मिलने के बाद जब जश्न का माहौल चल रहा था तो मुखिया ने अपने बेहद क़रीबी लोगों से कहा था कि “सोचो जब एक खैरागढ़ उप चुनाव को जीतने इतनी मशक्कत करनी पड़ी तो 2023 में पूरे 90 सीटों पर लड़ने के लिए कितना जोर लगाना पड़ेगा! इसलिए हवा में नहीं उड़ें, बल्कि हवा के रूख़ को देखते हुए आगे की रणनीति पर काम करें।“
पिता महेन्द्र कर्मा पर
खुलकर बोले छविन्द्र
कुणाल शुक्ला एवं प्रीति उपाध्याय लिखित किताब ‘बस्तर टाइगर’ के राजधानी रायपुर में हुए विमोचन समारोह से कुछ ऐसे घटनाक्रम जुड़े जो लंबे समय तक लोगों को याद रहेंगे। ‘बस्तर टाइगर’ झीरम घाटी नक्सली हमले में शहीद हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेन्द्र कर्मा पर केन्द्रित है। सबसे अहम् बात यह कि महेन्द्र कर्मा के साहसी पुत्र छविन्द्र कर्मा पहली बार राजधानी रायपुर के किसी मंच पर लगातार देर तक बोले। छविन्द्र ने कहा कि “समझने की ज़रूरत है कि बस्तर आख़िर क्यों अबूझ है। मेरे पिता को पहले ही आभास हो गया था कि उनकी मौत नक्सलियों के हाथों होगी, लेकिन वे कभी भयभीत नहीं हुए। एक मौका तो ऐसा भी आया जब एरिया में नया नियुक्त हुआ क़रीब 6 फुट ऊंचा नक्सली कमांडर उनके पास आया। तब भी वे उससे तनिक भयभीत नहीं हुए। जानते हुए भी कि वह दुश्मन है, उसे चाय पिलाकर भेजा। 25 मई 2013 जब झीरम घाटी हमला हुआ उस दिन मुझे पिता के साथ ही रहना था। कोई ऐसा बड़ा काम अचानक सामने आ गया कि मैं जाते-जाते रह गया। मेरे पिता कभी नेता नहीं बन पाए। उनके मन में बस जनता के प्रति सेवा भाव था। अजीत जोगी साहब से उनके मतभेद थे। एक बार कोई व्यक्ति उनके पास कोई काम लेकर गया। पापा ने उनसे साफ शब्दों में कहा कि यह काम जोगी जी से ही हो पाएगा। कोई दूसरा होता तो अपने प्रतिव्दंव्दी का इस तरह नाम कभी नहीं लेता बल्कि काम को टाल जाता।“ बोलते-बोलते छविन्द्र का ना सिर्फ गला रूंधा, आंखें भी डबडबा गईं। ‘बस्तर टाइगर’ की भूमिका लिखने वाले ‘जनधारा’ के संपादक सुभाष मिश्रा ने कहा कि “इस किताब को पढ़ने के बाद तो यही भाव समझ में आता है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद किस तरह आदिवासी वर्ग ठगा गया। कर्मा जी के भीतर इस बात को लेकर इस कदर गुस्सा था कि उन्होंने दिग्विजय सिंह का हाथ तक झटक दिया था।“
मेयर के दो पीए रिटायर
नसीब में नहीं संविदा
रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर के दो निज सहायक हाल ही में सेवानिवृत्त हुए। निगम के गलियारे में चर्चा यही थी कि किसी को संविदा नियुक्ति मिले या न मिले इन दो निज सहायकों को ज़रूर मिलेगी। ये दोनों निज सहायक ढेबर से पहले सुनील सोनी, श्रीमती किरणमयी नायक एवं प्रमोद दुबे जैसे महापौरों के निज सहायक रहे थे। यानी अनुभवों की खान। इसीलिए लोगों को लग रहा था कि दोनों रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी का मौका ज़रूर पा लेंगे। बिदाई समारोह के बाद दोनों पूर्व निज सहायक निगम दफ़्तर से निकल ही रहे थे कि उनका सामना महापौर एजाज़ ढेबर से हो गया। ढेबर ने उनसे कहा कि अच्छा है अब आप लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा घर परिवार के बीच समय गुज़ारने का मौका मिलेगा। महापौर के यह कहने के पीछे यही संकेत माना जा रहा है कि संविदा नियुक्ति का मामला गया ठंडे बस्ते में। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं कि महापौर के यह मृदु वचन सुनकर दोनों रिटायर्ड निज सहायकों में मायूसी छा गई है। दोनों की संविदा नियुक्ति विचारार्थ वाली फाइल सचिवालय से होते हुए निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी के पास पहुंची थी। न सिर्फ निगम कमिश्नर अपितु सामान्य प्रशासन एवं विधि विधायी विभाग के अध्यक्ष रितेश त्रिपाठी ने भी विचारार्थ आवेदन पर चिड़िया बिठा दी थी, पर महापौर के पास जाकर मामला रूक गया। अब सारे पार्षदों से लेकर अफ़सर-कर्मचारियों में यही जिज्ञासा है कि महापौर का अगला निज सहायक कौन होगा? और होगा भी तो एक होगा या पहले की तरह दो होगा??
कुलदीप जुनेजा ने कहा- छू
लेने दो नाजुक होठों को…
नेताओं में राजनीति के अलावा कुछ और भी छिपे हुए गुण होते हैं जो कभी-कभी उभरकर सामने आ जाते हैं। रायपुर उत्तर विधायक कुलदीप जुनेजा की बात कर लें, इन्हें संगीत से गहरा लगाव है। हाल ही में राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड पर स्थित एक सितारा हॉटल में सिक्ख समाज का सावन महोत्सव था। उस कार्यक्रम में मंच पर हर किसी को अपनी प्रतिभा दिखाने की छूट थी। ज़्यादातर लोग अपनी गायकी का कमाल दिखा रहे थे। वहां पर अतिथि की आसंदी से पहुंचे कुलदीप जुनेजा से आयोजकों ने कुछ गाने का अनुरोध किया तो वे राज कुमार, धर्मेन्द्र एवं मीना कुमारी अभिनीत पुरानी म्यूज़िकल हिट फ़िल्म ‘काजल’ का गीत सुना दिए “छू लेने दो नाजुक होठों को कुछ और नहीं है जाम है ये…।“ किसी ज़माने में जुनेजा जब रायपुर नगर निगम में पार्षद हुआ करते थे तब दूसरे पार्षद साथियों के बीच उनका संगीत प्रेम छलक जाया करता था। पार्षद साथियों से बातचीत के दौरान वे कभी-कभी किसी गाने का मुखड़ा गुनगुनाने लगते थे। एक बार वे पार्षद साथियों से मज़ाक में कहते नज़र आए थे कि जब बदन में सर्दी जकड़ी हुई हो तो मुकेश के गाने अच्छे गाते बनते हैं।