■अनिरुद्ध दुबे
2023 के साल में इतने समय तक छत्तीसगढ़ में चुनावी आचार संहिता लग चुकी होगी। बहरहाल इस साल की बात करें तो अगस्त से जिस तरह भाजपा का आंदोलन, बड़े पदों पर परिवर्तन और बैठकों का दौर चल पड़ा, कहा जाने लगा है कि भाजपा अभी से चुनावी मोड में आ गई है। भाजपा ने दांव पर दांव चलने शुरु कर दिए हैं। सरगुजा से लेकर बस्तर तक भाजपा सोची समझी रणनीति के तहत काम कर रही है। इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व्दारा दीपावली के ठीक बाद निगम-मंडल के पदाधिकारियों की लंबी-चौड़ी लिस्ट जारी करना कांग्रेस के ‘मिशन 2023’ का बड़ा हिस्सा माना जा रहा है। निगम मंडल की नई लिस्ट पर गौर करें तो मुख्यमंत्री ने 151 पदों पर पुराने-नये नेताओं को मौका दिया है। देखने लायक बात यह भी है कि ब्राह्मण हो या मुस्लिम, सामान्य जाति वर्ग का हो या पिछड़ा, आदिवासी हो या दलित सभी को निगम मंडलों में अवसर दिया गया है। यानी सभी तरफ से चुनावी बैटरी चार्ज करने की यह एक बड़ी कोशिश है। भले ही निगम मंडल के इन नये पदाधिकारियों के पास काम करने का अवसर 10-11 महीने का ही रहे लेकिन पद तो पद होता है। पद मिलने पर जो आत्मिक संतुष्टि मिलती है उसका आनंद कुछ और ही होता है।
रायपुर की चारों सीटों
पर जामवाल का मंथन
वो तो सन् 2008 में रायपुर की चार विधानसभा सीटें बनीं। उसके पहले तो रायपुर शहर एवं रायपुर ग्रामीण दो ही विधानसभा सीटें हुआ करती थीं। 1984 एवं 85 तक तो रायपुर की शहर और ग्रामीण सीटों पर कांग्रेस का जादू बरकरार रहा, लेकिन 90 के दशक के आते तक परिदृश्य मानो पूरी तरह बदल चुका था। रायपुर की दोनों सीटों पर भाजपा का रंग चढ़ चुका था। दोनों सीटों पर कांग्रेस को हार पर हार मिलते चली जा रही थी। सन् 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा था कि आखिर रायपुर की सीट पर हम लगातार हारते क्यों चले आ रहे हैं? राज्य बनने के बाद 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में रायपुर शहर एवं ग्रामीण में भाजपा ही जीती। परिसीमन के बाद 2008 के चुनाव में चार सीटें रायपुर उत्तर (शहर), दक्षिण, पश्चिम एवं ग्रामीण बन चुकी थीं। 2008 के चुनाव में रायपुर उत्तर छोड़ बाकी तीन में भाजपा जीती। 2013 के चुनाव में रायपुर ग्रामीण में कांग्रेस और बाकी 3 में भाजपा जीती। वहीं 2018 के चुनाव में मानो रायपुर कांग्रेसमय हो गया। रायपुर दक्षिण को छोड़ बाकी तीन में कांग्रेस बाजी मार ले गई। इससे यह साफ हो चुका है कि रायपुर में भाजपा का पहले जैसा जनाधार नहीं रहा। खोए हुए जनाधार को वापस पाने भाजपा की तरफ से बड़े स्तर पर एक्सरसाइज शुरु हो चुकी है। भाजपा क्षेत्रिय संगठन महामंत्री अजय जामवाल व्दारा रायपुर की चारों विधानसभाओं की अलग-अलग बैठकें लेना यही दर्शाता है कि भाजपा राजधानी में अपने खोए हुए तिलस्म को वापस पाना चाह रही है।
रह गए ब्रेवरेज़, फ़िल्म
निगम व सीआईडीसी
बड़े निगम मंडलों की हर साल एक बड़ी लिस्ट जारी होती रही। इक्का-दुक्का नियुक्तियां 2019 में हो गई थीं। पहली बड़ी लिस्ट 2020 में आई थी, उसके बाद 2021 में, फिर अब आई है। अब तक ढाई सौ के आसपास लोग निगम मंडलों में पद पा चुके हैं। इन सब के बीच तीन ऐसे बड़े विभाग बचे हुए हैं जिन्हें खाली रखा गया है। ये विभाग ब्रेवरेज़ कार्पोरेशन, सीआईडीसी एवं फ़िल्म विकास निगम हैं। ब्रेवरेज कार्पोरेशन के लिए कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी. सिंह का नाम 2019 से चला आ रहा है, लेकिन पता नहीं क्यों अब तक बात कैसे नहीं बन पाई! फिर औरपी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत पार्टी के अन्य कई बड़े नेताओं के क़रीबी भी माने जाते रहे हैं। फ़िल्म विकास निगम के लिए छत्तीसगढ़ी सिनेमा से जुड़े कुछ प्रोड्यूसर-डायरेक्टरों ने काफी हाथ पैर मारा लेकिन किसी का भला नहीं हुआ। दुग्ध संघ के अध्यक्ष पद के लिए कभी सुशील आनंद शुक्ला का नाम सुना जाता रहा था लेकिन उनके नाम पर मुहर नहीं लगी। उन्हें कांग्रेस संचार विभाग के चेयरमैन का प्रभार दिया गया। संचार विभाग से ही जुड़े एक-दो लोगों को उम्मीद थी कि बाकी बचे निगम-मंडलों में उनके लिए जगह बन जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इम्तियाज हैदर लड्डू के नाम को लेकर माना जा रहा था इस बार की निगम-मंडल की सूची में उन्हें स्थान मिल ही जाएगा, लेकिन नहीं मिला।
आरडीए से इंदौर जाने वालों
में जुड़ेगा एक और नाम
‘कारवां’ के पिछले कॉलम में जिक्र आया था कि आरडीए (रायपुर विकास प्राधिकरण) के पदाधिकारी इंदौर जाकर इंदौर विकास प्राधिकरण व्दारा कराए गए बड़े कार्यों को देखने की इच्छा मन में पाले हुए हैं। पदाधिकारियों का मानना है कि इंदौर विकास प्राधिकरण से कुछ सीखने जानने मिला तो उसे रायपुर में उतारने की कोशिश करेंगे। आरडीए से जुड़े सूत्रों के मुताबिक आरडीए और इडीए के बीच लगातार पत्र व्यवहार चल रहा है। हो सकता है 1 से 3 नवंबर के बीच राज्योत्सव हो जाने के बाद आरडीए पदाधिकारी इंदौर के लिए उड़ान भर लें। अब तो आरडीए अफसरों को इंदौर के लिए एक और टिकट की व्यवस्था करनी होगी। हाल ही में आरडीए संचालक मंडल सदस्य के रूप में श्रीमती चंद्रवती साहू की नियुक्ति जो हो गई है। श्रीमती साहू पूर्व में रायपुर नगर निगम में पार्षद भी रह चुकी हैं। जब बलबीर जुनेजा महापौर थे उस जमाने में।
अफ़सरों के ज़मीन से
जुड़े होने का संदेश
बोरे बासी के बाद इस बार के दीपावली त्यौहार में भी आला अफ़सरों ने ज़मीन से जुड़े होने का संदेश दिया। जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद दीपावली के सामान की खरीददारी करने रायपुर के गोल बाज़ार चले जाएं और पटाखा दुकान पहुंच जाएं तो उसका असर बाक़ी लोगों पर पड़ना ही था। ट्विटर पर कैप्शन के साथ एक तस्वीर जारी हुई कि बिलासपुर कलेक्टर सौरभ कुमार बीच बाज़ार में दीपावली की खरीददारी कर रहे हैं। इसी तरह की एक तस्वीर आईएएस अफसर अवनीश शरण की जारी हुई, जिसमें वे रायपुर के एक्सप्रेस वे के पास सड़क के किनारे बैठी बच्ची से दिये खरीद रहे हैं। रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने सपत्निक बालिका आश्रम जाकर जहां बच्चियों का हाल जाना और उन्हें दीपावली का उपहार दिया। वहीं बेमेतरा कलेक्टर जितेन्द्र शुक्ला का राउता नाचा करते हुए वीडियो वायरल हुआ। इस तरह छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति व संस्कार के प्रति आला अफ़सरों की ओर से भरपूर सम्मान प्रकट होते दिख रहा है।