■ अनिरुद्ध दुबे
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 6 मार्च को छत्तीसगढ़ सरकार का 2023-24 का अनुमानित बजट पेश करने जा रहे हैं। बजट पेश करने का दिन भी क्या ख़ूब चुना गया है। होलिका दहन से ठीक एक दिन पहले। यानी 6 को विधानसभा में पहले चुनावी बजट का पिटारा खुलेगा, फिर माननीय विधायक गण एक दूसरे को गुलाल लगाकर रंगोत्सव का आनंद लेंगे। विधानसभा परिसर में खारे-मीठे का भी प्रबंध रहेगा। फिर दूर के मुसाफ़िर विधायकगण उसी शाम अपने-अपने क्षेत्र रवाना हो जाएंगे। आख़िर चुनावी साल है। क्षेत्र की जनता के साथ भी तो होली का आनंद लेना होगा। जनता के मन को उपलब्धियों एवं वादों के रंग में रिझाना होगा।
मप्र जैसी परंपरा नज़र
नहीं आती छग
विधानसभा में
डॉ. चरणदास महंत के बारे में यही माना जाता है कि छत्तीसगढ़ के अब तक जितने भी विधानसभा अध्यक्ष रहे उनमें ये सबसे अलग हटकर हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के पास संसदीय ज्ञान का भंडार था। जहां तक डॉ. महंत की बात है तो उनकी छवि स्पष्टवादी एवं खरा-खरा बोलने वाले विधानसभा अध्यक्ष की है। वे खरी बात भी बोलते कुछ इस तरह हैं कि किसी को बुरा न लगे। बजट सत्र शुरु होने से ठीक पहले मीडिया से बातचीत के दौरान डॉ. महंत ने मध्यप्रदेश के उन सुनहरे दिनों को याद किया जब वे वहां की विधानसभा में विधायक रहे थे। डॉ. महंत ने कहा कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय जो वहां परंपरा थी वह यहां दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। विधानसभा में जो नये सदस्य चुनकर आते हैं उनके दिमाग में प्रश्न, उद्धरण एवं चिंतन समाया हुआ होना चाहिए। यहां के नये विधायकों को ज्ञान बढ़ाने के लिए किताबें दी गईं, कितनों ने ही नहीं पढ़ी। इस बार बड़ी संख्या में नये विधायक चुनकर आए। अधिकांश में अध्ययन की कमी स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इनमें उतनी उत्कृष्टता दिखाई नहीं देती जितना हम सोच रखे थे।
बृजमोहन के कठिन सवाल
शुक्रवार को विधानसभा की लॉबी में मीडिया से बातचीत के दौरान बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सवाल यह है विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत कल प्रश्नकाल के बाद से सदन के भीतर क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या यह सही है कि उन्हें कड़े शब्दों में कुछ कहा गया? क्या यह भी सही है कि विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि मेरे से इस्तीफ़ा ले लीजिए? अब बड़ा सवाल तो यह है कि बृजमोहन अग्रवाल को इस तरह की गोपनीय बातें मालूम कहां से हो जाती हैं! ये ज़रूर संयोग रहा है कि कुछ बड़े घटनाक्रम उनकी आंखों के सामने घटित होते रहे हैं। एक बड़ा घटनाक्रम बहुत पहले उनकी आंखों के सामने ही घटित हुआ था। डॉ. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे उनका रायपुर एवं राजनांदगांव प्रवास हुआ था। रायपुर एयरपोर्ट से डॉ. सिंह को हेलिकॉप्टर से राजनांदगांव जाना था। चर्चा यही रही थी कि हेलीकॉप्टर में डॉ. सिंह के साथ मोतीलाल वोरा, श्यामाचरण शुक्ल एवं अजीत जोगी राजनांदगांव जाएंगे। डॉ. सिंह के आगमन के समय छत्तीसगढ़ के ये तीनों नेता एयरपोर्ट पर मौजूद थे। डॉ. सिंह के रायपुर आने के बाद हेलीकॉप्टर से जब राजनांदगांव जाने की बात सामने आई तो यह स्पष्ट हुआ कि उनके साथ जाने वालों की लिस्ट में वोरा एवं शुक्ल का नाम तो है लेकिन जोगी का नहीं। एयरपोर्ट में रन वे के भीतर ही वोरा पर जोगी भड़क गए। जोगी ने वोरा को जो कुछ भी कहा वह मीडिया में आ गया। सवाल यह था कि जब हवाई पट्टी पर गिने-चुने लोग ही मौजूद थे वहां की ख़बर मीडिया तक आई कैसे? जब इस घटना की सत्यता जानने मीडिया से जुड़े लोगों ने जोगी से सवाल किया तो उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि अरे लगता है बृजमोहन से आप लोगों को यह सब मालूम हो गया! वोरा-जोगी वाले घटनाक्रम के समय तो बृजमोहन एयरपोर्ट पर मौजूद थे लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि डॉ. महंत वाली जो भी बात हो वह बृजमोहन तक पहुंची कैसे?
महाधिवेशन में
ढेबर की आत्मा
शनिवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर कृतज्ञता प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने बोलने की शुरुआत व्यंग्यात्मक लहज़े में की। चंद्राकर ने कहा कि मुख्यमंत्री जी काफ़ी सुदर्शन दिख रहे हैं। हाल ही में हुए कांग्रेस महाधिवेशन में सड़क पर बिछाई गई कई टन गुलाब की पंखुड़ियां एवं 3 दिन दिनों तक चले 56 भोग का असर तो दिखेगा ही। चंद्राकर ने आगे कहा कि महाधिवेशन में यू.एन. ढेबर की आत्मा भी नज़र आई जो कि 1955 से 1959 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। विधानसभा में जो चंद्राकर की बातों को सुन रहे थे उन्होंने यही अर्थ निकाला कि उनका इशारा रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर की तरफ है। उल्लेखनीय है कि एजाज़ ढेबर ने ही श्रीमती प्रियंका गांधी के स्वागत में एयरपोर्ट से दो किलोमीटर की सड़क तक में गुलाब की पंखुड़ियां बिछवा दी थीं। यू.एन. ढेबर का नाम सुनते ही विधानसभा में मौजूद कुछ नेता, अफसर एवं पत्रकार गुगल में जाकर यू.एन. ढेबर को सर्च करने लगे। सर्च करने पर चंद्राकर की बात सही पाई गई।
संकट मोचक विनोद
ऐन कांग्रेस राष्ट्रीय महाधिवेशन शुरु होने से पहले जिस तरह प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल एवं खनिज विकास निगम अध्यक्ष गिरीश देवांगन के यहां ईडी का छापा पड़ा उससे यह प्रश्न कितने ही लोगों के दिमाग में कौंधा था कि अब क्या होगा? गिरीश देवांगन एवं रामगोपाल अग्रवाल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का काफ़ी क़रीबी माना जाता रहा है और महाधिवेशन की बहुत सी ज़िम्मेदरियां इन्हीं के कंधों पर थीं, लेकिन जब सामने ईडी हो तो स्वाभाविक है दूसरे सारे बड़े काम कुछ समय के लिए किनारे लग ही गए थे। पूरे समय महाधिवेशन में लगे रहे कुछ लोग बताते हैं कि संकट की इस घड़ी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण हो गई थी। वर्मा ने महाधिवेशन को लेकर पूरी ताकत झोंक दी। जिस तरह महाधिवेशन में आए दिग्गज नेता बिना किसी गिला शिकवा के यहां से वापस लौटे, बताते हैं उससे मुखिया के दिल को काफ़ी सुकून मिला है। रही बात वर्मा की तो उन्होंने पार्टी कार्यकर्ता, सलाहकार एवं रिश्तेदारी एक साथ कई धर्मों को निभाया। कांग्रेस के कुछ लोग तो आपसी चर्चा के दौरान मज़ाकिया अंदाज़ में ही सही विनोद वर्मा को छत्तीसगढ़ का अहमद पटेल कहने लगे हैं।
जारी रहेगी पीएम
आवास मुद्दे
को लेकर लड़ाई
प्रधानमंत्री आवास योजना में छत्तीसगढ़ के बेहद पिछड़ जाने को लेकर भाजपा ने इस समय सड़क से लेकर सदन तक यानी विधानसभा तक लगातार आवाज़ बुलंद कर रखी है। भाजपा की तरफ से लगातार यही कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने जिस तरह प्रधानमंत्री आवास योजना में अड़ंगा लगाया उससे गरीबों का भारी अहित हुआ है। ग़रीबों के सिर पर उनकी खुद की पक्की छत नहीं आने दी गई है। बहुतेरे लोग यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि मुद्दे तो कई हैं फिर प्रधानमंत्री आवास योजना पर ही इतना जोर क्यों! अंदर की ख़बर तो यही है कि भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर एवं सह प्रभारी नितीन नवीन पार्टी के लोगों की लगातार जो बैठक ले रहे हैं उसमें पूरी कड़ाई के साथ यही कह रहे हैं कि ग़रीबों के मकान वाला मुद्दा प्रदेश के कोने-कोने में उठता नज़र आना चाहिए। इस तरह ग़रीबों के अंतस मन में उतरने भाजपा ने एक बड़ा रास्ता खोज निकाला है।