■ अनिरुद्ध दुबे
भाजपा छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने हाल ही में बस्तर का दौरा कर गहराई से यह समझने की कोशिश की कि आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में अभी की स्थिति में पार्टी कहां पर खड़ी है। पुरंदेश्वरी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव गईं और वहां का हाल जाना। मोहन मरकाम का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है इस बात को कांग्रेस व भाजपा दोनों तरफ के लोग भलीभांति समझ रहे हैं। इसके अलावा 2018 के विधानसभा चुनाव तथा तूरंत बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दीपक बैज ने जो जीत दर्ज की उससे इस युवा नेता के बढ़ते राजनीतिक क़द का अंदाज़ा भी भाजपा को हो चुका है। वर्तमान में बस्तर में कांग्रेस मजबूत है, जबकि 2004 से 2012 के बीच वहां भाजपा मजबूत हुआ करती थी। बस्तर से भाजपा का जनाधार इस क़दर खिसक चुका है कि गड्ढे को कैसे पाटा जाए इस पर पार्टी के वरिष्ठजनों को भारी माथापच्ची करनी पड़ रही है, जिनमें पुरंदेश्वरी जी भी शामिल हैं। ऐसे समय में पुराने भाजपाइयों को अपने दिग्गज नेता स्व. बलिराम कश्यप की बहुत याद आ रही है। बस्तर जो हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा था वहां भाजपा को बुलंदी तक पहुंचाने में बलिराम जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। आख़री सांस तक वे पार्टी को लेकर सोचते रहे। बलिराम जी के बेटे केदार कश्यप पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में तीन बार मंत्री रहे और दिनेश कश्यप सांसद। माना यही जाता है कि केदार व दिनेश जूझारू ज़रूर हैं लेकिन बलिराम दादा वाला करिश्मा उनमें नज़र नहीं आता। रही बात बस्तर के विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी एवं महेश गागड़ा जैसे नेताओं की जो भाजपा सरकार में मंत्री रहे थे, राजनीतिक गलियारे में इनके नामों की चर्चा अब कम ही सुनाई देती है। भाजपा में जमीनी स्तर पर काम करने वाले अधिकतर लोग अब यही कहते नज़र आते हैं कि बस्तर में भाजपा को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को हासिल करने के लिए इस समय बलि दादा जैसे नेता की ज़रूरत है।
एंटी इंकमबेंसी
हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने बिलासपुर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि मुझे अब अपने विधानसभा क्षेत्र में अधिक सक्रिय रहने की ज़रूरत महसूस हो रही है। मंत्री के रूप में काम करते हुए 3 साल हो गए, पहली बार महसूस हो रहा है कि एंटी इंकमबेंसी क्या होती है। सिंहदेव के इस कथन में कौन सा भाव छिपा हुआ है इसकी व्याख्या लोग अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं। एंटी इंकमबेंसी शब्द 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद सबसे ज़्यादा लोगों की जुबान पर चढ़ा। माना यही जाता है कि एंटी इंकमबेंसी के ही कारण ही 2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। यह तो रही पूरे प्रदेश की बात लेकिन यहां तो विषय सिंहदेव के क्षेत्र अंबिकापुर का है। अंबिकापुर से सिंहदेव लगातार तीसरी बार चुनाव जीतते आए हैं। 10 मार्च को पांच राज्यों में हुए विधानसभा का रिजल्ट सामने आएगा। 25 मार्च तक छत्तीसगढ़ के विधानसभा का बजट सत्र चलना है। 5 राज्यों के चुनावी परिणाम एवं बजट सत्र दोनों निपट जाने के बाद स्वाभाविक है सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों ही पार्टियों के नेता अपने अगले मिशन में जुट जाएंगे। मार्च के बाद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हलचल काफ़ी तेज हो सकती है और मीडिया को भरपूर मसाला भी मिल सकता है।
नशे में डोलता छत्तीसगढ़
शराबखोरी में तो छत्तीसगढ़ आगे रहा ही है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां जिस तरह गांजा तस्करी एवं ड्रग्स का अवैध क़ारोबार बढ़ा उससे निश्चित रूप से सरकार एवं पुलिस प्रशासन की चिंता बढ़ी हुई है। उड़ता पंजाब की बात तो ख़ूब होते रही थी अब डोलता छत्तीसगढ़ का जुमला चल पड़ा है। ख़ून ख़राबे के अधिकांश मामलों की पड़ताल में यह देखने में आते रहा है कि हमलावार नशीले पदार्थ का सेवन किए हुए थे। ओड़िशा की तरफ से गांजे की तस्करी तो बरसों से होती आ रही है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में वहां के ड्रग माफ़ियाओं ने छत्तीसगढ़ में पैर पसारना शुरु कर दिया। रायपुर पुलिस ने ओड़िशा जाकर नशे के दो ऐसे क़ारोबारियों को पकड़ा जो यहां नशीले सिरप, गोलियां एवं इंजेक्शन सप्लाई किया करते थे। इनके पास से क़रीब 50 लाख की नशीली दवाएं बरामद हुईं। यही नहीं पुलिस ने बीते सप्ताह दुर्ग, महासमुन्द एवं राजनांदगांव में भी नशे का क़ारोबार करने वालों को पकड़ा है। छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों में गांजा, अफीम, हेरोइन, चरस एवं ब्राउन शुगर का लुका-छिपा क़ारोबार जिस क़दर चल रहा है उस पर रोक लगाने पुलिस को अपराधियों के बीच डर-भय पैदा करना ज़रूरी है।
डीजे-धुमाल के खिलाफ़ मुहिम
पुलिस का बढ़ा सम्मान
पुलिस अक्सर मीडिया के निशाने पर रहती है। हाल ही में राष्ट्रीय स्तर के एक चैनल से संबंधित ‘क्राइम तक’ शो के प्रस्तुतकर्ता ने एक छोटी सी कहानी सुनाई थी कि पुलिस अगर अपनी में आ जाए तो वह कैसे रस्सी को सांप बना देती है। छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनों से आईपीएस अफसर जी.पी. सिंह का जो एपिसोड चला आ रहा है उससे न जाने कितने ही सवाल खड़े होते रहे। इन सबसे अलग हटकर देखें तो पुलिस विभाग के कुछ ऐसे काम भी सामने आते रहते हैं जिन्हें भरपूर प्रशंसा मिलती है। ऐसा ही उदाहरण धमतरी शहर में देखने को मिला। 9 वीं क्लास की एक छात्रा का सुबह गणित का पेपर था। घर के पास रात में जोरों से डीजे बज रहा था। छात्रा ने 100 नंबर पर डॉयल किया लेकिन नहीं उठा। फिर उसने कोतवाली के लैंड लाइन नंबर पर कॉल किया वहां भी नहीं उठा। फिर उसने सीधे एसपी प्रशांत ठाकुर को कॉल कर शिकायत की। एसपी ने तुरंत शिकायत को संज्ञान में लेते हुए डीजे बंद करवाया। इस तरह छात्रा की पढ़ाई हो सकी और दूसरे दिन बेहतर तैयारी के साथ पेपर देने जा सकी। एसपी व्दारा तत्काल शिकायत का समाधान कराए जाने की धमतरी शहर में प्रशंसा हो रही है। एक बेहतर निर्णय राजधानी रायपुर में भी हुआ है। रायपुर में अब रात 10 बजे के बाद डीजे व धुमाल पर रोक होगी। जिला एवं पुलिस प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि यह नियम तोड़ा गया तो डीजे-धुमाल संचालक एवं कार्यक्रम आयोजक दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। एक तरफ नया रायपुर जिसे मुर्दा शहर कहा जाने लगा है वहां इस क़दर सन्नाटा है कि उधर की कोई आवाज़ ही नहीं आती। दूसरी तरफ पुराने रायपुर शहर में आए दिन डीजे और धुमाल का इस क़दर शोर होते रहता है कि उससे शांति भंग हो जाती है। किसी गंभीर मरीज के घर के आसपास से यदि धुमाल कान फाड़ू शोर पैदा करते हुए निकले तो सोचा जा सकता है कि उस पर क्या बीतती होगी।
खैरागढ़ में सक्रिय पद्मा
खैरागढ़ विधानसभा उप चुनाव जब कभी भी हो लेकिन यह क्षेत्र राजनीतिक कारणों से लगातार चर्चा में बना हुआ है। खैरागढ़ के विधायक एवं राज परिवार के सदस्य देवव्रत सिंह के असमय निधन से यह विधानसभा सीट रिक्त हो गई है। देवव्रत के निधन के तूरंत बाद उनकी पहली पत्नी पद्मा सिंह एवं दूसरी पत्नी विभा सिंह खुलकर मीडिया के सामने आईं और अपने-अपने स्तर पर जताने की कोशिश की कि खैरागढ़ से उनका कितना गहरा नाता है। देवव्रत के बेटे एवं बेटी अपनी मां पद्मा के साथ हैं। देवव्रत एवं पद्मा के बीच तलाक़ हो चुका था लेकिन खैरागढ़ की जनता की नाराज़गी विभा सिंह के ख़िलाफ खुलकर सामने आई। स्वाभाविक है कि विभा का पड़ला कमजोर होते चला गया। अंदर की ख़बर रखने वालों के मुताबिक मुखिया भी पद्मा को आश्वस्त कर चुके हैं कि चिंता मत करो तुम्हारे पीछे हम खड़े हैं। इसके बाद से पद्मा का मनोबल ऊंचा नज़र आ रहा है। जिस तरह इन दिनों वे खैरागढ़ क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं उससे माना यही जा रहा है कि विधानसभा उप चुनाव में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती है। वह भूमिका किस तरह की होगी यह आने वाला समय बताएगा।