मिसाल न्यूज़
बतौर निर्देशक संतोष देशमुख की पहली छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘माटी पुत्र’ 12 जनवरी को रिलीज़ होने जा रही है। देशमुख यूं ही डायरेक्टर नहीं बने। पूर्व में दूसरे डायरेक्टरों को असिस्ट किया। लोक कला मंच से लंबे समय से जुड़े रहते हुए छत्तीसगढ़ की लोककला व संस्कृति को गहराई से समझे। उनका कहना है कि ‘माटी पुत्र’ मातृ भूमि की रक्षा के लिए जान पर खेल जाने वाले युवक की कहानी है। शिवा के काम को देखकर आपको ऐसा नहीं लगेगा कि वह उसकी पहली फ़िल्म है।
‘मिसाल न्यूज़’ ने हाल ही में संतोष देशमुख से बातचीत की…
0 संतोष देशमुख कहां से अपनी बात शुरु करना चाहेंगे…
00 सिनेमा में आने से पहले मैं लोक कला मंच से जुड़ा रहा था। ‘रंग सरोवर’ संस्था से मेरी शुरुआत हुई, जहां डायरेक्टर भूपेंद्र साहू जी को असिस्ट किया करता था। बाद में मैंने डौंडीलोहारा में ‘लोक सृजन’ संस्था बनाई। ‘लोक सृजन’ लगातार कार्यक्रम देती आ रही है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बात करूं तो मुझे पहला मौका ‘मोर मन के मीत’ के राइटर के रूप में मिला था।
0 बतौर निर्देशक ‘माटी पुत्र’ आपकी पहली फ़िल्म है, कैसा अनुभव रहा…
00 ‘माटी पुत्र’ से पहले मैं ‘दईहान’ में मुख्य सहायक निर्देशक एवं ‘बेनाम बादशाह’ में सहायक निर्देशक रहा था। सिनेमा की गहराई को समझने के लिए मैं कुछ समय मुम्बई में रहा। वहां मराठी फ़िल्म ‘पहली भेंट’ में भी सहायक निर्देशक रहा। अच्छी तैयारी के बाद ही मैं स्वतंत्र निर्देशन की तरफ जाना चाहता था। हीरो शिवा साहू सिनेमा से मेरे जुड़ाव के बारे में जानते थे और मेरा उनसे काफ़ी पुराना परिचय रहा है। वह ‘माटी पुत्र’ की कहानी लेकर मेरे पास आए थे। वह चाह रहे थे कि मैं ही इसे डायरेक्ट करूं। कहानी पढ़ने और सुनने के बाद लगा कि इस पर एक अच्छी फ़िल्म बन सकती है। फिर नवीन देशमुख ने इस फ़िल्म की पटकथा, संवाद एवं गीत लिखे। पुख़्ता सक्रीप्ट तैयार हो जाने के बाद ही हम शूट पर गए।
0 ‘माटी पुत्र’ का ट्रेलर देखें तो साउथ की फ़िल्मों की झलक दिखाई पड़ती है…
00 मैं लंबे समय से वॉच करते रहा हूं कि छत्तीसगढ़ के कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर टीवी पर साउथ की फ़िल्में चलती रहती हैं। हमारे यहां के दर्शकों को एक्शन व रोमांच ख़ूब भाता है। मुझे व शिवा दोनों को इस बात की गुंजाइश नज़र आई कि ‘माटी पुत्र’ की कहानी ही कुछ ऐसी है कि उसे साउथ का टच देते हुए पर्दे पर लाया जा सकता है। इसके लिए हमने साउथ के जाने-माने फाइट मास्टर सतीश अन्ना को बुलवाया। लगातार तेरह दिन एक्शन व मारधाड़ वाले सीन हुए। कुछ दृश्य तो ऐसे हैं जिसमें सैकड़ों की भीड़ दिखाना था। इसके लिए आसपास गांवों से गाड़ियों में भर-भरकर लोगों को लोकेशन पर लाया गया। उन सारे लोगों में इस बात को लेकर भारी उत्साह था कि वे किसी फ़िल्म का हिस्सा बनने जा रहे हैं।
0 तो क्या ‘माटी पुत्र’ में सबसे ज़्यादा खास एक्शन व मारधाड़ माना जाए…
00 एक्शन व मारधाड़ से ऊपर इमोशंस को माना जाए। असल में ‘माटी पुत्र’ अपनी माटी से गहरे लगाव व रिश्ते नातों की कहानी है। पहली ऐसी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म है, जिसमें मामा-भांजे के एक दूसरे के प्रति गहरे लगाव को दिखाया गया है। गांव में किसान की सबसे अनमोल चीज़ उसकी ज़मीन होती है। ज़मीन पर गिद्ध दृष्टि रखने वालों के खिलाफ़ पूरा गांव उठ खड़े होता है और फिर छिड़ता है युद्ध।
0 हीरो शिवा साहू की यह पहली फ़िल्म है। शिवा एवं अन्य कलाकारों का काम आपकी दृष्टि में कैसा रहा…
00 शिवा के काम को देखकर आपको ऐसा नहीं लगेगा कि वह उनकी पहली फ़िल्म है। शिवा के अपोज़िट मुस्कान साहू हैं। मुस्कान जो इमोशंस को पकड़ती हैं वह किसी अन्य में देखने को नहीं मिलता। मनोज जोशी से लेकर पुष्पेंद्र सिंह, क्रांति दीक्षित, अंजलि सिंह एवं अजय पटेल इन सब का कमाल का काम इस फ़िल्म में देखने को मिलेगा।