■अनिरुद्ध दुबे
कितनी अज़ीब बात है कि यूपीएससी का रिज़ल्ट आने पर एक युवक फर्जीगिरी करने से पीछे नहीं रहा। कहानी मुंगेली जिले की है। यूपीएससी 2023 का जो परिणाम आया उसमें 120 वीं रैंक पर कोई मनोज चयनित हुए हैं। हमनाम होने का फायदा होते हुए सुरीघाट के मनोज ने ख़बर फैला दी कि यूपीएससी से उसका चयन हो गया है। मीडिया वालों ने उसके नाम की ख़बर भी चला दी। ख़बर मुंगेली कलेक्टर राहुल देव तक पहुंची। राहुल देव ने युवक को बधाई देते हुए मिठाई खिलाई। बातचीत के दौरान कलेक्टर ने जब कुछ सवाल किए तो वह गोल मोल ज़वाब देने लगा। कलेक्टर ने एडमिट कार्ड दिखाने कहा, जिसे वह नहीं दिखा पाया। कलेक्टर का शक और गहरा गया। कलेक्टर के निर्देश पर नायब तहसीलदार एवं पटवारी मनोज के घर पहुंचे और उसे एडमिट कार्ड दिखाने कहा। वह जब एडमिट कार्ड नहीं दिखा पाया तो तहसीलदार ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने युवक से कड़ाई से पूछताछ की तो सच सामने आ गया। पुलिस ने मनोज को ही नहीं बल्कि उसे इस काम के लिए दुष्प्रेरित करने वाले दो युवकों को भी गिरफ्तार किया। मनोज ने पुलिस को बताया कि ईनाम-विनाम के चक्कर में उसने यूपीएससी क्लीयर कर लेने की पुड़िया छोड़ी थी, लेकिन झूठ पकड़ा गया। मनोज का यह प्रकरण सामने आने के बाद 90 के दशक की एक और कहानी से जुड़ी यादें ताज़ा हो गई। तब टीवी चैनल नहीं हुआ करते थे और अख़बारों का दौर था। यूपीएससी के परिणाम सामने आए थे। दुर्ग जिले से एक ख़बर सामने आई कि रामायण साहू नाम के युवक ने आईएएस की परीक्षा पास कर ली है। रामायण साहू एक कलेक्टर के यहां संतरी था। रायपुर के एक प्रतिष्ठित अख़बार के पास जब इस तरह की ख़बर पहुंची तो उसने प्रमुखता के साथ फ्रंट पेज पर सबसे ऊपर वाली ज़गह पर उसे स्थान दिया और हैडिंग लगी- ‘कलेक्टर का संतरी बना कलेक्टर।‘ यह ख़बर केवल एक ही दिन तक सीमित नहीं रही बल्कि तीन-चार दिनों तक इस पर अलग-अलग एंगल से स्टोरी अख़बार में छपती रही। एक दिन रामायण साहू का इंटरव्यू छपा। इसके बाद जिन कलेक्टर के यहां ड्यूटी थी वह उसके बारे में क्या सोचते हैं, वह छपा। फिर पता चला कि रामायण साहू का पिता किसी गुनाह में जेल में बंद है। अख़बार का रिपोर्टर जेल प्रशासन से अनुमति लेकर रामायण के पिता से मिला और उससे हुई बातचीत को भी प्रकाशित किया गया। वो कहते हैं न झूठ ज़्यादा समय तक नहीं टिके रह पाता। यह खुलासा होते देर नहीं लगी कि रामायण साहू यूपीएससी परीक्षा पास ही नहीं किया है। वह केवल झूठ पर झूठ बोले जा रहा था। कहीं-कहीं पर विलियम शेक्सपियर की यह बात ठीक ही लगती है कि “नाम में क्या रखा है।“ झूठ पर झूठ बोलने वाले का नाम तो आख़िर रामायण ही था।
कहां हैं बाबा
लोकसभा चुनावी माहौल के बीच कितने ही लोगों के मन में में जिज्ञासा है कि आख़िर बाबा कहां हैं! बाबा यानी टी.एस. सिंहदेव। 2018 के विधानसभा चुनाव एवं 2019 के लोकसभा चुनाव के समय में कांग्रेस की तरफ से भूपेश बघेल के बाद कोई सर्वाधिक चर्चा में थे तो वह बाबा ही थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में बाबा के समझे जाने वाले क्षेत्र सरगुजा संभाग की 14 की 14 विधानसभा सीटों में कांग्रेस जीती थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में इन सभी 14 सीटों में कांग्रेस हारी। अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर शशि सिंह चुनावी मैदान में उतरी हैं। वहीं भाजपा से चिंतामणि महाराज चुनावी मैदान में हैं। चिंतामणि महाराज पूर्व में कांग्रेस विधायक थे। 2023 में उनकी टिकट कट गई थी और टिकट कटने के लिए वह बाबा को ज़िम्मेदार ठहराते रहे थे। नाराज़ चिंतामणि महाराज भाजपा में चले गए। बताते हैं बाबा शशि सिंह को जिताने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं। माना जा रहा है कि इसी कारण बाबा नाना प्रकार की चर्चाओं से इन दिनों दूर हैं।
.‘आप’ के नाम पर
अब कुछ नहीं बचा
छत्तीसगढ़ में मानो अब ‘आम आदमी पार्टी’ यानी ‘आप’ के लिए कुछ बचा ही नहीं रह गया है। 2012 के समय में जब अरविंद केजरीवाल ने ‘आप’ की नींव रखी थी छत्तीसगढ़ में भी इसकी हलचल मची थी। अभिजात्य वर्ग से जुड़े बहुत से लोग जिनके मन में कुछ अलग हटकर करने की चाहत थी वे ‘आम आदमी पार्टी’ से जुड़ते चले गए थे। ‘आम आदमी पार्टी’ ने 2013 में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव के समय में कुछ सीटों में जब अपने उम्मीदवार उतारे थे तो उसकी काफ़ी चर्चा रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बस्तर का चर्चित चेहरा सोनी सोढ़ी ‘आप’ की टिकट पर बस्तर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ी थीं। वहीं 14 के चुनाव में “मोर संग चलव रे…” जैसे कालजयी छत्तीसगढ़ी गीत के रचयिता लक्ष्मण मस्तुरिया महासमुन्द लोकसभा सीट से ‘आप’ की टिकट पर चुनावी मैदान में थे। 14 के ही चुनाव में रायपुर से संदीप तिवारी ‘आप’ के उम्मीदवार थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर रायपुर ग्रामीण विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में थे। 2018 एवं 2023 दोनों बार के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी भानुप्रतापपुर सीट से चुनावी मैदान में थे। हुपेंडी अब भाजपा में जा चुके हैं। किसी समय में छत्तीसगढ़ प्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष रह चुके विजय कुमार झा 23 के चुनाव में ‘आप’ की टिकट पर रायपुर दक्षिण से चुनाव लड़े। कई नामीगिरामी लोग ‘आम आदमी पार्टी’ से जुड़े रहकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपना योगदान देना चाह रहे थे, लेकिन बात करें ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की, जिन्होंने कभी छत्तीसगढ़ को गंभीरता से नहीं लिया। नतीजतन छत्तीसगढ़ में ‘आप’ की ज्योति पूरी तरह प्रकाशित होने से पहले ही बूझ गई।
छत्तीसगढ़ लौटे
सोनमणि बोरा
सीनियर आईएएस अफ़सर सोनमणि बोरा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1999 बैच के अधिकारी हैं। बोरा ने रायपुर मंत्रालय में ज्वाइनिंग दे दी है। बोरा ने सन् 2002 में रायपुर नगर निगम कमिश्नर का दायित्व सम्हाला था। उन्होंने बिलासपुर, सरगुजा एवं कबीरधाम (कवर्धा) जैसे सुर्खियों में रहने वाले जिलों में कलेक्टरी की। छत्तीसगढ़ में पहली सरकार बनी तो उन्होंने पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का फिर दूसरी बार की सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का विश्वास जीता था। बोरा छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल (हाउसिंग बोर्ड) एवं रायपुर विकास प्रधिकरण (आरडीए) जैसी संस्थाओं में सीईओ रहे। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग में संचालक रहे। एक समय में वे तत्कालीन राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके के सचिव रहे। जब वे किसी संवैधानिक पद से जुड़ी शख़्सियत के साथ डटकर खड़े रहे और समय-समय पर उन्हें महत्वपूर्ण सलाह देते रहे वह पिछली कांग्रेस सरकार में बैठे कुछ लोगों को रास नहीं आया था। कोविड का भयंकर महामारी वाला दौर आया तो आपदा प्रबंधन जैसी ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। जोगी सरकार और डॉ. रमन सिंह सरकार के समय में बोरा साहब का जो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, 2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद मानो सब कुछ बदलता सा दिखने लगा। बदलाव वाले उस दौर में उनका रूख़ दिल्ली की तरफ हो गया था। अब छत्तीसगढ़ वापसी हो चुकी है। कितने ही लोगों के मन में प्रश्न है कि बोरा साहब कौन सा दायित्व मिलने जा रहा है?
पहले गाने के बोल तो समझ
आएं… फिर करें मतदान…
राजधानी रायपुर में घर-घर कचरा इकट्ठा करने के लिए जाने वाली गाड़ियों में बाल कलाकार आरू साहू की आवाज़ में एक गीत बजता है- “चलो करो मतदान…करबो मतदान… आवो सबो झन करबो मतदान…” इसमें कोई दो मत नहीं कि नन्ही गायिका आरू साहू की आवाज़ बड़ी प्यारी है। इस बाल कलाकार ने छोटी उम्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की है, लेकिन कचरे इकट्ठा करने वाली वाली गाड़ियों में “चलो करो मतदान…” वाले गीत के बोलों को समझ पाने की न जाने कितने ही लोग कोशिश करते हैं, लेकिन समझ नहीं पाते। इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों के अलग-अलग तर्क हैं- कोई कहता है कि “गाड़ियों में लगा स्पीकर ठीक नहीं होगा इसलिए समझ नहीं आ रहा होगा…” कोई तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहता है “गाना तो सही रिकार्ड हुआ लेकिन इसकी गति बढ़ा दी गई है, जिससे हो सकता है इस भागते हुए गाने के बोल समझ नहीं आ पा रहे हों…” तो किसी कहना है कि “दोष उन लोगों का है जिनके कान ठीक से शब्दों को ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं।“ चाहे जो हो, इन्हीं गाड़ियों में तो “गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल…” या फिर “आओ रे आओ रे आओ रे….” बजता रहा है, जिनके बोल आसानी से समझ में आते हैं। फिर “चलो करो मतदान…” गीत के बोल को समझने में इतनी कठिनाई क्यों…