कारवां (28 जुलाई 2024)- ● बोतल के जिन्न की तरह बाहर आई भरमार बंदूक… ● ‘12’ का कांटा कमल विहार में बना बाधक… ● कमल विहार या ‘कौशल्या विहार’… ● बृजमोहन की कमी खली… ● तो क्या मूणत का टारगेट रायपुर महापौर… ● फूलों की पंखुड़ियों के बाद अब ‘घूंसे’ की चर्चा…

■ अनिरुद्ध दुबे

विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने विधानसभा के इस मानसून सत्र में प्रश्नकाल के दौरान कहा था- “बार-बार यही बताया जाता है कि नक्सलियों की भरमार बंदूकें जप्त हुईं। ये भरमार बंदूकें चलती हैं या नहीं, क्या इसकी जांच कराई गई है? आज की तारीख़ में क्या किसी ने भरमार बंदूकों को चलते देखा है? मेरे पास जानकारी आई है कि पुलिस वाले भरमार बंदूकें लेकर जाते हैं और उसे लाश के पास रख देते हैं।“ डॉ. महंत ने आगे कहा था कि “अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में 1995 में मैं भी प्रदेश सरकार में गृह मंत्री रहा था। उस ज़माने में भरमार बंदूक नहीं होती थीं।“ विधानसभा का मानसून सत्र ख़त्म होने के बाद मीडिया की ओर से डॉ. महंत से जब यह सवाल हुआ कि भरमार बंदूकें छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले ही चलन में नहीं हैं तो पूर्व में भी तो छत्तीसगढ़ में 3 बार भाजपा की सरकार थी तब इसे लेकर प्रश्न क्यों नहीं उठा था? ज़वाब में डॉ. महंत ने कहा कि “यह बात शासन में मंत्री पद पर बैठे लोगों को भी पता नहीं रहती थी। ऊपर से भारी दबाव रहने के कारण पुलिस को भरमार बंदूकें जप्त होने का हवाला देते रहना पड़ा है।“ डॉ. महंत के ही साथ मौजूद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “जब मैं मुख्यमंत्री था, स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दे रखा था कि भरमार बंदूकें जब्त करने जैसी काल्पनिक बातें की गईं तो गिनती करने सीधे थाने पहुंचूंगा। तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में रहते हुए में भरमार बंदूकें जप्त हुईं जैसा विवरण आना बंद हो गया था।“

‘12’ का कांटा कमल

विहार में बना बाधक

राजधानी रायपुर के कमल विहार में आमोद प्रमोद वाली जगह में सार्वजनिक सरोकार से जुड़े किसी निर्माण कार्य का टेंडर कर दिए जाने पर पूर्व मंत्री एवं मुखर विधायक राजेश मूणत ने विधानसभा के मानसून सत्र में आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी. चौधरी के सामने सवालों की झ़ड़ी लगा दी। यहां यह बता दें कि नियम-कायदों एवं विरोध के मकड़जाल में कभी जकड़ी रही कमल विहार योजना पर रंग चढ़ना उस समय शुरु हुआ था जब खुद राजेश मूणत डॉ. रमन सिंह की सरकार में आवास एवं पर्यावरण मंत्री थे। आज जब कमल विहार मुरझाया दिख रहा है तो मूणत के सीने में दर्द होना स्वाभाविक है। चर्चा तो यही है कि कमल विहार को लेकर मूणत और भी सवाल दागना चाहते थे लेकिन विधानसभा की घड़ी का कांटा ‘12’ पर पहुंच गया और प्रश्नकाल समाप्त हो गया। उल्लेखनीय कि विधानसभा में प्रश्नकाल 11 से 12 के बीच ही होता है।

कमल विहार या

‘कौशल्या विहार’

विधानसभा में जब पूर्व मंत्री राजेश मूणत तथा आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी. चौधरी के बीच सवाल ज़वाब हो रहा था, दोनों ही नेता कमल विहार शब्द का लगातार उपयोग कर रहे थे। चलती बहस के बीच पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने ओ.पी. चौधरी से सवाल किया कि “कमल विहार’ या ‘कौशल्या विहार?“ चौधरी ने कहा कि “यह तकनीकी मामला है, फिर यहां कागज़ पर कमल विहार ही उल्लेखित है।“ उल्लेखनीय है कि पिछली बार की कांग्रेस सरकार ने कमल विहार का नामकरण ‘कौशल्या विहार’ किया था। वास्तव में प्रचलन में कमल विहार है या कौशल्या विहार इस पर प्रकाश तो आरडीए (रायपुर विकास प्राधिकरण) ही डाल पाएगा।

बृजमोहन की कमी खली

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद विधानसभा का यह मानसून सत्र पहला ऐसा सत्र रहा जिसमें पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल  की कमी खली। यह कमी न सिर्फ़ सत्ता पक्ष एवं विपक्ष बल्कि मीडिया के उन पुराने साथियों को भी खली, जिनसे उनके बरसों पुराने संबंध रहे। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में बृजमोहन लगातार 3 बार विधायक चुनाव जीते थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लगातार 5 बार विधायक चुनाव जीते। बृजमोहन का समय अब बतौर सांसद बारी-बारी से दिल्ली एवं रायपुर में बीत रहा है।

… तो क्या मूणत का

टारगेट रायपुर महापौर

विधानसभा के इस मानसून सत्र में वरिष्ठ भाजपा विधायक राजेश मूणत ने प्रदेश की नगर निगमों, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों व जनपद पंचायतों का निर्वाचन एक साथ कराए जाने को लेकर एक अशासकीय संकल्प सदन में प्रस्तुत किया। मूणत के अशासकीय संकल्प पर उप मुख्यमंत्री (नगरीय प्रशासन) अरूण साव ने प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया। साथ में साव ने यह भी कहा कि “जिस भावना के साथ विधायक ने प्रस्ताव रखा है उसका सम्मान है। किंतु नियम और प्रक्रिया अलग होने से चुनाव एक साथ करा सकते हैं या नहीं करा सकते इस पर सरकार परीक्षण करेगी।“ साव ने इसके लिए एक कमेटी बनाकर परीक्षण कराने की भी घोषणा की। इसके बाद मूणत ने अशासकीय संकल्प वापस ले लिया। उल्लेखनीय यह है कि इस अशासकीय संकल्प का भाजपा विधायक किरण देव ने समर्थन किया। किरण देव ने सदन में कहा कि “मुझे नहीं मालूम कि इसकी संवैधानिक बाध्यता क्या है पर मेरा ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर समर्थन है। इससे सत्ताधारी दल को काम करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा समय मिलेगा, क्योंकि अभी की स्थिति में लगभग तीन साल का समय चुनाव-चुनाव में ही निकल जाता है।“ गौर करने लायक बात यह है कि पूर्व में राजेश मूणत खुद नगरीय प्रशासन मंत्री रह चुके हैं और किरण देव जगदलपुर महापौर। स्वाभाविक है नगरीय निकाय से कभी सीधा संबंध रखे रहे दो विधायक सदन में अपनी ओर से कुछ ऐसी बात रखें तो उसका असर तो पड़ता ही है। फिर राजनीति से जुड़े कुछ गंभीर किस्म के लोगों के मन में सवाल कौंधा हुआ है कि राजेश मूणत इन दिनों कार्यालय से लेकर सदन तक में नगरीय निकाय की राजनीति पर बार-बार चर्चा करते क्यों दिख रहे हैं? वहीं कुछ लोग 2014 के उस दौर को भी याद कर रहे हैं कि जब मूणत के प्रदेश सरकार में मंत्री रहते हुए में उनके रायपुर महापौर चुनाव लड़ने की अटकलें चल पड़ी थीं। जानकार लोग बताते हैं उस दौर में मूणत ने अपने कुछ बेहद क़रीबी लोगों से कह भी दिया था कि पार्टी की ओर से आदेश हुआ तो महापौर चुनाव लड़ने में क्या दिक्कत! अब राजनीति के गुणा भाग में लिप्त रहने वाले कुछ लोगों के भीतर यह प्रश्न जागा हुआ है कि क्या प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनाव हुआ तो इस साल होने वाले नगर निगम चुनाव में मूणत रायपुर महापौर के लिए जोर लगा सकते हैं? ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि यदि विधायक रहते हुए में कोई महापौर बन जाए तो वह विधायक एवं महापौर दोनों पदों का निर्वहन कर सकता है। यहां एक व्यक्ति एक पद जैसी कोई बाध्यता नहीं है। पूर्व में तरुण चटर्जी (रायपुर) एवं देवेन्द्र यादव (भिलाई) ऐसे उदाहरण रहे हैं जो एक ही समय में महापौर एवं विधायक दोनों पदों पर बने रहे थे।

फूलों की पंखुड़ियों के

बाद अब ‘घूंसे’ की चर्चा

रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर के बारे में कहा जाता है कि वह जीवन में कोई भी काम छोटा नहीं करते। 2023 में राजधानी रायपुर में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था तो उन्होंने अपनी राष्ट्रीय नेत्री प्रियंका गांधी के स्वागत में एयरपोर्ट के रास्ते क़रीब एक किलोमीटर तक फूलों की पंखुड़ियां बिछवा दी थी। अब 24 जुलाई को कांग्रेस का जो विधानसभा घेराव आंदोलन हुआ तो आक्रामक एजाज़ ने पुलिस कर्मी को सीधे घूंसा ही दिखा दिया, जिसका वीडियो जमकर वायरल हो रहा है और एफआईआर भी दर्ज हो गई। कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भले ही बड़े-छोटे नेता कितनी ही ताकत क्यों न लगाए रहे हों, पूरे प्रदेश में चर्चा तो फूलों की पंखूड़ियां बिछा देने के कारण एजाज़ की ही रही थी। उसी तरह विधानसभा घेराव आंदोलन में भारी उमस के बीच न जाने कितने ही कांग्रेसियों ने पसीना बहाया होगा, लेकिन पूरे प्रदेश में सबसे ज़्यादा चर्चा तो एजाज़ के घूंसा दिखाते हुए वीडियो की ही है।

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