■ अनिरुद्ध दुबे
रायपुर दक्षिण उप चुनाव को हुए चार दिन हो गए और रिज़ल्ट आने में छह दिन बाकी हैं। क्या नेता, क्या पत्रकार, क्या साहित्यकार सब यही सवाल करते नज़र आ रहे हैं कि इस उप चुनाव का नतीजा आख़िर क्या होगा? रायपुर दक्षिण हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती रही है। ऐसी जगह पर उप चुनाव में 50 प्रतिशत ही मतदान होना हर किसी को चकित कर गया। ताकत तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही तरफ से ख़ूब लगी हुई थी। फिर क्या हुआ मतदाता कटा-कटा सा रहा, यह सवाल न जाने कितने ही लोगों के मन को मथ रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले हर चुनाव में मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे मुस्लिम समाज के कितने ही मतदाता इस बार उप चुनाव में वोट डालने नहीं गए।
सारी रात जगे मोहन
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के चुनावी मैनेजमेंट की मिसाल पूरे प्रदेश में दी जाती है। पहले जब प्रदेश में कहीं कहीं पर अलग-अलग परिस्थितियों के कारण उप चुनाव होते रहे तो वहां के चुनावी प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उनके व्यापक अनुभवों को देखकर दी जाती थी। लेकिन रायपुर दक्षिण उप चुनाव में तो मोहन भैया ने ज़िम्मेदारी आगे से होकर ले रखी थी। बताते हैं मोहन भैया 12 नवंबर की पूरी रात जागे और ‘तत्पर’ कार्यालय में जमे रहकर पार्टी के लोगों को मार्गदर्शन देते रहे। 13 नवंबर को पोलिंग वाले दिन जब सबेरे का सूरज निकला तब मोहन भैया मौलश्री विहार अपने घर गए। बताने वाले तो यही बताते हैं कि मोहन भैया खुद कितने ही चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उनकी ऐसी तत्परता पहली बार देखने को मिली। फिर ऐसा क्यों न हो, सुनील सोनी मोहन भैया की इच्छा से ही उम्मीदवार जो बने। जब आप अपने किसी मनपंसद की टिकट पक्की कराएं, प्रतिष्ठा तो दांव पर लग ही जाती है।
लीड कम मिली तो पार्षद
चुनाव में टिकट कट
रायपुर दक्षिण विधानसभा में पूर्व में 4 आम चुनाव हो चुके हैं और यह पहला उप चुनाव था। राजनीतिक हलकों में यही चर्चा है कि कांग्रेस जिस ताकत के साथ यह उप चुनाव लड़ी है वैसा तो पिछले चारों आम चुनाव में भी नहीं लड़ी थी। बताते हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज पूरे चुनाव के समय रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में डटे रहे। राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां कब कौन चूपचाप किधर कलटी मार दे और कौन बिक जाए इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में 19 वार्ड आते हैं। 11 वार्डों में कांग्रेस तथा 8 वार्डों में भाजपा के पार्षद हैं। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं कि कांग्रेस पार्षदों को उनके प्रमुख ने चेता दिया था कि जिस किसी के भी वार्ड में पार्टी को कम लीड मिली तो वह समझ ले कि अब कि बार के पार्षद चुनाव में उसकी टिकट कट। यही कारण है कि कांग्रेस पार्षदों ने अपने वार्डों में पूरी ताकत झोंक दी।
निर्णायक होंगे
ओबीसी वोट
रायपुर दक्षिण उप चुनाव में ससुर जी की प्लानिंग कुछ इस तरह थी कि अल्पसंख्यक समुदाय के वोट कांग्रेस के कमिटेड वोट हैं अतः उधर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। देखने की ज़रूरत ब्राह्मण समुदाय की तरफ पड़ेगी क्योंकि उनकी बहुतायत है। यही कारण है कि ससुर जी ने ब्राह्मण समाज की बैठकों का ख़ूब दौर चलवाया। कभी बैठक किसी नेता के यहां होती थी तो कभी किसी सेवानिवृत्त अधिकारी के यहां। एक ही दिन में रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के तीन अलग-अलग इलाकों में ब्राह्मण समाज का दीपावली मिलन हुआ और तीनों ही में ससुर जी ने बारी-बारी अपनी उपस्थिति दी। एक उम्रदराज़ ब्राह्मण जो राजनीति की गहरी समझ रखते हैं उनका कहना रहा कि ससुर जी अपनी रणनीति में सफल रहेंगे और 70 से 80 प्रतिशत ब्राह्मण वोट दामाद को जा तो रहे हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं। इसलिए कि रायपुर दक्षिण में बहुतायत ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) की है। चुनावी परिणाम में निर्णायक भूमिका ओबीसी वोटों की ही रहेगी। अब देखना यह होगा कि 23 नवंबर को ऊंट किस करवट बैठता है।
शराब और मर्दानगी
एक शेर है-
नशा पिला के गिराना
तो सब को आता है
मज़ा तो जब है कि
गिरतों को थाम ले साकी
शराब क्या-क्या नहीं कहलवा देती। यहां बात पीने वालों की नहीं हो रही है, बल्कि शराब को लेकर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों तरफ के नेताओं की टीका टिप्पणी को लेकर हो रही है। छत्तीसगढ़ में शराब के मनपसंद ब्रांड को लेकर एक एप लॉच हुआ है। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ट्वीट आया कि “अब डबल इंजन भोजनालय में शराब परोसी जाएगी।“ भाजपा प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव की तरफ से ज़वाब आया कि “कोरोनाकाल में जब लोग दवाओं के लिए तरस रहे थे तत्कालीन कांग्रेस सरकार शराब की घर पहुंच सेवा चला रही थी।“ शराब एप पर पूर्व मंत्री एवं वर्तमान भाजपा विधायक अजय चंद्राकर का भी वक्तव्य एक वीडियो के माध्यम से सामने आया, जिसे भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कटाक्ष किया। बस फिर क्या था, ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह की गाई ग़ज़ल “बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी…” की तर्ज पर बात इतनी दूर चली गई कि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के नेता एक दूसरे की मर्दानगी पर सवाल उठाते नज़र आए! यही नहीं एक-दूसरे को मर्दानगी टेस्ट कराने की चुनौती देने से भी पीछे नहीं रहे! जिस तारीख़ की दोपहर से शाम तक मर्दानगी को लेकर वाक युद्ध छिड़ा रहा, उसी रात राजधानी रायपुर के पिरदा क्षेत्र में स्थित एक फॉर्म हाउस में हुक्का गुड़गुड़ाते हुए 7 तथा जुआ खेलते 6 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। पिछली कांग्रेस सरकार तो घोषणा पत्र में वादे के बाद भी शराब बंद नहीं कर सकी थी, लेकिन हुक्का बार पर ज़रूर प्रतिबंध लगाई थी। प्रतिबंध के बाद भी जिस तरह रायपुर में हुक्के का दौर जारी है वह कोई कम चिंता का विषय नहीं। पिरदा जहां हुक्का प्रेमी पकड़े गए वह जगह तो फिर भी शहर से थोड़ी दूर पर है, राजधानी रायपुर के हृदय स्थल कहलाने वाले जयस्तंभ चौक के पास इसी साल एक व्यापारी हुक्का से संबंधित सामग्री बेचने के आरोप में गिरफ़्तार हुआ था। इस तरह हुक्का न तब बंद हुआ था न अब बंद हुआ है।
उड़ता पंजाब और
डोलता छत्तीसगढ़
कुछ वर्षों पहले नशे की गिरफ़्त में रहे पंजाब को लेकर जब ‘उड़ता पंजाब’ फ़िल्म आई थी तो फुलझड़ी छोड़ते रहने वाले यह कहने से नहीं चूके थे कि ‘डोलता छत्तीसगढ़’ नाम से भी फ़िल्म बन सकती है। पिछले एक हफ्ते में शराब को लेकर मीडिया में जो ख़बरें छाई रहीं उन पर सोचते हुए तो लगता है कि ‘डोलता छत्तीसगढ़’ वाली बात कोई यूं ही नहीं कही रही होगी। पिछले एक हफ्ते में मीडिया में छाई हेड लाइनों पर गौर कर लें- 1. भिखारिन के पैसे से शराब पीकर लुढ़का सिपाही निलंबित (बिलासपुर), 2. देर रात परोसी जा रही थी बार में शराब, युवक युवतियों में मचा हड़कंप, मैनेजर गिरफ़्तार (बिलासपुर), 3. शराब क़ारोबारी के कब्ज़े से छुड़ाया गया तालाब (बिलासपुर), 4. अवैध शराब बिक्री के खिलाफ़ महिलाएं उतरीं सड़क पर, थाना घेरा (रायगढ़), 5. नगर पंचायत अध्यक्ष की शराब पीने की पुष्टि के बाद 3 बेकसूर पुलिस कर्मियों का निलंबन रद्द (पलारी)।

