कारवां (6 अप्रैल 2025) ● भारतमाला परियोजना पर फ़र्ज़ीवाड़ा, डॉ. महंत ने फिर आवाज़ लगाई सीबीआई… ● निगम-मंडल 1 श्रीवास पुराण… ● निगम-मंडल 2 केदार-संदीप पुराण… ● करियर चमकाना है तो पार्षद बनो… ● हीरो-हीरोइन की भूमिका में भाई-बहन…

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत भारतमाला परियोजना में हुए भ्रष्टाचार को यूं ही जाने देने के मूड में नहीं हैं। डॉ. महंत ने अब केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखकर इसकी सीबीआई जांच कराने की मांग कर दी है। मामला रायपुर से विशाखापट्टनम के बीच भारतमाला परियोजना के तहत बन रही सड़क का है। माना जा रहा है कि इस सड़क के बन जाने के बाद रायपुर से विशाखापट्टनम 6 से 7 घंटे में पहुंचना संभव हो सकेगा। अभनपुर के आगे सड़क निर्माण के नाम पर फ़र्ज़ी नामांतरण का ऐसा खेल खेल दिया गया कि जो  मुआवजा 7 करोड़ 65 लाख होना था वह 49 करोड़ 39 लाख पर पहुंच गया। इस फ़र्ज़ीवाड़े में पटवारी से लेकर बड़े अफ़सरों तक की भूमिका होना माना जा रहा है। पिछले मार्च महीने में हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में डॉ. महंत ने इस मामले को सदन के भीतर पूरी दमदारी के साथ उठाया था। विधानसभा में डॉ. महंत ने खुलकर कहा था कि करोड़ों के इस फ़र्ज़ीवाड़े में न सिर्फ़ सत्ता पक्ष बल्कि हमारी पार्टी के लोगों की भी भूमिका हो सकती है, जो भी दोषी पाए जाएं उन्हें बख़्शा नहीं जाए। डॉ. महंत ने सदन के भीतर इसकी सीबीआई जांच की मांग की थी। सदन में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा की ओर से किसी भी तरह की जांच की घोषणा नहीं होने पर डॉ. महंत ने कहा था कि इस मामले को लेकर मैं हाईकोर्ट जा रहा हूं। हालांकि विधानसभा में इस मामले के उठने के बाद राज्य सरकार ने इसकी ईओडब्ल्यू से जांच कराने की घोषणा कर दी थी लेकिन डॉ. महंत इतने से संतुष्ट नहीं हैं और सीबीआई जांच की मांग पर अड़े हुए हैं। उनके व्दारा केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री को गडकरी को पत्र लिखे जाने के पीछे की कहानी यही है।

निगम-मंडल 1

श्रीवास पुराण 

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से जो 36 निगम-मंडलों की घोषणा हुई उस पर अलग-अलग एंगल से चर्चाओं का दौर जारी है। माना जा रहा है कि कुछ नेताओं को लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ाने वाला विभाग मिला तो कुछ को उनके बड़े क़द के हिसाब से छोटा। गौरीशंकर श्रीवास की बात कर लें, जिन्हें इस समय एक हाई प्रोफाइल मंत्री का ख़ासमखास माना जाता है। श्रीवास के बारे में निगम मंडल की घोषणा होने से पहले सत्ता में गहरी पकड़ रखने वाले कुछ लोग अपने क़रीबी लोगों से यह कहते नज़र आए थे कि जातिगत समीकरण के हिसाब से इस लंबाई वाले नेता को राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपे जाने की तैयारी है। फिर सिविल लाइन के कुछ बड़े दरवाजों पर चक्कर काटते रहने वाले एक नेता की तरफ से यह भी सुनने मिला था कि गौरी ने घोषणा होने से पहले ही बड़े नेताओं को लिखकर दे दिया है कि मुझे जिस पद को देने के बारे में सोचा जा रहा है उसके लिए तैयार नहीं हूं। मैं संगठन में ही ठीक हूं। जब निगम-मंडल की सूची सामने आई तो ऐसा जान पड़ा मानो और बड़ा खेल हो गया हो। केश शिल्पी कल्याण बोर्ड अध्यक्ष के आगे लोक कलाकार एव फ़िल्म अभिनेत्री मोना सेन तथा उपाध्यक्ष के आगे श्रीवास का नाम लिखा था। यही कारण है कि सोशल मीडिया पर श्रीवास की प्रतिक्रिया आने में देर नहीं लगी और राजनीतिक जगत में पद और स्तर को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे। फिर कहा यह भी जा रहा है कि मोना सेन की लोक कला एवं छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत में अपनी अलग पहचान है। उन्हें सौंपा ही जाना था तो फ़िल्म विकास निगम या छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद का दायित्व सौंपा जा सकता था।

निगम-मंडल 2

केदार-संदीप पुराण

भाजपा के फायर ब्रांड प्रदेश प्रवक्ता केदार गुप्ता की बात करें। डॉ. रमन सिंह के तीसरे मुख्यमंत्रित्वकाल में वे पर्यटन मंडल के उपाध्यक्ष थे। माना जा रहा था कि इस बार सरकार बनने के बाद केदार को उनकी क्वालिटी के हिसाब से वज़नदार विभाग मिलेगा। लेकिन ये क्या, उन्हें मिला दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष पद का प्रभार। हालांकि इस नियुक्ति को लेकर केदार अपनी तरफ से तो कुछ बोलते नहीं नज़र आए, लेकिन बरसों से राजनीतिक चर्चाओं में मशगूल रहते आए नेतागण भला कहां चूप बैठने वाले हैं। इन गणितबाज नेताओं का यही कहना रहा है कि लगता है कि पदों को बांटने को लेकर जब विचार विमर्श का दौर चल रहा होगा, केदार की कीर्ति का ध्यान नहीं रखा गया। यह ठीक है कि कभी दुग्ध महासंघ की कुर्सी का अपना अलग स्वाद हुआ करता था और उसके दफ़्तर में मलाई जैसी चमक भी नज़र आया करती थी, पर अब वो दिन नहीं रहे। केदार जैसे कामकाजी नेता के पास कामकाज वाली ही कोई कुर्सी होने थी। बात करें संदीप शर्मा की जिन्हें खाद्य आयोग अध्यक्ष बनाया गया है। संदीप शर्मा जब रायपुर के छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में अध्ययनरत् थे, खादी वाला गांधी झोला दाएं कंधे पर लटकाए कॉलेज़ आया करते थे। यानी सादगी पसंद युवा थे। आगे चलकर इन्होंने भाजपा से जुड़कर किसान नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। 2023 के चुनाव में राजिम विधानसभा क्षेत्र से टिकट की दौड़ में थे, लेकिन टिकट पा गए चुनाव से कुछ ही महीनों पहले जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) से भाजपा में आए रोहित साहू। रोहित चुनाव जीत भी गए। फिर चर्चा यही थी कि किसान नेता संदीप शर्मा को उनकी रुचि के अनुरुप बीज निगम अध्यक्ष पद का दायित्व मिलेगा, लेकिन उन्हें दिया गया खाद्य आयोग। केदार गुप्ता की तरह संदीप शर्मा भी खुलकर कुछ कहते नज़र नहीं आए हैं, लेकिन कहने वालों के मुंह पर कौन ताला लगा सकता है। कहा यही जा रहा है कि नेताजी के सीने में आग धधक रही है, यह अलग बात है कि गुस्से को पी जाने वाला गुण उन्हें विरासत में मिला हुआ है।

करियर चमकाना

है तो पार्षद बनो

इस दौर में राजनीति के सीनियर पंडितों व्दारा जूनियरों को सलाह दी जाने लगी है कि यदि करियर को चमकाना है तो पार्षद बनकर शुरुआत करो। निकाय की राजनीति से नींव इस क़दर मज़बूत हो जाती है कि हर परिस्थितियों में उपयोगिता बनी रहती है। हाल ही में जारी निगम-मंडल की सूची को देख लें रायपुर नगर निगम में सभापति रहे दो नेता संजय श्रीवास्तव एवं प्रफुल्ल विश्वकर्मा बड़ा स्थान पाए हैं। संजय श्रीवास्तव को स्टेट सिविल सप्लाई कार्पोरेशन (नागरिक अपूर्ति) तथा प्रफुल्ल विश्वककर्मा को लौह शिल्पकार विकास बोर्ड मिला है। ये दोनों ही नेता कभी महापौर, तो कभी विधायक टिकट की दौड़ में रहे थे, लेकिन वो कहते हैं न, “वही होता है जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है”, महापौर-विधायक टिकट से दोनों ही वंचित रहे। एक और बड़ा उदाहरण हैं रायपुर दक्षिण विधायक सुनील सोनी, जिनके राजनीतिक करियर की गाड़ी पार्षद बनने के बाद ही भागना शुरु हुई थी। इसके अलावा रायपुर नगर निगम में पहले महापौर फिर सभापति रहे कांग्रेस नेता प्रमोद दुबे जो भले ही कभी इन्हीं सुनील सोनी के हाथों रायपुर लोकसभा चुनाव में हारे थे, लेकिन सांसद टिकट पाए तो थे। फिर रायपुर दक्षिण उप चुनाव की टिकट भले ही यही सुनील सोनी पाए लेकिन वहां से टिकट के लिए नाम तत्कालीन नगर निगम नेता प्रतिपक्ष श्रीमती मीनल चौबे का भी तो चला था, जो कि वर्तमान में महापौर हैं। जो कोई नेता निगम की राजनीति से नाता जोड़े रहे, उनके सुर्खियों में बने रहने की पूरी गारंटी मानी जाती है। तभी तो महापौर रहने के बाद भी एजाज़ ढेबर हाल ही में न सिर्फ़ पार्षद चुनाव लड़ गए थे बल्कि अपनी धर्म पत्नी को भी लड़वाए थे। यह अलग बात है कि पत्नी चुनाव जीत गईं, एजाज़ हार गए।

हीरो-हीरोइन की

भूमिका में भाई-बहन

छत्तीसगढ़ी सिनेमा अनोखे प्रयोग के कारण भी कभी-कभी सुर्ख़ियों में रहता है। हाल ही में रिलीज़ हुई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘मया बिना रहे नई जाय’ की बात कर लें, जिसमें भाई-बहन हीरो-हीरोइन की भूमिका में नज़र आए हैं। भाई करण चौहान और बहन किरण चौहान। बताते हैं इस फ़िल्म के आने से पहले करण और किरण के न जाने कितने ही साथ वाले गाने यू ट्यूब पर हंगामा मचा चुके हैं। बड़े पर्दे पर इस जोड़ी की शुरुआत ‘मया बिना रहे नई जाय’ से हुई है। दावा यही किया जा रहा है कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई सगे भाई-बहन किसी फ़िल्म में हीरो-हीरोइन की भूमिका में नज़र आए हों। इस फ़िल्म के रिलीज़ होने से पहले बहुत से लोगों ने यह कहते हुए जमकर आलोचना भी की कि “हम अपनी संस्कृति को कहां लेकर जा रहे हैं।“ वहीं ‘मया बिना रहे नई जाय’ का निर्माण करने वालों का कहना है कि “भले ही फ़िल्म में भाई-बहन की जोड़ी नायक एवं नायिका के रुप में नज़र आई हो, लेकिन इन पर जितने भी गाने या अन्य सीन फ़िल्माए गए मर्यादा व गरिमा का पूरा ध्यान रखा गया है। हल्कापन कहीं नहीं है।“ ‘मया बिना रहे नई जाय’ की कोई तारीफ़ करें या आलोचना, फ़िल्म सुर्खियां तो बटोर ही रही है।

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